Thursday, March 2, 2017

माँ

क्योंकि माँ सिर्फ माँ नहीं होती
वो जगदम्बा होती है
कभी गौर से देखना उसे
दिखलाई देंगे तुम्हे आठ आठ हाथ
चेहरे पर होगी वहीं लाली
तुम्हारे यानी अपनी बच्चों को बचाने की खातिर
चढ़ जाएगी वो शिव अपने पति की छाती पर
जूझ जाएगी वो अकेली
तनाव रुपी तुम्हे सताते उस रक्तबीज से।
चीर देगी वो सर तुम्हारी ओर आते कष्टो का चंड मुंड समझ कर।

कभी देखा है उसे रसोई में
खाना बनाते हुए
तेजी से बेलन दौड़ाते दोनों हाथ
तवे पर टिकी निगाहें
और
घड़ी को पछाड़ने की तेजी

तुम्हे तैयार भी कर देना
और
बस्ते से चुपके से पैसे भी रख देना।
बर्तन भी मांज लेना
और तुम्हारे मैले कपड़े भी धो देना।

क्या अब भी तुम्हे लगता है
उसे नहीं है जगदम्बा की तरह आठ आठ हाथ।

समेट लेती है
अपनी झोली में वो तुम्हारे सारे गम
और लुटा देती है
अपनी सारी खुशियां
तुम चाहे बना दो उसका जीवन अभिशाप
वो बस देती है वरदान
तब क्यों नहीं लगता तुम्हे
वहीं है
नवरात्रो वाली माता
जो मिटा देती है भक्तों के सारे गम।
- आशिता दाधीच