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Thursday, April 23, 2015

सवाल The Question

 
 
सवाल नहीं करते?
आज भी जब मेरे पैर पड़ते है मरीन ड्राइव की उस बाउंड्री पर
तो चीख कर वो मुझसे तेरा पता पूछती हैं।
 
हाजी अली की दरगाह का वो रास्ता
मेरा हाथ खाली देख कर समुद्र में छिप जाता हैं।
 
दादर स्टेशन का वो छोटू
दीदी, भैया कहां हैं पूछ जाता हैं।
 
सीएसटी का वो पान वाला आज भी
पैसे किसके खाते में लिखूं सवाल करता हैं।
 
बोरीवली का वो नैशनल पार्क अब मेरे हांफ जाने पर
सहारा देने के लिए तुझे पुकारा करता है।
 
हर बार कुछ खाने पर गालों पर फैला अन्न
मुंह पोंछ देने को तेरा रुमाल मांगता है।
 
फिल्म देखने से मुड चुकी मेरी गर्दन
सहारा देने के लिए तेरा ही कंधा मांगती है।
 
माउंट मेरी की वो सीढ़ियां पूछा करती है
कि मुझे गोद में उठा कर बिना हांफे दौड़ने वाला कहां है।
 
आसमां में उगा सूरज भी पूछा करता है
कि क्यों अब वह हमारी उंगलियों के बीच से नहीं निकल पाता है।
 
मेरे घर का वह बिस्तर पूछा करता है
कि क्यों अब उसमें लिपट कर सोने वाला नहीं आता है।
 
वर्सोवा का वो किनारा पूछा करता है
कि अब तू पैर भिगोने कहा जाता है।
 
सड़क पर भौंकने वाला कुत्ता भी पूछा करता है
कि डर से तू जिसे लिपटा करती थी वो कहा गया।
 
चेहरे पर आ लटकी जुल्फे भी पूछा करती है
उन्हें हटाने वाला अब कहा गया।
 
माथे पर आ जमी पसीने की बूंदे पूछा करती है
कि उसे पोंछने वाला कहा गया।
 
न जाने कितनी सखियां कितने परिचित और कितने रास्ते पूछा करते है
तू कहां गया
क्या कोई तूझसे नहीं पूछा करता
क्या कोई तूझे सवाल नहीं करता
करता है तो क्यों तू उन सवालों से हलकान नहीं होता।
 
 
 
 

Monday, August 4, 2014

उसका आना..... She came !




वो ग्रीन शर्ट
मत लो सिया की अग्नि परीक्षा हर बार
आशिता दाधीच

पहली ही डेट में किस! तुम्हे नहीं लगता नीरज कि हम इस रिश्ते में चल नहीं दौड़ रहे है. शर्म से नजरें झुकाए, नटखट सी मुस्कान को दबाते हुए सिया ने पूछा. तुम हो ही इतनी प्यारी, सच कहूं तो जिस दिन तुम्हे देखा उसी दिन दिल बेमोल बिक गया था, तुम्हारे नाम. नीरज ने गर्दन मटकाकर कहा. धत्त झूठे लेकिन, प्रपोज तो मैंने किया. इठलाकर सिया बोली. हां, मुझे शर्म आती है, बॉय फ्रेंड तो तुम हो ना, इसलिए पहल तुमने की, बस इसी तरह मेरा हाथ पकड़कर मेरे साथ चलो, मुझे राह दिखाती रहो. मुझे पता है, तुम साथ रही तो दुनिया जीत लूंगा मैं. नीरज उसके बालों में उंगलियां फेरते हुए बोला. अच्छा जी, मेरा दिल जीत कर जी नहीं भरा तुम्हारा कि अब दुनिया भी जितनी है. खीजते हुए सिया दूर खिसकने लगी. प्रेयसी की मनुहार करने में नीरज भी कहा कम था, उसे बाहों में भर कर बोला, तू ही तो दुनिया है मेरी, पर दुनिया को तेरी मेरी कहानी भी तो सुनानी है. सिया शर्म से जैसे लाल हुई जा रही थी. छोडो, घर जाने का वक्त हो गया है. कल मिलते है. रुको तुम्हे स्टेशन छोड़ दू, नीरज सिया का हाथ थामे चर्चगेट तक आया. उसे ट्रेन में बैठाया और ट्रेन के साथ तब तक दौड़ा जब तक वो प्लेटफॉर्म ना छोड़ दे.
बॉय फ्रेंड है तुम्हारा? सहयात्री ने सिया से पूछा, हां, मोहब्बत है वो मेरी, जिंदगी है वो मेरी. सिया गर्व से बोली. आंटी से तपाक से कहा, देख कर लगा ही था, इतना प्यार करने वाले होते ही कहा है, भगवान जोड़ी सलामत रखे.  जोड़ी सलामत रखे, आमीन सिया बुदबुदाई. डर लगता था उसे, अपनी ही किस्मत से, बचपन से दोस्तों की मंडली नहीं थी उसके पास, एक दो खास लोग बस. जब, से नीरज मिला है, उसे जिंदगी में पूर्णता का एहसास होने लगा. नीरज को खोने से ख्याल से भी कांपती है वो. नीरज भी तो ऐसा ही है, बहुत बिखरी हुई, तनहा बेरंग जिंदगी थी उसकी. जब से सिया आई है, नीरज का हर सपना रंगीन होने लगा है. उसे जीना है, कुछ करना है, खुद को कुछ बनाना है, सिया के लिए.
दो महीनें हो चुके है, उन दोनों को एक दुसरे के साथ. सहारनपुर की रहने वाली सिया, दो साल पहले ही फैशन डिज़ाइनर बनने मुंबई आई थी. बांद्रा के पॉश इलाकें में किराए का फ़्लैट, वो और उसकी बार्बी यही उसके साथी थे. चर्चगेट पर एक नामचीन डिजाइनर के यहां नौकरी मिल गई तो जैसे उसकी दुनिया ही बदल गई. बड़े शौक नहीं थे उसके, सिर्फ सपने बड़े थे. उसे तितली के संग उड़ना था, मझली के संग तैरना था. एक साल पहले ही नीरज उसे मिला, तो लगा जैसे ऊपर वाले ने सब कुछ छप्पर फाड़ कर दे दिया. उसके साथ होकर सिया दुनिया भूल जाती थी. नीरज की रानी थी वो और नीरज उसका राजा.
उसका ऑफिस सिया के ऑफिस के नीचे वाले फ्लोर पर ही था, दोनों ऑफिस से समय निकाल कर साथ में टपरी पर चाय पीने जाते थे.
आज सुहास नहीं आया, सिया ने चाय की चुस्की लेते हुए पूछा. ना उसकी मां बीमार है. ओह्ह सिया का चेहरा लटक गया. नोट डन यार उसने मुझे बताया तक नहीं. इस पूरे शहर में वही तो मेरा पहला और इकलौता दोस्त है. उसे एट लीस्ट मुझे इन्फॉर्म करना चाहिए था. सीया बिदक कर चली गई. नीरज भी कुछ नहीं बोला, बोले भी क्यों, सुहास सिया का सबसे अच्छा दोस्त है. सिया उसे अपना बड़ा भाई मानती है, और सुहास नीरज के भी तो बचपन का जिगरी दोस्त है. नीरज जानता है सिया उसके बिना दो दिन रह सकती है पर सुहास के बिना चार घंटे भी नहीं.  सुहास है ही इतना अच्छा, बचपन से नीरज का हमेशा साथ दिया उसने, उसी की वजह से तो वो अपने पहले ब्रेक अप के ट्रौमा से बाहर निकल पाया था और उसी की वजह से एक साल पहले वो सिया से मिला.
उसे आज भी याद है, जब सिया का बर्थडे था. सुहास ने पार्टी रखी थी, जिसमे नीरज भी आमंत्रित था. इसी पार्टी में पहली बार मिले थे नीरज और सिया. यही दोनों की नजरें एक दुसरे पर टिकी थी. जिसके बाद शुरू हुआ था, छुप छुप के साथ साथ फिल्मे जाने का दौर. नीरज माँ –बाप का इकलौता बेटा, कोई साथी नहीं, उसे भी सिया के साथ जाना अच्छा लगने लगा. सिया तो थी ही घुमक्कड़ जब मन किया जहां मन किया निकल जाती थी. उसके साथ रहकर नीरज का बोरिंग नेचर कुछ बदल रहा था. सिया की महत्वाकांक्षाएं और तमन्नाएं उसे भी उड़ना सिखा रही थी. वो सिया के साथ जीना सिखने लगा था. सुहास की वजह से उसे सिया नाम की नेमत मिली थी. बहुत मन होता था उसका सिया को गर्ल फ्रेंड बनाए. पर आजाद खयाल सिया कही उसे दोस्ती का फायदा उठाने वाला लालची ना समझ बैठे, वह हमेशा चुप ही रहा.

