Friday, March 23, 2012

विद्या बागची की कहानी



“कहानी” इस फिल्म की कहानी और पटकथा ने मुझे जितना छुआ शायद ‘पा’ के बाद यह ऐसी दुसरी फिल्म होगी. आज फिल्म देखे चार दिन गुजर चुके हैं लेकिन फिर भी इसके दृश्य आँखों के आगे घूम रहे हैं. डाईलोग कानो में गूंजते से सुनायी देते हैं. इस फिल्म ने एक ऐसी प्यास जगाई है जो इसे बार बार देख कर ही मिटाई जा सकती हैं. “कहानी” पहली फिल्म हैं जिसके बारे में मैं अपने ब्लॉग और फेसबुक नोट्स में लिख रही हूँ. एक बेहतरीन कहानी, गजब का कसा हुआ निर्देशन, अद्भुत सम्पादन, बंगाल की मिट्टी की खुशबू लिये हुए संवाद और सोने में सुगंध लिये हुए विद्या बालन का अभूतपूर्व, अद्वितीय, अनुपम, अतुल्य अभिनय. बोलीवुड की सभी सस्पेंस थ्रिलर पर भारी हैं यह फिल्म, शुरू से आप जो सोचते हैं वो वैसा हैं ही नहीं जैसा वो दिख रहा हैं. शायद फिल्म का एक दृश्य भी आप चूक गए तो यह आपका नुकसान हैं इतनी जल्दी घटनाओं का प्रवेश होता हैं लेकिन फिर भी विद्या और सिर्फ विद्या ही आपके दिमाग में होती हैं. परम्ब्रतो चटर्जी ( राणा ) तो विद्या की सखी और फोलोवर लगते है.  कहानी की कहानी इतनी कास कर गुंथी गई हैं कि शुरू से आखरी तक आपको बांधे रखती हैं. खास कर क्लाईमेक्स जब आप कुछ भी बोल नहीं पाते जो भी आपकी आखों के सामने हो रहा हैं उससे सकते और असमंजस में आकर बस वाह ! क्या बात हैं यही मुँह से निकलता हैं.
जिन्होंने ‘मेरिड टू अमेरिका’ देखी हैं उन्हें शायद विद्या बागची एक बार पति को खोजती मुसीबतों से जूझती और जान हथेली पर लिये चलती “अर्चना जोगलेकर” की झलक दे सकती है, लेकिन विद्या की मेहनत बड़ी हैं वह एक बहुत बड़े उदेश्य के लिये लड़ रही हैं. शतरंज की  इस बिसात पर जिसके नाम पर वह लड रही हैं ना तो वो और उसका वजूद कही हैं और ना उसके दुश्मन उसे दिख रहे हैं. प्रेग्नेंट विद्या अपने बच्चे के लिये जब यहाँ वहाँ धक्के खाती हैं तो हर कोई उससे सहानुभूति जताता हैं लेकिन जब वह दुर्गा बनती हैं तो हर कोई उसे सलाम – प्रणाम करता हैं.
विद्या बालन के रूप में हमे एक ऐसी अदाकारा मिली हैं जो  बदनाम मुन्नी, जवान शीला और चिकली चमेली की तरह सस्ती पब्लिसिटी के पीछे नहीं जाती. “यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भावती भारतं अभ्युत्थानम अधर्मस्य तदात्मानम सृजाम्यहम” विद्या इस बात पर बिलकुल खरी उतरती हैं. जिस बोलीवुड में हीरोइन के लिये चाह कर भी कोई खास काम नहीं निकल पाता था वह सिर्फ एक रूप की सफेद गुडीया बन कर रह जाती थी, वहाँ विद्या अपने अभिनय से कुछ साबित करने निकली हैं, जिसे सार्थक सिनेमा के मायने पता हैं और छिछोरे होते सुनहरे पर्दे पर वह अपनी गंभीरता से अपना नाम लिख रही हैं. जिस तरह के रोल वे कर रही हैं वे सही मायने में भारतीय स्त्री के नजदीक और उसके प्रतिनिधी हैं. डर्टी पिक्चर की सिल्क औरत की अतृप्त इच्छाओं को दिखाती हैं तो पा की माँ एक वात्सल्यमयी लेकिन स्वाभिमानी औरत हैं. जिसे अपने सम्मान का ख्याल है. अगर अभिनय की बात करें तो विद्या बालन नित नए आयम खड़े कर रही हैं. हाल ही में विद्या बालन ने द डर्टी पिक्चर में एक बोल्ड किरदार को पर्दे पर जीवंत किया था और अभी उन पर से उस बोल्ड किरदार का रंग उतरा भी नहीं था कि उन्होंने “कहानी” के द्वारा एक स्त्री के उस वजूद को पर्दे पर साक्षात रूप से जीवंत कर दिया जिसमें स्त्री शक्ति का रूप है, वह अगर चाहे तो कुछ भी कर सकती है कुछ भी. ‘कहानी’ के अंत में बच्चन के जो स्वर सुनायी देते हैं वे विद्या पर भी लागू होते हैं. फिल्म में विद्या बागची द्वारा किये गए साहस की कोई मिसाल नही हैं. कहते हैं अपने मेमने को बचाने के लिये बकरी तक शेर से लड़ जाती हैं. विद्या बागची भी अपने बच्चे के हक के लिये उसके अस्तित्व के लिये अकेली सिस्टम से लड रही हैं. जान को रोज जोखिम में डाल रही हैं. बाब बिस्वास द्वारा उसे मेट्रो के सामने फेकने वाला सीन किसी की भी रूह को कपा देने के लिये काफी हैं. अंतिम दृश्यों में क्या वह नायिका जगदम्बा से कमतर आंकी जा सकती हैं ??  धामजी को मारते वक्त  उसके बाल बिखरे हुए... उडती हुई साडी से जो बात याद आती हैं वो जगदम्बा दुर्गा हैं. पुरी फिल्म  में विद्या असुरों से लड़ती हुए दुर्गा माँ के संघर्ष की  याद दिलाती हैं. विद्या के लिये तो बस एक ही बात दिमाग में आती हैं  कि “इन सब मर्दों में यही तो अकेला इकलौता मर्द हैं”

