Wednesday, October 26, 2016

Mahendra Singh Dhoni

My review on movie Mahendra Singh Dhoni untold story

माही दोस्त मजा नहीं आया। सॉरी यारा।

तुम अज़हर नहीं हो ना कि तुम्हे इस महिमामंडन की जरूरत थी।

तुम हो और हम तुम्हे जानते है, यह सब दिखाने की क्या जरूरत थी। प्रियंका झा, साक्षी, सब पता है धोनी हमे।
तुमने कौनसा शतक कब लगाया, जयपुर पारी में कितने छक्के लगाये तुम भूल गए होंगे हम नहीं भूले।

पान सिंह का बेटा, टिकट कलेक्टर धोनी, माता का भक्त धोनी, हैलीकॉप्टर वाला धोनी सब याद हैं हमे।

हाँ, हम विराट को चाहने लगे है पर तुम्हे भूले नहीं है, बिलकुल वैसे ही जैसे हमे आज भी श्रीनाथ, सचिन, राहुल सारे के सारे याद है और अपने पोते पोतियों के होने तक याद रहेंगे। जब हम अपने घर का पता भूल जाएंगे तब भी सौरव का ऑफ़ कट, सचिन का अपर कट और तुम्हारा हैलीकॉप्टर याद रहेगा।

और तुम तो अभी खेलते हो, फिर 22 गज की पट्टी से 72 एमएम तक जाने की जरूरत क्या थी दोस्त।
दोस्त किस संघर्ष की बात कर रहे हो तुम।

तुम दुति चाँद नहीं हो जिसे औरत होने के बावजूद मर्द कहा गया।
तुम मिल्खा नहीं हो जिसने विभाजन की दुखान्तिका देखी हो।
तुम मैरी कॉम नहीं जो आईसीयू में बच्चा होने पर भी पंच मार रही थी।
तुम वो एथलीट नही हो जिसे ज़िंदा रहने के लिए मिट्टी खानी पड़ी हो।

सॉरी दोस्त।

पर तुम एक मिडल क्लास परिवार के बेटे हो, और उस तबके से हो जहां से तीन चौथाई भारतीय आते है, यूपीएससी टॉप करते है, टूटे स्कूटर पर जिम्नास्ट प्रैक्टिस करते है, स्ट्रीट लाइट में पढ़ते है।

लगभग 80 प्रतिशत भारतीय परिवारों में बच्चे के सरकारी नौकरी में रहने का प्रेशर होता है।

याद है ना आर माधवन का थ्री इडियट्स वाला किरदार, जिसे फोटो ग्राफर बनना था पर उसके पिता उसे, इंजीनियर बनते देखना चाहते है। अधिकांश भारतीय परिवारों में बच्चे वही बनते है जो माँ बाप चाहते है, तो क्या अनोखा संघर्ष दिखा रहे हो तुम, दोस्त। तुमने विद्रोह किया, कई करते है, अपने सपनों का पीछा किया कई करते है।

फिल्म खुबसूरत है बेशक खूबसूरत है,सुशांत गजब है, नो डाउट, पर लाखों सवाल है मेरे दिल में।

इस महिमांडन की क्या जरूरत थी दोस्त?
©आशिता दाधीच

'Adios Amigo' Bye my friend

जा दोस्त जा
जाना ही है तुझे
पर फिर भी मैं रख लुंगी अपने साथ।

बिलकुल चुपचाप
बिना किसी को बताए
जैसे माँ रख देती थी
बैग के कोने में
रोटी और आचार।

जैसे खत्म होने से पहले भर देते थे
पापा मेरा गुल्लक हर बार।

सबको लगेगा तुम नही हो मेरे साथ।

पर तुम रहोगे वैसे ही
जैसे खीर में रहती है शक्कर।
और
सोने में रहती है रत्ती भर की खोट।

तुम्हे भी बिना पता चले
रख लुंगी अपने पास,
उतना ही छुपा कर
जितना मेरी पीठ पर
बना हुआ टैटू छुपा है।

और
तुम चलते रहोगे मेरे साथ
वैसे ही जैसे
चलती है मेरी
परछाई।

कोई तकलीफ नही होगी
तुम्हे इस दरमियाँ
क्योंकि
मैं रखूंगी तुम्हे वैसे ही
जैसे हथिनी रखती है
अपने बच्चे को
बारिश में
बिलकुल अपने पेट के नीचे।

साथ रख लुंगी तुम्हे वैसे ही
 जैसे
रख लेती है अँधेरे को
दीपक की छाया।

नहीं जाने दूंगी तुम्हे
वैसे ही जैसे
आम के पेड़ को रोक लेती है
गिलखी की वो बेल।

रोक लुंगी तुम्हे।
रख लुंगी अपने पास।
क्योंकि जाना तो तुम्हे है ही,
पर
साथ भी तो चलना है तुम्हे।
साथ रहना है
मुझमें
मेरे होकर।
©आशिता दाधीच