Monday, September 2, 2013

पा जाती हूँ हर कही तुम्हे

पा जाती हूँ हर कही तुम्हे
आँखें बंद कर के
धडकनों को कुछ थम कर
महसूस कर लेती हूँ तुम्हे
हर कही, हर पल
आसमान में ऊँची उडती चिड़ियाँ के साथ उड़ते
समंदर की गहराइयों में मछलियों के संग तैरते
किसी फूल पर बैठ कर भँवरे की तरह रस चूसते
किसी तितली की तरह डालियों पर मंडराते
खुद के भीतर पा जाती है तुम्हे
खुद के साथ रोते और हँसते महसूस करती हूँ तुम्हे
वीरानियों में और आबादियों में महसूस करती हूँ तुम्हे
लहराती हुई डालियों और झूमती हुई फिजाओं में पाती हूँ तुम्हे
फड़फड़ाती हुई पत्तियों और बलखाती हुई हवाओं में पाती हूँ तुम्हे
पंछियों के साथ चहचहाते, कोयल के साथ गाते देखती हु तुम्हे
जहां देखती हु तुम्हे देखती हूँ में
पा जाती हूँ हर कही तुम्हे