Showing posts with label Boy. Show all posts
Showing posts with label Boy. Show all posts

Monday, August 4, 2014

पता था मुझे, I Knew it !

 
पता था मुझे,
एक दिन,
तुम दूर हो जाओगे मुझसे.
नहीं रहोगे,
मेरी बाहों में, पहले की तरह.
एक दिन,
हर वादा, हर कसम भूल कर
फेर लोगे पीठ,
मेरे चेहरे की तरफ.
 
जिंदगी अब भी वैसी ही है जैसी तब थी
हां, अब तुम्हारा स्पर्श नहीं,
सुबह उठाने वाली तुम्हारी आवाज नहीं,
थकान मिटाने वाली तुम्हारी मुस्कान नहीं,
 
दिल को छू जाने वाले तुम्हारी कोई बात नहीं।
 

 
 
 

अब भी,
 
बारिश भिगोती होगी तुम्हारे बाल
सूरज चमकाता होगा तुम्हारा लालट
हवा गुनगुनाती होगी तुम्हारे साथ
दीपक मिटाता होगा अंधेरे का एहसास
 

 
 

 

फूल अब भी खिलते होंगे तुम्हारे बगीचे में
धूप अब भी बिखरती होगी तुम्हारे आँगन में
फिजा अब भी रंगीन होगी तुम्हारी महफ़िल में
इन्द्रधनुष अब भी निकलता होगा तुम्हारे आसमान में
 
बस
मेरी पलखों पर नहीं है छुअन तुम्‍हारे होंठों की
मेरे बालों में नहीं अटकती उंगलियां तुम्हारे हाथों की
मेरे होठों पर नहीं बजती बंसी तेरे गीतों की
मेरे हाथों से नहीं पकती रोटी तेरे नाम की
 
फिर भी
बची है एक स्‍मृति
उन रातों की याद
जीवन रुका नहीं है
जीवन रुकता नहीं है
 
 

