Wednesday, March 30, 2016

Being a Rajasthani

 अच्छा आप राजस्थान से है, मारवाड़ी होंगे आप? नाह मेवाड़ी हूँ। अच्छा अच्छा पर जैन होंगे। नहीं जनाब ब्राह्मण हूँ। अच्छा पर सरनेम बड़ा अजीब है आपका। वहां काफी कॉमन है। कहीं आप उनकी रिश्तेदार तो नहीं जिनकी हड्डियां देवता ले गये थे। वो दस हजार साल पहले की बात है जनाब मैं उनकी महज वंसज हूँ। तो क्या आशिताजी आप भी अपनी हड्डियां दे देंगी किसी को....
उफ़्फ़ न जाने कैसे कैसे सवाल पर बिना किसी से दुर्भावना रखे आज राजस्थान दिवस के मौके पर कागज पर उतार रही हूँ वह सब जो एक राजस्थानी ओढ़ता बिछाता है।

ओह्ह आशिताजी आप पानी पी रही है, आपकी स्टेट में तो पानी होता ही नहीं है। हमने सुना है ऊंट सात दिन में एक दिन पानी पीटा है।
क्योंकि वो ऊंट है मेरे भाई मैं इंसान हूँ।

रे आशिताजी आपकी माताजी तो 18 किलोमीटर दूर से पानी लाती होंगी ना। हमने टीवी में सुना है
कम ऑन रायसागर झील, एशिया की सबसे बड़ी झील मेरे जिले में है।

आपने मुम्बई आने से पहले कभी गेंहू खाये थे, राजस्थान में तो कुछ उगता नहीं है न।
हाँ जनाब बस मिट्टी खाई है इतने साल।

आपके यहां की वो एक औरत बड़ी बहादुर थी, क्या नाम है लक्ष्मी बाई।
माफ़ कीजिये वो यूपी की थी।

अच्छा हाँ वो पद्मिनी जो जल मरी, पर सूइसाइड से बेहतर होता वो लड़ाई करती।
मेरे काका, जब किले में ना अन्न था ना असलहा तो कब तक लड़ती वो,
और राजस्थान पद्मिनी से इतर शादी के अगले दिन गर्दन दान करने वाली हाड़ी, पन्ना, कर्मावती का भी है।

हाँ सारे राजस्थानी बस लड़ाकू ही है।
भगवान के लिए मीरा, रामदेव शाह पीर, गोगाजी, तेजाजी, मांगलिया जी को पढ़ने का कष्ट करे।

हम राजस्थान आएँगे घूमने अगली सर्दी में दो दिन में हो जाएगा ना।
हाँ मैप तो देख ही लेंगे आप दो दिन में वरना तो अकेले सोनी जी की नसिहा एक दिन और आमेर एक दिन ले लेंगे।

आपके गाँव में कोई बड़ा तीर्थ नहीं है, अशिताजी।
खाटू श्याम, जोगनिया, रामदेवरा, जीण, नाथद्वारा शाहपुरा, बताओ कौनसा तीर्थ चाहिए, भर भर के है हमारे पास।

अच्छा आपके उधर खाने पीने को कुछ अच्छा मिलता है क्या?
मेरे काकाजी पुरे देश में सिर्फ ढाई इंच के रसगुल्ले वहीँ बनते है हमारी मावा कचौरी, हमारी राब, दाल दोक्ला का कोई जोड़ नहीं।

आशिताजी आपको कितने बच्चे है?
मेरी शादी नहीं हुई अभी आई एम् टू यंग।
पर राजस्थान में तो बचपन में शादी हो जाती है हमने बालिका वधु में देखा ।
अच्छा, तो मेरी शादी भी वहीं देख लेना।

आपके वो प्रताप अच्छे फेमस हुए।
जनाब महाराणा प्रताप बोलिये, और दुर्गादास राठौड़, अमर सिंह, सांगा, उदय सिंह, बप्पा रावल भी बहुत फेमस है, जरा जीके दुरुस्त करके आइये।

