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Saturday, October 11, 2014

याद नहीं आता? Do you Rember

 
 
याद नहीं आता?

मेरा वो तुम्हारे बिस्तरों पर तुमसे लिपट कर सोना,
अब बताओं मेरे बिना कैसे नींद आती है तुम्हें।
क्या चादर की वो सलवटें तुम्हें तनहा सोने देती है,
अकेलेपन में क्या मेरे नाम से कसक नहीं उठती है।

जब जब बारिश गिरती है, बूंदें तुम्हे भिगोती है,
क्या याद नहीं आता तुमको मुझ संग भीगना,
समंदर में पैर भिगोना और बस हंसते रहना,
क्या तुम्हारी तन्हाई मेरे अभाव में तुमसे सवाल नहीं करती।

जब पहली बारिश से जमीन भीगती है,
कलियों से कुछ पंखुड़ियां और फूल खिलते है,
हमारे वो मिलन तीर्थ जब भीगते है,
क्या ये सब तुम्हारी आंख नहीं भिगो देते।

 
तुम्हारे आंगन में जहां एक दूसरे में लिपट कर बैठते थे हम
वहां जमी धुल को पोंछते पोंछते मेरी याद नहीं ताजा कर जाते।

किसी को खुद पर ना झल्लाता पाते क्या राहत पा जाते हो तुम,
हाँ, अब कोई नहीं लड़ता तुमसे, पर क्या इससे खुश हो जाते हो तुम।
 
हमारे वो सारे चिन्ह समेटे, उन जगहों पर घूमते
मेरा जिक्र छिड़ जाने से बचते, खुद से उलझे,
बिना कोई जुमला जोड़े, उन कविता को फिर से बोलते,
क्या तुम्हे कभी प्यार जैसा कुछ याद नहीं आता।
 
 
 
 
 
याद नहीं आता

तुम्हे वो पहला खत, जो मैंने तुम्हारे जन्मदिन पर लिखा था.
तुमने कुछ नुक़तों की गलती निकाल के हमको खूब खिजाया था |
क्या अब कोई खत पढ़ते हुए, तुमको हमारी याद नहीं आती ?
कोई कविता सुनकर पलखें नम नहीं हो जाती।
 
क्या अब भी मन मचलता है तुम्हारा पहनने को कोई कंगन,
अपनी माँ को कलाई में चूड़ियां सजाते देख क्या जी नहीं कचोटता तुम्हारा,
तुम्हारा वो मेरे सारे कंगन पहन लेना और उन्हें बजा बजा कर इठलाना,
क्या अब वो झंकार चीख चीख कर अंधियारों में तुम्हे नहीं पुकारती।


वो फूल जो मैं तुम्हे दिया करती थी, क्या अब भी रखे है,
तुम्हारी किताबों के बीच,
उन फूलों को देखकर क्या मेरे समर्पण की लाली रंग नहीं लाती,
रंग लाती है तो क्यों तुम्हारी रूह इस विरह से कांप नहीं जाती।


अब, तुम्हे शायद कुछ याद नहीं आता,
कुछ लोगों की साजिशें और कुछ रंजिशें
धुंधला कर गई है उस मुहब्बत को,
मिटा दिया उन्होंने तेरे मेरे प्रेम को,
नफरत की बारिश से।
 
तुम्हारे सीने पर मंढ चुके मेरे नाखूनों के घावों की ही तरह
भर गए है हमारी जुदाई के जख्म।
पर जब फिर से छाएगा सावन, बरसेगी कोई घटा,
तब हर झूठ के बादल को फाड़कर,
फिर से उगेगा मेरी मोहब्बत का सूरज।
 
 
 

 
 

 

 
 
 
 

 
 

 

 
 
 

 
 

Monday, August 4, 2014

पता था मुझे, I Knew it !

 
पता था मुझे,
एक दिन,
तुम दूर हो जाओगे मुझसे.
नहीं रहोगे,
मेरी बाहों में, पहले की तरह.
एक दिन,
हर वादा, हर कसम भूल कर
फेर लोगे पीठ,
मेरे चेहरे की तरफ.
 