Sunday, July 20, 2014

वो चूड़ीवाला That Bangle seller



- Ashita Dadheech


डिप्पी, जरा उस लड़के को तो देख कितना क्यूट है| कौन....? हुह लेडिज डिब्बे में भी कही मर्द होते हैं| अरे, किताब से नजर हटा, उस चूड़ी वाले को देख तो| झुंझलाकर दीपशिखा ने नजरें उठाई और बस ठिठक कर उसे ही देखती रह गई| ये क्या? चूड़ी वाला और वो भी इतना क्यूट, इतना हैंडसम.... गरीबी बहुत बुरी चीज हैं, हैं ना आरती| हां बिलकुल, कहकर आरती अपने एयरफोन में बज रहे संगीत में फिर खो गई, और दीपशिखा, उसकी नजरें तो आज उस चूड़ी वाले से हट ही नहीं रही हैं| अब तक शायद, चूड़ी वाला भी इसे महसूस कर चुका था| उसने पलट कर दीपशिखा को एक नजर देखा, गोरी सी, दुबली –पतली लड़की, चश्में से झांकती बड़ी –बड़ी कजरारी आंखें, पूरे कपड़ों में ढंकी कंचन सी काया, बस एक नजर भर कर देखा और फिर पूछ बैठा मैडम चूड़ी लोगी?
उसकी आवाज, यूं लगा डिप्पी को मानो किसी ने मन की वीणा के सभी तारों को एक साथ छेड़ दिया हो| ये क्या हो रहा है मुझे, आज से पहले तक किसी सुंदर, सुदर्शन युवक को देख कर भी ऐसा नहीं लगा था| नहीं चाहिए चूड़ियां, कहकर फिर किताब में नजरें गढ़ा ली उसनें| हाय राम, ये क्या किया मैंने, दो चार चुडियां ले लेनी थी, छी, ये क्या सोच रही हैं तू, चूड़ी वाले पर क्रश आया तुझे, शर्म नहीं हैं| ग्लानी से भर गई, दीपशिखा| डिप्पी चल, मरीन लाइंस आने वाला हैं, उतरना नहीं हैं, आरती की आवाज ने उसे स्वप्न और संशय लोक से निकाला| दुपट्टा ठीक कर के वे दोनों उतर गई| और, चूड़ी वाला, ना उसकी किसी को परवाह नहीं, शायद वह चर्चगेट तक जाएगा|
दीपशिखा और आरती दोनों जे. जे. अस्पताल में डॉक्टर हैं| सुबह साढ़े नौ की फास्ट ट्रेन पकड़ते हैं, बांद्रा से| काम खत्म होने तक अक्सर दस तो बज ही जाती हैं| कम खत्म कर के दोनों ने फिर वापसी की ट्रेन पकड़ी| दीपशिखा की आंखे मानो कुछ तलाश रही थी, वे सहज झुंकी नजरें आज उछल उछल कर डिब्बें में किसी तो तलाश रही थी| डिप्पी क्या हुआ क्या खोज रही हैं, चिढ़ कर आरती ने पूछा| नहीं यार, कुछ भी तो नहीं, मैं तो बस ऐसे ही| आर यू श्युअर? हां बाबा| चल ठीक हैं|
दोनों उतर कर घर चली गई, लेकिन, आरती को सारी रात नींद नहीं आई| वो डिप्पी को आज से नहीं, बीते तेरह सालों से जानती हैं, कुछ तो हैं जो डिप्पी को अंदर ही अंदर कचोट रहा हैं| सुबह, पूछती हैं|
ये सुबह हर सुबह जैसी कहा? आज डिप्पी कुछ अलग लग रही हैं, शायद पाउडर लगा कर आई हैं| क्यों रे, लड़का वडका पटाया हैं क्या? इतना चमक क्यों रही हैं? डिप्पी को ट्रेन में ठेलते हुए आरती ने पूछा| पागल हैं क्या, ऐसा कुछ होता तो तुझे नहीं बताती| कनखियों से चूड़ी वाले को खोजती दीपशिखा ने कहा| हाँ, वो आया हैं, वो रहा| जैसे ज्येष्ठ की गर्मी के बाद तपती जमीन पर बरसात हुई हो, डिप्पी का चेहरा खिल गया| चंद मिनटों में चूड़ी वाले ने भी भांप लिया, लेकिन, इस बार उसने पलट के भी नहीं देखा| कितना निष्ठुर हैं ये, हां, लड़के होते ही ऐसे है, हुह, अब नहीं देखूंगी इसे, चूल्हे में जाए|
इसके बाद ना जाने कितने दिन सप्ताह और महीने इसी कशमकश में बीतने लगे| ना आरती कभी दीपशिखा को पढ़ पाई, ना डिप्पी उसे कुछ कह पाई| वो तो बस अपने में ही उलझी रहती, सुबह चूड़ी वाले को देख लेती तो पूरा दिन खुशी खुशी निकल जाता| अगर, कभी आड़ में से उसे खुद को देखते पा जाती तो, शर्म से लाल हो जाती, चूड़ी वाला भी तो नीची निगाहों से उसे निहार ही लेता हैं|
कभी समझ ही नहीं आया कि उसे क्या हो रहा हैं, शायद, दीपशिखा ने समझने की कोई कोशिश करनी भी नहीं चाही, वो खुश थी उसे देख कर, उसके करीब से गुजर कर| फिर, एक दिन अचानक, चूड़ी वाला नहीं आया| वो बैचेन हो गई, शायद, कही गया होगा, कल आ जाएगा, उसने दिल को समझा लिया|
अगले दिन वो अपने दुवाओं को दुहाई देकर ट्रेन में बैठी, पर चूड़ी वाला तो आज भी नहीं आया| ना जाने क्या वजह हैं? उसका दिल बैठा जा रहा था, रोने का दिल कर रहा था| पूछे भी तो किसे, कुछ समझ नहीं आया| आरती उसकी तकलीफ समझ रही थी, पर कहती भी तो क्या|
क्यों, लिपस्टिक वाले भैय्या वो चूड़ी वाला कहा गया, चूड़ी लेनी हैं| उसने हफ्ते भर बाद डरते डरते एक लिपस्टिक वाले से पूछा| पता नहीं मैडमजी, कहकर वो चला गया| दीपशिखा को चारों और अंधेरा नजर आया रहा था, ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके स्वप्न लोक को आग लगा दी हो|
दिन बीतते चले गए, वो नार्मल सी अपने मरीजों में व्यस्त हो गई| बरसात शुरू हो गई, उस दिन जब वो मरीन लाइंस उतरी तो सामने, ये क्या चूड़ी वाला यहा?
हैल्लो मैडम, पहचाना, मैं चूड़ी वाला?
अरे हां, खुशी छुपाने की नाकाम कोशिश करती दीपशिखा बोली, कहा थे इतने दिन, उसके इस वाक्य में किसी रूठी प्रेमिका की नाराजगी झलक रही थी, शायद चूड़ी वाला भी समझ गया मुस्कुरा कर बोला, ‘मैं यहा कोई चूड़ी बेचने थोड़ी आया हूं, हीरो बनने आया हूं हीरो| गर्व उसके चेहरे से टपक रहा था|
हां, तो, क्या हुआ?
मुझे रोल मिला हैं, सीरियल में, हीरो के दोस्त का, अब चूड़ियां नहीं बेचूंगा|
ओह!!! दीपशिखा की सारी खुशियां शीशे की तरह टूट गई| फिर, मुस्कुरा कर बोली, बधाई हो, खूब तरक्की करो, फिर आज यहां कैसे?
कुछ नहीं आप इसी ट्रेन से आती हो ना, पता था, तो सोचा आपको बता दूं, इसलिए यहा खड़ा था|
ओह, अच्छा किया बताया, मैं चलती हूं, देर हो रही हैं| बिना एक बार पलखें उठाए, दीपशिखा ने कहा, शायद नजरें मिलाने से बच रही थी वो, और बस तेज कदमों से बढ़ चली अस्पताल की ओर|
हाय राम, ये मैंने क्या किया कम से कम उसका नाम तो पूछ लेती, वो पलटी उसकी तरफ जाने के लिए लेकिन तब तक वो चर्चगेट की ट्रेन में बैठ कर निकल गया|


