Tuesday, May 6, 2014

रुक जाओ Please Wait



सुनो एक मिनट तो रुक जाओ, मेरी बात तो पूरी सुन लो, एक हग ही दे दो, उसी के सहारे जिंदगी बिता दूंगी। सोनल मरीन ड्राइव के फूटपाथ पर दीपांकर के पीछे दौड़ रही थी। आगे जाकर दीपांकर कुछ ठहरा, मन में एक उम्मीद कि किरण जागी। सोनल ने भाग कर उसे पीछे से बाहों में भर लिया। दीपांकर ने एक गर्म सी सांस ली, पलटा और सोनल को अपनी पूरी ताकत से खुद में जकड़ लिया। उसकी आंखों से आंसू बहने लगे और वो आंसूं लुढक कर सोनल की मांग भर गए। दीपू मैं तो तेरी ब्याहता हो गई, सोनल उन डबडबाई आंखोँ में देख कर बोली।
ब्याहता सुनते ही दीपांकर को याद आईं, मां कि बीमारी और उसकी समान जाति की बहु लाने की जिद। एक झटके में झिटक दिया उसे जिसे वो प्राणप्रिया कहता था।
 वो वहां  रुकने की गुजारिश कर रही थी, और दीपू खुद से बस दुबारा ना पलटने की गुजारिश कर रहा था।
 इतने में अरब सागर ने उछाल मारा, अब ये तो रब जाने कि बड़ा ज्वार कहा आया है, साग़र में, सोनल के दिल में या दीपांकर के जीवन में।





(फोटो गूगल से लिए गए है )

 वो दीपांकर जो हमेशा पंजा लड़ाने में उसकी ख़ुशी के लिए हर बार खुशी खुशी हार जाता था, आज उसे हारी हुई छोड़ गया

Monday, May 5, 2014

वो चली गई, She Left,



    
                                                                My first Short Story


 बस स्टॉप पर खड़े वो एक दुसरे को देख रहे थे, शब्दों का ज्वार मन में उमड़ रहा था पर कहने को एक शब्द भी नहीं, शायद उन दोनों के बीच की चुप्पी श्रुति का दम घोंट रही थी, रुंधे गले से पूछ लिया उसने, क्या ये सचमुच हमारी आखिरी मुलाक़ात है, क्या कभी नहीं मिलेंगे हम!
तेरे साथ रहा तो अब सब सत्यानाश हो जाएगा, चिल्ला उठा दीपक। दो साल में पहली बार उसे चीखते सुना कांप गई श्रुति और पूछ बैठी 'डिसाइड तो यही हुआ था कि अगर ब्रेक अप करना पड़ा तो भी कम से कम हाय हैल्लो का रिश्ता रखेंगे, तुम्ही ने कहा था, दुवा सलाम कायम रहेगी। फिर क्यों, इतनी बुरी तो नहीं मैं?' श्रुति फफक पड़ी.
यार तुम्हारा यही प्रॉब्लम है रोती बहुत हो, दीपक अपनी गीली आंखों को चुपके से पोंछने की कोशिश कर रहा था, श्रुति हंस पड़ी, "देखा तुम डरपोक हो फिर रो पडे"
अभी अलग ना हुए तो आगे तकलीफ होगी इसलिए इस रिश्ते की हर डोर काटने आया हूँ आज, रोक मत मुझे। दीपक के यह कहते ही श्रुति मुस्कुरा पड़ी और बोली पागल मेरे पीछे तो 25 है, टेंशन ना लो, जाओ आजाद किया तुम्हे। आवक सा दीपक वही खड़ा रह गया और अपने दिल में पहाड़ सा बोझ लिए पथराई आंखों के साथ बढ़ गई श्रुति आगे.