आज फिर गुजरी उन रास्तों से,
जहां हम मिला मिला करते है।
जहां हम मिला मिला करते है।
कल गूंजती थी वहां हमारे स्नेह की दास्तान,
पर आज वहां पसरा है तो बस सन्नाटे का वीरान।
पर आज वहां पसरा है तो बस सन्नाटे का वीरान।
इक तुझसे बिछड़े के बाद क्या क्या ना बदला,
अब उन रास्तों ने भी मुझे अजनबी की तरह देखा।
अब उन रास्तों ने भी मुझे अजनबी की तरह देखा।
जैसे नहीं हो मेरा वास्ता कोई, उन रास्तों से,
ना हो मेरा परिचय कोई उस पेड़ की छाँव से।
ना हो मेरा परिचय कोई उस पेड़ की छाँव से।
शायद, तुम्हारी तरह भूल गये वे भी,
कि वे ही मेरा काबा, मेरा मदीना और है मेरी काशी,
जहां मिला करती थी मै तुमसे, और हो जाती थी हाजी|
कि वे ही मेरा काबा, मेरा मदीना और है मेरी काशी,
जहां मिला करती थी मै तुमसे, और हो जाती थी हाजी|
जहां गाती थी तुम्हारे गीत मै किसी मीरा की तरह,
जहां बुनती थी कुछ सपने उन्मुक्त बालिका की तरह।
जहां बुनती थी कुछ सपने उन्मुक्त बालिका की तरह।
जहां सुनाती थी, तुझे अपनी गीता किसी कृष्ण की तरह,
बिना थके, बिना झुंझलाए तू भी सुनता था उसे अर्जुन की तरह।
बिना थके, बिना झुंझलाए तू भी सुनता था उसे अर्जुन की तरह।
तुम्हारे बिछडने से बदल गया है कितना कुछ,
जिंदगी बदली है कुछ अंदाज बदले है।
जिंदगी बदली है कुछ अंदाज बदले है।
पर वो पेड़, वो गलियां, वो लहरे, वो समुंदर
सब कुछ आज भी वैसा ही है।
सब कुछ आज भी वैसा ही है।
बस एक तू बदल गया है।
bahut khub
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