जिंदगी अब भी वैसी ही है जैसी तब थी
हां, अब तुम्हारा स्पर्श नहीं,
सुबह उठाने वाली तुम्हारी आवाज नहीं,
थकान मिटाने वाली तुम्हारी मुस्कान नहीं,
 
दिल को छू जाने वाले तुम्हारी कोई बात नहीं।
 

 
 
 

अब भी,
 
बारिश भिगोती होगी तुम्हारे बाल
सूरज चमकाता होगा तुम्हारा लालट
हवा गुनगुनाती होगी तुम्हारे साथ
दीपक मिटाता होगा अंधेरे का एहसास
 

 
 

 

फूल अब भी खिलते होंगे तुम्हारे बगीचे में
धूप अब भी बिखरती होगी तुम्हारे आँगन में
फिजा अब भी रंगीन होगी तुम्हारी महफ़िल में
इन्द्रधनुष अब भी निकलता होगा तुम्हारे आसमान में
 
बस
मेरी पलखों पर नहीं है छुअन तुम्‍हारे होंठों की
मेरे बालों में नहीं अटकती उंगलियां तुम्हारे हाथों की
मेरे होठों पर नहीं बजती बंसी तेरे गीतों की
मेरे हाथों से नहीं पकती रोटी तेरे नाम की
 
फिर भी
बची है एक स्‍मृति
उन रातों की याद
जीवन रुका नहीं है
जीवन रुकता नहीं है
 
 

Tuesday, May 6, 2014

रुक जाओ Please Wait



सुनो एक मिनट तो रुक जाओ, मेरी बात तो पूरी सुन लो, एक हग ही दे दो, उसी के सहारे जिंदगी बिता दूंगी। सोनल मरीन ड्राइव के फूटपाथ पर दीपांकर के पीछे दौड़ रही थी। आगे जाकर दीपांकर कुछ ठहरा, मन में एक उम्मीद कि किरण जागी। सोनल ने भाग कर उसे पीछे से बाहों में भर लिया। दीपांकर ने एक गर्म सी सांस ली, पलटा और सोनल को अपनी पूरी ताकत से खुद में जकड़ लिया। उसकी आंखों से आंसू बहने लगे और वो आंसूं लुढक कर सोनल की मांग भर गए। दीपू मैं तो तेरी ब्याहता हो गई, सोनल उन डबडबाई आंखोँ में देख कर बोली।
ब्याहता सुनते ही दीपांकर को याद आईं, मां कि बीमारी और उसकी समान जाति की बहु लाने की जिद। एक झटके में झिटक दिया उसे जिसे वो प्राणप्रिया कहता था।
 वो वहां  रुकने की गुजारिश कर रही थी, और दीपू खुद से बस दुबारा ना पलटने की गुजारिश कर रहा था।
 इतने में अरब सागर ने उछाल मारा, अब ये तो रब जाने कि बड़ा ज्वार कहा आया है, साग़र में, सोनल के दिल में या दीपांकर के जीवन में।





(फोटो गूगल से लिए गए है )

 वो दीपांकर जो हमेशा पंजा लड़ाने में उसकी ख़ुशी के लिए हर बार खुशी खुशी हार जाता था, आज उसे हारी हुई छोड़ गया

Monday, May 5, 2014

वो चली गई, She Left,



    
                                                                My first Short Story


 बस स्टॉप पर खड़े वो एक दुसरे को देख रहे थे, शब्दों का ज्वार मन में उमड़ रहा था पर कहने को एक शब्द भी नहीं, शायद उन दोनों के बीच की चुप्पी श्रुति का दम घोंट रही थी, रुंधे गले से पूछ लिया उसने, क्या ये सचमुच हमारी आखिरी मुलाक़ात है, क्या कभी नहीं मिलेंगे हम!
तेरे साथ रहा तो अब सब सत्यानाश हो जाएगा, चिल्ला उठा दीपक। दो साल में पहली बार उसे चीखते सुना कांप गई श्रुति और पूछ बैठी 'डिसाइड तो यही हुआ था कि अगर ब्रेक अप करना पड़ा तो भी कम से कम हाय हैल्लो का रिश्ता रखेंगे, तुम्ही ने कहा था, दुवा सलाम कायम रहेगी। फिर क्यों, इतनी बुरी तो नहीं मैं?' श्रुति फफक पड़ी.
यार तुम्हारा यही प्रॉब्लम है रोती बहुत हो, दीपक अपनी गीली आंखों को चुपके से पोंछने की कोशिश कर रहा था, श्रुति हंस पड़ी, "देखा तुम डरपोक हो फिर रो पडे"
अभी अलग ना हुए तो आगे तकलीफ होगी इसलिए इस रिश्ते की हर डोर काटने आया हूँ आज, रोक मत मुझे। दीपक के यह कहते ही श्रुति मुस्कुरा पड़ी और बोली पागल मेरे पीछे तो 25 है, टेंशन ना लो, जाओ आजाद किया तुम्हे। आवक सा दीपक वही खड़ा रह गया और अपने दिल में पहाड़ सा बोझ लिए पथराई आंखों के साथ बढ़ गई श्रुति आगे.





