व्यंग पर आजमाया पहला हाथ
ग़ालिब की मौत
अरे ग़ालिब मियाँ क्या बात है, कुछ हैरान परेशान से नजर आ रहे हो, अपने दिल की कहों।
क्या कहूँ मेरे मौला, बस सोच रहा हूँ, मेरे शेर कैसे होंगे, इतनी मेहनत से लिखा था उन्हें अब जमीं पर कोई नामलेवा भी होगा या नहीँ उनका, कोई दोहराता भी होगा उन्हें क्या?
हाहाहा दुःख ना करों ग़ालिब मियाँ तुम्हारे ढ़ेरों आशिक़ ज़िंदा है अभी और कायनात के आखिर तक रहेंगे, पर...
पर क्या मेरे मालिक, हुकुम कीजिए...
तुम्हारे सच्चे आशिक तो एक से एक है, पर ये मुआं इंटरनेट, न जाने क्या क्या होता है, क्या और एक वो मरजाना व्हाट्सएप पता ही नहीं चलता कौन तुम्हारा मेहबूब है और कौन नहीं। छोडो इन बातों को ग़ालिब जाओ सोजाओ,
पर मौला
ग़ालिब, मेरे हुकुम की तामील हो।
(अगले दिन सुबह) ग़ालिब तुम तो कहते थे, मौत का एक दिन मुअययन है नींद क्यों रात भर नहीं आती, तो इस रात क्यों नींद नहीं आई तुम्हे मेरे नेक बन्दे।
मालिक मैं आपका बन्दा हूँ न तो अपनी खुदाई को दीदार करा दो, जर्रे को इसके मेहबूब से मिला दो, मुझे जमीन पर जाना है या मेरे मालिक,
ए मेरे बन्दे ऐसी जिद न कर इसमें तेरा ही नुक्सान है,
न मालिक,
ठीक है, ये ले मोबाईल नामका भयानक यन्त्र इसमें है मुआं फेसबुक और व्हाट्सएप, इससे अपने आशिकों को खोज और जिससे मिलना चाहे मिल ले। जा....
और ग़ालिब की जैसे आँख बन्द हो गयी, आँखे खुली तो मरीन ड्राइव पे खड़े थे, या मेरे मौला क्या जन्नती नजारा है, पहले मिला होता तो ये गुलाम बीसियों और शेर लिख लेता।
अचानक ग़ालिब का मोबाइल भनभनाया किसी दीपा दीक्षित ने ग़ालिब का फोटो और चार शेर फेसबुक पे ड़ाले थे, बस ग़ालिब ने दिल ने चाहा और प्रकट हो गए दीपा के सामने,
हू आर यू ओल्ड मैन,
मोहतरमा हम कलमकार है, ग़ालिब के बारे में बात करने आए है,
ओह ग़ालिब ही इज ए वैरी कूल गाई, आई तोह जस्ट लव हिम्, मुव्वह्ह् ग़ालिब मुवाह...
(लाहौल विला कुव्वत ये मोहतरमा तो हमारी इज्जत लूट लेंगे) ग़ालिब फुसफुसाए, मोहतरमा आपने ग़ालिब का इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश ग़ालिब, जो लगाए न लगे, जो बुझाए न बुझे शेर सुना है...
होहोहो यू आर वैरी फनी अंकल, ये तो एसआरके ने कहा था दिल से में मनीषा कोइराला को..
हाय अल्लाह ये मुवां एसआरके कौन है, दोजख में जाएगा ये, हमारे शेर चुराके अपने नाम पे चलाता है, अब तो हम यही रहेंगे जमीं पर, अपने शेरों को चोरो से बचाएंगे।
अचानक किसी व्हाट्सएप ग्रुप से घनघोर ग़ालिब ग़ालिब सुनाई दिया और मोबाइल की स्क्रीन जगमगाई,
वाह मेरे आशिक आ गए, देखू तो क्या कह रहे है,
और ग़ालिब ने चैट पढ़ना शुरू किया,
जब से देखा है तुझको नींद नहीँ आती, ग़ालिब तू औरत है या नींद भगाने की गोली।
लिल्लाह ये शेर हमने नहीं लिखा, ग़ालिब की आत्मा रो पड़ी।
बीबी मेरी रेशन की डोरी, मैं उसका जुगनू, पर डर जाऊ जब जब उसको देखूं - चचा ग़ालिब ने कहा है
हाय अल्लाह, हमारी बेगम ऐसा शेर देख लेंगी तो हमारे भूत को भी मार देंगी। चलो तीसरा मैसेज देखूँ, क्या कहता है...