फिर लगभग दो महीने पहले, सिया ने उसे ऑफिस के नीचे अकेले बुलाया और उसका हाथ थाम कर कहा, ‘नीरज देखो, मुझे ये हाथ पकड़ कर जीने में मजा आने लगा है, क्या तुम सारी जिंदगी ये मेरी कलाई थाम सकते हो’ नीरज को तो जैसे सब कुछ मिल गया, खुशी आंसू बन कर छलक उठी और उसने सिया को बाहों में भर लिया.
तब से उसकी दुनिया सिया तक सिमट आई, रोज उसे ऑफिस से स्टेशन छोड़ना, फिर देर रात तक फोन पर बतियाना, सुबह उसे जगाना, उसकी तो जैसे दिनचर्या ही सिया के इर्द गिर्द मंडरा रही थी.
दोनों साथ होते तो वक्त भी पंख लगाकर मानों उड़ सा जाता. वेक अप माई प्रिंस, फोन पर सिया की वजह से नीरज की नींद टूटी. हम्म बोलो उठ गया. आज हमें साथ में तीन महीने हो गए चलो ना कही, लेट्स सेलिब्रेट. ओह्ह तुम भी ना बच्ची हो, नीरज खुद गया. तुम नाटक ना करों, मेरा पहला अफेयर है ये, मुझे इसके हर पल का लुफ्त लेना है. सिया भी जिद पर अड़ गई. ठीक है मैं एक बजे तक तुम्हारे घर आता हूं, सुहास को भी ले आता हूं, अपन तीनों कार्टर रोड चलेंगे. नीरज ने फैसला सुनाया. नहीं नीरू, बिलकुल नहीं. चीख पड़ी सिया. देखो तुम्हें मेरी कसम चाहे जो हो जाए सुहास को हमारे अफेयर में बारें में कभी किसी कीमत पर पता नहीं चलना चाहिए. सिया का मूड अब तक उखड चुका था, उसका स्वर बदल गया था. नीरज भी प्रतिकार करने में अव्वल था, क्यों यार वो तो हम दोनों का बेस्ट फ्रेंड है. हम दोनों उससे कभी कुछ नहीं छिपाते, नीरज भी अड़ गया. सिया कुछ ना कह सकी,  गुस्से में फोन काट कर सोने चली गई. नीरज सकपका चुका था, उसकी नींद उड़ गई. ये सुहास को क्यों नहीं बताना चाहती, उसे बात हजम नहीं हुई, सिया का नंबर घुमा डाला. अपनी कसम दे दी और वजह पूछने पर अड़ गया. फोन में किसी श्मशान का सन्नाटा पसर गया. ना जाने क्यों, मेरा दिल कहता है कि उसे जिस दिन पता चलेगा हमारे रिश्ते का वो आखिरी दिन होगा. नीरज, तुम्हे मेरी कसम जब तक हमारे परिवार शादी को एग्री ना हो जाए उसे पता नहीं चलना चाहिए. सिया की आवाज भारी हो रही थी.
ये लड़की भी पागल है, कुछ भी सोचती रहती है, खैर जैसी भी है, मेरी है, मेरी आंखों का तारा है, इसे खुश रखना, इसकी इच्छाएं पूरी करना मेरा फर्ज है. नीरज तय कर चुका था कि इस बारे में सुहास को कभी पता नहीं चलेगा. दिन खुशी खुशी कट रहे थे. सुहास को वक्त वक्त पट शक होता था, अब नीरज उसे टाइम नहीं देता था, सिया भी बीजी रहती थी, दोनों अक्सर एक साथ एक ही वक्त पर गायब भी होते थे. उसनें कई बार नीरज से पूछने की कोशिश की लेकिन, नीरज हर बार टाल गया.
नीरज और सिया का रिश्ता छह महीने पूरे कर चुका था. इसी मौके पर सिया ने जुहू के एक पांच सितारा होटल में रात आठ बजे नीरज को खाने पर बुलाया. समय की पाबंद सिया वहां पहुंच गई, लेकिन नीरज नहीं आया. घड़ी की सुइयां मरियल चाल से आगे बढती रही. सिया का चेहरा लटकता जा रहा था, नीरज तो इतना लापरवाह कभी नहीं था, फोन भी नहीं उठा रहा, सिया कभी गुस्से तो कभी डर से छटपटा रही थी कि अचानक मोबाइल बजने लगा. नीरज का कॉल था. हैलो
सिया यार सॉरी
तुम सेफ तो हो, क्या हुआ, कहां हो, पता है मैं कितनी डर गई थी, तुम इतने केयरलेस कैसे हो सकते हो? बिफर पड़ी वो.
यार क्या करू, सुहास ने बीयर पीने रोक लिया.
क्या, लेकिन, तुमने तो मुझे वादा किया था कि तुम शराब छोड़ दोगे
अरे यार बचपन का दोस्त है, इमोशनल कर दिया उसने, जिद करने लगा तो मैं मना नहीं कर पाया.
सिया का मन बुझ चूका था, झगडनें का कोई फायदा भी नहीं था, कोई बात नहीं कहकर झूठी मुस्कान देकर उसने फोन काट दिया. नीरज विश्वासघाती है यह बात आज उसके मन में अपने आप अंकित हो गई.