 

Sunday, January 19, 2014

तेरा होना…… Your Presence

 
 
 
तेरा होना…… 
कितना सुंदर था ना, तेरा होना।
प्यारा सा इक अहसास था, तेरा होना।
 
मेरे थार से रीते मन की बारिश था, तेरा होना।
मेरे सूखे केशों का महकता गजरा था, तेरा होना।
मेरे बेरंग आंचल का रंग था, तेरा होना।
मेरी इक जोड़ी आंखों का काजल था, तेरा होना।
 
तेरा होना
स्वर्गिक एहसाह था, तेरा होना।
जीवन की तलाश था, तेरा होना।
मेरा वजूद था, तेरा होना।
 
मेरे लबों पर खिलती हंसी था, तेरा होना।
मेरी सूनी कलाई की चूड़ियां था, तेरा होना।
मेरी खाली अंगूठी का हीरा था, तेरा होना।
मेरे पैरों में शोर मचाती पायल था, तेरा होना।
 
कितना खूबसूरत था, तेरा होना 
और अब 
कितना बेरंग लेकिन नया है,
तेरा ना होना।
 
 
 

Tuesday, January 1, 2013

Life, Love & Peace




“आत्मिक शांति के लिये हर व्यक्ति को अपने मन की सुनने और उस अनुसार आचरण करने का अधिकार हैं.”

यह एक शास्वत सत्य हैं. लेकिन विडंबना यह हैं कि हर परिस्थिति में यह कथन परिवर्तित हो जाता हैं.

आज आपकी उम्र चाहे कितनी भी हो लेकिन जिस दिन से आपने जीवन को समझना शुरू किया होगा, जीवन ने आपको भावनाओं, एहसासों और संवेदनाओ से जरुर रूबरू करवाया होगा.

जहाँ जहाँ जब जब किसी से आशाएं जोड़ी जाती हैं, तब दिल कहीं ना कहीं हल्का सा ही लेकिन टूट जाता हैं. ‘शायद इसी लिये कहते हैं कि ‘एक्पेकटेशंस सक्स’ प्रेम कितना भी अटूट हो, लेकिन जब तक उसमे कोई अपेक्षा  नहीं रहती हैं, हर चीज सुख देती हैं, हफ्ते में एक बार भी बात हो जाए खुशी की कली खिली रहती हैं, लेकिन जिस दिन आशाएं शुरू होती हैं, उसका किया हुआ हर प्रेम पूर्ण कार्य भी छोटा लगता हैं.
और शायद तब दिल टूटने शुरू होते हैं. और जो अपने होते हैं उनके दिए हुए ये जख्म आसानी से भर नहीं पाते हैं, कई बार तो जिंदगियां लग जाती हैं, इसलिए हि तो कहते हैं ‘इश्क वो खेल नहीं जो छोटे दिल वाले खेले, रूह तक कांप जाती हैं, सदमे सहते सहते.’

और कई बार जब हम उस सदमे से उबार जाते हैं तो इस लायक नहीं बचते कि फिर किसी पर विश्वास कर सके, किसी के हाथो में उम्मीदों का दिया सौंप सके. तब जाकर शुरू होती हैं भावनाओं की मौत का एक अनजाना सिलसिला.  

प्रेम की वो कामना तो अमर हैं, लेकिन उसे हम भीतर ही भीतर रोज मार डालते हैं.   
लेकिन क्यू, यही तो वह एहसास हैं जो हमें रोज जिन्दा रखता हैं,
हमारा समाज, एक परिभाषा बना कर बैठा हैं कि आंसू गिरना कमजोरी की निशानी हैं, और शायद इसलिए हमारा अहम यह स्वीकार नहीं करता कि हम कमजोर बने.

लेकिन मुझे एक बात बताइए -

क्या किसी की याद में आंसू गिरना गुनाह हैं ?

क्या किसी के सामने अपनी भावनाये रखना गुनाह हैं ?

क्या किसी से प्रेम का प्रतिदान मांगना गलत हैं ?

क्या किसी कि और निन्यानवे कदम चलके उससे एक कदम आगे आगे चलने की आशा करना गलत हैं ??

क्या भावनाहीन बनकर जीना आसान हैं ?

हां, शायद यही ज्यादा आसान हैं, और बुद्धिमत्तापूर्ण भी.  