अच्छा आपने मुम्बई आने से पहले पेड़ देखे थे, हरयाली देखी थी।
भाई रुला मत, अरावली की बेटी हूँ, हमारे माउंट आबू में बर्फ पड़ती है, घने जंगल है।


अच्छा आपके वहां कोई क्लासिकल डांस होता है, कत्थक कुचिपुड़ी टाइप।
योट्यूब एक चीज होती है उस पर गुलाबो को देखिये, फिर भी प्रश्न पिपासा शांत न हो तो गैर घूमर पनिहारी देखे।

तो क्या क्लासिकल सांग भी होते है।
क्लासिकल फ्लासिकल तो पता नहीं पर हिचकी, चिरमी और कौवे पर भी होते है, इंसानो की बात तो लीजिये ही मत।
आप बिजनेस नही करती आप तो राजस्थानी हो।
करती तो हूँ, खबरे बेचने का काम, और क्या करूं।

आपके पैरेंट्स ने आपको मुम्बई कैसे आने दिया, आप तो राजस्थानी हो।
राजस्थानी हूं भाई बांग्लादेशी नहीं हूँ, वो आ जाते है तो मैं क्या चीज हूँ।

(एक भी प्रश्न कपोल कल्पित नहीं है, पिछले पांच साल में इन सब सवालों के जवाब दिए है।)

Friday, March 4, 2016

Mirza Galib

व्यंग पर आजमाया पहला हाथ

ग़ालिब की मौत

अरे ग़ालिब मियाँ क्या बात है, कुछ हैरान परेशान से नजर आ रहे हो, अपने दिल की कहों।

क्या कहूँ मेरे मौला, बस सोच रहा हूँ, मेरे शेर कैसे होंगे, इतनी मेहनत से लिखा था उन्हें अब जमीं पर कोई नामलेवा भी होगा या नहीँ उनका, कोई दोहराता भी होगा उन्हें क्या?

हाहाहा दुःख ना करों ग़ालिब मियाँ तुम्हारे ढ़ेरों आशिक़ ज़िंदा है अभी और कायनात के आखिर तक रहेंगे, पर...

पर क्या मेरे मालिक, हुकुम कीजिए...

तुम्हारे सच्चे आशिक तो एक से एक है, पर ये मुआं इंटरनेट, न जाने क्या क्या होता है, क्या और एक वो मरजाना व्हाट्सएप पता ही नहीं चलता कौन तुम्हारा मेहबूब है और कौन नहीं। छोडो इन बातों को ग़ालिब जाओ सोजाओ,

पर मौला

ग़ालिब, मेरे हुकुम की तामील हो।

(अगले दिन सुबह) ग़ालिब तुम तो कहते थे, मौत का एक दिन मुअययन है नींद क्यों रात भर नहीं आती, तो इस रात क्यों नींद नहीं आई तुम्हे मेरे नेक बन्दे।

मालिक मैं आपका बन्दा हूँ न तो अपनी खुदाई को दीदार करा दो, जर्रे को इसके मेहबूब से मिला दो, मुझे जमीन पर जाना है या मेरे मालिक,

ए मेरे बन्दे ऐसी जिद न कर इसमें तेरा ही नुक्सान है,

न मालिक,

ठीक है, ये ले मोबाईल नामका भयानक यन्त्र इसमें है मुआं फेसबुक और व्हाट्सएप, इससे अपने आशिकों को खोज और जिससे मिलना चाहे मिल ले। जा....