सात्यकी अर्जुन का रथ संचालक ..हां बिलकुल "कहानी" में सात्यकी सिन्हा विद्या बागची के रथ के संचालक ही तो थे जिसे उसने जहा चाहा वहा ले गई. लेकिन मासूम सा राणा किसी के भी दिल को आसानी से छू लेता हैं. आईबी ऑफिसर का छोटा सा रोल भारतीय सुरक्षा विभाग के अधिकारियों की मजबूती और जुर्म से लड़ने के तरीकों को बहुत आसानी से दिखाता हैं. आज से पहले पर्दे पर जितने हत्यारे आये वे सब भयावह डरावने दीखते थे लेकिन बाब बिस्वास, इतनी मासूम शक्ल की किसी को भरोसा ना हो कि वह कितना खूंखार हैं.  
अगर अमिताभ बच्चन के गाये हुए “एकला चलो रे” की बात आ कि जाए तो सब व्यर्थ हैं. बंगाली ना होते हुए भी जैसे उन्होंने गाया वो गुरु रविन्द्र नाथ टैगोर को सच्ची श्रद्धांजली हैं. क्लाईमेक्स में उनके द्वारा किया गया वोईस ओवर सुन कर ऐसा लगता हैं कि पुराणों और वेदों में जिस आकाशवाणी की बात कि गई है वह ऐसे ही सुनायी देती होगी. इतनी डिवाइन, अद्भुत और प्युर वोईस हैं वो.
लास्ट बट दा मोस्ट इम्पोरटेंट “निर्देशक फिल्म का असली हीरो होता हैं”  कहानी इतनी अच्छी कभी नहीं बन पाती अगर सुजॉय घोष वहाँ नही होते. अब से पहले कई फिल्मो कई सीरियलों में कोलकाता को देखा लेकिन उस शहर की असली खूबसूरती कभी सामने नहीं आयी.कोलकाता को रंगों और त्यौहार का शहर कहा जाता है और अगर आपको यह बात नजदीक से समझनी है तो इस फिल्म को जरूर देखना चाहिए. कोलकाता की सुंदरता का शायद ही कोई ऐसा रंग हो जिसे निर्देशक ने छोड़ा हो. निर्देशक सुजॉय घोष ने फिल्म के हर भाग को इस कदर पिरोया है जैसे मोतियों की कोई माला.कोलकाता अभी भी युयोर मैजेस्टी की दुनिया में जीता है, जो लंडन से आयी एक गर्भवती महिला को पूरा सम्मान और सत्कार देता है. ये सुजॉय का कोलकता से प्रेम ही था जिसकी वजह से शहर की  खूबसूरती इतनी मजबूती से सामने आयी. जिसने उस जगह से प्रेम किया हैं वही उसे इतना प्रेम लौटा सकता हैं. दुर्गा पूजा के बारे में बहुत सुना, बहुत देखा, बहुत पढ़ा लेकिन ‘कहानी’ में दुर्गा पूजा देखने के बाद ये दिली तमन्ना हैं कि एक बार इसे खुद देखू. नारी में दुर्गा होती हैं यह कई बार सुना था लेकिन सुजॉय घोष ने इसे सिद्ध करके पर्दे पर दिखा दिया !!! 

