वास्तविक भागवत तो तुम हो राधिके
किसे तुम्हारे सौभाग्य पर, मूर्त हुआ है समस्त आर्यावर्त.
तुम्हारे सिन्दूर के मूल्य पर जीवित रहा है समस्त भारत वंश.
राधा, कृष्ण प्रिया हो तुम, अपने समस्त रोम में तुमने कृष्ण कों जिया है.
उससे सच्चा प्रेम किया तुमने,
इसलिए कर्म के पथ पर उसे अग्रसर करवाकर देवता बना डाला तुमने.
उसे योगेश्वर बना डाला और स्वयं एक विरहणी ही बनी रह गयी.
तुम चाहती तो अक्रूर के रथ के सम्मुख आकार कृष्ण कों रोक लेती.
तुम प्रेयसी हो, नैनो से नैन मिला कर कहती "ना जाओ कान्हा"
तो क्या जा पाता तुम्हारा कृष्ण
यमुना के किनारे, सघन कुंजो में उसकी बांह पकड़ कर उसे कहती
"कान्हा मैं कैसे रहूंगी रे, ना जा" तो ना जा पाते कृष्ण
उसी गोकुल में रह जाते यशोदानंदन.
गायें चराते, वत्सो के संग दौड़ते और माखन चुराते रह जाते कृष्ण
गीता के समरांगण में अर्जुन कों "कर्मण्ये वाधिकारस्ते" का उपदेश देने वाले द्वारिकाधीश से वंचित हो जाता ये जग
अधर्मियो और पापियों के विनाश से वंचित रह जाता ये जग
महर्षि व्यास के अद्वितीय काव्य कों कोई गति नही मिल पाती जो तुम नही होती राधिके.
तुम स्वयं प्रेम की देवी हो राधिके, तुम्हारे अश्रु देख कर भी ना पिघल सके ऐसा पत्थर कौन होगा.
विकल, व्यथित हो तुमने अपने कान्हा कों कर्म के पथ पर विदा किया.
और स्वयं समस्त जीवन किया तो सिर्फ विरह की पीर कों सहन,
लेकिन कभी कोई उल्हाना नही दिया.
कृष्ण द्वारिकाधीश होगये, उन्हें पटरानियां थी, वैभव था.
परन्तु तुम ना थी राधिके,
फिर भी तुम्हारा प्रेम शक्ति बनकर कान्हा कों कृष्ण बना रहा था.
तुम्हारी हर वेदना, हर अश्रु के साथ कृष्ण के लिये प्रार्थनाए निकलती थी.
तुम्हारा ही तो प्रेम उसकी प्रेरणा था राधिके. उसकी शक्ति था, उसकी सामर्थ्य था,
तुमने उसे योगीराज, द्वारिकाधीश कृष्ण बनाया.
अपने प्रेम के मूल्य पर मनुष्य की कई संततियो पर उपकार किये तुमने.
उन्हें एक आराध्य दिया पूजा के लिये,
परन्तु उस आराध्य की आराधना भी तुम हो और उसकी वास्तविक आराध्य भी तुम.
ना पांडव विजय सुनिश्चित होती, ना किसी दुष्ट जरासंध या कंस का संहार होता,
पृथ्वी यू ही पाप के बोझ से दबी जाती राधिके जो तुम ये त्याग ना करती.
समस्त मानवता की रक्षिका हो तुम.
श्रीमदभागवतमहापुराण और भगवदगीता का मूल हो तुम
समस्त वेद, पुराणों और उपनिषदों का सार हो तुम.
राष्ट्र और राष्ट्रीयता की रक्षिका हो तुम.
तुम्हारी प्रेम के मूल्य पर द्वापरयुग कृष्ण का युग बन पाया.
वास्तविक भागवत तो तुम हो राधिका.
किसे तुम्हारे सौभाग्य पर, मूर्त हुआ है समस्त आर्यावर्त.
तुमने बनाया है कान्हा कों कृष्ण.
तुम महादेवी हो राधिके...वास्तविक भागवत तो तुम हो राधिके
किसे तुम्हारे सौभाग्य पर, मूर्त हुआ है समस्त आर्यावर्त.