ग़ालिब ने कहाँ है - चला तो था मैं अकेला ही घर से मोहब्बत की तलाश में भूखा प्यासा, रास्ते में गन्ने के जूस की दूकान मिली और रस पीके ही लौट आया।।
या मेरे खुदा, कैसे कमजर्फ लोग है ये, क्या क्या भेज रहे है, मेरे नाम पे, दोजख में जाएंगे सारे।
अचानक मोबाइल फिर झंझनाया, फेसबुक पर ग़ालिब फैन ग्रुप नजर आया, एडमिन ने शेर ड़ाला था, कौन जीता है तेरी जुल्फ के सर होने तक, ग़ालिब का आत्मा नाच उठी, झट से जा कर एडमिन को धर लिया और कहा
तू खुदा का सच्चा बन्दा है, ग़ालिब के और शेर सुना,
खुदा कर बन्दा बोला रुक, ग़ालिब की शायरी का सॉफ्टवेयर खोलने दे।
गोया ये क्या बला है?
देख पंटर किसी को बोल मत बट अपन इधर से शेर कॉपी करके पेस्ट करता है, सबको, ग़ालिब कूल है यार, उसका फैशन कभी नहीं जाता और इम्प्रेशन भी मस्त पड़ता है।
लाहौलविलाकुव्वत, ये सब देखने सुनने से पहले मैं मर क्यों नहीं गया, अरे हाँ, मैं तो मरा हुआ ही हूँ, अच्छा हुआ मैं मर ही गया, या मेरे मौला ये इन रोज रोज एक नई मौत मारने वाले आशिकों से मुझे बचा, मुझे वापिस बुला के मालिक, रहम कर।
©आशिता दाधीच
#AVD
ग़ालिब की मौत
अरे ग़ालिब मियाँ क्या बात है, कुछ हैरान परेशान से नजर आ रहे हो, अपने दिल की कहों।
क्या कहूँ मेरे मौला, बस सोच रहा हूँ, मेरे शेर कैसे होंगे, इतनी मेहनत से लिखा था उन्हें अब जमीं पर कोई नामलेवा भी होगा या नहीँ उनका, कोई दोहराता भी होगा उन्हें क्या?
हाहाहा दुःख ना करों ग़ालिब मियाँ तुम्हारे ढ़ेरों आशिक़ ज़िंदा है अभी और कायनात के आखिर तक रहेंगे, पर...
पर क्या मेरे मालिक, हुकुम कीजिए...
तुम्हारे सच्चे आशिक तो एक से एक है, पर ये मुआं इंटरनेट, न जाने क्या क्या होता है, क्या और एक वो मरजाना व्हाट्सएप पता ही नहीं चलता कौन तुम्हारा मेहबूब है और कौन नहीं। छोडो इन बातों को ग़ालिब जाओ सोजाओ,
पर मौला
ग़ालिब, मेरे हुकुम की तामील हो।
(अगले दिन सुबह) ग़ालिब तुम तो कहते थे, मौत का एक दिन मुअययन है नींद क्यों रात भर नहीं आती, तो इस रात क्यों नींद नहीं आई तुम्हे मेरे नेक बन्दे।
मालिक मैं आपका बन्दा हूँ न तो अपनी खुदाई को दीदार करा दो, जर्रे को इसके मेहबूब से मिला दो, मुझे जमीन पर जाना है या मेरे मालिक,
ए मेरे बन्दे ऐसी जिद न कर इसमें तेरा ही नुक्सान है,
न मालिक,
ठीक है, ये ले मोबाईल नामका भयानक यन्त्र इसमें है मुआं फेसबुक और व्हाट्सएप, इससे अपने आशिकों को खोज और जिससे मिलना चाहे मिल ले। जा....