तूफान अकेले कब आता है, जब भी आता है लाव लश्कर लेकर आता है. नीरज को ऑफिस में प्रमोशन मिली पार्टी हुई, लेकिन सिया को एक नॉर्मल दोस्त की तरह पेश किया गया, सुहास की मौजूदगी के चलते उसे गर्ल फ्रेंड होने का सम्मान मिल ही नहीं सका. दिल पर एक और चोट हो गई.
दोनों इस बार साथ वाटर पार्क जाने का प्रोग्राम बना रहे थे. सिया बहुत खुश थी. सारी तैयारियां हो गई थी कि ऐन मौके पर सुहास बीमार पड़ गया. नीरज ने जाने से मना कर दिया. जब सिया ने फोन पर जिद की. तो नीरज बिफर पड़ा, ‘जब से जिंदगी में आई हो गुड्डा बना दिया है मुझे, तुम्हारे नियमों से बंधकर मैं अपनी दोस्ती बर्बाद नहीं कर सकता, तुम्हे अपनाते अपनाते मैं अपने भाई जैसे दोस्त को खोने लगा हूं. तुम टॉर्चर हो यार’ नीरज ने फोन काट दिया, लेकिन, सिया, उसके आंसू नहीं रुके. उससे पहली बार किसी ने ऐसे बात की थी, उससे अपमान बर्दाश्त ना हुआ, आनन फानन में सुहास के घर पहुंच गई और वही उसी के सामने मैं नीरज से प्यार करती हूँ, उसकी गर्ल फ्रेंड हूं, कह कर नीरज से लिपट गई.
सुहास खुशी से झूम उठा, अपने दोनों ख़ास दोस्तों की प्रेम कहानी सुनकर उसका तो जैसे बुखार ही भाग गया. नीरज के चेहरे पर गर्व तैर रहा था. एक तो सिया के अनुमान के विपरीत सुहास इस प्रेम के बारे में जान कर खुश हुआ और दुसरा दोस्त की नज़रों में उसकी इज्जत भी बढ़ गई. एक शानदार गर्ल फ्रेंड है उसके पास और ना ही उसने दोस्त से कुछ छुपाया दोनों तरह से हुआ तो उसके मन का ही. वो खुश था, लेकिन, सिया, अंदर तक डरी हुई थी. एन अनजाना खौफ उसे खा रहा था.
अगले ही दिन नीरज और सुहास चाय पीते पीते इस अफेयर को डिस्कस कर रहे थे. नीरज को जैसे गर्व से पगला रहा था, एक एक किस्सा अपने दोस्त को बता रहा था, आखिर वो दोस्त से कुछ छिपाता जो नहीं था. क्या, उसने तुझे आगे होकर प्रपोज किया, चीख पड़ा सुहास, मुझे नहीं पता था सिया इतनी बेशर्म है, तू भी किसके चक्कर में फंस गया नीरज, लड़की होकर प्रपोज करती है, आगे क्या क्या करेगी, तुझे गुलाम बना कर रखेगी. सुहास उठ कर चला गया और नीरज वहां अकेला खड़ा सोचता ही रह गया. सुहास क्यों गलत कहेगा, उसकी बात में कोई तो वजह होगी, बचपन का दोस्त है मेरा बुला क्यों चाहेगा, लेकिन सिया तो कितनी अच्छी है, इतनी सुंदर है, फिर भी मेरे अलावा आज तक उसने किसी को नहीं देखा, अब तक नीरज का मन कुरुक्षेत्र हो गया था, जहां सुहास की दोस्ती के कौरव और सिया के प्रेम के पांडव महाभारत कर रहे थे.
एक जनवरी साल का पहला दिन और नीरज का जन्मदिन सिया सुबह से उत्साहित थी. घर पर ढेर से व्यंजन बनाए पहली बार वो इतने जतन से कुछ पका रही थी. लंच पर नीरज जो आने वाला था. घड़ी की सुइयां जैसे ही बारह बजाने को मिली दरवाजे की बेल बजी और नीरज सामने. सिया को तो जैसे सबकुछ मिल गया, उसके घर उसका खुदा आया था, मनमाफिक आवभगत की अपने हाथ से पका कर खिलाया. दोनों एक थाली से कौर तोड़ ही रहे थे, कि अचनाक प्रेम का प्रवाह प्रबल हुआ, सिया अपने नीरज की बाँहों में थी और उसी पल उन दोनों के रूहानी रिश्ते ने जिस्मानी रूप ले लिया. उस दोपहर बिन फेरे सिया नीरज की ब्याहता हो गई और नीरज के लिए सिया उसकी अर्धांगिनी.
 अगले ही दिन ऑफिस में खाने की टेबल पर नीरज के गले पर पड़ा लव बाईट उसकी मोहब्बत की दास्तान चीख चीख कर सुना रहा था. सुहास का ध्यान पड़ा और उसने वजह पूछ डाली. नीरज तो जैसे दुनिया जीत कर आया था, उसने भी बड़े गर्व से बीती दोपहर का किस्सा सुना डाला. सिया की कसम से तो वो मुक्त ही था, और जिसे बता रहा था वो सिया का सबसे खास दोस्त ऐसे में छुपाना क्या?

