Tuesday, January 31, 2017

Mumbai Local train Vs Mumbai metro

कितनी अकेली हो तुम मेट्रो, उकता नहीं जाती तुम, जलन नहीं होती तुम्हे मुंबई लोकल से।
उस कोनें में देखों वो मोबाइल पर ऊँगली दौड़ाती लड़की, और उस तरफ अपने वन पीस को खिंच खिंच कर घुटने ढ़कने की कोशिश करती लड़की। सर झुकाए औरतों से आई कॉन्टेक्ट अवॉयड करते मर्द, ऊँची मुंडी न करके औरतों को ताकने की कोई कोशिश न करते मर्द।
किसी दूसरे के मोबाईल में झाँकने की कोई कोशिश नहीं।  कोई कोने में दुबक के ठूंस ठूंस के नहीं खा रहा, कोई जोर जोर से चुम्मा चुम्मा दे दे नहीं गा रहा।
बाजू में बैठ कर भी औरतें बात तक नहीं कर रही, किसी ने सीट पर पैर रख कर उकड़ू बैठने की कोशिश तक नहीं की। कोई एक दूसरे की तरह देख कर मुस्कुरा तक नहीं रहा, कुठे जायचा है तुम्हाला पूछना तो दूर की बात हैं।
न सास की बुराई न पति की तारीफ़, न शर्मा जी के बेटे के चर्चे न वर्मा जी की बेटी पर डिस्कशन।
कितनी भीड़ है पर कोई पुढे चला लवकर भी नहीं कह रहा। न नेलपेंट लग रहे है न सब्जी कट रही है।
बस मूर्तियां बैठी हैं। कोई मेरी छोटी सी स्कर्ट के लिए मुझे जज नहीं कर रहा।
कितनी तन्हा हो तुम मेट्रो, आओ किसी दिन मुम्बई लोकल की यात्रा कर लो, आखिर तुम्हे भी तो पता लगे जिंदादिली क्या चीज हैं।
©आशिता दाधीच

Mumbai Local train Vs Mumbai metro

कितनी अकेली हो तुम मेट्रो, उकता नहीं जाती तुम, जलन नहीं होती तुम्हे मुंबई लोकल से।
उस कोनें में देखों वो मोबाइल पर ऊँगली दौड़ाती लड़की, और उस तरफ अपने वन पीस को खिंच खिंच कर घुटने ढ़कने की कोशिश करती लड़की। सर झुकाए औरतों से आई कॉन्टेक्ट अवॉयड करते मर्द, ऊँची मुंडी न करके औरतों को ताकने की कोई कोशिश न करते मर्द।
किसी दूसरे के मोबाईल में झाँकने की कोई कोशिश नहीं।  कोई कोने में दुबक के ठूंस ठूंस के नहीं खा रहा, कोई जोर जोर से चुम्मा चुम्मा दे दे नहीं गा रहा।
बाजू में बैठ कर भी औरतें बात तक नहीं कर रही, किसी ने सीट पर पैर रख कर उकड़ू बैठने की कोशिश तक नहीं की। कोई एक दूसरे की तरह देख कर मुस्कुरा तक नहीं रहा, कुठे जायचा है तुम्हाला पूछना तो दूर की बात हैं।
न सास की बुराई न पति की तारीफ़, न शर्मा जी के बेटे के चर्चे न वर्मा जी की बेटी पर डिस्कशन।
कितनी भीड़ है पर कोई पुढे चला लवकर भी नहीं कह रहा। न नेलपेंट लग रहे है न सब्जी कट रही है।
बस मूर्तियां बैठी हैं। कोई मेरी छोटी सी स्कर्ट के लिए मुझे जज नहीं कर रहा।
कितनी तन्हा हो तुम मेट्रो, आओ किसी दिन मुम्बई लोकल की यात्रा कर लो, आखिर तुम्हे भी तो पता लगे जिंदादिली क्या चीज हैं।
©आशिता दाधीच

Monday, January 30, 2017

Time pass friendship

टाइम पास दोस्त

अरे सोनालिका यह कैसे दोस्त है, तुम्हारी, इतना भी नहीं समझती कि तुम रोमिंग में हो।

