Sunday, December 27, 2015

Today is Sunday

इतवार है आज 
पर ये काम भी न कितना ज्यादा है 
खत्म ही नहीं होता।
ये लो फाइलों पे फाइलें।
न जाने क्यों 
सारा काम आ गिरता है 
मेरे ही सर हर बार। 
न खत्म होता है 
न खत्म होने का नाम लेता है। 
कितना है यह काम। 
पर क्यों न इस बीच हो जाए थोड़ा आराम।
पी लूँ चाय उसी टपरी पे 
जहां जाते है बाकी के सारे। 

आओ आओ मैडम जी 
बोलो कैसे चाय बनाऊ
ब्लैक ग्रीन या डार्क 
कम शक्कर या ज्यादा चीनी। 
पर पहले आप बैठ तो जाओ।

देखो कितनी गन्दी कुर्सी है। 

रुकिए न मैडम जी 
कुर्सी की सफाई के लिए मेरी ये कुर्ती है। 

वो बमुश्किल बारह साल का चिंटू 
उस कुर्सी को पोंछ रहा था।
और मैं देख रही थी 
अपनी कुर्ती 
उजली सी वो कुर्ती
जिसको साफ़ न धोने पे मारा था 
मैंने सपना को 
वो भी पिछले रविवार को

पूछा नहीं कभी उससे 
पर नहीं होगी वो 
पुरे सोलाह की।
न जाने क्यों
सात घरो में कपड़े बर्तन करती है।

जिस हरैसमेंट एट वर्क प्लेस की 
हम शिकायत करते है
वो भी उससे गुजरती है। 

मैडम जी सुनिए ना 
चिंटू बोला
बहन मेरी मुनिया आई है 
तीन रोटी और मिर्ची लाइ है। 
क्या मैं खा लू पहले उनको। 

टपरी के उस ओर पीले पोछे सी फ्रॉक में थी मुनिया
क्या करती हो बेटा 
क्या पूछा मैंने 
डर गई वो ऐसे जैसे मैंने उसे सजा सुनाई हो।

दीदीजी हम पेन बेचते है इस्कूल के बाहर 
और रविवार को सिग्नल पे भी 

कभी गई हो क्या तुम भी इस्कूल 

क्या पूछा मैंने दर्द उभर आया उन आँखों में।

एक बार इक लड़की के पैसे गुम गए थे 
और सबने सोचा चोर लिए है हमने वो
तब गई थी मैं इस्कूल 
मारे थे सबने मुझको दो तीन थप्पड़। 

चिंटू को देकर पांच रूपये आना था 
अब मुझको भी दफ्तर 
बड़ा काम है 
कई फाइले है मेज पर 
जबकि आज इतवार है। 

फिर देखा चिंटू मुनिया और सपना को 
और 
याद आया
आज इतवार है। 
©आशिता दाधीच 
Ashita Dadheech
#AVD

Tuesday, December 1, 2015

26/11 Mumbai Attack

दीपा मैडम हाथ में छड़ी पकड़े क्लास में इधर से उधर घूम रही थी। दूसरी क्लास की यह स्ट्रिक्ट क्लास टीचर बच्चों को मुखर बनाने और अभिव्यक्ति परायण बनाने में विश्वास रखती है, अचानक ब्लैक बोर्ड के पास जाकर दीपा मैडम ने फरमान सुनाया, चलो सब अपने पापा के बारे में कुछ बताओ।
प्रांजल तुम बोलो।
मैडम मैडम मेरे पापा सबसे अच्छे है। रोज डेरी मिल्क लाते हैं मुझे मम्मी की मार से भी बचाते हैं आई लव यू पापा।
अंकित तुम।
मेरे पापा डैडी है वो मुझे खूब प्याल करते है और बज्जि ले जाते हैं।
निमिषा तुम।
मेरे पापा मुझे कन्धे पे घुमाते हैं लोरी भी सुनाते है औल होमवल्क कलाते हैं।
अंकुश तुम्हारी बारी।
मैडम मेरे पापा फोटो में रहते है और मम्मी को रोज रुलाते हैं। मुझछे कबी मिलने नहीँ आते पल मम्मा कहती है पापा बहुत अच्छे थे ओल वो छ्हीद हो गए है न इछलिये नहीँ आते।
©आशिता दाधीच

A story which was born after visiting house of a martyr today.



अरे वो देख निशा जा रही हैं।
अरे छोड़ उसे क्या देखना।
रूपा और पूजा ने निशा को सामने से आते देख कर रोज की तरह नाक भौ सिंकोड लिए और फुसफुसाहट शुरू कर दी।
आठ साल हो गए, अपने माँ बाप को भी खा गई ये कुलटा। ना जाने कब से विधवा बनी बैठी है। आज मैंटेक्स बैंक की मैनेजर बन गई है पर जब देखो मनहूस शक्ल लिए घूमती है। ना तन पे गहना और ना रंगीन कपड़े।
कोई भी अच्छा लड़का मिलता इसे पर जब देखो खुद को विधवा कह कर लड़कों को भगा दिया इसने। दो रिश्ते तो मैं ही लाइ थी। कितनी इन्सल्ट हुई मेरी पता हैं।
इस गम में इसके माँ बाप भी तो मर गए पर ये नहिं सुधरी।
हो न हो बाहर मुंह मारती होगी और एक लड़के के साथ नहीँ रहना चाहती होगी इसलिए ढोंग करती हैं।
रूपा और पूजा हंस पड़ी और छोड़ अपने को क्या कह कर अपने अपने घर चलती बनी।
और निशा
वो अपने बैडरूम में
अनिकेत की तस्वीर में बनी उसकी आँखों में आँखे ड़ाल कर सोच रही थी...
पगला, सात साल तक प्यार करने के बाद प्रपोज कर पाया और इसे इतनी भी क्या जल्दी थी कि मेरे आई लव यू टू कहने से पहले ही कल जवाब देना कह कर उस मनहूस 26.11 की शाम अपनी रूटीन पेट्रोलिंग पर निकल गया। कम से कम जवाब तो सुन जाता या शायद उसे जवाब सुनना ही नहीं था। उसने कह दिया यहीँ उसके लिए काफी था।
©आशिता दाधीच
26.11 Dairy

Tuesday, November 17, 2015

My Poem My Daughter

मेरी कविता 

बिलकुल मेरी बेटी जैसी है मेरी हर कविता
जैसे माँ पेट में पालती है एक अनदेखे भ्रूण को।
बुनती बिगाड़ती है कुछ ख्वाब 
संजोती है थोड़े से सपने 
कुछ डरती है 
थोड़ा घबराती 
फिर से जुट जाती है सार सम्भाल में। 
कैसे होंगे उसके कपड़े झूला और खिलौने 
वैसे ही मैं सोचती हूँ क्या होंगे उसके उपमा अलनकार और लक्षण। 
तीव्र वेदना पाती हूँ उसकी खातिर। 
उसके पात्रों को गर्भस्थ की भांति जी जाती हूँ खुद के भीतर। 
और फिर एक दिन 
पा जाती हूँ
 नन्ही सी 
मुस्कुराती 
मेरे पेन से डिलीवर होती मेरी बेबी।
एक बार फिर बन जाती हूँ माँ मैं। 
उसे साकार देख कर खिल जाती हूँ। 
उसे अंक में देख कर जी जाती हूँ। 
क्योंकि वो मेहज कविता नहीं 
मेरी बेटी बन जाती हैं।
©आशिता दाधीच

Monday, October 12, 2015

Woman Journalist

कितना आसान होता है आप लोगों के लिए यह कहना कि लड़की है इस पर तो स्टोरीयां बरसती होगी। ऑफिसर तो इससे मिलने के लिए मरते होंगे।
हो सकता है कोई हमें लड़की होने के चलते अच्छे से ट्रीट करता भी हो।
पर भूल जाते है आप कि फिल्ड पर आप ही लोगों की तरह धुप में तपते है हम। तन झुल्साते है अपना। महावारी के उस दर्द में कहाँ से कहाँ उछलते है कूदते है भागते है वह भी बिना किसी सहयोग और सम्वेदना की अपेक्षा किये। बिना अपनी सुरक्षा के लिए चिन्तित हुए देर रात गुमनाम गलियों में भटकते हम भी है। शहर के उन दादाओं के साथ चाय हम भी पीते हैं। अपने हर दर्द को छिपाये फोन से चिपके खबर कन्फर्म करते है। लेकिन आखिर में सुनते है क्या कि वो तो लड़की है उसे खबर मिलेगी ही। हम भी दो दिन से बिना लंच किये फिल्ड पे थे कमिश्नर आईजी और डीन की कैबिन में भटकते वह खबर पाई थी हमने अपने माद्दे से। क्योंकि जब हम कोई सहयोग मांगते है तब आप ही कहते है जर्नालिज्म में लड़का लड़की नहीं होते बस पत्रकार होते हैं। हाँ तो याद रखिये मैं बस पत्रकार ही हूँ।

cigarette

सिगरेट
क्या एश ट्रे थी मैं तुम्हारी 
या सिगरेट थी मैं तुम्हारी।

जब मन चाहा 
मुझे होठो से लगाया
जब चाहा हाथों से मरोड़ा
धुंए में उड़ाया।

जब दिल किया
मुझे दूर फेंका।
फिर झटक कर उठाया।
दोस्तों में भी बांटा।

कभी एक कश में खींचा
कभी घंटो तक सताया
कचरे में डाला
पैरों से रौंदा।

एश ट्रे समझ मुझको
हर गंदगी से नहलाया
मुझमें कचरा भर डाला
और झटके में बाहर भी फेंका।

