वाह क्या खेली है सिंधु एक दम जबरजस्त मजा ही आ गया, क्यों क्या कहती हो जी? चाय की चुस्की लेते हुए शर्मा जी ने अखबार को फड़फड़ा कर बीवी से कहा।
हाँ जी बिलकुल, मिसेज शर्मा ने सर हिलाया।
मैं तो कहता हूँ देश में खेलों का इंफ्रास्ट्रक्चर बढाना चाहिए, हर बच्चे की प्रतिभा को पहचान कर उसे उसके लायक पी टी टीचर बचपन से मिलना चाहिए, तब देखना हर घर से एक सिंधु निकलेगी। शर्मा जी चहक रहे थे।
तभी, बगल के कमरे से लगभग दस बारह साल की सुपेक्षा दौड़ते हुए आई।
पापा पापा, मुझे भी रैकेट दिला दो ना, मैं भी सिंधु दीदी जैसी बनूँगी। शर्माजी का चेहरा यो हो गया जैसे आसमान से गिर पड़े, नहीं बेटा, ये सब अमीरों के चोचले है, अपन तो मध्यमवर्गीय है, तुम पढाई पे फोकस करो डॉक्टर बनना है ना तुम्हे। शर्माजी झेंप छुपाते हुए मुस्काए।
और नन्हीं सी बेटी ये सोचते हुए उलटे पाँव लौट गई कि जब हर घर से सिंधु निकलनी चाहिए तो इस घर से क्यों नहीं??
मध्यमवर्ग बहाना था या एक लाचार बाप की कुछ न कर पाने की बेबसी थी या अखबार पर तालियां पीटना महज ढोंग था या सिस्टम से दबे कुचले हारे संसाधनों के अभाव के दर्द को जानते दिल का दर्द।
©आशिता दाधीच
हाँ जी बिलकुल, मिसेज शर्मा ने सर हिलाया।
मैं तो कहता हूँ देश में खेलों का इंफ्रास्ट्रक्चर बढाना चाहिए, हर बच्चे की प्रतिभा को पहचान कर उसे उसके लायक पी टी टीचर बचपन से मिलना चाहिए, तब देखना हर घर से एक सिंधु निकलेगी। शर्मा जी चहक रहे थे।
तभी, बगल के कमरे से लगभग दस बारह साल की सुपेक्षा दौड़ते हुए आई।
पापा पापा, मुझे भी रैकेट दिला दो ना, मैं भी सिंधु दीदी जैसी बनूँगी। शर्माजी का चेहरा यो हो गया जैसे आसमान से गिर पड़े, नहीं बेटा, ये सब अमीरों के चोचले है, अपन तो मध्यमवर्गीय है, तुम पढाई पे फोकस करो डॉक्टर बनना है ना तुम्हे। शर्माजी झेंप छुपाते हुए मुस्काए।
और नन्हीं सी बेटी ये सोचते हुए उलटे पाँव लौट गई कि जब हर घर से सिंधु निकलनी चाहिए तो इस घर से क्यों नहीं??
मध्यमवर्ग बहाना था या एक लाचार बाप की कुछ न कर पाने की बेबसी थी या अखबार पर तालियां पीटना महज ढोंग था या सिस्टम से दबे कुचले हारे संसाधनों के अभाव के दर्द को जानते दिल का दर्द।
©आशिता दाधीच
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