Sunday, July 20, 2014

वो चूड़ीवाला That Bangle seller



- Ashita Dadheech


डिप्पी, जरा उस लड़के को तो देख कितना क्यूट है| कौन....? हुह लेडिज डिब्बे में भी कही मर्द होते हैं| अरे, किताब से नजर हटा, उस चूड़ी वाले को देख तो| झुंझलाकर दीपशिखा ने नजरें उठाई और बस ठिठक कर उसे ही देखती रह गई| ये क्या? चूड़ी वाला और वो भी इतना क्यूट, इतना हैंडसम.... गरीबी बहुत बुरी चीज हैं, हैं ना आरती| हां बिलकुल, कहकर आरती अपने एयरफोन में बज रहे संगीत में फिर खो गई, और दीपशिखा, उसकी नजरें तो आज उस चूड़ी वाले से हट ही नहीं रही हैं| अब तक शायद, चूड़ी वाला भी इसे महसूस कर चुका था| उसने पलट कर दीपशिखा को एक नजर देखा, गोरी सी, दुबली –पतली लड़की, चश्में से झांकती बड़ी –बड़ी कजरारी आंखें, पूरे कपड़ों में ढंकी कंचन सी काया, बस एक नजर भर कर देखा और फिर पूछ बैठा मैडम चूड़ी लोगी?
उसकी आवाज, यूं लगा डिप्पी को मानो किसी ने मन की वीणा के सभी तारों को एक साथ छेड़ दिया हो| ये क्या हो रहा है मुझे, आज से पहले तक किसी सुंदर, सुदर्शन युवक को देख कर भी ऐसा नहीं लगा था| नहीं चाहिए चूड़ियां, कहकर फिर किताब में नजरें गढ़ा ली उसनें| हाय राम, ये क्या किया मैंने, दो चार चुडियां ले लेनी थी, छी, ये क्या सोच रही हैं तू, चूड़ी वाले पर क्रश आया तुझे, शर्म नहीं हैं| ग्लानी से भर गई, दीपशिखा| डिप्पी चल, मरीन लाइंस आने वाला हैं, उतरना नहीं हैं, आरती की आवाज ने उसे स्वप्न और संशय लोक से निकाला| दुपट्टा ठीक कर के वे दोनों उतर गई| और, चूड़ी वाला, ना उसकी किसी को परवाह नहीं, शायद वह चर्चगेट तक जाएगा|
दीपशिखा और आरती दोनों जे. जे. अस्पताल में डॉक्टर हैं| सुबह साढ़े नौ की फास्ट ट्रेन पकड़ते हैं, बांद्रा से| काम खत्म होने तक अक्सर दस तो बज ही जाती हैं| कम खत्म कर के दोनों ने फिर वापसी की ट्रेन पकड़ी| दीपशिखा की आंखे मानो कुछ तलाश रही थी, वे सहज झुंकी नजरें आज उछल उछल कर डिब्बें में किसी तो तलाश रही थी| डिप्पी क्या हुआ क्या खोज रही हैं, चिढ़ कर आरती ने पूछा| नहीं यार, कुछ भी तो नहीं, मैं तो बस ऐसे ही| आर यू श्युअर? हां बाबा| चल ठीक हैं|
दोनों उतर कर घर चली गई, लेकिन, आरती को सारी रात नींद नहीं आई| वो डिप्पी को आज से नहीं, बीते तेरह सालों से जानती हैं, कुछ तो हैं जो डिप्पी को अंदर ही अंदर कचोट रहा हैं| सुबह, पूछती हैं|
ये सुबह हर सुबह जैसी कहा? आज डिप्पी कुछ अलग लग रही हैं, शायद पाउडर लगा कर आई हैं| क्यों रे, लड़का वडका पटाया हैं क्या? इतना चमक क्यों रही हैं? डिप्पी को ट्रेन में ठेलते हुए आरती ने पूछा| पागल हैं क्या, ऐसा कुछ होता तो तुझे नहीं बताती| कनखियों से चूड़ी वाले को खोजती दीपशिखा ने कहा| हाँ, वो आया हैं, वो रहा| जैसे ज्येष्ठ की गर्मी के बाद तपती जमीन पर बरसात हुई हो, डिप्पी का चेहरा खिल गया| चंद मिनटों में चूड़ी वाले ने भी भांप लिया, लेकिन, इस बार उसने पलट के भी नहीं देखा| कितना निष्ठुर हैं ये, हां, लड़के होते ही ऐसे है, हुह, अब नहीं देखूंगी इसे, चूल्हे में जाए|