सुहास के चेहरे का रंग उड़ चुका था, उसने सिर्फ एक सवाल दागा. नीरज, जो खुद अपनी इजात लुटवाने के लिए जवान मर्द को अपने घर बुलवाए क्या वो औरत घर की इज्जत बनाने लायक है?  बच्चा भी मां के पेट से बाहर आने में नौ महीने लेता है, यह तो आठ महीने में खुल गई, इसका क्या भरोसा? तू भाई है मेरा, तेरी जिंदगी खराब होते नहीं देख सकता इसलिए कह रहा हूं, छोड़ इस बवाल को.

नीरज कुछ नहीं कह सका, पत्थर हो चुका था वो, सुहास उसका बुरा नहीं चाहेगा, उसे पता था, इसलिए खोट तो सिया में ही है. वो निर्णय ले चुका था.
खुद को नीरज की नीरजा मान चुकी सिया उसे फोन लगाती रही, लेकिन, कोई जवाब नहीं आया. वो बीजी होगा, काम की टेंशन होगी, खुद करेगा, उसकी भी अपनी लाइफ है. हो सकता है कल जो हुआ उस वजह से वो थोड़ा शरमाया हुआ हो. सिया को खुद को ढेरों दिलासे दे दिए.
पंद्रह दिन, अब विरह असह्य हो चुका था, उसने एक पीसीओ से नीरज को फोन किया.
हैल्लो नीरू, मैं सिया, फोन क्यों नहीं उठाते तुम?
नहीं उठाता हूँ, तो इसका मतलब समझो, आई हेट यु. मैं तुमसे ब्रेक अप करता हूं, आजके बाद मुझे कॉल या मैसेज मत करना, नीरज ने फोन काट दिया.
मेरी गलती क्या है, सिया बस सोचती रह गई, उसे कुछ समझ नहीं आया. उसने ना जाने कितने मैसेज किए लेकिन, उसका पत्थर रांझा नहीं पिघला.
वो टूटती जा रही थी. नाउम्मीदी उसकी इकलौती सहेली बन गई. अचानक, याद आया उसे, सुहास, नीरज के बचपन का दोस्त, वो उसे समझा सकता है, पैदा हुई ग़लतफ़हमियों को दूर कर सकता है, और वो उसका भी तो खास दोस्त है. वही मदद करेगा. सिया ने सुहास का नंबर घुमाया और उसे मिलने बुलाया.
भीगी पलखे लिए सिया खड़ी थी, सुहास ने उसे हग किया. लेकिन, ये हग कुछ अलग था, इसमें सुहास वाली बात नहीं थी, सिया असहज हो गई, खुद को अलग करते हुए उसने सुहास से नीरज को समझाने के लिए कहा. देख वो है ही कमीना, औरतों का इस्तमाल करके उन्हें छोड़ देता है. मैं तुझे पहले ही बताना चाहता था पर मुझे लगा तू विश्वास नहीं करेगी इसलिए कभी कहा नहीं. तू भूल जा उसे और सुन चिंता मत कर मैं तुझे अपनाउंगा. मुझे पता है तेरी इज्जत जा चुकी है फिर भी मैं तुझसे शादी करूंगा बस तू मेरी हो जा.
सिया पर जैसे एक साथ करोडो बिजलियां गिर गई. उसका रोम रोम कांप गया. सुहास बोलता जा रहा था, तेरी इज्जत नीलाम हो चुकी है, अब तुझे कोई नहीं अपनाएगा, लेकिन तू फिकर मत कर.
सिया ने अपने आंसूं रोके नज़रे उठाई और सुहास के चेहरे पर टिका दी. अब दोनों की आंखे एक दुसरे में झांक रही थी. सुहास नहीं, मैं कोई मैला बोझा नहीं हूं, मेरा मन पवित्र है, तू मुझ पर एहसान ना कर, मुझे संभालने वाले मिल ही जाएंगे तू उसकी परवाह ना कर.