इतना अद्भुत सिम्बोलईजेशन शायद ही किसी फिल्म में हुआ होगा. कहानी की टीम को सलाम !!! सुजॉय घोष को सलाम !!! 




Friday, March 9, 2012

Rahul Dravid ; The true gentleman of the gentlemen's game



राहुल द्रविड़ सिर्फ एक नाम नहीं बल्कि क्रिकेट की परिभाषा हैं. भाग्यशाली हैं वे लोग जिन्होंने द्रविड़ की बल्लेबाजी देखी हैं. ऐसा कलात्मक बल्लेबाज सदियों में एक बार होता हैं और फिर कई सदियों तक याद रखा जाता हैं. जब जब राहुल मैदान पर जमें रहे सामने वाली टीम के हौसले टूटते रहे. जब तक वे क्रीज पर रहते भारतीय टीम से हार दूर ही रहती थी. द्रविड़ असीमित प्रतिभा के स्वामी हैं उनका स्टेमिना अद्भुत था. वे घंटो नहीं दिनों मैदान पर बिता दिया करते थे. कौनसा ऐसा क्रिकेट प्रेमी होगा जो लक्ष्मण के साथ उनकी ऑस्ट्रेलिया के विरुध्ध की गई उनकी मैराथन सांझेदारी को भूल सकेगा.