और ग़ालिब की जैसे आँख बन्द हो गयी, आँखे खुली तो मरीन ड्राइव पे खड़े थे, या मेरे मौला क्या जन्नती नजारा है, पहले मिला होता तो ये गुलाम बीसियों और शेर लिख लेता।
अचानक ग़ालिब का मोबाइल भनभनाया किसी दीपा दीक्षित ने ग़ालिब का फोटो और चार शेर फेसबुक पे ड़ाले थे, बस ग़ालिब ने दिल ने चाहा और प्रकट हो गए दीपा के सामने,
हू आर यू ओल्ड मैन,
मोहतरमा हम कलमकार है, ग़ालिब के बारे में बात करने आए है,
ओह ग़ालिब ही इज ए वैरी कूल गाई, आई तोह जस्ट लव हिम्, मुव्वह्ह् ग़ालिब मुवाह...
(लाहौल विला कुव्वत ये मोहतरमा तो हमारी इज्जत लूट लेंगे) ग़ालिब फुसफुसाए, मोहतरमा आपने ग़ालिब का इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश ग़ालिब, जो लगाए न लगे, जो बुझाए न बुझे शेर सुना है...
होहोहो यू आर वैरी फनी अंकल, ये तो एसआरके ने कहा था दिल से में मनीषा कोइराला को..
हाय अल्लाह ये मुवां एसआरके कौन है, दोजख में जाएगा ये, हमारे शेर चुराके अपने नाम पे चलाता है, अब तो हम यही रहेंगे जमीं पर, अपने शेरों को चोरो से बचाएंगे।
अचानक किसी व्हाट्सएप ग्रुप से घनघोर ग़ालिब ग़ालिब सुनाई दिया और मोबाइल की स्क्रीन जगमगाई,
वाह मेरे आशिक आ गए, देखू तो क्या कह रहे है,
और ग़ालिब ने चैट पढ़ना शुरू किया,
जब से देखा है तुझको नींद नहीँ आती, ग़ालिब तू औरत है या नींद भगाने की गोली।
लिल्लाह ये शेर हमने नहीं लिखा, ग़ालिब की आत्मा रो पड़ी।
बीबी मेरी रेशन की डोरी, मैं उसका जुगनू, पर डर जाऊ जब जब उसको देखूं - चचा ग़ालिब ने कहा है
हाय अल्लाह, हमारी बेगम ऐसा शेर देख लेंगी तो हमारे भूत को भी मार देंगी। चलो तीसरा मैसेज देखूँ, क्या कहता है...
ग़ालिब ने कहाँ है - चला तो था मैं अकेला ही घर से मोहब्बत की तलाश में भूखा प्यासा, रास्ते में गन्ने के जूस की दूकान मिली और रस पीके ही लौट आया।।
या मेरे खुदा, कैसे कमजर्फ लोग है ये, क्या क्या भेज रहे है, मेरे नाम पे, दोजख में जाएंगे सारे।
अचानक मोबाइल फिर झंझनाया, फेसबुक पर ग़ालिब फैन ग्रुप नजर आया, एडमिन ने शेर ड़ाला था, कौन जीता है तेरी जुल्फ के सर होने तक, ग़ालिब का आत्मा नाच उठी, झट से जा कर एडमिन को धर लिया और कहा
तू खुदा का सच्चा बन्दा है, ग़ालिब के और शेर सुना,
खुदा कर बन्दा बोला रुक, ग़ालिब की शायरी का सॉफ्टवेयर खोलने दे।
गोया ये क्या बला है?
देख पंटर किसी को बोल मत बट अपन इधर से शेर कॉपी करके पेस्ट करता है, सबको, ग़ालिब कूल है यार, उसका फैशन कभी नहीं जाता और इम्प्रेशन भी मस्त पड़ता है।
लाहौलविलाकुव्वत, ये सब देखने सुनने से पहले मैं मर क्यों नहीं गया, अरे हाँ, मैं तो मरा हुआ ही हूँ, अच्छा हुआ मैं मर ही गया, या मेरे मौला ये इन रोज रोज एक नई मौत मारने वाले आशिकों से मुझे बचा, मुझे वापिस बुला के मालिक, रहम कर।
©आशिता दाधीच
#AVD
बेहतरीन प्रयास,जारी रखें।न तो कलाम को बांधे न ही रुकने दें।
ReplyDeleteबेहतरीन प्रयास,जारी रखें।न तो कलाम को बांधे न ही रुकने दें।
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