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अपने पलंग पर पड़ी सिया सोच रही थी मेरा चरित्र आज भी पवित्र ही है, खोट हमारी ही दोस्ती में था, जो मेरे प्यार को ना समझ सकी.  उसका दिल तो कहता ही था कि जिस दिन सुहास को पता चलेगा उसी दिन से इस रिश्ते का ताबूत तैयार होना शुरू हो जाएगा, अब उसे विश्वास भी हो गया. उसने नीरज को फोन लगाया उसे सब कुछ बताने की कोशिश की. लेकिन नीरज तो उसे सुनने को ही तैयार ना था. सुहास की बाते उसके मन में पत्थर की लकीर की तरह लिखी जा चुकी थी. सिया कि हर कोशिश बेकार रही, मेल करना, एसएमएस लिखना, चिट्ठी भेजना सब बेकार.
उधर नीरज वो भी तो संशय में पड़ा तड़फ रहा था, खास दोस्त झूठ क्यों बोलेगा, लेकिन कोई लड़की भी इतना फोन क्यों करेगी. दुसरे शहर से दो साल पहले ही आई लड़की का चरित्र भी कौन जाने उसकी जिंदगी का सवाल था. लेकिन, उन दो आंखों का क्या, जिनमें बेशुमार प्यार था, जिनमे मासूमियत टपकती थी. और सिया के चरित्र पर तो सवाल ही नहीं उठता वो तो नजरे उठा कर भी किसी को नहीं देखती थी. नीरज पागल होता जा रहा था. धीरे धीरे खाना छुटा, ऑफिस से मन उठने लगा. वो दीवानों सा रहने लगा और सुहास हर बार उसकी बर्बादी का दोष सिया पर मढ़ता रहा.
सिया आज भी खुश है, रोज मेक अप करके, बेहतरीन कपडे पहनकर ऑफिस आती है. उसे तो जैसे कोई फर्क ही नहीं पडा, तू क्यों उसके पीछे बर्बाद होता है सुहास नीरज को कहता रहा. लेकिन नीरज के अंदर कोई था जो हर बार चीख कर सुहास का विरोध करना चाहता था लेकिन सुहास चुप रहा.
एक साल बित गया. कल एक जनवरी है, नया साल भी लगेगा और नीरज का बर्थडे भी, पर वो बहुत उदास है. इस बार उसके साथ उसका बर्थडे मनाने वाली जो नहीं है. सब कुछ खत्म हो गया. इसी दिन बर्बादी की नींव पड़ी थी, वो खुद को कोस रहा था. घड़ी की सुइया 12 बजने में दस मिनट कम बता रही थी. दुनिया जश्न में मशगूल थी और नीरज अपने ग़मों में. अचानक, दरवाजे की घंटी बजी, बुझे मन से उठा वो गेट खोला,
ये यहा क्यों आई है, क्या चाहिए इसे. सोच में पड़ गया वो. सदमें से लकवा मार गई जबान हिलती उससे पहले ही सिया ने उसे बाहों में भर लिया, हैप्पी बर्थडे माई प्रिंस, चालों अंदर तुम्हारा फेवरेट केक लाइ हूं. सिया मुस्कुराने लगी
तुमने पी रखी है क्या, आज तुम एक साल बाद मेरे घर, इतनी खुश होकर, वो सब, वो आरोप, क्या तुम गुस्सा नहीं?
ना, मेरे लिए सपना था वो, तुम भी नींद से जाग जाओ, अब देर मत करो बारह बजने में बस तीन ही मिनट बाकी है लो ये हरा शर्ट पहन लो, तुम्हारे लिए लाइ हूं, तुम्हे बहुत सूट करेगा. सिया खिलखिला पड़ी. 



पता था मुझे, I Knew it !

 
पता था मुझे,
एक दिन,
तुम दूर हो जाओगे मुझसे.
नहीं रहोगे,
मेरी बाहों में, पहले की तरह.
एक दिन,
हर वादा, हर कसम भूल कर
फेर लोगे पीठ,
मेरे चेहरे की तरफ.
 
जिंदगी अब भी वैसी ही है जैसी तब थी
हां, अब तुम्हारा स्पर्श नहीं,
सुबह उठाने वाली तुम्हारी आवाज नहीं,
थकान मिटाने वाली तुम्हारी मुस्कान नहीं,
 
दिल को छू जाने वाले तुम्हारी कोई बात नहीं।
 

 
 
 

अब भी,
 
बारिश भिगोती होगी तुम्हारे बाल
सूरज चमकाता होगा तुम्हारा लालट
हवा गुनगुनाती होगी तुम्हारे साथ
दीपक मिटाता होगा अंधेरे का एहसास
 

 
 

 

फूल अब भी खिलते होंगे तुम्हारे बगीचे में
धूप अब भी बिखरती होगी तुम्हारे आँगन में
फिजा अब भी रंगीन होगी तुम्हारी महफ़िल में
इन्द्रधनुष अब भी निकलता होगा तुम्हारे आसमान में
 
बस
मेरी पलखों पर नहीं है छुअन तुम्‍हारे होंठों की
मेरे बालों में नहीं अटकती उंगलियां तुम्हारे हाथों की
मेरे होठों पर नहीं बजती बंसी तेरे गीतों की
मेरे हाथों से नहीं पकती रोटी तेरे नाम की
 
फिर भी
बची है एक स्‍मृति
उन रातों की याद
जीवन रुका नहीं है
जीवन रुकता नहीं है
 
 