कोई बात नहीं माँ , उसे नौकरी नहीं मिल रही वह तनाव में है, मुझसे बात करके हल्की हो जाती है।

(ऑफिस में)

सोनालिका तुम आधे घण्टे से डेस्क पर नहीं थी, बॉस खोज रहे थे तुम्हे, क्या हुआ।

अरे वो मेरी फ्रेंड है ना दीपाली परेशान है, उसे नौकरी नहीं मिल रही, उसका आज का इंटररव्यू भी फेल हुआ, डिप्रेस थी, उसी को ढांढस बंधा रही थी।।

दो महीने बाद

लो लो मिठाई खाओ।

मिठाई क्यों,

मेरी फ्रेंड दीपाली की जॉब लग गई,

वाह गुड़ गुड़।

(एक महीने बाद)

अरे सोनालिका आज कल तुम दीपाली के बारे में कुछ नहीं बता रही, क्या हुआ।।

कुछ नहीं, जॉब लग गई न बीजी हो गई है वो।

(दस दिन बाद)

सोनालिका दीपाली की जॉब कैसी जा रही है।

नही पता रे, बात नही हुई।

(दो महीने बाद)

अरे सोनालिका तो फाइनली तुम्हे अपनी ड्रीम कम्पनी में जॉब मिल ही गई, बधाई हो।।

थैंक्स या

तो इस बार तो दीपाली पार्टी देगी है ना।।

उम्मम उसे अब तक बता नहीं पाई फोन करके ,, जबसे उसकी जॉब लगी उसने फोन नहीं किया तो मुझे आक्वर्ड लग रहा है, उसे फोन करना।

कोई नहीं, तुम फेसबुक अपडेट कर दो, तब तो उसकी कॉल आएगी ही।

(सोनालिका अपडेट करती है, पर दीपाली का फिर भी कभी कोई कॉल नहीं आता)