 

Sunday, December 16, 2012

You are my Everything तुम मेरा सर्वस्व हो प्रियतम





                'तुम मेरा सर्वस्व हो प्रियतम'

हो सकता हैं प्रियतम कि तुम्हारी लिये मैं कुछ भी नहीं
इस शतरंज की बिसात पर मेरे बादशाह, हो सकता हैं मेरी हस्ती कुछ भी नहीं

लेकिन मेरे प्रियतम  तुम तो मेरा सर्वस्व हो, जीवन हो, प्राण हो.  

वो अलफ़ाज़ नहीं है मेरे पास कि तुम्हे दिखला सकू,
तुम्हारा महत्व अपने जीवन में.
क्युकी तुम ही तो मेरा जीवन हो प्रियतम.

तुम हर वो शब्द हो, जिसे मैं बोलती हूँ.
तुम हर वो गीत हो, जिसे मैं गुनगुनाती हूँ.
तुम वो दर्द हो, जिसमे भी एक मजा हैं.

तुम वो बरसात हो, जिसमे भीगना मुझे लुभाता हैं.

तुम वो दर्पण हो प्रिय, जिसमे मैं स्वयं को और भी, बहुत, खूबसूरत पाती हूँ.

तुम मेरा वो रहस्य हो प्रिय, जिसे मैं जग से छुपाना चाहती हूँ,
बस अपने ह्रदय के पास रखना चाहती हूँ.

तुम वो कथा हो प्रिय, जिसे मैं बरबस बारबार पढ़ना चाहती हूँ.

तुम मेरा वो सपना हो मीत, जिस पर मैं अंध श्रद्धा रखना चाहती हूँ.

तुम वो पक्षी हो प्रियतम, जिसके के साथ में उड़ना चाहती हूँ. दूर बहुत दूर .. सीमाओं से परे


तुम मेरी श्वास हो प्रिय, तुम्हे चुनना नहीं चाहती हूँ मैं
क्युकी तुम्हारा कोई विकल्प ही नहीं हैं.


तुम तो मेरा वह अनंत शास्वस्त सत्य हो, जिस पर मुझे गर्व हैं,
चीख चीख कर जिसे सुनाना चाहती हूँ मैं इसे विश्व को.

तुम मेरी वो भावना हो प्रिय जिसे महसूस करके मैं स्वयं को पा जाती हूँ.

तुम वो पुष्प हो प्रिय, जिसे मैं सिर्फ मैं सूंघना चाहती हूँ.

सिर्फ तुम ही वो हो प्रियतम जो मेरे प्रियतम शब्द को मायने दे सकता हैं..

तुम मेरा वो अतीत हो, जिसमें मैं सदा मुस्कुराई हूँ, जिससे मैं प्रेम करती हूँ.