Sunday, July 20, 2014

वो चूड़ीवाला That Bangle seller



- Ashita Dadheech


डिप्पी, जरा उस लड़के को तो देख कितना क्यूट है| कौन....? हुह लेडिज डिब्बे में भी कही मर्द होते हैं| अरे, किताब से नजर हटा, उस चूड़ी वाले को देख तो| झुंझलाकर दीपशिखा ने नजरें उठाई और बस ठिठक कर उसे ही देखती रह गई| ये क्या? चूड़ी वाला और वो भी इतना क्यूट, इतना हैंडसम.... गरीबी बहुत बुरी चीज हैं, हैं ना आरती| हां बिलकुल, कहकर आरती अपने एयरफोन में बज रहे संगीत में फिर खो गई, और दीपशिखा, उसकी नजरें तो आज उस चूड़ी वाले से हट ही नहीं रही हैं| अब तक शायद, चूड़ी वाला भी इसे महसूस कर चुका था| उसने पलट कर दीपशिखा को एक नजर देखा, गोरी सी, दुबली –पतली लड़की, चश्में से झांकती बड़ी –बड़ी कजरारी आंखें, पूरे कपड़ों में ढंकी कंचन सी काया, बस एक नजर भर कर देखा और फिर पूछ बैठा मैडम चूड़ी लोगी?
उसकी आवाज, यूं लगा डिप्पी को मानो किसी ने मन की वीणा के सभी तारों को एक साथ छेड़ दिया हो| ये क्या हो रहा है मुझे, आज से पहले तक किसी सुंदर, सुदर्शन युवक को देख कर भी ऐसा नहीं लगा था| नहीं चाहिए चूड़ियां, कहकर फिर किताब में नजरें गढ़ा ली उसनें| हाय राम, ये क्या किया मैंने, दो चार चुडियां ले लेनी थी, छी, ये क्या सोच रही हैं तू, चूड़ी वाले पर क्रश आया तुझे, शर्म नहीं हैं| ग्लानी से भर गई, दीपशिखा| डिप्पी चल, मरीन लाइंस आने वाला हैं, उतरना नहीं हैं, आरती की आवाज ने उसे स्वप्न और संशय लोक से निकाला| दुपट्टा ठीक कर के वे दोनों उतर गई| और, चूड़ी वाला, ना उसकी किसी को परवाह नहीं, शायद वह चर्चगेट तक जाएगा|
दीपशिखा और आरती दोनों जे. जे. अस्पताल में डॉक्टर हैं| सुबह साढ़े नौ की फास्ट ट्रेन पकड़ते हैं, बांद्रा से| काम खत्म होने तक अक्सर दस तो बज ही जाती हैं| कम खत्म कर के दोनों ने फिर वापसी की ट्रेन पकड़ी| दीपशिखा की आंखे मानो कुछ तलाश रही थी, वे सहज झुंकी नजरें आज उछल उछल कर डिब्बें में किसी तो तलाश रही थी| डिप्पी क्या हुआ क्या खोज रही हैं, चिढ़ कर आरती ने पूछा| नहीं यार, कुछ भी तो नहीं, मैं तो बस ऐसे ही| आर यू श्युअर? हां बाबा| चल ठीक हैं|
दोनों उतर कर घर चली गई, लेकिन, आरती को सारी रात नींद नहीं आई| वो डिप्पी को आज से नहीं, बीते तेरह सालों से जानती हैं, कुछ तो हैं जो डिप्पी को अंदर ही अंदर कचोट रहा हैं| सुबह, पूछती हैं|
ये सुबह हर सुबह जैसी कहा? आज डिप्पी कुछ अलग लग रही हैं, शायद पाउडर लगा कर आई हैं| क्यों रे, लड़का वडका पटाया हैं क्या? इतना चमक क्यों रही हैं? डिप्पी को ट्रेन में ठेलते हुए आरती ने पूछा| पागल हैं क्या, ऐसा कुछ होता तो तुझे नहीं बताती| कनखियों से चूड़ी वाले को खोजती दीपशिखा ने कहा| हाँ, वो आया हैं, वो रहा| जैसे ज्येष्ठ की गर्मी के बाद तपती जमीन पर बरसात हुई हो, डिप्पी का चेहरा खिल गया| चंद मिनटों में चूड़ी वाले ने भी भांप लिया, लेकिन, इस बार उसने पलट के भी नहीं देखा| कितना निष्ठुर हैं ये, हां, लड़के होते ही ऐसे है, हुह, अब नहीं देखूंगी इसे, चूल्हे में जाए|
इसके बाद ना जाने कितने दिन सप्ताह और महीने इसी कशमकश में बीतने लगे| ना आरती कभी दीपशिखा को पढ़ पाई, ना डिप्पी उसे कुछ कह पाई| वो तो बस अपने में ही उलझी रहती, सुबह चूड़ी वाले को देख लेती तो पूरा दिन खुशी खुशी निकल जाता| अगर, कभी आड़ में से उसे खुद को देखते पा जाती तो, शर्म से लाल हो जाती, चूड़ी वाला भी तो नीची निगाहों से उसे निहार ही लेता हैं|
कभी समझ ही नहीं आया कि उसे क्या हो रहा हैं, शायद, दीपशिखा ने समझने की कोई कोशिश करनी भी नहीं चाही, वो खुश थी उसे देख कर, उसके करीब से गुजर कर| फिर, एक दिन अचानक, चूड़ी वाला नहीं आया| वो बैचेन हो गई, शायद, कही गया होगा, कल आ जाएगा, उसने दिल को समझा लिया|
अगले दिन वो अपने दुवाओं को दुहाई देकर ट्रेन में बैठी, पर चूड़ी वाला तो आज भी नहीं आया| ना जाने क्या वजह हैं? उसका दिल बैठा जा रहा था, रोने का दिल कर रहा था| पूछे भी तो किसे, कुछ समझ नहीं आया| आरती उसकी तकलीफ समझ रही थी, पर कहती भी तो क्या|
क्यों, लिपस्टिक वाले भैय्या वो चूड़ी वाला कहा गया, चूड़ी लेनी हैं| उसने हफ्ते भर बाद डरते डरते एक लिपस्टिक वाले से पूछा| पता नहीं मैडमजी, कहकर वो चला गया| दीपशिखा को चारों और अंधेरा नजर आया रहा था, ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके स्वप्न लोक को आग लगा दी हो|
दिन बीतते चले गए, वो नार्मल सी अपने मरीजों में व्यस्त हो गई| बरसात शुरू हो गई, उस दिन जब वो मरीन लाइंस उतरी तो सामने, ये क्या चूड़ी वाला यहा?
हैल्लो मैडम, पहचाना, मैं चूड़ी वाला?
अरे हां, खुशी छुपाने की नाकाम कोशिश करती दीपशिखा बोली, कहा थे इतने दिन, उसके इस वाक्य में किसी रूठी प्रेमिका की नाराजगी झलक रही थी, शायद चूड़ी वाला भी समझ गया मुस्कुरा कर बोला, ‘मैं यहा कोई चूड़ी बेचने थोड़ी आया हूं, हीरो बनने आया हूं हीरो| गर्व उसके चेहरे से टपक रहा था|
हां, तो, क्या हुआ?
मुझे रोल मिला हैं, सीरियल में, हीरो के दोस्त का, अब चूड़ियां नहीं बेचूंगा|
ओह!!! दीपशिखा की सारी खुशियां शीशे की तरह टूट गई| फिर, मुस्कुरा कर बोली, बधाई हो, खूब तरक्की करो, फिर आज यहां कैसे?
कुछ नहीं आप इसी ट्रेन से आती हो ना, पता था, तो सोचा आपको बता दूं, इसलिए यहा खड़ा था|
ओह, अच्छा किया बताया, मैं चलती हूं, देर हो रही हैं| बिना एक बार पलखें उठाए, दीपशिखा ने कहा, शायद नजरें मिलाने से बच रही थी वो, और बस तेज कदमों से बढ़ चली अस्पताल की ओर|
हाय राम, ये मैंने क्या किया कम से कम उसका नाम तो पूछ लेती, वो पलटी उसकी तरफ जाने के लिए लेकिन तब तक वो चर्चगेट की ट्रेन में बैठ कर निकल गया|


 