जब चाहा डिबिया से निकला 
उँगलियों से छुवा
मुझसे दुःख सुख भी बांटे
फिर अपनी निर्ममता दिखलाई।

कभी न पूछा मैं कैसी हूँ
मुझे क्या चाहिए
हाँ मैं सिगरेट थी तुम्हारे लिए
पर तुम भूल गए 
सिगरेट पर भी ध्यान न दो तो 
वो भी जला देती है 
सूरज और आग की तरह


©आशिता दाधीच 
#AD #AVD 

Drug Addict

ड्रग एडिक्ट
जिन्दगी में आए उस तूफ़ान के बाद सिया पहली बार माँ पापा के साथ आउटिंग पर निकली थी। तीनों ऊटी की वादियों का लुफ्त उठा रहे थे। पहाड़ी पर चढ़ते हुए अचानक लडखडाती माँ को सँभालने के लिये प़ापा ने कस कर उनका हाथ थाम लिया। न जाने माँ को क्या सुझा पापा का हाथ झटका और धीरे से बोली सिया अभी अभी एक ब्रेक अप से गुजरी है। तुम उसके साथ चलो। हम तो चल लिए साथ पर अब उसके साथ चलना है उसे किसी की कमी खलने नहीं देनी है।
सोच में डूब गई दिया सिया, मेरी बेटी जानबूझ कर किसी ड्रग एडिक्ट से प्यार करके धोखा खाती तो क्या मैं उसे इतनी आसानी से माफ़ कर पाती।
- आशिता दाधीच
#ooty #memories #preeclub #SO #AD #DrugAddict #ChainSmoker #Alcoholic #FakeLove #MomDad #parentsLove #Railway #Charsi #Source #addiction

Nathdwara, Shri Nathji

यों तो नाथद्वारा पहुंचे अभी एक दिन भी नहीं हुआ पर कई भाव उमड़ आए और लिख डाली ये कविता
ये मेरे श्याम की नगरी हैं 
यहाँ सवेरा मंगला के दर्शन की ध्वनी से होता हैं। 
यहाँ गुरुद्वारे की अरदास और मस्जिद की नमाज में भी कृष्ण कन्हैया लाल की जय हैं। 
भूखे प्यासे बस दर्शनों की धुन है 
न बारिश का डर न धुप का ताव 
बस गोविन्द नाम का बुखार हैं।

ये मेरे श्याम की नगरी हैं। 
यहाँ बस राधा नाम ही सत्य हैं। 
चालीस दिनों की होली है और 
सबसे लम्बी दीपावली
यहाँ अन्न लूट कर खाना भी शुभ हैं।

ये मेरे श्याम की नगरी हैं। 
यहाँ भिखारी भी खीर पूरी से उकताया है।
लोगो को बस पुदीने की चाय ढोकला भाया हैं। 
खाने को छप्पन व्यंजन का थाल भी सजा हैं।

ये मेरे श्याम की नगरी हैं। 
यहाँ हर लडका कृष्ण का सखा और हर लडकी गोपी हैं। 
कान्हा ही बेटा है भाई पिता और पति भी हैं। 
घंटो दर्शनों की कतारे है रबड़ी बासुंदी के प्रसाद हैं।

ये मेरे श्याम की नगरी है।
यहाँ न कोई हिन्दू न मुस्लिम न ब्राह्मण न क्षुद्र यहा तो बस सब वैष्णव है। 
न दुःख है न परेशानी न अपना न कोई पराया हैं। 
इस गाँव में हर बेगाना भी अपना हैं

ये मेरे श्याम की नगरी हैं। 
यहाँ न कलह है न वैमनस्य 
ये मेरे श्याम की नगरी हैं। 
यहाँ बस प्रेम है उत्सव हैं। 
ये मेरे श्याम की नगरी हैं।
यहाँ बस राग है भोग हैं। 
ये मेरे श्याम की नगरी हैं। 
ये मेरे श्याम की नगरी हैं।


©Ashita_Dadheech

Saurav Ganguly The Tiger


तुझे मैंने चाहा है तब से जब पता भी नहीं थे मायने प्यार के।
तुझे मैंने पूजा है तब से जब मायने भी पता न थे आराधना के।

बस  चाहा है तुझे
बिना कुछ चाहे।

बिन मिले भी मेरे दिल में बसना तुझे कैसे आया।
चश्मे से झांकती उन आँखों से दिल कैसे चुराया। 

कभी तुझमे पापा का मार्गदर्शन पाया।
तो कभी तू माँ सा स्नेही नजर आया।
भाई सा अहम तूने मुझमें जगाया।
पति होने का धर्म दिखलाया।

कभी न हारना
लड़ जाना 
जूझ लेना।
साबित करना।
अपनी राह बनाना।
न जाने कितना कुछ सिखलाया।
अनेकों बार हंसाया
और 
फिर खूब रुलाया।
आंसू पोंछ कर उठना सिखाया।
विरोधों में जग जितना सिखाया।

मप्यार ही नहीं प्रेरणा हो तुम मेरे।
जीवन दर्शन और सिद्धांत हो तुम मेरे। 
क्युकी जीवन का सौरव हो तुम मेरे।

दादा को 43रे जन्मदिन से ठीक आधे घंटे पहले पहला तोहफा
#SauravGanguly #Dada #WarriorPrince #Maharaja #KingOfKolkata #PrinceOfEden #MyLove


© आशिता_दाधीच 


We miss you Richard

अपने तीन साढ़े तीन साल के पत्रकारिता करियर में कई बुरी खबरे देखी। हादसों में हाथ पैर गंवाने वालो, बलात्कार पीड़िताओं, दो घंटे पहले सूइसाइड की हुई बेटी के पिता, बिन माँ बाप के बच्चों के इंटरव्यू किए लेकिन जो तकलीफ तुम दे गए रीचर्ड उसे व्यक्त नहीं कर सकती। क्योकि मेरे लिए तुम खबर नहीं थे, तुम्हारी मुस्कराहट तुम्हारी प्रेरणा और समर्पण मुझे याद था है और रहेगा। तुम टीचर थे रिचर्ड मेरे जिसने एक अनोखे विषय की समझ दी थी मुझे। कल दोपहर तुम्हारे बारे में अपडेट निकालने की असाइनमेंट मिली। तुम्हारे सब दोस्तों यानी एक एक करके अपने सीनियरों और प्रफेसर्स को कॉल किया। हर बार जैसे तुम्हारा चेहरा आँखों के आगे घूमता रहा।
फिर शाम को वो खबर आई। एक पल को कलेजा मुंह में आ गया। वो हर बात याद आई कि कैसे तुम एमसीजे में इलेक्ट्रॉनिक जर्नलिज्म के लेक्चर लेते थे। तुम्हे पता था कि वीडियो एडिटिंग मेरे बस की बिलकुल नहीं है पर तुम हर बार मेरा उत्साह बढ़ा कर मुझे प्रेरित करते रहे। वो 300 शब्द टाइप करना कुछ वैसा  जैसा कोई पहाड़ चढ़ना। हर एक शब्द लिखते हुए तुम्हे उस दौरान हुई तकलीफों का एक फोटो मेरी आँखों के आगे उभर रहा था जो हर बार मुझे झिंझोड़ रहा था. जीवन के कटु सत्यों को समझा रहा था. अब तक की सबसे कठिन परीक्षा ली तुमने मेरी।
अभी आठेक महीने पहले ही तो मंगेश सर के फेरवेल वाले दिन तुम्हे देखा था। तुम्हारी मुस्कराहट कितनी अपनी सी थी और उस दिन भी बड़े प्यार से तुमने मुझे आगे बढ़ने की प्रेरणा दी थी। तब कहां सोचा था कि एक दिन मेरी उंगलियां तुम्हारी मौत की खबर टाइप करेगी।
पूरी रात जैसे तुम्हारा चेहरा आँखों के आगे घूमता रहा। भगवान् से भी सवाल किया कि यह क्यों हुआ। ट्रेकिंग और डाक्यूमेंट्री बनाना तो पैशन था न तुम्हारा।
रिचर्ड तुम मरे नहीं हो तुम हम हर एक एमसीजे वाले के दिल में हो। डिपार्टमेंट की नींव में हो और हमेशा रहोगे। 

धोखा The Cheat

मेरे वाले ब्रांड की लिपस्टिक।
मेरा वाला ही आई लाइनर।
बिलकुल मेरे जैसे कपड़े। 
मेरे पसन्दीदा रंग के
लाते हो उसके लिए।
और 
कहते हो 
नफरत करते हो मुझसे।
हमारी डिसाइड की हुई
हनीमून की जगह 
हमारे फेवरेट होटल के डिनर 
और 
हमारा वाला पान 
खिलाते हो उसे
और कहते हो
भूल गए हो मुझे।
तब मुझे उस सा घरेलू बनाना चाहते थे
और अब उसे मुझ जैसा।
उसे वही कप केक खिलाते हो
उसी ब्रांड की चॉकलेट दिलाते हो 
और कहते हो
मुझे तू बिलकुल याद नहीं।
कितना झूठ कहते हो। 
किसे देते हो धोखा। 
भुनाते ही किसे
मुझे 
उसे 
या खुद को 
_ आशिता