तुम्हारे सिन्दूर के मूल्य पर जीवित रहा है समस्त भारत वंश.
राधा, कृष्ण प्रिया हो तुम, अपने समस्त रोम में तुमने कृष्ण कों जिया है.
उससे सच्चा प्रेम किया तुमने,
इसलिए कर्म के पथ पर उसे अग्रसर करवाकर देवता बना डाला तुमने.
उसे योगेश्वर बना डाला और स्वयं एक विरहणी ही बनी रह गयी.
तुम चाहती तो अक्रूर के रथ के सम्मुख आकार कृष्ण कों रोक लेती.
तुम प्रेयसी हो, नैनो से नैन मिला कर कहती "ना जाओ कान्हा"
तो क्या जा पाता तुम्हारा कृष्ण
यमुना के किनारे, सघन कुंजो में उसकी बांह पकड़ कर उसे कहती
"कान्हा मैं कैसे रहूंगी रे, ना जा" तो ना जा पाते कृष्ण
उसी गोकुल में रह जाते यशोदानंदन.
गायें चराते, वत्सो के संग दौड़ते और माखन चुराते रह जाते कृष्ण
गीता के समरांगण में अर्जुन कों "कर्मण्ये वाधिकारस्ते" का उपदेश देने वाले द्वारिकाधीश से वंचित हो जाता ये जग
अधर्मियो और पापियों के विनाश से वंचित रह जाता ये जग
महर्षि व्यास के अद्वितीय काव्य कों कोई गति नही मिल पाती जो तुम नही होती राधिके.
तुम स्वयं प्रेम की देवी हो राधिके, तुम्हारे अश्रु देख कर भी ना पिघल सके ऐसा पत्थर कौन होगा.
विकल, व्यथित हो तुमने अपने कान्हा कों कर्म के पथ पर विदा किया.
और स्वयं समस्त जीवन किया तो सिर्फ विरह की पीर कों सहन,
लेकिन कभी कोई उल्हाना नही दिया.
कृष्ण द्वारिकाधीश होगये, उन्हें पटरानियां थी, वैभव था.
परन्तु तुम ना थी राधिके,
फिर भी तुम्हारा प्रेम शक्ति बनकर कान्हा कों कृष्ण बना रहा था.
तुम्हारी हर वेदना, हर अश्रु के साथ कृष्ण के लिये प्रार्थनाए निकलती थी.
तुम्हारा ही तो प्रेम उसकी प्रेरणा था राधिके. उसकी शक्ति था, उसकी सामर्थ्य था,
तुमने उसे योगीराज, द्वारिकाधीश कृष्ण बनाया.
अपने प्रेम के मूल्य पर मनुष्य की कई संततियो पर उपकार किये तुमने.
उन्हें एक आराध्य दिया पूजा के लिये,
परन्तु उस आराध्य की आराधना भी तुम हो और उसकी वास्तविक आराध्य भी तुम.
ना पांडव विजय सुनिश्चित होती, ना किसी दुष्ट जरासंध या कंस का संहार होता,
पृथ्वी यू ही पाप के बोझ से दबी जाती राधिके जो तुम ये त्याग ना करती.
समस्त मानवता की रक्षिका हो तुम.
श्रीमदभागवतमहापुराण और भगवदगीता का मूल हो तुम
समस्त वेद, पुराणों और उपनिषदों का सार हो तुम.
राष्ट्र और राष्ट्रीयता की रक्षिका हो तुम.
तुम्हारी प्रेम के मूल्य पर द्वापरयुग कृष्ण का युग बन पाया.
वास्तविक भागवत तो तुम हो राधिका.
किसे तुम्हारे सौभाग्य पर, मूर्त हुआ है समस्त आर्यावर्त.
तुमने बनाया है कान्हा कों कृष्ण.
तुम महादेवी हो राधिके...वास्तविक भागवत तो तुम हो राधिके
बहुत सुंदर. :)
ReplyDeleteराधिका तो भगवान से भी बढ़ कर हैं.