Tuesday, May 6, 2014

रुक जाओ Please Wait



सुनो एक मिनट तो रुक जाओ, मेरी बात तो पूरी सुन लो, एक हग ही दे दो, उसी के सहारे जिंदगी बिता दूंगी। सोनल मरीन ड्राइव के फूटपाथ पर दीपांकर के पीछे दौड़ रही थी। आगे जाकर दीपांकर कुछ ठहरा, मन में एक उम्मीद कि किरण जागी। सोनल ने भाग कर उसे पीछे से बाहों में भर लिया। दीपांकर ने एक गर्म सी सांस ली, पलटा और सोनल को अपनी पूरी ताकत से खुद में जकड़ लिया। उसकी आंखों से आंसू बहने लगे और वो आंसूं लुढक कर सोनल की मांग भर गए। दीपू मैं तो तेरी ब्याहता हो गई, सोनल उन डबडबाई आंखोँ में देख कर बोली।
ब्याहता सुनते ही दीपांकर को याद आईं, मां कि बीमारी और उसकी समान जाति की बहु लाने की जिद। एक झटके में झिटक दिया उसे जिसे वो प्राणप्रिया कहता था।
 वो वहां  रुकने की गुजारिश कर रही थी, और दीपू खुद से बस दुबारा ना पलटने की गुजारिश कर रहा था।
 इतने में अरब सागर ने उछाल मारा, अब ये तो रब जाने कि बड़ा ज्वार कहा आया है, साग़र में, सोनल के दिल में या दीपांकर के जीवन में।





(फोटो गूगल से लिए गए है )

 वो दीपांकर जो हमेशा पंजा लड़ाने में उसकी ख़ुशी के लिए हर बार खुशी खुशी हार जाता था, आज उसे हारी हुई छोड़ गया

Monday, May 5, 2014

वो चली गई, She Left,



    
                                                                My first Short Story


 बस स्टॉप पर खड़े वो एक दुसरे को देख रहे थे, शब्दों का ज्वार मन में उमड़ रहा था पर कहने को एक शब्द भी नहीं, शायद उन दोनों के बीच की चुप्पी श्रुति का दम घोंट रही थी, रुंधे गले से पूछ लिया उसने, क्या ये सचमुच हमारी आखिरी मुलाक़ात है, क्या कभी नहीं मिलेंगे हम!
तेरे साथ रहा तो अब सब सत्यानाश हो जाएगा, चिल्ला उठा दीपक। दो साल में पहली बार उसे चीखते सुना कांप गई श्रुति और पूछ बैठी 'डिसाइड तो यही हुआ था कि अगर ब्रेक अप करना पड़ा तो भी कम से कम हाय हैल्लो का रिश्ता रखेंगे, तुम्ही ने कहा था, दुवा सलाम कायम रहेगी। फिर क्यों, इतनी बुरी तो नहीं मैं?' श्रुति फफक पड़ी.
यार तुम्हारा यही प्रॉब्लम है रोती बहुत हो, दीपक अपनी गीली आंखों को चुपके से पोंछने की कोशिश कर रहा था, श्रुति हंस पड़ी, "देखा तुम डरपोक हो फिर रो पडे"
अभी अलग ना हुए तो आगे तकलीफ होगी इसलिए इस रिश्ते की हर डोर काटने आया हूँ आज, रोक मत मुझे। दीपक के यह कहते ही श्रुति मुस्कुरा पड़ी और बोली पागल मेरे पीछे तो 25 है, टेंशन ना लो, जाओ आजाद किया तुम्हे। आवक सा दीपक वही खड़ा रह गया और अपने दिल में पहाड़ सा बोझ लिए पथराई आंखों के साथ बढ़ गई श्रुति आगे.





 

Thursday, January 30, 2014

तू लौट आया है You Are Back

 
 
 
 
 
कुछ बदल गयी हूं मैं,
कुछ निखर गयी हूं मैं। 
 
सब कहते है, मेरी आंखे बोलने लगी है। 
सब कहते है, मेरी रंगत कुछ निखरने लगी है। 
सब कहते है, मेरी मुस्कान कुछ कहने लगी है। 
सब कहते है, मेरे कदम हर पल थिरकने लगे है। 
 
कुछ बदल गयी हूं मैं,
कुछ निखर गयी हूं मैं। 
 
 
सब कहते है, हंसती हूं अब बिन बात मैं। 
सब कहते है, गाती हूं अब हर राग मैं। 
सब कहते है, झूमती हूं अब हर पल मैं। 
सब कहते है, नाचती हूं अब हर ताल मैं। 
 
 
कुछ बदल गयी हूं मैं,
कुछ निखर गयी हूं मैं। 
लगता है,
तू लौट आया है, अब। 
 
 
 

Monday, December 23, 2013

बहुत याद आते हो तुम I Miss You So Much

 
 
 जब भी इस दिल को दर्द हुआ, तुम याद आए।
जब भी मैं थक कर चूर हुई, तुम याद आए।

 जब भी मिले धोखे दुनिया वालों से,
याद आई तुम्हारी वफाएं।

जब भी टुटा दिल दुनिया के प्रपंच से,
देख ली अपने पर्स में रखी तेरी तस्वीर

जब भी खुद को अकेला पाया, तुम याद आए।

 याद आया तुम्हारा मेरे करीब से गुजर जाना,
और आगे जाकर कुछ ठहर कर मुड़ जाना,
पलट कर मुझे देखना और मुस्कुरा देना,
 और तसल्ली करना कि कही मेरी आंखे पीछा तो नहीं कर रही तुम्हारा।
 
बातों - बातों में तुम्हारा मुझ से मेरे ख्वाब पूछ लेना,
और फिर उन ख्वाबों को सच करने की कोशिश में जुट जाना।

जब ट्रेन चल दे उसके साथ दौड़ते रहना,
मेरे पैर दुःख जाने जाने पर उन्हें सेहला देना,
मेरे रो देने पर बाहों में भर लेना,
मुझे बच्ची की तरह समझा देना|

 याद आता है अपनी शर्ट में महकता तेरा पसीना
तेरे  बालों का टूट कर मुझसे लिपट जाना

 सच कहु तो जब भी बढ़ जाते है दुनिया के झमेले
जब भी हो जाते है हम अकेले
बहुत याद आते हो तुम
बहुत याद आते हो तुम
 

 

 

 
 
 
 

 
 

Tuesday, January 1, 2013

Life, Love & Peace




“आत्मिक शांति के लिये हर व्यक्ति को अपने मन की सुनने और उस अनुसार आचरण करने का अधिकार हैं.”

