Sunday, August 21, 2016

Olympics and Indian team

सिंधु, साक्षी तुम मत करना अपनी जीत हमारे नाम, अब्वल तो इसलिए क्योंकि हम उसके लायक ही नहीं है, दुसरा इसलिए क्योंकि तुम इनसे बहुत ऊपर हो। जब हमारी किसी एथलीट को मिट्टी खाकर पेट भरना पड़ा, तब हम कहा थे, शायद किसी आईपीएल को चीयर कर रहे थे। जब दीपा कर्माकर एक अदद कोच मांग रही थी, हम फिल्मों को सौ करोड़ी बना रहे थे। 
इससे भी पहले जब वो छोटे से कद का अभिनव कुछ साल पहले अकेला मैदान में डटा गोलियां चला रहा था, हम कही नहीं थे, ना इंडिया ना अभिनव चिल्लाने के लिए, तब तो ये देशभक्ति ठन्डे बस्ते में रखी थी। 
जब माथे पे वह मुकुट लगाये, अपनी मोहिनी सी मुस्कान से राज्यवर्धन चांदी के उस तमगे को चूम रहे थे, तब हम कहा थे। शायद टीवी के सामने राज्यवर्धन राज्यवर्धन चिल्लाते, पर उससे पहले जब वो पसीने बहा रहा था अकेला जूझ रहा था तब।
चलिये अभी की बात करते है एक मैच हार जाने पर सुपर साइना को बैग पैक करने की सलाह देने वाले, पिछले ओलम्पिक्स और कॉमनवेल्थ में कहा थे जब लड़की जुझ रही थी। अरे एक मैच तो फेडरर, जोको और राफा भी हार जाते है। 
सरदार सिंह, ध्यानचंद, धनराज को छोड़ कर हॉकी के किसी खिलाड़ी का नाम ही बता दीजिए, चलिये। फरहान अख्तर को मिल्खा सिंह मानने वालों जब हमारे हॉकी के लड़ाके चार बीन बैग और दो चेयर वाले कमरों में थे तब आप सब कहा थे।
साक्षी, सिंधु, मुझे शर्म आ रही है। 
आज हम सब तुम्हारे मैडल पर हक जमा रहे है पर उसके लिए बहते तुम्हारे खून, पसीने, दर्द और चीखों को न हमने कभी देखा ना सुना। 
मत दो हमे अपना मैडल, हम इस लायक नही है, ये तुम्हारा मैडल है लड़कियों।
जब हमें मैदान में तुम्हारे लिए हर बार वैसे ही जुटते देखो जैसा अपने फाइनल में देखा था, तब हमें मेडल दे देना, पर जब तक हम तुम्हारा हर पग पर साथ न दे, ये मेडल तुम्हारा है। 
क्योंकि ये जंग तुम्हारी थी, जिसे तुमने अपने दम पर जीत, हम तो महज स्वार्थियों की तरह आ गए आखिरी मौके पर तुम्हारी जीत का हिस्सा मांगने और उस पर अपना हक जताने। 
हमे माफ़ कर दो दुति चाँद, हम कुछ नहीं कर पाए, दीपा माफ़ कर दो हमे। अभिनव, गगन, सॉरी तुम्हे कुछ न देने के लिए, और फिर भी ठीकरा तुम पर फोड़ने के लिए। 
अभिनव, तुम सही हो उन विश्व स्तरीय सुविधाओं के बिना, उस महंगे खर्चे के बिना तुम सब जूझ रहे हो और यहां हम है तुम लोगो को वो प्यार तक नहीं दे पाते, न जाने कितनी डोमेस्टिक इंटरनैशनल लड़ाइयों में तुम्हारे साथ खड़े नहीं हो पाते। शायद, किसी और मुल्क में पैदा होते तुम सब तो अब तक बीस तमगे तुम्हारे सीनों पर होते।
माफ़ कर दो हमे, हमारे स्वार्थों के लिए। 
-आशिता दाधीच