सोनालिका का बर्थडे

क्यों री दीपाली का आज कॉल नहीं आया, तूने तो उसके बर्थडे पे 12 बजे विश किया था।।

आएगा ना माँ आ जाएगा बीजी होगी कहीं

पर फिर दीपाली का कभी कोई कॉल नहीं आया।।

Friday, January 27, 2017

Karani sena, Padmavati & Sanjay leela Bhansali

राजस्थान, वो प्रदेश जहां की किंवदंती बताती है कि ठण्ड से ठिठुरते एक राहगीर को बचाने के लिए एक बुजुर्ग ने अपनी बेटी को निर्वस्त्र होकर उस राहगीर को गोद में लेकर बैठने के लिए कहा था ताकि गर्मी से उस राहगीर की जान बचाई जा सके।
आतिथ्य सत्कार राजस्थानी रक्त में रहा है। ऐसे ही तो नहीं कहा जाता न, पधारो म्हारे देश।
फिर हे करणी सेना तुम्हे किसने हक़ दिया, किसी कलाकार को पीटने का, ?? हाँ?? अपने महाराणा ने तो सूरज डूबने पर मानसिंह को भी ना मारा था, रोते पछाड़ते शक्तिसिंह को वापिस गले लगा लिया था।
दान, क्षमा, त्याग ये तो राजस्थानी रक्त में सहज आता है। उस जमीन की टाबरी होने पर मुझे हमेशा गर्व रहा लेकिन करणी सेना बधाई हो तुमने मेरा सर शर्म से झुका दिया आज, महज तुम्हारी गन्दी राजनीति के लिए तुमने भामासा जैसों के स्नेह और आतिथ्य सत्कार की पारंपरिक परम्परा पर पानी उंडेल दिया, धिक्कार है।
अमरिया के हाथ से बिलावडा रोटी ले गया तो भी महाराणा ने बिलाव को कुछ नहीं कहा, मीरा विष पी गई पर कुछ न बोली, पन्ना का बेटा कट गया और हाड़ी ने शीश उपहार में दे दिया पर कुछ न बोले और तुम्हे एक फिल्म से आपत्ति हो गई।
करणी सेना
मैं जानती हूँ,
जौहर के साथ हर राजस्थानी की भावना जुडी है, उन 16 हजार वीर राजपूत ललनाओं का जौहर आज भी हर मेवाड़ी, माड़वाडी और शेखावटी की लड़की के लहू में उबाल लाता है।
खिलजी की बर्बरता, गोरा बादल का साहस और पद्मिनी का यौवन परिपूर्ण त्याग न सिर्फ कन्हैया लाल सेठिया बल्कि गढ़ चितौड़ के हर पत्थर ने हमारे खून में उतारा है।
पितामह सेठिया जी के शब्दों में चित्तोड़ खड्यो है मगरा में विकराल भूत सी लिया छिया.।
ट्रेन से गुजरने वाला हर बटाऊ भी गढ़ चितोड़ को देखकर चमकृत हो जाता है, उस गढ़ की शान है पद्मिनी महल, जौहर कुंड और हाँ हमने उस कथा की हमेशा एक ही रूप में सुना है।
अब अचानक कोई नए सिरे से सुनाए तो तकलीफ तो होगी ही, पर जरा रुको देख तो लो कि उसके पास क्या साक्ष्य है।
या कहीं ऐसा तो नहीं कि अगला उसे महज कपोल कल्पना युक्त कथा कह रहा हो, भाई कलाकार है वो उसे हक़ है कला प्रदर्शन करने का। कैसे भूल गए तुम अकबर को उसी के दरबार में पीथळ ने कहा था हिंदवाणों सूरज चमकेलो अकबर की दुनिया सूनी हुई,
तब तुम कैसे किसी की कला को रोक सकते हो, हमारे पृथ्वीराज ने तो 17 बार गौरी को भी माफ़ कर दिया था, तब बिना जाने समझे तुम्हे किसने हक़ दिया राजस्थान को अपनी बपौती समझ कर किसी को पीटने का???? कोई हक नहीं तुम्हे महान राजस्थान की पारलौकिक आतिथ्य संस्कार परम्परा  पर विश्व पटल के समक्ष प्रश्न चिन्ह लगाने का।
- आशिता दाधीच, राजस्थानी छोरी

Thursday, January 26, 2017

Labour

ये बॉस भी न मुझे मेंटली हरैस करने का कोई मौका नहीं छोड़ता। टीम में क्या मैं अकेली हूँ, नौ और लोग है पर नहीं मंडे की क्लाइंट मीटिंग और बुधवार को हैडक्वार्टर से आने वालों के लिए पूरी प्रेजेंटेशन मैं अकेली तैयार करूँ? हद है यार। सन्डे को तो मजदूर भी छुट्टी मनाते है और मैं शिवानी अवस्थी, सीनियर मैनेजर सड़ रही हूँ अकेले ऑफिस में।
हुह आई हेट बॉस।
और यार क्या मस्त गया था मेरा लास्ट सन्डे, घर पर फ्रेंड्स के साथ हाउस पार्टी, डांस, फ़ूड, म्यूजिक वाओ दैट वाज अमेजिंग। लेकिन उस बेवकूफ सपना ने सब खराब कर दिया था। मेरी पूरी रेप्यूटेशन बिगाड़ दी थी, मैंगो शेक कितना मीठा था और पनीर बुर्जी सो ऑयली छी।
काम में ध्यान ही नहीं है उसका, तीन तीन घरों का काम ले रखा है हाथ में करेगी भी कैसे। और...कुछ 16-17 की उमर होगी लड़के ताड़ने से फुर्सत मिले उसे तब तो काम करेगी।
पर मैंने भी अच्छा सबक सिखाया इसे, पिछले सन्डे की पूरी रात उसे जमकर पीटा, अब मिर्च, मसाले और तेल में कोई गलती नहीं होती उससे। (और अवस्थी मैडम मुस्कुराने लगी, साथ ही सन्डे को दफ्तर बुलाने पर बॉस को कोसना भी जारी रहा)
- आशिता दाधीच