यह एक शास्वत सत्य हैं. लेकिन विडंबना यह हैं कि हर परिस्थिति में यह कथन परिवर्तित हो जाता हैं.

आज आपकी उम्र चाहे कितनी भी हो लेकिन जिस दिन से आपने जीवन को समझना शुरू किया होगा, जीवन ने आपको भावनाओं, एहसासों और संवेदनाओ से जरुर रूबरू करवाया होगा.

जहाँ जहाँ जब जब किसी से आशाएं जोड़ी जाती हैं, तब दिल कहीं ना कहीं हल्का सा ही लेकिन टूट जाता हैं. ‘शायद इसी लिये कहते हैं कि ‘एक्पेकटेशंस सक्स’ प्रेम कितना भी अटूट हो, लेकिन जब तक उसमे कोई अपेक्षा  नहीं रहती हैं, हर चीज सुख देती हैं, हफ्ते में एक बार भी बात हो जाए खुशी की कली खिली रहती हैं, लेकिन जिस दिन आशाएं शुरू होती हैं, उसका किया हुआ हर प्रेम पूर्ण कार्य भी छोटा लगता हैं.
और शायद तब दिल टूटने शुरू होते हैं. और जो अपने होते हैं उनके दिए हुए ये जख्म आसानी से भर नहीं पाते हैं, कई बार तो जिंदगियां लग जाती हैं, इसलिए हि तो कहते हैं ‘इश्क वो खेल नहीं जो छोटे दिल वाले खेले, रूह तक कांप जाती हैं, सदमे सहते सहते.’

और कई बार जब हम उस सदमे से उबार जाते हैं तो इस लायक नहीं बचते कि फिर किसी पर विश्वास कर सके, किसी के हाथो में उम्मीदों का दिया सौंप सके. तब जाकर शुरू होती हैं भावनाओं की मौत का एक अनजाना सिलसिला.  

प्रेम की वो कामना तो अमर हैं, लेकिन उसे हम भीतर ही भीतर रोज मार डालते हैं.   
लेकिन क्यू, यही तो वह एहसास हैं जो हमें रोज जिन्दा रखता हैं,
हमारा समाज, एक परिभाषा बना कर बैठा हैं कि आंसू गिरना कमजोरी की निशानी हैं, और शायद इसलिए हमारा अहम यह स्वीकार नहीं करता कि हम कमजोर बने.

लेकिन मुझे एक बात बताइए -

क्या किसी की याद में आंसू गिरना गुनाह हैं ?

क्या किसी के सामने अपनी भावनाये रखना गुनाह हैं ?

क्या किसी से प्रेम का प्रतिदान मांगना गलत हैं ?

क्या किसी कि और निन्यानवे कदम चलके उससे एक कदम आगे आगे चलने की आशा करना गलत हैं ??

क्या भावनाहीन बनकर जीना आसान हैं ?

हां, शायद यही ज्यादा आसान हैं, और बुद्धिमत्तापूर्ण भी.  

लेकिन फिर क्यू हम शाहरुख खान टाईप, बर्फी सरीखि फिल्मे देख कर अपने आंसू नहीं रोक पाते, क्युकी हजारों मौत मारने के बाद भी वे भावनाये वहाँ जिन्दा बच जाती हैं,  
लेकिन फिर भी आप, बर्फ की उन बंद दीवारों में जीना चाहते हैं ?? जो सिर्फ और सिर्फ आपका दम घोंट रही हैं, किस मजबूती का ढोंग कर रहे हैं आप ??

 जब एक मुस्कराहट सब कुछ ठीक कर सकती हैं. याद कीजिये वो दिन जब माँ कि गोद स्विजरलेंड की वादियों से भी खूबसूरत लगता था, वो आज भी उतना ही खूबसूरत हैं, बस आपने वो रंग देखने बंद कर दिए.

 क्यू हर दुःख में हम किसी सबसे प्रिय के सीने से लगना चाहते हैं ??
क्युकी हम इंसान हैं, भावनाए हम में आज भी जीती है.
लेकिन फिर भी ना जानने क्यू हम मशीन बन गए हैं, भावनाये जताने में डरने लगे हैं?
 प्रेम की चाह सबको हैं लेकिन उसे मांगना कोई नहीं चाहता.
लेकिन आखिर क्यू  उसे ना मांगा जाए जो आपको सबसे ज्यादा खुशी देता हैं.
जो आपको मुस्कुराने के लाखो मौके दे उससे ये नाउम्मीदी क्यू ?


हां, प्रेम में थोड़ी सी मूर्खताए होती हैं, लेकिन बच्चे भी तो सभी को इसीलिये अच्छे लगते हैं क्युकी वे थोड़ी सी मूर्खताए करते हैं, सभी एक बार फिर से बच्चा बन जाना चाहते हैं, लेकिन फिर भी बच्चा बनने से कतराते हैं, जब पता हैं कि यह एहसास खुशी देगा तो आखिर क्यू उस खुशी से डरना, क्यू किसी और की परवाह करना.  

अपने भीतर से उस मजबूत इंसान को मत मारिये, आने दीजिए उसे बाहर,
लड़ने दीजिए उसे जिंदगी की जंग हो सकता हैं इस बार वही जित जाते, जिसे आप कमजोर समझ कर लड़ने का मौका ही नहीं दे रहे थे,

भावनाये अमर हैं उन्हें मारा नहीं जा सकता, उन्हें मारने के नाम पर अपने जीवन की शांति को मारना बंद करो.  
भावनाएं तो आजाद परिंदे हैं, उन्हें जीभर के उड़ान भरने दो.  


प्रेम करते रहो, सब से, हर एक से,

क्या पता किसी से तुम्हे भी बदले में वैसा प्रेम मिल जाए, जिसका स्वप्न तुमने संजोया था.

हर पल जियो, प्रेम लूटाओं, खुश रहो,
मौके तलाशने की क्या जरुरत हैं ??