    प्रिय राहुल,
आपको एक शब्द में परिभाषित करना कठिन ही नहीं असंभव हैं. लेकिन फिर भी मैं एक नाकाम सी कोशिश करना चाहूंगी. 
जब भी कोई बड़ा क्रिकेटर और खिलाड़ी अपने खेल को अलविदा कहता हैं तो उनकी तारीफ की  जाती हैं. उनकी  प्रशंसा में गीत गाये जाते हैं. लेकिन जिस तरह से आज तुमने संन्यास लिया क्या वह तुम्हारे लायक था. क्या हम दर्शकों का यह हक नहीं था कि हम तुम्हारी उस आखरी टेस्ट पारी को अपनी आँखों में बसा सके. जब तुम वापस पवेलियन की  तरह बढ़ो तो हम खड़े होकर तालियाँ बजा सके. 
मुझे आशाए थी तुमसे कि तुम्हारा आखरी टेस्ट यादगार होगा....भज्जी..युवी..माही...सुरेश और विराट तुम्हे अपने कंधो पर उठाकर मैदान के चक्कर लगाएंगे. अपनी पत्नी डॉ विजेता और बच्चों के साथ तुम मैदान में खड़े  होकर गर्व से अलविदा कहोगे. स्टेंड में तालियाँ होगी और तुम्हारे चेहरे पर लंबी पारी खेलने के बाद आया पसीना और गर्व की रेखाएं. मैच के बाद कमेंटेटर्स के साथ बात करते हुए तुम्हारी आँखों में कुछ नमी होगी लेकिन शायद उपरवाले को कुछ और ही मंजूर था. ये सब वैसे नहीं हुआ जैसे हमने सोचा था.. तुम्हारी विजय यात्रा को मंजिल मिली भी तो एन चिन्नास्वामी स्टेडियम से, वही जगह जहाँ से तुम दुनिया जीतने निकले थे. 
वह जगह जहाँ तुमने बल्ला उठाना सिखा था उसी जगह को तुमने बल्ला टांगने के लिये चुना. लेकिन जब जब कलात्मक खेल की बात होगी तुम्हारा नाम ही सबसे ऊपर होगा... आने  वाली ना जाने कितनी पीढियां तुम से प्रेरणा लेगी ....और ना सिर्फ क्रिकेट की ही क्यू एक अच्छा इंसान बनने की  भी. एक सच्चा और ईमानदार व्यक्तित्व बनने की....
मैं निश्चित हूँ कि तुम इस खेल से ऊबे नहीं  थे, यह तो तुम्हारा प्यार था जिसे तुमने  इतना प्यार दिया अपना सब कुछ सींच कर, कि ना जाने कितनो को भी इस खेल से प्यार हो गया. अद्भुत जीजीविषा है तुममे. हार को जीत में बदलने की, हर घड़ी, हर पल संघर्ष करने की. असीमित धैर्य और अपरिमित शक्ति के स्वामी हो तुम. लेकिन किसी विवाद में पडना नहीं सिखा तुमने...राहुल उस खेल के सम्राट हैं जिसे भारत में धर्म माना जाता हैं जहा बहकने के हजारों रास्ते हैं परन्तु फिर भी द्रविड़ हमेशा स्थिर और स्थितप्रग्य देखे गए. 
वे इतने साधारण हैं कि यही बात उन्हें आसाधारण बनाती हैं. उनकी वह सहज मुस्कराहट किसी को भी अपना बना लेने  के लिये काफी हैं. 
मैं हमेशा उनको एक ऑल राउंडर के रूप में गिनना पसंद करुँगी... दो हजार तीन विश्वकप फाईनल में पहुँचने वाली टीम में राहुल ही विकेट कीपर थे. तो उनके द्वारा गेंदबाजी के भी कुछ ओवर डाले गए थे और सफलता पूर्वक विकेट भी लिये गए थे. शोर्ट लेग पर सबसे अच्छे फिल्डर भी राहुल ही रहे. याद कीजिये कोलकाता कई वह एतिहासिक पारी. यही नहीं तीन नम्बार पर बल्लेबाजी करने वाले द्रविड़ ने वक्त पड़ने पर छह नंबर पर आकर भी बल्ला घुमाया हैं,.विपक्षी टीम के गेंदबाज गेंदे फेक फेक कर थक गए लेकिन द्रविड़ के कई बार पूरा पूरा दिन क्रीज पर बिताया. एक शुद्ध भू वैज्ञानिक कई तरह हर बार तुमने क्रीज को पढ़ा उसे समझा और विपक्षियो को समझाया की खेल क्या होता हैं . 
जब भी भविष्य इतिहास के महानतम खिलाडियों को याद करेगा तो सुनील गावस्कर, कपिल के साथ तुम्हारा नाम गर्व से लिया जाएगा. हम भाग्यशाली हैं राहुल जिसने तुम्हारे खेल को देखा. 
नहीं जानती मैं कि अब तुम्हारे बिन भारतीय टीम मुसीबतों में टेस्ट के पांच दिनों तक कैसे जूझ पायेगी, कठिन से कठिन पिच पर पहला विकेट गिर जाने पर भी हम विचलित नहीं होते थे क्योकि नंबर तीन पर हमारे राहुल हर मुसीबत से लड़ने और पछाड़ने को तैयार होते थे. घंटो चलने वाली तुम्हारी पारी को देखना जिंदगी से सबसे अनमोल सुखो में से एक हैं. मुझे नफरत होती थी उन हाईलाईट्स से जिनमे  सिर्फ चौके और छक्के दिखाए जाते थे. सिर्फ इसलिए क्योकि मैं तुम्हारी कलात्मक पारी की दीवानी थी... आज भी आज हैं मुझे पकिस्तान का दौरा एक घंटे बाद मेरी दसवी बोर्ड कई परीक्षा थी लेकिन मैं तुम्हे देख रही थी, क्रिकेट हमेशा से मेरे हर तनाव को ध्वस्त करता आया हैं. और इसी ने मुझे प्रेरणा दी लड़  जाओ..दम लगाकर लड़ो जीत जरुर मिलेगी. 