Saturday, September 12, 2015

Characterless

सीया, आई एम प्राउड ऑफ यू। तुम मेरे ऑफिस की सबसे अच्छी कर्मचारी हो। तुमने आज नामुमकिन को मुमकिन कर दिखाया। मुझे उम्मीद ही नहीं थी कि तुम अकेली अपने दम पर यह कोंट्रेक्ट हमें दिलवा दोगी।

अरे नहीं सर, अगर सुहास की हेल्प नहीं मिलती तो यह सब उतना आसान नहीं होता। उसे भी क्रेडिट मिलना चाहिए।

तुम बहुत हंबल हो सिया, ऐसे ही रहना बहुत आगे जाओगी, यू हैव ए वेरी ब्राइट फ्यूचर।

थैंक्यू सर।

चेहरे पर छह इंच की मुस्कान लिए सिया बॉस के कैबिन से निकली। एक साधारण सी, 24 साल की लड़की सिया जो तीन साल पहले अपनी एक जोड़ी आंखों में कई रंगों के ख्वाब समेटे मध्य प्रदेश से मुंबई आई थी। दो साल पहले शहर की सबसे बड़ी मल्टिनैशनल कंपनी में गिनी जाने वाली ब्रेटोराइट में उसे नौकरी भी मिल गई। जितना चाहा था, उतना पा चुकी थी वो, लेकिन अभी और पाना था उसे।

कांग्रेचुलेशन्स सिया।

थैंक्यू सुहास, चिहुकते हुए सिया बोली।

मैं जानता हूं तुमने इस सक्सेज का क्रेडिट मुझे ही दिया होगा न?

ऑफ कोर्स यार, तुम्हारी हेल्प नहीं होती तो यह सब कहां हो पाता,नीरज तो बेचारा कितना बीमार था, खैर ऑवर टीम रॉक। सिया की आंखों से उसकी खुशी टपक रही थी।

इसलिए ही तो कहता हूं मेरी बीबी बन जा, हम दोनों मिल कर नामुमकिन को भी मुमकिन कर सकते है। सुहास एक टक देख रहा था सिया को।

क्या सुहास, फिर वहीं बात। सिया की आंखों का रंग बदल चुका था। देख सुहास मैं तुझमें सिर्फ अपना बड़ा भाई देख सकती हूं और कुछ नहीं।

कोशिश तो कर सिया, एक बार पास तो आ, फिर देख भाई वाई सब दिमाग का फितूर है। मान मेरी बात।

चुप करो सुहास, और आज के बाद ये सब बकवास की ना तो याद रखना तुम मेरी दोस्ती भी खो दोगे। सिया गोली की तरह दनदनाती हुई वहां से निकल गई।

अपनी डेस्क पर पहुंच कर सिया ने सबसे पहले बॉटेल खोली और एक ही बार में सारा का सारा पानी पी लिया। अचानक नीरज आया....

ओह हाय नीरज कैसे हो?

सुना है आप आज मीटिंग की सुपर स्टार रही।

अरे सब आप से ही सीखा है मैंने, दो साल पहले तक कहां आता था ये सब। अपने कम्प्यूटर में नजर गड़ाने की कोशिश करते हुए सिया ने कहा।

अच्छा जी, तब तो आपको मुझे पार्टी देनी चाहिए। नीरज इठलाता हुआ बोला।

ठीक है ठीक है.. शाम को ऑफिस के बाद, मरीन ड्राइव के पास के किसी होटेल चलते है। सिया बोली।

ओके, अब मैं जाता हूं काम निपटा लेता हूं वैसे भी बुखार के कारण डेस्क पर बहुत फाइल्स बढ़ गई है।

ओके बाय।

एक बार जो सिया काम में डूबी तो फिर उसे कुछ पता ही नहीं चला कि कब शाम हुई। काम से नजर उठा कर देखा तो नीरज सामने खड़ा था।

अरे नीरज आप कब आए?

मैडम आप हमें पार्टी देने वाली थी?

जी याद है।

तो कब चलेंगे?

ऑफिस तो पूरा होने दो।

अरे मैडम नजर उठा कर देखो पूरा ऑफिस वीरान है, सब घर जा चुके है।

ओह्ह आई एम सॉरी, ध्यान ही नहीं रहा। सिया आंख मारते हुए बोली।

हुंह आई हेट यू, नीरज नाराज था।

ओ मेला बाबू, सिया ने नीरज को बाहों में भरते हुए कहा।

ये क्या कर रही हो? कोई देख लेगा। नीरज शर्मा रहा था।

अच्छा जी तो क्या अपने बॉयफ्रेंड को मैं हग भी नहीं कर सकती? तुम भी ना नीरु ऐसे बिहेव करते हो जैसे लड़को तो तुम ही हो।

हां बाबा मैं तो लड़की ही हूं तुम हो न मेरा बॉयफ्रेंड इसलिए।

हुंह हर बात में शरारत, अब चलो यहां से, सिया ने नीरज को बाहर ठकेलते हुए कहा।

दोनों हाथ में हाथ ड़ाले मरीन ड्राइव के किनारें चल रहे थे।

सिया सुनो ना, नीरज बुदबुदाया।

बोलो ना....

यार मेरा बहुत मन होता है कि दुनिया को चीख कर बताऊ कि आई लव यू। तुम मेरी हो, और तुम पर सिर्फ मेरा हक है। नीरज सिया की आंखों में डूबता हुआ बोला।

नहीं ना, अभी रुक जाओ, एक बार घर वाले हां करेंगे तब अपन शादी तो करेंगे ही वहां सबको बुला लेना। सिया ने कंधे उचकाते हुए कहा।

पर क्यों बाबू, नीरज जिद पर अड़ा था।

देखों, नीरु अगर भगवान न करे कुछ बुरा हुआ तो फिर इसलिए अभी घर पर सबकी सहमति आने दो पहले।

वॉट डू यू मीन सिया, तुम्हें लगता है कि हमारा रिश्ता खत्म हो जाएगा,नीरज की आवाज से नाराजगी टपक रही थी।

नहीं बाबू मेरा ये मतलब नहीं था। मैं जानती हूं तुम मेरा साथ कभी नहीं छोड़ोगे। जेब में सुस्ता रही सिया की कलाई नीरज के गालों पर पहुंच गई थी। नीरज आई लव यू सो मच। एक बार सब फिक्स हो जाए फिर मैं खुद ऑफिस में डिक्लेयर कर दूंगी।

ठीक है, लेकिन सुहास को तो बताने दो न, वो मेरे बचपन का दोस्त है,वो मुझसे कुछ नहीं छिपाता, आज जब मैं उससे अपने अफेयर की बात छिपा रहा हूं तो मुझे गिल्ट फील होता हैं। नीरज विनती कर रहा था।

नीरु नो मीन्स नो, किसी को कुछ नहीं, जब तक घरवाले सगाई फिक्स नहीं करते किसी को कुछ नहीं बताना।

सिया चिल्ला पड़ी, अचानक उसे लगा कि वो बहुत रुडली बात कर रही थी तो बात बनाने की कोशिश करते हुए नीरज से पूछा, कल मम्मी गांव जा रही है न तुम्हारी, खाने का क्या करोगे?

खा लूंगा कही होटेल में, नीरज अब भी नाराज था।

क्या, सिया की आवाज में एक बार फिर गुस्सा था, न तुम बाहर का नहीं खाओगे, मैं आ कर पका दूंगी कुछ, सिया बोली।

वाह मेरी रानी, तुम्हे खाना बनाना भी आता हैं। नीरज की आंखें फैल गई।

हां नैचुरली, नहीं तो रोज मेरे लिए कौन बनाता है यहां।

हां वो तो है, चलो देर हो रही हैं तुम्हें घर ड्रॉप कर दूं, नीरज बोला।

मन में नीरज की मूर्ति सजाए सिया घर आ गई, अगले दिन सुबह उसे नीरज के घर जाकर खाना बनाना था और फिर ऑफिस जाना था।

अगले दिन निश्चित समय पर सिया नीरज के घर पहुंची, और खाना बनाने में जुट गई। अचानक पीछे से नीरज वहां पहुंचा। धीर से सिया का हाथ थामा और अगले ही पल उसे गोद में उठा लिया।

क्या कर रहे हो नीरु, खाना जल जाएगा, सिया की आवाज में शिकायत थी।

श्श्श्श कुछ मत बोलो, नीरज अब तक सिया को अपने बिस्तरों मे ला चुका था। अपने नीरज में एकाकार हो गई थी सिया। दोनों के बीच की हर दूरी मिट चुकी थी। नीरज की गर्म सांसों को खुद में समेटे सिया ऑफिस पहुंची, सारे दिन शर्माती सिया काम खत्म करके नीरज के साथ उसके बाइक पर घर के लिए निकली। अपने जीवन की सबसे अनूठी खुशी पाकर नीरज भी खासा खुश था। उसका आंखें बता रही थी जैसे उसे कुबेर का खजाना मिल गया हो।

घर पहुंचते ही उसने जेब में मोबाइल टटोला और सुहास को फोन घुमा ड़ाला। सुहास क्या कर रहा है भाई चल दारु पीने चलते है।

क्यों कुछ ख़ास है क्या?