Saturday, August 20, 2016

Sindhu, Girls and Olympics

वाह क्या खेली है सिंधु एक दम जबरजस्त मजा ही आ गया, क्यों क्या कहती हो जी? चाय की चुस्की लेते हुए शर्मा जी ने अखबार को फड़फड़ा कर बीवी से कहा।
हाँ जी बिलकुल, मिसेज शर्मा ने सर हिलाया।
मैं तो कहता हूँ देश में खेलों का इंफ्रास्ट्रक्चर बढाना चाहिए, हर बच्चे की प्रतिभा को पहचान कर उसे उसके लायक पी टी टीचर बचपन से मिलना चाहिए, तब देखना हर घर से एक सिंधु निकलेगी। शर्मा जी चहक रहे थे।
तभी, बगल के कमरे से लगभग दस बारह साल की सुपेक्षा दौड़ते हुए आई।
पापा पापा, मुझे भी रैकेट दिला दो ना, मैं भी सिंधु दीदी जैसी बनूँगी। शर्माजी का चेहरा यो हो गया जैसे आसमान से गिर पड़े, नहीं बेटा, ये सब अमीरों के चोचले है, अपन तो मध्यमवर्गीय है, तुम पढाई पे फोकस करो डॉक्टर बनना है ना तुम्हे। शर्माजी झेंप छुपाते हुए मुस्काए। 
और नन्हीं सी बेटी ये सोचते हुए उलटे पाँव लौट गई कि जब हर घर से सिंधु निकलनी चाहिए तो इस घर से क्यों नहीं?? 
मध्यमवर्ग बहाना था या एक लाचार बाप की कुछ न कर पाने की बेबसी थी या अखबार पर तालियां पीटना महज ढोंग था या सिस्टम से दबे कुचले हारे संसाधनों के अभाव के दर्द को जानते दिल का दर्द।
©आशिता दाधीच 




PV Sindhu's letter

जनाब मेरा नाम पुसरला वेंकट सिंधु है और मेरी जाती खोजने का कष्ट मत कीजिये। नीली वर्दी पहनती हूँ, सीने पर तिरंगा लगाती हूँ, घुटनों से ऊँची स्कर्ट पहनती हूँ और माथे पर बिंदी भी लगाती हूँ, भारतीय हूँ मैं और इंडियन होना ही मेरी जाती है. 
ना मैं दलितों का झंडा उठाती हूँ और न सवर्णो की झंडाबरदार हूँ, मुझे इन सब से दूर ही रखिये। 
कोर्ट में पसीना बहाते वक्त ना मैंने बाबा साहेब आंबेडकर का और ना ही महात्मा फुले का फोटो लगाया था, हर बार सर्विस के वक्त ना ही मेरे गोपी सर ने कहा था कि, सिंधु खेलों क्योंकि तुम्हे उस मनुवाद का बदला लेना है. कर्ण को सूत पुत्र कहकर अर्जुन की बराबरी न करने देने वाले समाज को ललकारना है. गोपी सर ने कहा था कि बस खेलो खुद के लिए खेलो और देश के लिए खेलो, जीने के लिए खेलो. 
मैं खेलती हूँ क्योंकि मुझे सिर्फ खेलना ही आता है, मैं सवर्ण भी नहीं हूँ, क्योंकि मैं इस लिये खुद को सर्वश्रेष्ठ नहीं मानती की मैं किसी वेदपाठी परिवार में पैदा हुई हूँ, बैडमिंटन को अपनी पूंजी इसलिए नहीं मानती क्योंकि मेरी जाती मुझे रैकेट उठाने की इजाजत देती है, मैं बैडमिंटन को अपनी पूंजी इसलिए मानती हूँ क्योंकि मैं इससे प्यार करती हूँ. अपने खेल से मैं किसी याज्ञवल्क्य, दधीचि या अगस्त और अत्रि की परम्परा को आगे नहीं बढा रही, मैं बस अपने उस सपने को आगे बढा रही हूँ, जिसे बचपन से मेरी कोरी मासूम आँखों ने देखा था... माफ़ कीजिये मुझे, आपकी इन छोटी जाती धर्मों की सोच से, मैं इन सबसे ऊपर हूँ क्योंकि मैं सिंधु हूँ, सिंधु मतलब सागर समुद्र। हाँ मैं अथाह हूँ, मेरे खेल में गोते लगाइये, मेरी जाती खोज कर मेरे देश को छोटा मत कीजिये। 
- आशिता दाधीच
While India was rooting for PV Sindhu, Andhra Pradesh and Telangana were googling her caste -