सिंधु, साक्षी तुम मत करना अपनी जीत हमारे नाम, अब्वल तो इसलिए क्योंकि हम उसके लायक ही नहीं है, दुसरा इसलिए क्योंकि तुम इनसे बहुत ऊपर हो। जब हमारी किसी एथलीट को मिट्टी खाकर पेट भरना पड़ा, तब हम कहा थे, शायद किसी आईपीएल को चीयर कर रहे थे। जब दीपा कर्माकर एक अदद कोच मांग रही थी, हम फिल्मों को सौ करोड़ी बना रहे थे।
इससे भी पहले जब वो छोटे से कद का अभिनव कुछ साल पहले अकेला मैदान में डटा गोलियां चला रहा था, हम कही नहीं थे, ना इंडिया ना अभिनव चिल्लाने के लिए, तब तो ये देशभक्ति ठन्डे बस्ते में रखी थी।
जब माथे पे वह मुकुट लगाये, अपनी मोहिनी सी मुस्कान से राज्यवर्धन चांदी के उस तमगे को चूम रहे थे, तब हम कहा थे। शायद टीवी के सामने राज्यवर्धन राज्यवर्धन चिल्लाते, पर उससे पहले जब वो पसीने बहा रहा था अकेला जूझ रहा था तब।
चलिये अभी की बात करते है एक मैच हार जाने पर सुपर साइना को बैग पैक करने की सलाह देने वाले, पिछले ओलम्पिक्स और कॉमनवेल्थ में कहा थे जब लड़की जुझ रही थी। अरे एक मैच तो फेडरर, जोको और राफा भी हार जाते है।
सरदार सिंह, ध्यानचंद, धनराज को छोड़ कर हॉकी के किसी खिलाड़ी का नाम ही बता दीजिए, चलिये। फरहान अख्तर को मिल्खा सिंह मानने वालों जब हमारे हॉकी के लड़ाके चार बीन बैग और दो चेयर वाले कमरों में थे तब आप सब कहा थे।
साक्षी, सिंधु, मुझे शर्म आ रही है।
आज हम सब तुम्हारे मैडल पर हक जमा रहे है पर उसके लिए बहते तुम्हारे खून, पसीने, दर्द और चीखों को न हमने कभी देखा ना सुना।
मत दो हमे अपना मैडल, हम इस लायक नही है, ये तुम्हारा मैडल है लड़कियों।
जब हमें मैदान में तुम्हारे लिए हर बार वैसे ही जुटते देखो जैसा अपने फाइनल में देखा था, तब हमें मेडल दे देना, पर जब तक हम तुम्हारा हर पग पर साथ न दे, ये मेडल तुम्हारा है।
क्योंकि ये जंग तुम्हारी थी, जिसे तुमने अपने दम पर जीत, हम तो महज स्वार्थियों की तरह आ गए आखिरी मौके पर तुम्हारी जीत का हिस्सा मांगने और उस पर अपना हक जताने।
हमे माफ़ कर दो दुति चाँद, हम कुछ नहीं कर पाए, दीपा माफ़ कर दो हमे। अभिनव, गगन, सॉरी तुम्हे कुछ न देने के लिए, और फिर भी ठीकरा तुम पर फोड़ने के लिए।
अभिनव, तुम सही हो उन विश्व स्तरीय सुविधाओं के बिना, उस महंगे खर्चे के बिना तुम सब जूझ रहे हो और यहां हम है तुम लोगो को वो प्यार तक नहीं दे पाते, न जाने कितनी डोमेस्टिक इंटरनैशनल लड़ाइयों में तुम्हारे साथ खड़े नहीं हो पाते। शायद, किसी और मुल्क में पैदा होते तुम सब तो अब तक बीस तमगे तुम्हारे सीनों पर होते।
माफ़ कर दो हमे, हमारे स्वार्थों के लिए।
-आशिता दाधीच
इससे भी पहले जब वो छोटे से कद का अभिनव कुछ साल पहले अकेला मैदान में डटा गोलियां चला रहा था, हम कही नहीं थे, ना इंडिया ना अभिनव चिल्लाने के लिए, तब तो ये देशभक्ति ठन्डे बस्ते में रखी थी।
जब माथे पे वह मुकुट लगाये, अपनी मोहिनी सी मुस्कान से राज्यवर्धन चांदी के उस तमगे को चूम रहे थे, तब हम कहा थे। शायद टीवी के सामने राज्यवर्धन राज्यवर्धन चिल्लाते, पर उससे पहले जब वो पसीने बहा रहा था अकेला जूझ रहा था तब।
चलिये अभी की बात करते है एक मैच हार जाने पर सुपर साइना को बैग पैक करने की सलाह देने वाले, पिछले ओलम्पिक्स और कॉमनवेल्थ में कहा थे जब लड़की जुझ रही थी। अरे एक मैच तो फेडरर, जोको और राफा भी हार जाते है।
सरदार सिंह, ध्यानचंद, धनराज को छोड़ कर हॉकी के किसी खिलाड़ी का नाम ही बता दीजिए, चलिये। फरहान अख्तर को मिल्खा सिंह मानने वालों जब हमारे हॉकी के लड़ाके चार बीन बैग और दो चेयर वाले कमरों में थे तब आप सब कहा थे।
साक्षी, सिंधु, मुझे शर्म आ रही है।
आज हम सब तुम्हारे मैडल पर हक जमा रहे है पर उसके लिए बहते तुम्हारे खून, पसीने, दर्द और चीखों को न हमने कभी देखा ना सुना।
मत दो हमे अपना मैडल, हम इस लायक नही है, ये तुम्हारा मैडल है लड़कियों।
जब हमें मैदान में तुम्हारे लिए हर बार वैसे ही जुटते देखो जैसा अपने फाइनल में देखा था, तब हमें मेडल दे देना, पर जब तक हम तुम्हारा हर पग पर साथ न दे, ये मेडल तुम्हारा है।
क्योंकि ये जंग तुम्हारी थी, जिसे तुमने अपने दम पर जीत, हम तो महज स्वार्थियों की तरह आ गए आखिरी मौके पर तुम्हारी जीत का हिस्सा मांगने और उस पर अपना हक जताने।
हमे माफ़ कर दो दुति चाँद, हम कुछ नहीं कर पाए, दीपा माफ़ कर दो हमे। अभिनव, गगन, सॉरी तुम्हे कुछ न देने के लिए, और फिर भी ठीकरा तुम पर फोड़ने के लिए।
अभिनव, तुम सही हो उन विश्व स्तरीय सुविधाओं के बिना, उस महंगे खर्चे के बिना तुम सब जूझ रहे हो और यहां हम है तुम लोगो को वो प्यार तक नहीं दे पाते, न जाने कितनी डोमेस्टिक इंटरनैशनल लड़ाइयों में तुम्हारे साथ खड़े नहीं हो पाते। शायद, किसी और मुल्क में पैदा होते तुम सब तो अब तक बीस तमगे तुम्हारे सीनों पर होते।
माफ़ कर दो हमे, हमारे स्वार्थों के लिए।
-आशिता दाधीच
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