अबे ख़ास नहीं हुआ तो नहीं आएगा क्या चल ना।

आया भाई तेरी बिल्डिंग के नीचे आया।

नीरज तुरंत बिल्डिंग के नीचे पहुंचा। वहां से दोनों बाइक पर बैठकर दस मिनट में ही नजदीकी बार में थे। एक पैग दो पैग, नीरज बस पिए जा रहा था। क्या हुआ भाई कितना पिएगा, सुहास ने पूछा।

भाई आज मत रोक, आज बहुत खुश हूं मैं नीरज बोला।

पांचवा पैग चल ही रहा था कि सुहास का ध्यान नीरज के गले पर पड़ा।

भाई ये क्या है, सुहास ने पूछा।

क्या

ये भाई ये

अच्छा ये

हाँ

छोड़ ना भाई इसे

बता ना, देख मैं भी सब बताता हूँ ना तुझे

उम्म्म पर यार सुहास

लडकी का चक्कर है न नीरज

हाँ यार वो सिया है ना अपने ऑफिस की। वो मेरी गर्ल फ्रेंड है। तेरा भाई उससे बहुत प्यार करता हैं।

सुहास की आँखे फ़ैल चुकी थी, और साले तू मुझे अब बता रहा हैं। वो नाराज था नीरज से।

भाई माफ़ कर दे सिया ने कसम दी थी कि जब तक फैमिली नोड नहीं आता किसी को ना बताऊ। अच्छा अब चल ज्यादा पिउंगा तो सिया रूठ जाएगी। तू भी उसे मत बताना कि तुझे हम दोनो के बारे में पता है।

कांपते पैरो से दोनों बार के बाहर निकले एक दुसरे को सम्भालते हुए घर की तरफ बढ़े।

पर नीरज सुन तो ये गले पे। सुहास ने पूछा।

लव बाईट है साले

कैसे .... कब

अरे यार वो तुझे तो पता ही है मम्मी गाँव गई है। तो कल सिया घर आई थी खाना बनाने। कंट्रोल करने की बहुत कोशिश की यार पर वो वो है ही इतनी प्यारी। उसके आटे वाले हाथों से ही मैं तो उसे कमरे में उठा लाया। और बस यार। पर क्या बताऊ यार इतनी गजब है वो। आहा।

सुहास एक टक नीरज को देख रहा था कब से तुम दोनों साथ हो सुहास ने पूछा।

बस आठेक महीने हुए नीरज में बताया।

भाई सोच सोच सुहास बोला।

क्या भाई

अरे भाई जो लड़की आठ महीने में ही तेरा बिस्तर गरम करने लगी उसका क्या चरित्र होगा। तेरी तो किस्मत खराब हो गई भाई ऐसी लड़की से प्यार करके। सोच भाई उसका तो परिवार भी मध्य प्रदेश में है यहाँ अकेली रहती है कितने लड़कों को अपने घर बुलाती होगी। कुल्टा है साली। छोड़ दे उसे। अपनी जिन्दगी बर्बाद मत कर। न जाने कितनो के साथ सोती होगी वो रोज। वरना इतनी जल्दी कोई लड़की किसी लड़के के बिस्तर तक नहीं आती।

क्या कह रहा है भाई तू

सही कह रहा हूँ। चल घर आ गया सुबह मिलते है बाय। और हाँ छोड़ दे उसको

बाय भाई। नीरज घर आया और बेहाल निढ़ाल बिस्तर पर गिर गया। सुबह उसकी आँख फोन की घंटी से खुली।

हैलो

हाई मेला बेबी उठो सुबह हो गई। स्माइल करो धरती को उजाले की जरूरत है। उस तरह सिया थी।

कमीनी नीच तेरी हिम्मत कैसे हुई मुझे फोन करने की। तेरे जैसे लडकियों को बखूबी जानता हूँ मैं। रख फोन मेरी सुबह खराब मत कर।

बाबू ये क्या कह रहे हो आप, क्या हुआ हैं।

मैं तुझे समझ चूका हूँ और आई हेट यू नाउ।

नीरज शट अप क्या बोल रहे हो।

तू फोन रखती है या पुलिस कम्प्लेन करूं?

नीरज सुनो क्या तुमने अपने बारें में सुहास को बताया।

हाँ बताया

बस यही आपने गलत किया मैंने कहा था ना इस अफेयर के बारें में किसी को मत बताना।

सुहास मेरा दोस्त है कभी मेरा बुरा नहीं चाहेगा। वो जो बोल है वही सही है।

तो क्या नीरज मैं?

तू बस फोन रख और आज के बाद फोन मत करना।

नीरज आखिरी बात सुन लो

बोल

सुहास की मुझ पर नियत थी वह कई बार मुझे प्रपोज कर चूका था इसलिए तुम्हे कहा था कि इस अफेयर के बारें में किसी को मत बताना। वह यह सब हमे अलग करने के लिए।

चुप कर तू, भाइयों में आग लगा रही है। कितनी गिरी हुई गई तू।

बस नीरज चुप एक लफ्ज नहीं। गिरे हुए तो तुम हो, जो एक औरत को खिलौना समझते हो। उसकी भावना नहीं समझते उसका समर्पण नहीं समझते। मुबारक हो तुम्हे अपना सुहास और अपनी दोस्ती आज के बाद मुझे मुंह भी न दिखाना। गलती हुई कि तुमसे प्यार किया। अब ये गलती नहीं होगी। मैं मुंबई करियर बनाने आई हूँ नीरज यह सब करने नहीं पर तुम नहीं समझोगे। न तुम समझोगे और न तुम्हारी ये पुरुष मानसिकता जिसके लिए औरत हमेशा पैर की जूती रही है, हर नियम हर कानून सिर्फ औरत के लिए लागू होगा आया है। मुझे ऐतराज है,ऐतराज है इस घटिया सोच से, जहां सिर्फ औरत गलत होती है और मर्द हमेशा सही। अगर मेरी इज्जत गई थी आज तो तुम्हारी भी... पर छोड़ो।

और सिया ने फोन काट दिया।

Thursday, August 13, 2015

चरित्रहिन Characterless


सुहास क्या कर रहा है भाई चल दारु पीने चलते है।
क्यों भाई कुछ ख़ास है क्या?
अबे ख़ास नहीं हुआ तो नहीं आएगा क्या चल ना।
आया भाई तेरी बिल्डिंग के नीचे आया।
नीरज तुरंत बिल्डिंग के नीचे पहुंचा। वहां से दोनों बाइक पर बैठकर दस मिनट में ही नजदीकी बार में थे। एक पैग दो पैग, नीरज बस पिए जा रहा था। क्या हुआ भाई कितना पिएगा, सुहास ने पूछा।
भाई आज मत रोक नीरज बोला।
पांचवा पैग चल ही रहा था कि सुहास का ध्यान नीरज के गले पर पड़ा।
भाई ये क्या है, सुहास ने पूछा।
क्या
ये भाई ये
अच्छा ये
हाँ भाई
छोड़ ना भाई इसे
बता ना भाई देख मैं भी सब बताता हूँ ना तुझे
उम्म्म पर यार सुहास
लडकी का चक्कर है न नीरज भाई
हाँ यार वो सिया है ना अपने ऑफिस की। वो मेरी गर्ल फ्रेंड है। तेरा भाई उससे बहुत प्यार करता हैं।
सुहास की आँखे फ़ैल चुकी थी, और साले तू मुझे अब बता रहा हैं। वो नाराज था नीरज से।
भाई माफ़ कर दे सिया ने कसम दी थी कि जब तक फैमिली नोड नहीं आता किसी को ना बताऊ। अच्छा अब चल ज्यादा पिउंगा तो सिया रूठ जाएगी। तू भी उसे मत बताना कि तुझे हम दोनो के बारे में पता है।
कांपते पैरो से दोनों बार के बाहर निकले एक दुसरे को सम्भालते हुए घर की तरफ बढ़े।
पर नीरज सुन तो ये गले पे। सुहास ने पूछा।
लव बाईट है साले
कैसे .... कब
अरे यार वो तुझे तो पता ही है मम्मी गाँव गई है। तो कल सिया घर आई थी खाना बनाने। कंट्रोल करने की बहुत कोशिश की यार पर वो वो है ही इतनी प्यारी। उसके आटे वाले हाथों से ही मैं तो उसे कमरे में उठा लाया। और बस यार। पर क्या बताऊ यार इतनी गजब है वो। आहा।
सुहास एक टक नीरज को देख रहा था कब से तुम दोनों साथ हो सुहास ने पूछा।
बस आठेक महीने हुए नीरज में बताया।
भाई सोच सोच सुहास बोला।
क्या भाई
अरे भाई जो लड़की आठ महीने में ही तेरा बिस्तर गरम करने लगी उसका क्या चरित्र होगा। तेरी तो किस्मत खराब हो गई भाई ऐसी लड़की से प्यार करके। सोच भाई उसका तो परिवार भी मध्य प्रदेश में है यहाँ अकेली रहती है कितने लड़कों को अपने घर बुलाती होगी। कुल्टा है साली। छोड़ दे उसे। अपनी जिन्दगी बर्बाद मत कर। न जाने कितनो के साथ सोती होगी वो रोज। वरना इतनी जल्दी कोई लड़की किसी लड़के के बिस्तर तक नहीं आती।
क्या कह रहा है भाई तू
सही कह रहा हूँ। चल घर आ गया सुबह मिलते है बाय। और हाँ छोड़ दे उसको
बाय भाई। नीरज घर आया और बेहाल निढ़ाल बिस्तर पर गिर गया। सुबह उसकी आँख फोन की घंटी से खुली।
हैलो
हाई मेला बेबी उठो सुबह हो गई। स्माइल करो धरती को उजाले की जरूरत है। उस तरह सिया थी।
कमीनी नीच तेरी हिम्मत कैसे हुई मुझे फोन करने की। तेरे जैसे लडकियों को बखूबी जानता हूँ मैं। रख फोन मेरी सुबह खराब मत कर।
बाबू ये क्या कह रहे हो आप, क्या हुआ हैं।
मैं तुझे समझ चूका हूँ और आई हेट यू नाउ।
नीरज शट अप क्या बोल रहे हो।
तू फोन रखती है या पुलिस कम्प्लेन करूं?
नीरज सुनो क्या तुमने अपने बारें में सुहास को बताया।
हाँ बताया
बस यही आपने गलत किया मैंने कहा था ना इस अफेयर के बारें में किसी को मत बताना।
सुहास मेरा दोस्त है कभी मेरा बुरा नहीं चाहेगा। वो जो बोल है वही सही है।
तो क्या नीरज मैं?
तू बस फोन रख और आज के बाद फोन मत करना।
नीरज आखिरी बात सुन लो
बोल
सुहास की मुझ पर नियत थी वह कई बार मुझे प्रपोज कर चूका था इसलिए तुम्हे कहा था कि इस अफेयर के बारें में किसी को मत बताना। वह यह सब हमे अलग करने के लिए।
चुप कर तू, भाइयों में आग लगा रही है। कितनी गिरी हुई गई तू।
बस नीरज चुप एक लफ्ज नहीं। गिरे हुए तो तुम हो, जो एक औरत को खिलौना समझते हो। उसकी भावना नहीं समझते उसका समर्पण नहीं समझते। मुबारक हो तुम्हे अपना सुहास और अपनी दोस्ती आज के बाद मुझे मुंह भी न दिखाना। गलती हुई कि तुमसे प्यार किया। अब ये गलती नहीं होगी। मैं मुंबई करियर बनाने आई हूँ नीरज यह सब करने नहीं पर तुम नहीं समझोगे। और सिया ने फोन काट दिया।
- आशिता दाधीच

