Thursday, March 19, 2015

Cricket is Life

ये जिन्दगी भी तो क्रिकेट का एक खेल हैं।

 जो एक इनिंग में शतक लगता हैं
वही दूसरी पारी में सून्य पर बिखर जाता हैं।

 जिसे कल शाम न्यूज में महानायक कहा था
 वो आज खलनायक बन जाता हैं।

 सांझेदारी बढाने को जो शुरू से साथ आया था
वो ना जाने क्यों बिछड़ जाता हैं।

 जो बाउंसर डाल कर चोटिल करने की फिराक में था
 वही लड़खडानें पर मदद को आगे आता हैं।

 पारी की शुरुआत हमेशा तालियों से होती हैं
फिर दुनिया हुटिंग और गालियां भी देती हैं।

 शतक भी हुआ तो नुसख निकालने वालों की भीड़ उमड़ती हैं।
अपूर्ण स्वार्थी और हरजाई कहकर दुनिया बुलाती हैं।

 और फिर  पेड बांधे हम तैयारी में जुट जाते हैं।

 कोई गेंद बाउंड्री छू जाती हैं तो कोई कैच हो जाती हैं
पर बल्लेबाजी में टिके रहने की जद्दोजहद जारी रहती हैं ।

 कभी तारीफों के फूल बरसते हैं तो कभी घर पर पत्थरबाजी होती हैं।

 जिसके लिए पवेलियन और स्टैंड गूंजते हैं
वो एकाएक तन्हाई में खो जाता हैं।

 जिसके आगे कभी फैन बिझते थे ऑटोग्राफ लेने को
 वो अब कैशबुक पर साइन करने को तरस जाता हैं।
 
#आशिता दाधीच

you and I

तुम और मैं कभी एक न हुए

 फिर भी मोर्निंग वाक पर अलसाए से भागते जोड़े में हम जी लेते हैं।

 बस का वेट करते एक दुसरे से बतियाते जोड़े में हम हंस लेते हैं।

 हाथ में हाथ डाले दरिया किनारे चलते जोड़े में हम पैर भिगो लेते हैं।

 लोकल के उस प्लेट फॉर्म पर बस झलक से देते जोड़े में खुद को पाते हैं।

 ऑफिस की झिडकी से तंग दुःख बांटते जोड़े में हम खुशियाँ पा जाते हैं।

 हाँ हम एक नहीं पर हम हर एक में जीते हैं।

 एक होकर भी मिल नहीं पाते हैं।

 खुद को दूसरे में तलाशते नजर आते हैं।
 
खुशियों  की खतिर निर्भर हो जाते हैं।

Friday, March 13, 2015

हाँ वो बड़ी हो रही हैं। Growing Old


 दस रूपये की चॉकलेट मंगाने के लिए भी मां को आवाज देने वाली
अब दस किलो आटा कंधे पर ढ़ो कर ला रही हैं।

 एक नाख़ून टूट जाने पर रो रो कर घर सर पर उठा लेने वाली
दिल टूट जाने पर भी चुप साधे दौड़ रही हैं।

 हजारों रूपये के कपड़ें लाने वाली
 अब बीस बीस रूपये चार बार जोड़ कर जाँच रही हैं।

 मन माफिक गुडिया के लिए डट जाने वाली
अब खुद गुडिया बनी लोगों के खेल से बचने की जुगत लगा रही हैं।

 पापा की गोदी में छिप कर खिलखिलाने वाली
दुनिया से हर बार तनहा लड़ जा रही हैं।
 
दोस्तों में खुशियां लुटाने वाली
अब जोड़ तोड़ कर खुशियां मना रही हैं।
 
मनमांगी चीजें पाने के लिए अड़ जाने वाली
अब चीजों को छोड़ना सिख रही हैं।
 
मन मांगी मुरादों को अलमारी में छिपाने वाली
अब उपहारों को अबलों में बांटना सिख रही हैं।
 
बिन मांगे बिन चाहे सब कुछ पा जाने वाली 
अब बिना कुछ चाहे बिना कुछ मांगे अपने दम पर पाना सिख रही हैं।

 वो बड़ी हो रही हैं।

 अपने सपने को जीने की खातिर
वो बड़ी हो रही हैं।

 उस बेरंग कैनवास पर रंग भरने को
वो बड़ी हो रही हैं।
 
 
 
 

Sunday, March 8, 2015

International Women's Day

आखिरकार महिला दिवस की कविता लिखी
पेश हैं चुनिन्दा पंक्तियाँ

सबल अबला हूँ मैं।

पिता की लाडली धनुर्धारी जनक नंदिनी हूँ मैं तो पति की अनुगामिनी राम दुलारी भी हूँ मैं।
पथ प्रदर्शिका गार्गी मैत्रेयि हूँ मैं तो कुटिलता की शिरोमणि मंथरा भी हूँ मैं।
सम्मान की खातिर यज्ञ में जल जाने वाली सती हूँ मैं तो मोहित करने वाली रम्भा मेनका भी हूँ मैं।
विष पी जाने वाली मीरा हूँ मैं तो अमृत बांटने वाली मोहिनी भी हूँ मैं।

कर्तव्य मार्ग पर भेजने वाली राधा, उर्मिला यशोधरा हूँ मैं तो निस्वार्थ प्रेम करने वाली शबरी भी हूँ मैं
रण में जूझ कर पति को बचाने वाली पद्मिनी हूँ
मैं तो सर काट कर प्रेरणा देने वाली हाड़ी भी हूँ मैं।
पत्थर बनी अहिल्या हूँ मैं तो सतीत्व निभाती अनुसूया भी हूँ मैं।
बाँध के बच्चा लड़ती लक्ष्मी हूँ मैं तो पैर दबाती लक्ष्मी भी हूँ मैं।

शिव के वामंग में रहकर मंगल करती पार्वती हूँ मैं तो सम्मान की खातिर तांडव करती चंडी हूँ मैं।

हाथ पकड़ कर साथ चलती साथी भी हूँ मैं
आगे बढ़कर राह दिखाती गुरु भी हूँ मैं।

आशिता दाधीच