मेरी कविता
बिलकुल मेरी बेटी जैसी है मेरी हर कविता
जैसे माँ पेट में पालती है एक अनदेखे भ्रूण को।
बुनती बिगाड़ती है कुछ ख्वाब
संजोती है थोड़े से सपने
कुछ डरती है
थोड़ा घबराती
फिर से जुट जाती है सार सम्भाल में।
कैसे होंगे उसके कपड़े झूला और खिलौने
वैसे ही मैं सोचती हूँ क्या होंगे उसके उपमा अलनकार और लक्षण।
तीव्र वेदना पाती हूँ उसकी खातिर।
उसके पात्रों को गर्भस्थ की भांति जी जाती हूँ खुद के भीतर।
और फिर एक दिन
पा जाती हूँ
नन्ही सी
मुस्कुराती
मेरे पेन से डिलीवर होती मेरी बेबी।
एक बार फिर बन जाती हूँ माँ मैं।
उसे साकार देख कर खिल जाती हूँ।
उसे अंक में देख कर जी जाती हूँ।
क्योंकि वो मेहज कविता नहीं
मेरी बेटी बन जाती हैं।
©आशिता दाधीच
You can change ur words for greart poem but not similarly say like your child
ReplyDeleteYou can change ur words for greart poem but not similarly say like your child
ReplyDelete