Friday, August 7, 2015

Two Lovers

दो पागल
कहा हो तुम सिया।
 अरे बस भायखला क्रॉस किया है। पांच मिनट रुक जाओ। फ़ास्ट ट्रेन हैं।
 रोज की तरह नीरज ने सिया को दादर उतारा और फिर दोनों ने दूसरे प्लेटफॉर्म पर जाकर सीएसटी की ट्रेन पकड़ी।
 नीरज मेरे जैसी पागल भी कही ओर कहां होगी?
क्यों क्या हुआ?
मेरा ऑफिस सीएसटी में है घर बोरीवली में, सीएसटी से दादर की ट्रेन पकड़ने के बाद रोज तुम मुझे दादर में उतार लेते है वापिस सीएसटी लाने के लिए और वहां से हम चर्नी रोड़ पैदल जाते हैं। सिया बालों को कान के पीछे टांगने की नाकामयाब कोशिश करते हुए बोली।
 तो अच्छा है न इस बहाने हम कुछ पल साथ तो रह लेते है अब हमारी ऑफिस शिफ्ट ही ऐसी है क्या करें। नीरज की आवाज से नाराजगी झलक रही थी।
 नहीं मैं थक जाती हूँ। सिया शिकायत करते हुए बोली।
 तो ठीक है कल से हम अपने बाबू को बोरीवली तक छोड़ने चलेंगे।
 अल्ले नहीं ना आप थक जाओगे।
 तो क्या हुआ साथ तो रह सकेंगे कुछ पल।
 नहीं नीरज, सिया बोली, आप अगर तीस सैंकड़ के लिए भी कॉल कर लो तो मेरा दिन पूरा हो जाता है क्योकि यही तो वो तीस सैकंड है जो आपको खुद के लिए मिलते हैं । इसलिए दादर तो क्या मैं रोज विरार से आपके लिए वापिस आ जाऊ। सिया शर्मा कर बोली।
 अब चुप करो इतनी प्यार भरी बातें न करों नही तो यही किस कर दूंगा।
 कर लो कौनसा अपनी मम्मियाँ देख रही हैं। हेहेहे पागल कहि के उतरो अब सीएसटी आ गया।
- आशिता दाधीच
12-06-2014

विश्वास - धोखा Trust And betrayal

हाय सिया।
 ओ हाय सुहास कम सिट। मरीन ड्राइव की उस बाउंड्री पर खुद को थोड़ा सा और समेट कर सिया ने सुहास को बैठने के लिए कहा।
 कैसी हो सिया?
उमम ठीक हूँ सुहास, तुम्हे तो पता ही है न नीरज की बहन का मिस कैरेज हुआ हैं।
 हाँ। बोलो...
तुम्हे ये भी पता होगा कि पहले ही दो बेटियों होने के चलते इस बार संध्या दीदी पर बेटे को लेकर कितना प्रेशर था। और देखो उनके पेट का बच्चा ही गिर गया। नीरज बहुत अपसेट है। मैं उसे इतना दुखी देख नही सकती।
 सिया....
हाँ बोलो ना
 मैंने सुना है तुमने नीरज के बर्थडे पर अच्छी खासी पार्टी रखी थी। कई लोगों को बुलवाया था। सुहास ने पूछा।
 हाँ सुहास, पर देखो न उसी दिन सुबह यह सब हुआ और तब से मैं नीरज से मिल भी नहीं पाई। यू नो ना जब वो अपसेट होता है तो अकेले रहना पसंद करता हैं। पर अब तो एक वीक हो गया है नीरज को मूव ऑन करना होगा अपनी बहन के मिस कैरेज से। प्लीज मेक हिम अंडर स्टैंड। तुम बेस्ट फ्रेंड हो उसके।
 सिया, सुहास ने सिया का हाथ पकड़ते हुए कहा, सुनो, नीरज तो श्राप है जिसकी जिन्दगी में आता हैं उसी को बर्बाद कर देता हैं। देखो क्या हालत हो गई है तुम्हारी। सुनो, तुम मेरी हो जाओ। मैं तुम्हे खुश रखूंगा।
 शट अप सुहास क्या कह रहे हो तुम ये? सिया चिल्लाई।
 क्यों, तुम नीरज के साथ हम बिस्तर हो सकती हो, तो मेरे साथ क्यों नहीं। नीरज से तो बेहतर ही हूँ मैं।
 चुप करो सुहास नीरज मेरी जिन्दगी हैं। एक झटके से सिया वहां से खड़ी हो गई। अपने बैग को अपने सीने से चिपटाया और गोली के तेजी से मरीन लाइन्स की तरफ भागी। उसकी मासूम आँखे लाल हो चुकी थी। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि नीरज का बेस्ट फ्रेंड जिसे वो अपना देवर मानती थी। उसे इतना सब कह गया। प्लेटफॉर्म पर पहुंच कर उसने विरार फास्ट पकड़ी और जितने जोर से रो सकती थी रो पड़ी। कुछ औरते उसे देख कर बुदबुदा रही थी और हंस रही थी और कुछ देखे जा रही थी। देर रात होने से ट्रेन में भीड़ कम थी। आंखों से गंगा जमना बहाने के बाद जब सिया थोड़ी शांत हुई तो उसने नीरज को फोन घुमाया।
 हाँ मेरी जान बोल उधर से आवाज आई!
सिया ने एक सांस में सब कह डाला।
 चुप करो, फोन पर नीरज की चीख गूंजी। एक हफ्ते से हम मिले नही मैं अपने बर्थडे पर मिलने नहीं आया तो तुम इस हद तक गिर गई। मेरे बचपन के दोस्त के ऊपर कीचड़ उछाल दिया। शर्म नहीं आई तुम्हे। कितनी ओब्सेसिव और पजेसिव हो तुम। मेरी प्राब्लम तक नहीं समझना चाहती। डेट पर जाने के लिए किसी के भी चरित्र पर लांछन लगा देती हो। छि। थू है तुम पर। कितना भरोसा और प्यार करता था मैं तुम पर। लेकिन तुमने मेरे ही दोस्त पर... छि सिया आज से तुम्हारा हमारा नाता खत्म।
 लेकिन नीरज मैं मैं झूठ ..... तब तक फोन कट चुका था। सिया ने दोबारा कॉल लगाया तो आवाज आई, इस रूट की सभी लाइने व्यस्त हैं।
 अब बारी सिया कि थी फेसबुक, व्हाट्सएप और ट्विटर से नीरज को ब्लॉक करने की। और दिल, वहां भी ब्लॉक करने की कोशिश तो वह कर ही सकती है इस कमजरफ को जिसने इतने महीनों में उसे इतना भी ना समझा। जिसे उसका महत्व ही न समझा।
- आशिता दाधीच

Monday, July 27, 2015

Martyr शहीद

 
ये क्या दिखलाते है टीवी वाले
 अभी रात को ही तो इनका फोन आया था
 बोले थे मुन्नी की पसंदीदा महंगी बार्बी लाउंगा
 तुझे घुमाने लॉन्ग ड्राइव ले जाउंगा।

 माँ को तीरथ भी ले जाउंगा।
ये क्या दिखलाते है टीवी वाले
 ये शहीद हो गए
 कल रात घुसे थे आतंकी
 मुठभेड़ में इनको गोली मार गए।
 
और ये तो धनिया का घर है
 यहा रहती थी उसकी बूढी माँ
 उसे भी गोली मार गए।
 ये क्या दिखलाते है टीवी वाले।
 
