A Letter to Sachin Tendulkar
एक पत्र सचिन के नाम -
प्रिय सचिन,
तुम्हारा और मेरा रिश्ता तो मुझे आज भी नहीं पता। आज तो तुम मुझे जानते भी
नहीं हो पर मेरे पिछले दस सालों में तुम्हारे नाम पर मै हजारों बार हंसी
और रोई हूँ।
याद है मुझे, 2003 की तुम्हारी वो पकिस्तान के
विरूद्ध खेली गयी पारी। माँ कहती रहती थी तुममे एक क्लास है, तुम्हारी
बैटिंग वाली खूबी किसी में नहीं।
माफ़ करना सचिन पर मैं एक
गांगुलियन हूँ, मेरे लिए तुम शायद 2006 तक सैकंडरी थे। फिर तुम्हारे
व्यक्तित्व के कई और पहलू देखे मैंने, अच्छा दोस्त, आदर्श भारतीय, बेहतर
पति, प्यारा बेटा, योग्य शिष्य, एक जन नायक। जिसे लोग देखते है, जिसके जैसा
बनना चाहते है, जिससे सीखते है।
धीरे धीरे तुम से मुहब्बत हो
रही थी। लेकिन, तब पता चला कि तुम्हारा फैन होना बहुत कठिन है। दसवीं की
मेरी वो परीक्षा, मेरा गणित का पेपर और तुमने मुझे एक घंटे भी पढ़ने नहीं
दिया। सारे वक़्त में टीवी से चिपके इंडियाआआआआ चिल्ला रही थी। मेरा वो
दोस्त जिससे मैंने पांचवी के बाद कभी बाद नहीं की थी उसे उस दिन तुम्हारे
शतक लगाने की ख़ुशी में सब शिकवे भुला कर गले गला लिया था।
तुमने मुझे सिखाया कि अपने सपनों का पीछा करो, सपनें सच होते है।
फिर
एक बात और पता चली कि तुम्हारे फैन होने का मतलब है अपने ही दोस्तों से
झगड़ा करना। कई बार कि तुम कुछ नहीं कर सकते, मेरी आँखों से आसूं लुढ़के, ना
जाने कितने अपनों से मै तुम्हारे लिए लड़ पड़ी। हर बार वे तुम्हारे समर्पण,
श्रद्धा, निश्चय और प्रयासों पर सवाल उठाते थे, लेकिन खंजर मेरे सीने पर
चलता था।
राहुल, वीरू, लक्ष्मण, माही, पोंटिंग, गिब्स सबसे प्यार था मुझे लेकिन, इस प्रेम की जड़ में मेरा पूर्ण पुरुष तुम थे सचिन।
तुम्हे
क्या पता, एक बार बड़े शौक से मैँ 15 रुपये का तुम्हारा पोस्टर लाइ थी।
सोचा था इसे अपनी पलंग के पास लगाउंगी, लगाया भी। अगली सुबह इतनी मनहूस
होगी मुझे नहीं पता था, उसी सुबह तुम्हे टेनिस एल्बो हो गया। ना जाने कितने
विशेषज्ञों ने तुम्हारा कैरियर ख़त्म होने की भविष्यवाणी कर दी। "ये सब
मेरी वजह से हुआ ना, सचिन, ना मै पोस्टर लगाती ना तुम बीमार होते।" रो रो
कर मैंने वो पोस्टर फाड़ा था। लेकिन उसके टुकड़ों के साथ मेरा भी दिल फटा था।
पता है, उस दिन के बाद मैंने कभी तुम्हारा नाम तक नहीं लिया, कभी नहीं
कहा कि तुम मेरे लिए क्या हो। तुम्हे कितना पुजती हूँ, कितना चाहती हूँ,
सब अपने दिल में दबा लिया। तुम्हारे चौकों - छक्कों पर नाचने और झूमने का
हर बार दिल हुआ पर मैं अपनी भावनाएं दिल में ही दबाती रही। यह सोच कर कि
कहीं तुम आउट ना हो जाओ। खुद पर बहुत गुस्सा आया, चिढ हुई कि मैं तुम्हारा
जश्न नहीं मना सकती, कई बार तो यु ही अपने इसी अन्धविश्वास की खातिर झूठ
मुठ ही सही पर तुम्हारी बहुत बुराइयां भी कि, मुझे इन सबके के लिए माफ़ कर
दो सचिन। कर दोगे ना?
तुम्हारा दिल भी तो बहुत बड़ा है ना।
आज भी बहुत कुछ कहना है मुझे तुमसे, लेकिन मुझसे शब्द नहीं निकल रहे।
समझ सकते हो ना मेरी स्थिति। तुम भी तो इससे गुजरे हो अपने आज के रियरमेंट
भाषण के दौरान।
मुझे एक बात बताओं सचिन, तुम इतना मीठा, इतना
प्यारा और इतना अद्भुत कैसे बोल लेते हो। चाहे तुम्हारे पापा की कवितायें
हो या मैच के बाद की स्पीच। दिल जीतने का यह हुनर कहाँ से सिखा तुमने? सिखा
तो अच्छा किया लेकिन आज संन्यास लेकर दिल दुखाना रुलाना कहाँ से आ गया तुम्हे? तुम तो
अब तक हमें ख़ुशी के आंसूं देते आये थे। आज क्या हो गया अचानक?
सौरव रिटायर्ड हुए मैं दो दिन तक सुबकी, राहुल के वक़्त पूरे
हफ्ते दिल दुखता रहा। आज भी कई बार पूछ बैठती हूँ कि राहुल ने कितने बनाये।
तो तुम ही बताओं ना, तुम्हारे बिना कैसे जिउंगी? कितनी बार तुम्हे याद
करुँगी।
तुम ने अपनी प्रतिभा से पूरी दुनिया को भारत की ओर देखने
के लिए मजबूर कर दिया।
सौरव गांगुली के तेज दिमाग, राहुल द्रविड़ के संयम, वीवीएस लक्ष्मण की
कलात्मकता, सहवाग के विस्फोट ने तुम्हारी नैसर्गिकता को अपराजेय बना दिया।
तुम सेंचुरी पर सेंचुरी मारते गए। पहले गावस्कर का 34 शतकों का रिकॉर्ड
तोड़ा, फिर सारे रिकॉर्ड तोड़ डाले। तुम्हारे वो सौ शतक आज आँखों में घूमते
है, अगर भगवान् भी मुझे सौ वरदान मांगने को कहे तो मै उससे तुम्हारी वो सौ
पारियां दुबारा देखना मांग लूं।
हम हमेशा लड़े, सचिन, कभी जाती
के नाम पर कभी धर्म के नाम पर, कभी प्रान्त के नाम पर। लेकिन जब जब तुम आये
हम सब एक हो गये। सचिन, देश को एक सूत्र मे बांधने, इतनी खुशी
देने के लिए
शुक्रिया!
No comments:
Post a Comment