इसके बाद ना जाने कितने दिन सप्ताह और महीने इसी कशमकश में बीतने लगे| ना आरती कभी दीपशिखा को पढ़ पाई, ना डिप्पी उसे कुछ कह पाई| वो तो बस अपने में ही उलझी रहती, सुबह चूड़ी वाले को देख लेती तो पूरा दिन खुशी खुशी निकल जाता| अगर, कभी आड़ में से उसे खुद को देखते पा जाती तो, शर्म से लाल हो जाती, चूड़ी वाला भी तो नीची निगाहों से उसे निहार ही लेता हैं|
कभी समझ ही नहीं आया कि उसे क्या हो रहा हैं, शायद, दीपशिखा ने समझने की कोई कोशिश करनी भी नहीं चाही, वो खुश थी उसे देख कर, उसके करीब से गुजर कर| फिर, एक दिन अचानक, चूड़ी वाला नहीं आया| वो बैचेन हो गई, शायद, कही गया होगा, कल आ जाएगा, उसने दिल को समझा लिया|
अगले दिन वो अपने दुवाओं को दुहाई देकर ट्रेन में बैठी, पर चूड़ी वाला तो आज भी नहीं आया| ना जाने क्या वजह हैं? उसका दिल बैठा जा रहा था, रोने का दिल कर रहा था| पूछे भी तो किसे, कुछ समझ नहीं आया| आरती उसकी तकलीफ समझ रही थी, पर कहती भी तो क्या|
क्यों, लिपस्टिक वाले भैय्या वो चूड़ी वाला कहा गया, चूड़ी लेनी हैं| उसने हफ्ते भर बाद डरते डरते एक लिपस्टिक वाले से पूछा| पता नहीं मैडमजी, कहकर वो चला गया| दीपशिखा को चारों और अंधेरा नजर आया रहा था, ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके स्वप्न लोक को आग लगा दी हो|
दिन बीतते चले गए, वो नार्मल सी अपने मरीजों में व्यस्त हो गई| बरसात शुरू हो गई, उस दिन जब वो मरीन लाइंस उतरी तो सामने, ये क्या चूड़ी वाला यहा?
हैल्लो मैडम, पहचाना, मैं चूड़ी वाला?
अरे हां, खुशी छुपाने की नाकाम कोशिश करती दीपशिखा बोली, कहा थे इतने दिन, उसके इस वाक्य में किसी रूठी प्रेमिका की नाराजगी झलक रही थी, शायद चूड़ी वाला भी समझ गया मुस्कुरा कर बोला, ‘मैं यहा कोई चूड़ी बेचने थोड़ी आया हूं, हीरो बनने आया हूं हीरो| गर्व उसके चेहरे से टपक रहा था|
हां, तो, क्या हुआ?
मुझे रोल मिला हैं, सीरियल में, हीरो के दोस्त का, अब चूड़ियां नहीं बेचूंगा|
ओह!!! दीपशिखा की सारी खुशियां शीशे की तरह टूट गई| फिर, मुस्कुरा कर बोली, बधाई हो, खूब तरक्की करो, फिर आज यहां कैसे?
कुछ नहीं आप इसी ट्रेन से आती हो ना, पता था, तो सोचा आपको बता दूं, इसलिए यहा खड़ा था|
ओह, अच्छा किया बताया, मैं चलती हूं, देर हो रही हैं| बिना एक बार पलखें उठाए, दीपशिखा ने कहा, शायद नजरें मिलाने से बच रही थी वो, और बस तेज कदमों से बढ़ चली अस्पताल की ओर|
हाय राम, ये मैंने क्या किया कम से कम उसका नाम तो पूछ लेती, वो पलटी उसकी तरफ जाने के लिए लेकिन तब तक वो चर्चगेट की ट्रेन में बैठ कर निकल गया|