तेरा वह पहला आलिंगन
लगा ही नहीं के किसी पौरुष युक्त पुरुष ने किया हो।
लगा जैसे मेरी अंतरात्मा ही मुझसे मिल रही हो।
अब तक के हर लिजलिजे एहसास से परे तेरे आलिंगन में सुरक्षा थी सम्मान था।
तेरा लक्ष्य अंगों को कचोटना नहीं रूह की मरम्मत कर देना था।
तू यो छुवा जैसे स्कूल से पहली बार रोती बिलखती आई मुझको पिता ने गोद लिया हो।
और फिर
तेरा वह प्रथम स्पर्श, लगा जैसे तुने मान दिया हो मेरे स्त्रीत्व को समाज के सम्मुख।
तेरे उस प्रथम आलिंगन में न मृगमरीचिका थी न ही कोई अफसोस।
था तो बस दो अधूरी आत्माओं का मिलन।
तेरा वो आलिंगन मेरे स्त्रीत्व का सम्मान था जो आज भी गर्व बनकर चमकता है मेरी आँख में।
- आशिता
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