लेकिन फिर क्यू हम शाहरुख खान टाईप, बर्फी सरीखि फिल्मे देख कर अपने आंसू नहीं रोक पाते, क्युकी हजारों मौत मारने के बाद भी वे भावनाये वहाँ जिन्दा बच जाती हैं,  
लेकिन फिर भी आप, बर्फ की उन बंद दीवारों में जीना चाहते हैं ?? जो सिर्फ और सिर्फ आपका दम घोंट रही हैं, किस मजबूती का ढोंग कर रहे हैं आप ??

 जब एक मुस्कराहट सब कुछ ठीक कर सकती हैं. याद कीजिये वो दिन जब माँ कि गोद स्विजरलेंड की वादियों से भी खूबसूरत लगता था, वो आज भी उतना ही खूबसूरत हैं, बस आपने वो रंग देखने बंद कर दिए.

 क्यू हर दुःख में हम किसी सबसे प्रिय के सीने से लगना चाहते हैं ??
क्युकी हम इंसान हैं, भावनाए हम में आज भी जीती है.
लेकिन फिर भी ना जानने क्यू हम मशीन बन गए हैं, भावनाये जताने में डरने लगे हैं?
 प्रेम की चाह सबको हैं लेकिन उसे मांगना कोई नहीं चाहता.
लेकिन आखिर क्यू  उसे ना मांगा जाए जो आपको सबसे ज्यादा खुशी देता हैं.
जो आपको मुस्कुराने के लाखो मौके दे उससे ये नाउम्मीदी क्यू ?


हां, प्रेम में थोड़ी सी मूर्खताए होती हैं, लेकिन बच्चे भी तो सभी को इसीलिये अच्छे लगते हैं क्युकी वे थोड़ी सी मूर्खताए करते हैं, सभी एक बार फिर से बच्चा बन जाना चाहते हैं, लेकिन फिर भी बच्चा बनने से कतराते हैं, जब पता हैं कि यह एहसास खुशी देगा तो आखिर क्यू उस खुशी से डरना, क्यू किसी और की परवाह करना.  

अपने भीतर से उस मजबूत इंसान को मत मारिये, आने दीजिए उसे बाहर,
लड़ने दीजिए उसे जिंदगी की जंग हो सकता हैं इस बार वही जित जाते, जिसे आप कमजोर समझ कर लड़ने का मौका ही नहीं दे रहे थे,

भावनाये अमर हैं उन्हें मारा नहीं जा सकता, उन्हें मारने के नाम पर अपने जीवन की शांति को मारना बंद करो.  
भावनाएं तो आजाद परिंदे हैं, उन्हें जीभर के उड़ान भरने दो.  


प्रेम करते रहो, सब से, हर एक से,

क्या पता किसी से तुम्हे भी बदले में वैसा प्रेम मिल जाए, जिसका स्वप्न तुमने संजोया था.

हर पल जियो, प्रेम लूटाओं, खुश रहो,
मौके तलाशने की क्या जरुरत हैं ??


Saturday, September 15, 2012

The Child finally died !!!




It was my Birthday 
You wanted to make my birthday the most memorable day of my life.

We met, we hugged, we kissed. 

You touched my waist in a gantle manner your that touch still facinates me. 
You played with my hair and I found my life getting its meaning.
You Kissed my foreheard, You cried on my lap
I found the treasure of the world in your lap.
I found my eletrenal search belongs to your rosy chicks.
We looked at each othar & then looked at the world.
You smiled, you said I'm your everything.

The darkest night became bright cuz of our love.
It was the most beautiful night of my life.  

Next morning when we woke up you was so thrilled 
I felt so lucky that M the reason behid your smile. 

Your KARMA was calling you....You left..
Your work needs you..you have to go This is what i told during the adios.

A few days later I found myself pregnent. 
I was having your child in my womb. 
I was so thrilled So as you was. 
We hugged each other thru laptop.

Every relationship goes thru stuff. 
yes, we saw so many phases.
we fought, we cried, we hated, we loved, we teased, we smiled, we kissed
We were together.

I was so excited.
my nine months gonna complete after a single day.
I was about to deliver your baby.

you hugged me, We made love

Then we both cried on the Hard time. you promised me to be with me.
you said you was lucky that you found me.
you thanked me for taking care of your baby.

Don't know "usske baad kiski najar lag gyi"  

All of a sudden, You said
"hmare bich Jo bhi huaa bhul jaao use,
Wo raat ek galti thi,, galtiyaa kisse nahi hoti bhul jaao sab kuchh" 

I asked what about our child.
You said "Do you have a proof that It's my child ?