बोर्डर भी वे पार गए
 मित्रता के पाठ भुला गए।
 कत्ले आम मचा गए।
 कुछ सपनों को मार गए।
 
ये क्या दिखलाते है टीवी वाले।
 
कल कुछ नेता आएँगे
 शहीद की बेवा कहकर शॉल ओढा जाएंगे।
 समाजसेविका आएगी आंसू भी पोंछ जाएगी।
 चैनल वाले आकर इंटरव्यू ले जाएंगे।
 पर कब समझेंगे ये
 इन जानों की कीमत।
 डेढ़ लाख से क्या मुझे मेरा पति लौटाएँगे?
वो खालीपन ये कैसे भर पाएंगे।
बस राजनितिक रोटियाँ सेंक पाएंगे
 एक दूजे को दोषी ठहराएंगे
 और बिना समाधान
 खाली हाथ रह जाएंगे
 बस कोरे आंसू बहाएंगे।
 
- आशिता दाधीच
 गुरुदासपुर शहीदों को नमन
 
 
 

Tuesday, May 5, 2015

पत्रकार की प्रेम कहानी Love story of A journalist

हाँ ये कुछ अलग कहानी है
 क्युकी ये इक पत्रकार की प्रेम कहानी हैं।
 यहाँ ब्रेक फास्ट से शुरू होकर डिनर तक चलने वाली डेट नहीं होती।
 लुभाने के लिए मेक अप से पुती कोई लडकी नहीं होती।
 घंटो लम्बी शोना बाबू वाली बाते नहीं होती।
ये वो कहानियाँ होती है जो पुलिस थानों में शुरू होती हैं।
 जिनमें यश चोपड़ा की चिता के सामने प्रेम की कसमें खाई जाती हैं।
 जहां दंगे भडकने पर मुलाक़ात का एक मौक़ा मिल जाता हैं।
 तलाक के केस में कोर्ट रूम में प्यार पनप जाता हैं।
जहां अपने पहले फ्रेंच किस की डेट याद नहीं रहती पर हर रेल हादसा तारीख समेत याद होता हैं।
 जहां प्यार के कसमों वादों के साथ कन्फर्म का टैग दिया जाता हैं।
 जहां डेट के दरमिया मारिया के ट्रांसफर कन्फर्म होते है।
 घंटो की बकबक भी कभी कभी सुनी नहीं जाती है।
न जाने कितने सप्ताहों तक फोन कॉल 32 सैकंड से आगे ही नहीं बढ़ पाती है।
 मिलने पर बस फोन छिपा कर मुसीबत से निजात पाई जाती हैं।
 नजरे देख कर भी अनजान बनने की अभ्यस्त हो ही जाती हैं।
 पा कर भी कुछ कम होने का अहसास रहकर भी खुशियाँ दे जाता है।
फिर भी इस दरमिया पलता है
 इक विश्वास
 अपने और उसके होने का
 क्युकी ये कहानी है पत्रकार की
 जिसे दौड़ना है घडी से आगे
 जहां भावनाओं के लिए वक्त नहीं
 वहां बिन कहे सुने सब समझने की कहानी है ये।
- आशिता दाधीच #AVD #Ashita
 
 
 

सचिन तेंदुलकर Sachin Tendulkar

 
दिल चाहता है
 इक बार फिर से वो समा हो
 बस वही तू हो वही में हूँ
 एक अपर कट सिक्स हो
 कुछ पुल शॉट हो
 गली में तेरी बाल सुलभ मुस्कान हो
 गोल टोपी में छिपा तेरा मुखड़ा हो
 और तुझे देख कर मुस्कुराती करोड़ों नजरे हो।
सचिन सचिन की आवाजे हो
 चेहरे के वो उतरते चढ़ते भाव हो
 नफरत भुला कर गले लगते लोग हो
 मिठाई खा दिवाली मनाता मुसलमान हो
 गले मिल ईद मनाता हिन्दू हो।
विराट और रैना में तुझे खोजने की
 कोई कोशिश न हो
 फिर कोई सौवा शतक हो
 छोटे कद का बड़ा सा कैच हो
 न बॉल टेम्परिंग हो न स्लेजिंग हो
बस आँखों में कुछ अंगार हो
 आसमान में उठी कृतग्य नजरे हो
 एम आर एफ का बल्ला हो
 तिरंगे वाला हेलमेट हो
न गुस्सा हो न गालियाँ हो
 किताब से निकला शॉट साकार हो
 फिर तुझ सा बनने का अरमा हो
 फिर एक शतक की और तमन्ना हो
बस तू हो
 फिर से हो
 और हो
 सच्चिन सच्चिन सच्चिन
©आशिता दाधीच
#Instant #AshitaD #AVD #Sachin #Love #Dream
 
 










 

Thursday, April 23, 2015

सवाल The Question

 
 
सवाल नहीं करते?
आज भी जब मेरे पैर पड़ते है मरीन ड्राइव की उस बाउंड्री पर
तो चीख कर वो मुझसे तेरा पता पूछती हैं।
 
हाजी अली की दरगाह का वो रास्ता
मेरा हाथ खाली देख कर समुद्र में छिप जाता हैं।
 
दादर स्टेशन का वो छोटू
दीदी, भैया कहां हैं पूछ जाता हैं।
 
सीएसटी का वो पान वाला आज भी
पैसे किसके खाते में लिखूं सवाल करता हैं।
 
बोरीवली का वो नैशनल पार्क अब मेरे हांफ जाने पर
सहारा देने के लिए तुझे पुकारा करता है।
 
हर बार कुछ खाने पर गालों पर फैला अन्न
मुंह पोंछ देने को तेरा रुमाल मांगता है।
 
फिल्म देखने से मुड चुकी मेरी गर्दन
सहारा देने के लिए तेरा ही कंधा मांगती है।
 
माउंट मेरी की वो सीढ़ियां पूछा करती है
कि मुझे गोद में उठा कर बिना हांफे दौड़ने वाला कहां है।
 
आसमां में उगा सूरज भी पूछा करता है
कि क्यों अब वह हमारी उंगलियों के बीच से नहीं निकल पाता है।
 
मेरे घर का वह बिस्तर पूछा करता है
कि क्यों अब उसमें लिपट कर सोने वाला नहीं आता है।
 
वर्सोवा का वो किनारा पूछा करता है
कि अब तू पैर भिगोने कहा जाता है।
 
सड़क पर भौंकने वाला कुत्ता भी पूछा करता है
कि डर से तू जिसे लिपटा करती थी वो कहा गया।
 
चेहरे पर आ लटकी जुल्फे भी पूछा करती है
उन्हें हटाने वाला अब कहा गया।
 
माथे पर आ जमी पसीने की बूंदे पूछा करती है
कि उसे पोंछने वाला कहा गया।
 
न जाने कितनी सखियां कितने परिचित और कितने रास्ते पूछा करते है
तू कहां गया
क्या कोई तूझसे नहीं पूछा करता
क्या कोई तूझे सवाल नहीं करता
करता है तो क्यों तू उन सवालों से हलकान नहीं होता।
 
 
 
 

नहीं चाहिए । don't want

मां
तूने तो कहा था,
वो मालिक हम सब का हैं।
वो सबके साथ न्याय करता हैं।
बुरे का बुरा भले का भला करता है।
फिर क्या गलती थी मां अपनी
क्यों झुलस गई मां फसल अपनी।
क्यूँ बर्बाद हो गयी मां गृहस्थी अपनी।

मां तूने तो कहा था।
वो नेता हैं।
उन्हें हम चुनते हैं।
वो हमारे सेवक हैं।
फिर क्यों हर्जाने के बस अठरा रूपये देते है।
बर्बादी पर इन्हें आंसू तक ना आते है।
हमें छू कर ये डेटाल से नहाते हैं।

मां तूने तो कहा था।
वो मीडिया है।
सच का साथ देती है।
सब के लिए लड़ जाती है।
फिर क्यों वो सिफर दोषारोपण करती है।
हमारे आंसू नहीं पोछती पर दिखाने को रोती है।
कहती सब है पर छिछला लगता हैं।

मां तूने तो कहा था।
वो हमारा हमदर्द हैं।
दुःख सुख समझता है।
हमारे संग खड़ा होता है।
फिर क्यों दो दिन से पूरा परिवार भूखा है।
तेरे गहने लेकर भी पटवारी तुझे छूता है।
बापू फांसी पर झूल गए है।
दिदिया का बियाह टूट गया है।
कहा है मां वो साथी अपना।
जो कहता था लड़ जाने की
मर मिटके हक लाने की।

हक नही चहिये अब मां मुझको।
बस दो जून की रोटी दे दो
तन पे कुछ कपड़े दे दो।
बापू की लाश भी हमे दे दो।
नहीं बनना हमे कोई नेता
बस हमे पैर पे खड़े रहने की हिम्मत दे दो।
भीख मत दो
बस इस आत्म सम्मान का मखौल उड़ाना छोड़ दो।
छोड़ दो।


© आशिता दाधीच
#Instant #poem #AshitaD #AVD

दौसा के किसान गजेन्द्र सिंह के आम आदमी पार्टी आप की रैली में फांसी लगा लेने पर

Farmer from dausa rajasthan committed sucide in aap s delhi rally 



Saturday, April 18, 2015

दर्द The Pain

हाँ दर्द होता हैं।

दर्द होता हैं जब महीनों की मेहनत से संवारा हुआ एक नाख़ून टूट जाता हैं।
 दर्द तब भी होता है जब बरसों से संवारे रिश्ते झट से जात धर्म के नाम पे टूट जाते हैं।