और ग़ालिब की जैसे आँख बन्द हो गयी, आँखे खुली तो मरीन ड्राइव पे खड़े थे, या मेरे मौला क्या जन्नती नजारा है, पहले मिला होता तो ये गुलाम बीसियों और शेर लिख लेता।

अचानक ग़ालिब का मोबाइल भनभनाया किसी दीपा दीक्षित ने ग़ालिब का फोटो और चार शेर फेसबुक पे ड़ाले थे, बस ग़ालिब ने दिल ने चाहा और प्रकट हो गए दीपा के सामने,

हू आर यू ओल्ड मैन,

मोहतरमा हम कलमकार है, ग़ालिब के बारे में बात करने आए है,

ओह ग़ालिब ही इज ए वैरी कूल गाई, आई तोह जस्ट लव हिम्, मुव्वह्ह् ग़ालिब मुवाह...

(लाहौल विला कुव्वत ये मोहतरमा तो हमारी इज्जत लूट लेंगे) ग़ालिब फुसफुसाए, मोहतरमा आपने ग़ालिब का इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश ग़ालिब, जो लगाए न लगे, जो बुझाए न बुझे शेर सुना है...

होहोहो यू आर वैरी फनी अंकल, ये तो एसआरके ने कहा था दिल से में मनीषा कोइराला को..

हाय अल्लाह ये मुवां एसआरके कौन है, दोजख में जाएगा ये, हमारे शेर चुराके अपने नाम पे चलाता है, अब तो हम यही रहेंगे जमीं पर, अपने शेरों को चोरो से बचाएंगे।

अचानक किसी व्हाट्सएप ग्रुप से घनघोर ग़ालिब ग़ालिब सुनाई दिया और मोबाइल की स्क्रीन जगमगाई,

वाह मेरे आशिक आ गए, देखू तो क्या कह रहे है,

और ग़ालिब ने चैट पढ़ना शुरू किया,

जब से देखा है तुझको नींद नहीँ आती, ग़ालिब तू औरत है या नींद भगाने की गोली।

लिल्लाह ये शेर हमने नहीं लिखा, ग़ालिब की आत्मा रो पड़ी।

बीबी मेरी रेशन की डोरी, मैं उसका जुगनू, पर डर जाऊ जब जब उसको देखूं - चचा ग़ालिब ने कहा है

हाय अल्लाह, हमारी बेगम ऐसा शेर देख लेंगी तो हमारे भूत को भी मार देंगी। चलो तीसरा मैसेज देखूँ, क्या कहता है...

ग़ालिब ने कहाँ है - चला तो था मैं अकेला ही घर से मोहब्बत की तलाश में भूखा प्यासा, रास्ते में गन्ने के जूस की दूकान मिली और रस पीके ही लौट आया।।

या मेरे खुदा, कैसे कमजर्फ लोग है ये, क्या क्या भेज रहे है, मेरे नाम पे, दोजख में जाएंगे सारे।

अचानक मोबाइल फिर झंझनाया, फेसबुक पर ग़ालिब फैन ग्रुप नजर आया, एडमिन ने शेर ड़ाला था, कौन जीता है तेरी जुल्फ के सर होने तक, ग़ालिब का आत्मा नाच उठी, झट से जा कर एडमिन को धर लिया और कहा

तू खुदा का सच्चा बन्दा है, ग़ालिब के और शेर सुना,

खुदा कर बन्दा बोला रुक, ग़ालिब की शायरी का सॉफ्टवेयर खोलने दे।

गोया ये क्या बला है?

देख पंटर किसी को बोल मत बट अपन इधर से शेर कॉपी करके पेस्ट करता है, सबको, ग़ालिब कूल है यार, उसका फैशन कभी नहीं जाता और इम्प्रेशन भी मस्त पड़ता है।

लाहौलविलाकुव्वत, ये सब देखने सुनने से पहले मैं मर क्यों नहीं गया, अरे हाँ, मैं तो मरा हुआ ही हूँ, अच्छा हुआ मैं मर ही गया, या मेरे मौला ये इन रोज रोज एक नई मौत मारने वाले आशिकों से मुझे बचा, मुझे वापिस बुला के मालिक, रहम कर।
©आशिता दाधीच
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