No, I don't have a single proof. 
You wanted to leave.....I asked, I begged, I paryed.
In return you kicked my womb, my stomach. 

I fainted & You left. 

I was alone, was crying, was seeing the blood & flesh of my child.

I screamed but You was not there.

I tried to save my child but In vain.
My child just died before its delivery.
Yes, The child finally died.................

May i ask you what was the fault of my child ???  


Don't forget my love was my child 

Tuesday, October 4, 2011

वास्तविक भागवत तो तुम हो राधिके

वास्तविक भागवत तो तुम हो राधिके
किसे तुम्हारे सौभाग्य पर, मूर्त हुआ है समस्त आर्यावर्त.
तुम्हारे सिन्दूर के मूल्य पर जीवित रहा है समस्त भारत वंश.

राधा, कृष्ण प्रिया हो तुम, अपने समस्त रोम में तुमने कृष्ण कों जिया है.
उससे सच्चा प्रेम किया तुमने,
इसलिए कर्म के पथ पर उसे अग्रसर करवाकर देवता बना डाला तुमने.
उसे योगेश्वर बना डाला और स्वयं एक विरहणी ही बनी रह गयी.

तुम चाहती तो अक्रूर के रथ के सम्मुख आकार कृष्ण कों रोक लेती.
तुम प्रेयसी हो, नैनो से नैन मिला कर कहती "ना जाओ कान्हा"
तो क्या जा पाता तुम्हारा कृष्ण

यमुना के किनारे, सघन कुंजो में उसकी बांह पकड़ कर उसे कहती
"कान्हा मैं कैसे रहूंगी रे, ना जा" तो ना जा पाते कृष्ण
उसी गोकुल में रह जाते यशोदानंदन.

गायें चराते, वत्सो के संग दौड़ते और माखन चुराते रह जाते कृष्ण
गीता के समरांगण में अर्जुन कों "कर्मण्ये वाधिकारस्ते" का उपदेश देने वाले द्वारिकाधीश से वंचित हो जाता ये जग

अधर्मियो और पापियों के विनाश से वंचित रह जाता ये जग
महर्षि व्यास के अद्वितीय काव्य कों कोई गति नही मिल पाती जो तुम नही होती राधिके.

तुम स्वयं प्रेम की देवी हो राधिके, तुम्हारे अश्रु देख कर भी ना पिघल सके ऐसा पत्थर कौन होगा.
विकल, व्यथित हो तुमने अपने कान्हा कों कर्म के पथ पर विदा किया.
और स्वयं समस्त जीवन किया तो सिर्फ विरह की पीर कों सहन,
लेकिन कभी कोई उल्हाना नही दिया.

कृष्ण द्वारिकाधीश होगये, उन्हें पटरानियां थी, वैभव था.
परन्तु तुम ना थी राधिके,
 फिर भी तुम्हारा प्रेम शक्ति बनकर कान्हा कों कृष्ण बना रहा था.

तुम्हारी हर वेदना, हर अश्रु के साथ कृष्ण के लिये प्रार्थनाए निकलती थी.
तुम्हारा ही  तो प्रेम उसकी प्रेरणा था राधिके. उसकी शक्ति था, उसकी सामर्थ्य था,
तुमने उसे योगीराज, द्वारिकाधीश कृष्ण बनाया.

अपने प्रेम के मूल्य पर मनुष्य की कई संततियो पर उपकार किये तुमने.
उन्हें एक आराध्य दिया पूजा के लिये,
 परन्तु उस आराध्य की आराधना भी तुम हो और उसकी वास्तविक आराध्य भी तुम.

ना पांडव विजय सुनिश्चित होती, ना किसी दुष्ट जरासंध या कंस का संहार होता,
पृथ्वी यू ही पाप के बोझ से दबी जाती राधिके जो तुम ये त्याग ना करती.
समस्त मानवता की रक्षिका हो तुम.

श्रीमदभागवतमहापुराण और भगवदगीता का मूल हो तुम
समस्त वेद, पुराणों और उपनिषदों का सार हो तुम.
राष्ट्र और  राष्ट्रीयता की रक्षिका हो तुम.
तुम्हारी प्रेम के मूल्य पर द्वापरयुग कृष्ण का युग बन पाया.

वास्तविक भागवत तो तुम हो राधिका.
किसे तुम्हारे सौभाग्य पर, मूर्त हुआ है समस्त आर्यावर्त.
तुमने बनाया है कान्हा कों कृष्ण.
तुम महादेवी हो राधिके...वास्तविक भागवत तो तुम हो राधिके