Friday, January 27, 2017

Karani sena, Padmavati & Sanjay leela Bhansali

राजस्थान, वो प्रदेश जहां की किंवदंती बताती है कि ठण्ड से ठिठुरते एक राहगीर को बचाने के लिए एक बुजुर्ग ने अपनी बेटी को निर्वस्त्र होकर उस राहगीर को गोद में लेकर बैठने के लिए कहा था ताकि गर्मी से उस राहगीर की जान बचाई जा सके।
आतिथ्य सत्कार राजस्थानी रक्त में रहा है। ऐसे ही तो नहीं कहा जाता न, पधारो म्हारे देश।
फिर हे करणी सेना तुम्हे किसने हक़ दिया, किसी कलाकार को पीटने का, ?? हाँ?? अपने महाराणा ने तो सूरज डूबने पर मानसिंह को भी ना मारा था, रोते पछाड़ते शक्तिसिंह को वापिस गले लगा लिया था।
दान, क्षमा, त्याग ये तो राजस्थानी रक्त में सहज आता है। उस जमीन की टाबरी होने पर मुझे हमेशा गर्व रहा लेकिन करणी सेना बधाई हो तुमने मेरा सर शर्म से झुका दिया आज, महज तुम्हारी गन्दी राजनीति के लिए तुमने भामासा जैसों के स्नेह और आतिथ्य सत्कार की पारंपरिक परम्परा पर पानी उंडेल दिया, धिक्कार है।
अमरिया के हाथ से बिलावडा रोटी ले गया तो भी महाराणा ने बिलाव को कुछ नहीं कहा, मीरा विष पी गई पर कुछ न बोली, पन्ना का बेटा कट गया और हाड़ी ने शीश उपहार में दे दिया पर कुछ न बोले और तुम्हे एक फिल्म से आपत्ति हो गई।
करणी सेना
मैं जानती हूँ,
जौहर के साथ हर राजस्थानी की भावना जुडी है, उन 16 हजार वीर राजपूत ललनाओं का जौहर आज भी हर मेवाड़ी, माड़वाडी और शेखावटी की लड़की के लहू में उबाल लाता है।
खिलजी की बर्बरता, गोरा बादल का साहस और पद्मिनी का यौवन परिपूर्ण त्याग न सिर्फ कन्हैया लाल सेठिया बल्कि गढ़ चितौड़ के हर पत्थर ने हमारे खून में उतारा है।
पितामह सेठिया जी के शब्दों में चित्तोड़ खड्यो है मगरा में विकराल भूत सी लिया छिया.।
ट्रेन से गुजरने वाला हर बटाऊ भी गढ़ चितोड़ को देखकर चमकृत हो जाता है, उस गढ़ की शान है पद्मिनी महल, जौहर कुंड और हाँ हमने उस कथा की हमेशा एक ही रूप में सुना है।
अब अचानक कोई नए सिरे से सुनाए तो तकलीफ तो होगी ही, पर जरा रुको देख तो लो कि उसके पास क्या साक्ष्य है।
या कहीं ऐसा तो नहीं कि अगला उसे महज कपोल कल्पना युक्त कथा कह रहा हो, भाई कलाकार है वो उसे हक़ है कला प्रदर्शन करने का। कैसे भूल गए तुम अकबर को उसी के दरबार में पीथळ ने कहा था हिंदवाणों सूरज चमकेलो अकबर की दुनिया सूनी हुई,
तब तुम कैसे किसी की कला को रोक सकते हो, हमारे पृथ्वीराज ने तो 17 बार गौरी को भी माफ़ कर दिया था, तब बिना जाने समझे तुम्हे किसने हक़ दिया राजस्थान को अपनी बपौती समझ कर किसी को पीटने का???? कोई हक नहीं तुम्हे महान राजस्थान की पारलौकिक आतिथ्य संस्कार परम्परा  पर विश्व पटल के समक्ष प्रश्न चिन्ह लगाने का।
- आशिता दाधीच, राजस्थानी छोरी

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