तुम मेरा वो भविष्य हो, जिसमे मैं स्वयं को सुरक्षित पाती हूँ, जिससे मैं प्रेम करती हूँ.

तुम मेरा वह वर्तमान हो, जिससे मैं केवल मात्र प्रेम करती हूँ.

इसके सिवाए और क्या कहू हमदम

मेरे शब्दकोष मैं इतनी क्षमता हैं भी नहीं.
लेकिन फिर भी तुम्हे जतलाना चाहती हूँ प्रियतम
कि तुम्हारी श्रष्टि में मेरा स्थान भले ही नगण्य हो
परन्तु तुम मेरा सर्वस्व हो प्रियतम


Tuesday, November 27, 2012

एक पत्र



एक पत्र 

एक पत्र लिखती हूँ प्रियतम, वह पत्र जो तुम्हारी खुशबू से रचा बसा हो
एक पत्र लिखती हूँ प्रियतम, वह पत्र जो मेरा प्यार में डूबा हुआ हो .....

तुम्हे जितना समझने की कोशिश की हमदम  उतना ही उलझती गई
तुम्हारी प्रीत में ......

नहीं चाहती कोई महल कोई किला,
मेरे राजकुमार की बांहों से बड़ा कोई महल होगा भी कहाँ.

हां एक बार, तुम्हारी बांहों में जीकर देखा था मैंने, 
लगा था ... मानो जन्मो की तपश्या के बाद ये दिन  आया हैं .... 
दिल किया था बस संजो कर रख लू इस क्षण को .... 

बस वो जो पल उसके साथ बिताए हैं मेरे धरोहर हैं ....
दोस्त हो तुम मेरे  .... क्युकी तुम्हारे  साथ मैं  हर वो बात शेयर कर सकती हु
जो में खुद भी नहीं जानती हूँ

तुम्हारे साथ मैं मैं बन कर जी सकती हूँ .

तुम्हारे साथ हर बचपना कर सकती हु.

याद हैं मुझे, जब टूट चुकी थी, तुम्हे ही फोन किया था, रोई थी मैं
क्युकी तुम मेरा विश्वास हो ,  मेरी श्रद्धा हो , मेरी आस्था हो. 

ना जाने कब तुम्हारी  उन खूबसूरत आँखों में खोने के लिये जी मचलने लगा
ना जाने कब जी करने लगा कि तुम्हारे करीने से सवारे हुए बालो कि बिखेर दू

ना जाने कब ये सपना देख बैठी
कि सत्तर साल की उमर में भी  एक हाथ में लकडी और दूसरे हाथ में मेरा हाथ थाम कर
तुम मुझे बैंड स्टैंड ले जाओगे  .....
जहाँ बैठकर हम दोनों सारी दुनिया के घोटाले भुलाकर सिर्फ खुद को याद रखेंगे.

आँखे सपने देख रही थी और रो भी रही थी .... डर था उन्हें कि वे गलत इंसान पर जा टिकी हैं ....

नहीं, तुम  गलत कैसे हो सकते हो  ??? दुनिया कहती हैं तुम  सोने सरीखे  हो  ......

तुम्हारा नाम सुनकर जो उसे तुम्हे थोड़ा भी जानते हैं , उनकी भी आँखों में चमक आ जाती हैं.

शालीमार मोर्या की सीढियां रूबरू हैं मेरे उन आसूंओं से
जो हर बार तुम्हारी याद में अनजाने ही आँखों से लुढक पड़े.

रोक कर भी नहीं रोक पायी मैं

तुम्हारे अंदर मैंने आशिता को जीते देखा ...

तुम्हे मैंने आशिता से भी ज्यादा आशिता जैसा पाया ....
हर वो खूबी हैं तुममे  जिसके मैंने स्वप्न सजोये  ....

और इसलिए शायद तुम्हारे होने का एह्साह ही मेरी मुस्कुराहटो को बरकरार रखने के लिये काफी हैं ...

एक जिंदगी क्या कई .. सिर्फ तुम्हारी  अमानत हैं ...
तुम्हारी  मुस्कुराहटो पर कुर्बान हैं ....

क्युकी  मुझमे तुम मेरे अंदर तक जीते  हो प्रियतम  ...
और तुम्हारे अंदर  मैं खुद को जीते देखती हु ....