शुक्रिया राहुल 
प्रेम, स्नेह और आदर के साथ 


साथी और पूर्व दिग्गजों की  प्रतिक्रियाएं ...

सचिन तेंडुलकर

क्रिकेट जगत में राहुल द्रविड़ जैसा खिलाड़ी कोई दूसरा नहीं है। मैं उन्हें ड्रेसिंग रूम में मिस करूंगा। साथ ही मैदान पर बल्लेबाजी करते हुए भी उनकी कमी बहुत खलेगी। उनके जैसे दिग्गज बल्लेबाज की तारीफ के लिए शब्द हमेशा कम ही रहेंगे।

वीवीएस लक्ष्मण

द्रविड़ की बल्लेबाजी की सबसे बड़ी खूबी प्रदर्शन में निरंतरता रही है। मैं हमेशा से उनकी इस खूबी का प्रशंसक रहा हूं और इससे सीख लेता रहता हूं। उनके साथ बल्लेबाजी करने से मेरे प्रदर्शन में भी निखार आता है। उनके साथ मैदान पर बल्लेबाजी करना वाकई गर्व की बात है।

सौरव गांगुली

द्रविड़ हर क्षेत्र में चैंपियन हैं। मैं उनका बड़ा प्रशंसक हूं। उनका जिंदगी की तरफ नजरिया बहुत प्रभावशाली है।

जवगल श्रीनाथ

मैंने कभी द्रविड़ को अपना आपा खोते हुए नहीं देखा। वो अपनी कुंठा को सिर्फ अपने तक ही सीमित रखते हैं। वो भारतीय टीम के सबसे ज्यादा मेहनती खिलाड़ी हैं।

ग्लेन मैक्ग्राथ

द्रविड़ एक क्लासिक खिलाड़ी हैं। वो उन बल्लेबाजों में से नहीं हैं जो कि हर गेंद पर रन बनाना चाहते हैं। ना ही उनकी बल्लेबाजी तकनीक में कोई खामी है। वो मानसिक रूप से बेहद मजबूत हैं। यदि आप द्रविड़ का आउट करना चाहते हैं तो शुरुआत से ही प्रयास करना होगा। यदि वो एक बार पिच पर जम गए तो उन्हें आउट करना बेहद मुश्किल होता है।

शोएब अख्तर

सचिन तेंडुलकर एक महान खिलाड़ी हैं। लेकिन मेरे लिए द्रविड़ को आउट करना हमेशा से ज्यादा बड़ी चुनौती रही है। उनका डिफेंस बहुत अच्छा है और वो अन्य बल्लेबाजों की तुलना में कम शॉट खेलते हैं। 

ब्रायन लारा

यदि मुझे अपनी जिंदगी के लिए किसी को बल्लेबाजी के लिए उतारना है तो मैं राहुल द्रविड़ या जैक कैलिस को उतारूंगा।

इयान चैपल

आपकी टीम यदि मुश्किल में है तो आप किस पर भरोसा करेंगे? राहुल द्रविड़ पर।

ज्यॉफ बॉयकॉट

उनका नाम  द वॉल है। किसी को यदि क्रिकेट सीखना है तो उसे द्रविड़ की बल्लेबाजी देखनी चाहिए। उन्हें बल्लेबाजी से प्यार है और वो निरंतर बल्लेबाजी कर सकते हैं। एक अच्छा और एक महान खिलाड़ी होने में अंतर होता है। द्रविड़ वाकई महान खिलाड़ी हैं।
हर्ष भोगले 
अगर टीम के लिये पानी पर भी चला पड़े तो द्रविड़ हिचकिचाएंगे नहीं वे सिर्फ वे पूछेंगे कि कितने किलोमीटर चलना हैं. 

नवजोत सिंह सिद्धू
राहुल टीम के हित में कांच के टुकडो पर भी चल के दिखा सकते हैं.