दर्द होता हैं उन पांच दिनों तक जब माहावारी होती हैं।
दर्द तब भी होता है जब इसी खून से जना बेटा घर से निकाल देता हैं।

दर्द तब भी होता है जब आएब्रो बनवाने की असीम पीड़ा से दो चार होते हैं।
 दर्द तब भी होता है जब अखबार में पेट में पलती किसी बेटी की मौत की खबर होती हैं।

दर्द तब भी होता है जब चमड़ी पर मोम से जलता वैक्स डाला जाता है।
दर्द तब भी होता है जब बहु बनने पर हमें जला दिया जाता हैं।

दर्द तब भी होता हैं जब अपनी फेवरिट ड्रेस फट जाती हैं।
दर्द तब भी होता है जब किसी का दुप्पटा फाड़ने की कोशिश की जाती हैं।

दर्द तब भी होता है जब हम अपनी ही ड्रेस में नहीं समा पाते हैं।
दर्द तब भी होता है जब किसी के कपड़े तार तार फाड़े  जाते हैं।

दर्द तब भी होता है जब हमारी गुड़िया टूट जाती हैं।
दर्द तब भी होता हैं जब हमारी भावनाएं मरोड़ दी जाती हैं।

दर्द तब भी होता है जब वो प्यार से बांह उमेठ देता हैं।
दर्द तब भी होता है जब अपने हाथ थकने तक वो बेल्ट से मारता हैं।

दर्द तब भी होता है जब व्हिस्पर खरिदने पर हमारा मजाक बनता हैं।
दर्द तब भी होता है जब कपड़ो के बूते वो हमे कुलटा कहते हैं।

हाँ तब भी दर्द होता हैं
बहुत दर्द होता हैं।
क्यों हमे ही यह दर्द होता हैं?
और क्यों हमें ही ये दर्द दिया जाता हैं।

©आशिता दाधीच

#Instant #Blog #Poem #AshitaD #AVD

Tuesday, April 7, 2015

LOVE

बहुत मुहब्बत है तुमसे
कल भी थी आज भी है
और सांसों के वजूद तक रहेगी
फिर भी दिवार है एक
हम दोनों के बीच
तेरी और मेरी ऊँचाइयों से ऊँची
तेरी उस चौड़ी छाती से भी चौड़ी।
दिवार मेरे आत्म सम्मान की।
दिवार मेरे समर्पण की।
तुझे तुझ से बेहतर बनाने की
चाहत की।
नहीं बर्दाश्त हैं मुझे।
मेरी सिवा किसी और का तेरे लबों पे सजना।
नहीं देख सकती मैं।
अपने सिवा किसी और के नशे में खोते तुझे।
अपनी हर शाम तेरे साथ बिताई है
क्या बदले में तेरी शामों पर हक नहीं मेरा।
हर बार सोलह आने मुहब्बत लुटाई हैं।
पाने के लिए बस चार आने पाए हैं।
अपना कल आज और कल भुलाकर तेरी बांहों में सजी हूँ ।
और तुझे हर रात तेरी पहली बर्बाद मुहब्बत के नाम सिसकते देख के मरी हूँ।
दुनिया के प्रपंच भुला के जब तेरे करीब आई हूँ।
तुझे बस मय खाने की मदहोशी में पाती आई हूँ।
क्या मेरी आँखों का नशा कम था।
जो तुझे जाम उठाने पड़ते थे।
क्या मेरा समर्पण कम था।
जो तुझे गैरों की याद दिलाते थे।
क्या कम था।
प्यार
या
शायद नशा ही तेरा प्यार था।
मैं तो सिफर एक खाना पूर्ति की।
शराब के अलावा तेरा मन बहलाने की खातिर।
- Ashita VD

It's Broken

 
 
 
हाँ नहीं आया मुझे।
तुम्हारी तरह
दुनिया को इस टूटे दिल का दर्द दिखाना।
हाँ नहीं आया मुझे
हर रात नशे में गाफिल होकर घर लौट आना।
किसी के कुछ पूछ लेंने भर से आपे से बाहर आ जाना।
नहीं आया मुझे
जुदाई के दर्द को कश ब कश सिगरेट के छल्ले बना कर हवा मैं उड़ाना।
मुझे आया तो बस चाय ठंडी हो जाने तक रुक कर तुम्हारा इन्तजार करना।
नहीं आया मुझे जाम पर जाम उठा कर गम को काफूर करना।
मैं तो बस अपने काम में आकंठ डूब कर भुलाती रही गम करना।
नहीं आया मुझे किसी कोकीन के इंजेक्शन से तुम्हे भूलना।
मुझे तो बस आया तुम्हारी यादों की अलमारी पर ताला लगाना।
नहीं आया मुझे हर रात सडकों में तमाशे करना।
नहीं आया मुझे किसी और से जुड़ कर भूलाना।
नहीं आया मुझे बस बिना मुड़े चले जाना।
नहीं आया मुझे अंधेरों में खोना।
मुझे आया तो बस रात के अंधेरों में हमारी उस सुहाग रात वाली पलंग पर तकिए से चिपक कर चुप चाप सो जाना।
और अपनी आती जाती सांसों में तुम्हे महसूस कर लेना।
- Ashita VD

AIDS

लगभग एक साल से नीरज के साथ लिव इन रिलेशन में थी सिया। एक दिन अचानक उसने सुनीता का हाथ थाम लिया और सिया को दिल से निकाल कर उस के घर से निकल गया। गम में आकंठ डूबी सिया को भी बस हाथों की नस काट कर मौत को गले लगाना ही नजर आया।

खून रिसता रहा और सिया बेहोशी में डूबती गई। आँख खुली तो खुद को अस्पताल में पाया।

क्या कभी ब्लड डोनेट किया हैं या इजेक्शन लिया हैं कोई। नर्स ने गोली की तरह सवाल दागा।

नहीं तो कभी नहीं सिया बोली।

ओके पर तुम एचआईवी पोजीटिव हो।

सिया की आँखों के आगे अन्धेरा छा गया। कुछ समझ नहीं आया। कहि नीरज गलत तो नहीं था दिल से आवाज आई। छि छि वो ऐसा नहीं हो सकता। शायद मेरी ही कहि कोई चुक हैं सिया बस खुद को धिक्कारती रही।
 

गणगौर

आज फिर सिंजारा था।
उसने उसी के नाम की मेहंदी लगाई।
हल्दी चन्दन से खुद को महकाया।
देर रात तक चूल्हे की आग में खुद तो तपाकर भोग बनाया।
सब कुछ उस नीरे जुल्मी की खातिर
जो आज की रात भी पड़ा होगा किसी रेलवे ब्रिज के नीचे।
कोकीन के नशे में मदहोश।
जैसे तैसे आसूंओं संग उसने रात तो काट ली।
फिर सुबह से जुट गई अपने गणगौर को रिझाने में।
उस प्रियतम की उमर तरक्की और न जाने किस किस की खातिर।
जुटी थी वो पूजा का थाल सजाने में।
दरवाजे पर हलचल थी।
शायद उसके आने की आहट थी।
कपाट खोल कर देखा उसने तो पाया
प्रियवर के एक संगी को।
जो इक बार फिर लाया था वो लौटाया हुआ प्रणय निवेदन।
ठुकरा कर सारी दुनिया को अपने आत्म सम्मान को खुद में समेटे वो जुट गई गणगौर पूजने में।
फिर आया वो जिसके नाम पर यह पूजा थी।
शराब की गंध से लथपथ।
सिगरेट की बदबू से सरोबार।
कल रात की कहानी भी उसके शर्ट पर
लगे लिपस्टिक के निशानों ने चीख कर कह दी।
कहा थे सारी रात
कितना बड़ा दिन है आज
उसने पूछा ही था कि गालों पर तमतमाता सा इक तमाचा गुंजा।
कब तक सहती रहेगी वो ये सारा अत्याचार
उसने मां गणगौर को देखा।
माँ जैसे मुस्कुराई और कहा कि यदि में सती हूँ तो चंडी भी हूँ।
उसे जैसे कुछ याद आया।
पल्लू पेटीकोट में समेटती हुई उठी
नहीं परवाह है मुझे तेरी
मेरे व्रत मेरे हैं।
नहीं दूंगी मेरे किसी पुन्य का फल तुझे कहकर
वो निकली उस चौखट से जहा से उसे बस अर्थी बन कर ही उठना था।
वो निकली उस चौखट से फिर कभी वापस न आने के लिए।
 
©आशिता दाधीच

सरदार पूर्ण सिंह की कथा करवा चौथ से प्रेरित
गणगौर राजस्थानीयो के लिए करवा चौथ जैसा ही पर्व हैं।

THAT Shirt

वो पहली शर्ट.
तेरे जन्मदिन की खतिर तेरे लिए वो शर्ट लेना।
आज भी याद हैं मुझको
उस दुकानदार के आगे थोड़ा सा लजाना
और ढेर सा शर्माना।
पूछने पर तेरी साइज न बता पाना।
और अपनी बांहे फैला कर याद करने की कोशिश करना
कि कितना समाता था इस दरमियान तू।
काउंटर पर खड़े उस लड़के से ये पूछना कि
ये शर्ट तुझे सूट करेगी या नहीं।
और उसका तेरी कद काठी के बारे में पूछना।
मेरा शरमाना और तुझे मोस्ट हैंडसम मैन ऑफ़ द वर्ल्ड कहना।
चेंजिंग रूम में जाकर वो शर्ट खुद पहनना और
अपने अपने अंदर तेरी छवि को इठलाता पाकर वो
शर्ट खरीद लेना।
पाई थी मैंने कायनात जब उस शर्ट को देख कर
तेरी आँखों में चमकते देखे थे हजारों सूरज एकसाथ।
आशिता दाधीच
 
