जा दोस्त जा
जाना ही है तुझे
पर फिर भी मैं रख लुंगी अपने साथ।
बिलकुल चुपचाप
बिना किसी को बताए
जैसे माँ रख देती थी
बैग के कोने में
रोटी और आचार।
जैसे खत्म होने से पहले भर देते थे
पापा मेरा गुल्लक हर बार।
सबको लगेगा तुम नही हो मेरे साथ।
पर तुम रहोगे वैसे ही
जैसे खीर में रहती है शक्कर।
और
सोने में रहती है रत्ती भर की खोट।
तुम्हे भी बिना पता चले
रख लुंगी अपने पास,
उतना ही छुपा कर
जितना मेरी पीठ पर
बना हुआ टैटू छुपा है।
और
तुम चलते रहोगे मेरे साथ
वैसे ही जैसे
चलती है मेरी
परछाई।
कोई तकलीफ नही होगी
तुम्हे इस दरमियाँ
क्योंकि
मैं रखूंगी तुम्हे वैसे ही
जैसे हथिनी रखती है
अपने बच्चे को
बारिश में
बिलकुल अपने पेट के नीचे।
साथ रख लुंगी तुम्हे वैसे ही
जैसे
रख लेती है अँधेरे को
दीपक की छाया।
नहीं जाने दूंगी तुम्हे
वैसे ही जैसे
आम के पेड़ को रोक लेती है
गिलखी की वो बेल।
रोक लुंगी तुम्हे।
रख लुंगी अपने पास।
क्योंकि जाना तो तुम्हे है ही,
पर
साथ भी तो चलना है तुम्हे।
साथ रहना है
मुझमें
मेरे होकर।
©आशिता दाधीच
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