After covering today's Marathon wrote this poem
जिंदगी की मैराथन दौड़ रही हूँ मैं।
कुछ पा जाने को
काफी कुछ पीछे छोड़ देने को
दौड़ रही हूँ मैं।
किसा का दोस्त बन जाने को
किसी की दुश्मन हो जाने को
अपना बनाने और बिछड़ जाने को
दौड़ रही हूँ मैं।
वो मेरा सबसे प्यारा साथी था
उसी के साथ शुरू की थी दौड़ मैंने
पर ये क्या वो आगे निकल गया
हाथ हिलाकर टाटा करके
बिना एक बार मुड़ के देखे निकल गया वो।
और मैं रह गई अकेली पीछे
किसी नए को अपनाने की कोशिश में।
कुछ आंसू पी जाने
और मुस्कान बंटोरने की कोशिश में।
क्योंकि अब दौड़ रही हूँ मैं।
पर यह क्या
मेरा वो साथी जमीन पर पड़ा है।
खून बह रहा है उसकी नाक से
हांफ रहा है वो
पर मैं रुक नहीं सकती।
क्योंकि दौड़ रही हूँ
मैं
अपनी मैराथन और यहां
नहीं कर सकते नियमों का
उल्लंघन।
मेरा वो साथी पीछे छूट गया
पता नहीं ज़िंदा भी बचा
या मर गया
पर रो नहीं सकती मैं।
क्योंकि मैं दौड़ रही हूँ अपनी मैराथन।
धुप आँखों में घुस कर आंसू निकाल रही है।
सामने धुंधला है सब कुछ।
कुछ नहीं दिखता अब आगे।
मेरे हमराही मेरे पैर भी तुले है
अब साथ छोड़ने को।
सांस भी जैसे निकल जाना चाहती है शरीर का पिंजरा तोड़ कर।
पर
दौड़ रही हूँ मैं।
क्योंकि यह मैराथन है
और यहां रुकने के नियम नहीं है।
पर अब गिर गई हूँ मैं।
पगतलियों से खून की गंगा निकली है
क्या अब कभी चल भी पाउंगी मैं?
पर कैसे रुक सकती हूँ मैं
यह मेरे जीवन की मैराथन है
और जीतना है मुझे इसे।
न जाने वो यकायक कौन आया।
लडखडाती मुझको सम्भाला
थोड़ा सा पानी पिलाया।
कही ये वो तो नहीं
जिसके हाल पूछे थे मैंने पिछली बार
खैर रुक नहीं सकती मैं
कहने को
अब
धन्यवाद।
दौड़ रही हूँ मैं
लगता है खत्म हो गई है धरती
बस मैं ही हूँ अम्बर में व्यापी।
न पास के किसी की खबर
न दूर के अपनों का गम
अब बस कुछ याद नहीं
बस दौड़ रही हूँ मैं
न आगे कुछ दिखता है
न पीछे मुड़ते बनता है
अब
बस दौड़ रही हूँ मैं।
- आशिता दाधीच
©Ashita V. Dadheech
जिंदगी की मैराथन दौड़ रही हूँ मैं।
कुछ पा जाने को
काफी कुछ पीछे छोड़ देने को
दौड़ रही हूँ मैं।
किसा का दोस्त बन जाने को
किसी की दुश्मन हो जाने को
अपना बनाने और बिछड़ जाने को
दौड़ रही हूँ मैं।
वो मेरा सबसे प्यारा साथी था
उसी के साथ शुरू की थी दौड़ मैंने
पर ये क्या वो आगे निकल गया
हाथ हिलाकर टाटा करके
बिना एक बार मुड़ के देखे निकल गया वो।
और मैं रह गई अकेली पीछे
किसी नए को अपनाने की कोशिश में।
कुछ आंसू पी जाने
और मुस्कान बंटोरने की कोशिश में।
क्योंकि अब दौड़ रही हूँ मैं।
पर यह क्या
मेरा वो साथी जमीन पर पड़ा है।
खून बह रहा है उसकी नाक से
हांफ रहा है वो
पर मैं रुक नहीं सकती।
क्योंकि दौड़ रही हूँ
मैं
अपनी मैराथन और यहां
नहीं कर सकते नियमों का
उल्लंघन।
मेरा वो साथी पीछे छूट गया
पता नहीं ज़िंदा भी बचा
या मर गया
पर रो नहीं सकती मैं।
क्योंकि मैं दौड़ रही हूँ अपनी मैराथन।
धुप आँखों में घुस कर आंसू निकाल रही है।
सामने धुंधला है सब कुछ।
कुछ नहीं दिखता अब आगे।
मेरे हमराही मेरे पैर भी तुले है
अब साथ छोड़ने को।
सांस भी जैसे निकल जाना चाहती है शरीर का पिंजरा तोड़ कर।
पर
दौड़ रही हूँ मैं।
क्योंकि यह मैराथन है
और यहां रुकने के नियम नहीं है।
पर अब गिर गई हूँ मैं।
पगतलियों से खून की गंगा निकली है
क्या अब कभी चल भी पाउंगी मैं?
पर कैसे रुक सकती हूँ मैं
यह मेरे जीवन की मैराथन है
और जीतना है मुझे इसे।
न जाने वो यकायक कौन आया।
लडखडाती मुझको सम्भाला
थोड़ा सा पानी पिलाया।
कही ये वो तो नहीं
जिसके हाल पूछे थे मैंने पिछली बार
खैर रुक नहीं सकती मैं
कहने को
अब
धन्यवाद।
दौड़ रही हूँ मैं
लगता है खत्म हो गई है धरती
बस मैं ही हूँ अम्बर में व्यापी।
न पास के किसी की खबर
न दूर के अपनों का गम
अब बस कुछ याद नहीं
बस दौड़ रही हूँ मैं
न आगे कुछ दिखता है
न पीछे मुड़ते बनता है
अब
बस दौड़ रही हूँ मैं।
- आशिता दाधीच
©Ashita V. Dadheech
Best coverage of Marathon
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