 
 
 
 

कुछ अलग हूँ। I'm Different

हां, मैं उन जैसी नहीं।
कुछ अलग हूँ।
बचपन से सीखा है अपने अंदाज में जीना।
अपनी शर्ते बुनना और सी पिरो कर निभाना।
जो चाहे अपनी तरीके से पाने में जुटाना।
भीड़ से थलक पड़कर खुद का जहां बसाना।
जब गुड्डे गुड़ियों की शादी कराती थी
मेरी उम्र की वो लडकियाँ
मैं जुटी थी मेघदूतम के उस यक्ष की पीर समझने में।
जब उनका दिल लुभाती थी
ठेले में सजी चूडियां
मैं खोजा करती थी
अमृता की कहानियाँ।
जब वे बारिश से डरी सहमी
छुपी रहती थी घर में।
मैं सांस बिखरने तक खेला करती थी
क्रिकेट मोहल्ले की गलियों में।
जब वे चलाती थी करछी
रसोइयों में
मैं पापा के संग जुटी थी
व्यापार के विस्तार में।
जब खोजा करती थी वे
कोई सुदर्शन युवक
तलाश तब भी जारी थी मेरी
खुद में खुद को पाने की।
जब गहनों से सज कर
इठलाती थी वे
मैं इतराती थी हर कदम
दुनिया को मात देकर।
जब उन्हें बिहारी का प्रेम साहित्य लुभाता था
मैं लापता थी मैक्सिम गोर्की को समझने में।
जब किसी पुरुष की खुशियों में
अपनी खुशियाँ खोजा करती थी वे
मैं जुटी थी अपने प्रियतम की बगिया में
खुशियों के पौधे उगाने में।
परिभाषाओं से परे
खुद के लिए
अलग होकर भी एकाकार होती मैं।
स्वीकार नहीं थी
उस मानसिकता को
जो आदि था
पद दलित देखने का
लताड़ा गया
कुलटा के उपमानों से
पर जीवन मेरा हैं
मैं अलग हूँ।
और
मुझे प्रिय हैं अलग होना
नहीं जी सकती मैं
उन बन्धनों में
जहां
नारी चौके -चूल्हे में कैद हैं।
जहां उसके प्रेम को चरित्रहीनता कहा जाता हैं।
जहां उसके समर्पण को अश्लीलता माना जाता हैं।
  
जहां तय हैं अन्तरग पलों में उसका व्यवहार।
इजाजत नहीं हैं उसे इससे इतर जाने की।
जहाँ उसे मापा जाता हैं उसके वस्त्रो से।
जहां उसे जांचा जाता है उसकी चाल से।
हां, मैं उन जैसी नहीं।
कुछ अलग हूँ।
क्युकी एतराज है मुझे उस ढर्रे से।
जहां इंसानों को सांचे में ढाल कर
उम्मीद की जाती हैं
किसी कठपुतली सा बर्ताव करने की।
 
 
©आशिता दाधीच
 
 
 
 

Thursday, March 19, 2015

Cricket is Life

ये जिन्दगी भी तो क्रिकेट का एक खेल हैं।

 जो एक इनिंग में शतक लगता हैं
वही दूसरी पारी में सून्य पर बिखर जाता हैं।

 जिसे कल शाम न्यूज में महानायक कहा था
 वो आज खलनायक बन जाता हैं।

 सांझेदारी बढाने को जो शुरू से साथ आया था
वो ना जाने क्यों बिछड़ जाता हैं।

 जो बाउंसर डाल कर चोटिल करने की फिराक में था
 वही लड़खडानें पर मदद को आगे आता हैं।

 पारी की शुरुआत हमेशा तालियों से होती हैं
फिर दुनिया हुटिंग और गालियां भी देती हैं।

 शतक भी हुआ तो नुसख निकालने वालों की भीड़ उमड़ती हैं।
अपूर्ण स्वार्थी और हरजाई कहकर दुनिया बुलाती हैं।

 और फिर  पेड बांधे हम तैयारी में जुट जाते हैं।

 कोई गेंद बाउंड्री छू जाती हैं तो कोई कैच हो जाती हैं
पर बल्लेबाजी में टिके रहने की जद्दोजहद जारी रहती हैं ।

 कभी तारीफों के फूल बरसते हैं तो कभी घर पर पत्थरबाजी होती हैं।

 जिसके लिए पवेलियन और स्टैंड गूंजते हैं
वो एकाएक तन्हाई में खो जाता हैं।

 जिसके आगे कभी फैन बिझते थे ऑटोग्राफ लेने को
 वो अब कैशबुक पर साइन करने को तरस जाता हैं।
 
#आशिता दाधीच

you and I

तुम और मैं कभी एक न हुए

 फिर भी मोर्निंग वाक पर अलसाए से भागते जोड़े में हम जी लेते हैं।

 बस का वेट करते एक दुसरे से बतियाते जोड़े में हम हंस लेते हैं।

 हाथ में हाथ डाले दरिया किनारे चलते जोड़े में हम पैर भिगो लेते हैं।

 लोकल के उस प्लेट फॉर्म पर बस झलक से देते जोड़े में खुद को पाते हैं।

 ऑफिस की झिडकी से तंग दुःख बांटते जोड़े में हम खुशियाँ पा जाते हैं।

 हाँ हम एक नहीं पर हम हर एक में जीते हैं।

 एक होकर भी मिल नहीं पाते हैं।

 खुद को दूसरे में तलाशते नजर आते हैं।
 
खुशियों  की खतिर निर्भर हो जाते हैं।

Friday, March 13, 2015

हाँ वो बड़ी हो रही हैं। Growing Old


 दस रूपये की चॉकलेट मंगाने के लिए भी मां को आवाज देने वाली
अब दस किलो आटा कंधे पर ढ़ो कर ला रही हैं।

 एक नाख़ून टूट जाने पर रो रो कर घर सर पर उठा लेने वाली
दिल टूट जाने पर भी चुप साधे दौड़ रही हैं।

 हजारों रूपये के कपड़ें लाने वाली
 अब बीस बीस रूपये चार बार जोड़ कर जाँच रही हैं।

 मन माफिक गुडिया के लिए डट जाने वाली
अब खुद गुडिया बनी लोगों के खेल से बचने की जुगत लगा रही हैं।

 पापा की गोदी में छिप कर खिलखिलाने वाली
दुनिया से हर बार तनहा लड़ जा रही हैं।
 
दोस्तों में खुशियां लुटाने वाली
अब जोड़ तोड़ कर खुशियां मना रही हैं।
 
मनमांगी चीजें पाने के लिए अड़ जाने वाली
अब चीजों को छोड़ना सिख रही हैं।
 
मन मांगी मुरादों को अलमारी में छिपाने वाली
अब उपहारों को अबलों में बांटना सिख रही हैं।
 
बिन मांगे बिन चाहे सब कुछ पा जाने वाली 
अब बिना कुछ चाहे बिना कुछ मांगे अपने दम पर पाना सिख रही हैं।

 वो बड़ी हो रही हैं।

 अपने सपने को जीने की खातिर
वो बड़ी हो रही हैं।

 उस बेरंग कैनवास पर रंग भरने को
वो बड़ी हो रही हैं।
 
 
 
 

Sunday, March 8, 2015

International Women's Day

आखिरकार महिला दिवस की कविता लिखी
पेश हैं चुनिन्दा पंक्तियाँ

सबल अबला हूँ मैं।

पिता की लाडली धनुर्धारी जनक नंदिनी हूँ मैं तो पति की अनुगामिनी राम दुलारी भी हूँ मैं।
पथ प्रदर्शिका गार्गी मैत्रेयि हूँ मैं तो कुटिलता की शिरोमणि मंथरा भी हूँ मैं।
सम्मान की खातिर यज्ञ में जल जाने वाली सती हूँ मैं तो मोहित करने वाली रम्भा मेनका भी हूँ मैं।
विष पी जाने वाली मीरा हूँ मैं तो अमृत बांटने वाली मोहिनी भी हूँ मैं।

कर्तव्य मार्ग पर भेजने वाली राधा, उर्मिला यशोधरा हूँ मैं तो निस्वार्थ प्रेम करने वाली शबरी भी हूँ मैं
रण में जूझ कर पति को बचाने वाली पद्मिनी हूँ
मैं तो सर काट कर प्रेरणा देने वाली हाड़ी भी हूँ मैं।
पत्थर बनी अहिल्या हूँ मैं तो सतीत्व निभाती अनुसूया भी हूँ मैं।
बाँध के बच्चा लड़ती लक्ष्मी हूँ मैं तो पैर दबाती लक्ष्मी भी हूँ मैं।

शिव के वामंग में रहकर मंगल करती पार्वती हूँ मैं तो सम्मान की खातिर तांडव करती चंडी हूँ मैं।

हाथ पकड़ कर साथ चलती साथी भी हूँ मैं
आगे बढ़कर राह दिखाती गुरु भी हूँ मैं।

आशिता दाधीच