तुम्हारा जन्मदिन, कब सोचा था मेरे लिए इतना खास बन जाएगा।
तुम्हारा जन्मदिन, कब सोचा था दिल के इतने करीब बस जाएगा।
बात जन्मदिन की क्यों करू मैं यहां,
ये ही कब सोचा था कि तुम इतने करीब हो जाओगे,
यु छुप कर दिल में बस जाओगे।
याद भी नहीं मुझे, कब देखा था तुम्हे पहली बार,
याद नहीं कि, कब तुमने दिल को छुआ पहली बार,
याद नहीं कि, कब तुमसे ये पलखे झुकी पहली बार.
याद है तो बस इतना कि एक आम से दोस्त थे तुम
इमली शक्कर सी थी दोस्ती मेरी और तेरी।
बहुत खीजती थी मैं तुमसे।
कुछ चिढ़ती थी मैं तुमसे।
मेरे जैसे जो नहीं थे तुम. फिर खो दिया तुम्हे।
फर्क नहीं पड़ा था मुझे कोई, खुद में उलझी सी ही थी.
वैसे ही जैसे रेगिस्तान में एक बार बरसात होती हो.
फिर उस दिन ना जाने कैसे किस्मत खिल गई.
तुम बोले तो यु लगा कि बरसात हुई हो.
तुम हँसे तो यु लगा कि फरिश्ता हंसा हो.
बहती हवा से हो तुम, बहा के गए मुझे।
उड़ते पंछी से हो तुम, उड़ा के ले गए मुझे।
ना जाने कैसे हो तुम, कैसे कर लेते हो ऐसे
बिना खुद के बारे में सोचे बस दुसरो के लिए जीना।
कुछ तो बात है तुममे
इसलिए तुम्हारा जन्मदिन हमारे दिन सिर्फ एक दिन नहीं है.
बल्कि, यह उत्सव है एक व्यक्तित्व का
जिसे अनजाने ना जाने कब से मैं जीने लगी हु
खुद के भीतर गहरे तक, अंदर तक.
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