Showing posts with label first love. Show all posts
Showing posts with label first love. Show all posts

Wednesday, October 26, 2016

'Adios Amigo' Bye my friend

जा दोस्त जा
जाना ही है तुझे
पर फिर भी मैं रख लुंगी अपने साथ।

बिलकुल चुपचाप
बिना किसी को बताए
जैसे माँ रख देती थी
बैग के कोने में
रोटी और आचार।

जैसे खत्म होने से पहले भर देते थे
पापा मेरा गुल्लक हर बार।

सबको लगेगा तुम नही हो मेरे साथ।

पर तुम रहोगे वैसे ही
जैसे खीर में रहती है शक्कर।
और
सोने में रहती है रत्ती भर की खोट।

तुम्हे भी बिना पता चले
रख लुंगी अपने पास,
उतना ही छुपा कर
जितना मेरी पीठ पर
बना हुआ टैटू छुपा है।

और
तुम चलते रहोगे मेरे साथ
वैसे ही जैसे
चलती है मेरी
परछाई।

कोई तकलीफ नही होगी
तुम्हे इस दरमियाँ
क्योंकि
मैं रखूंगी तुम्हे वैसे ही
जैसे हथिनी रखती है
अपने बच्चे को
बारिश में
बिलकुल अपने पेट के नीचे।

साथ रख लुंगी तुम्हे वैसे ही
 जैसे
रख लेती है अँधेरे को
दीपक की छाया।

नहीं जाने दूंगी तुम्हे
वैसे ही जैसे
आम के पेड़ को रोक लेती है
गिलखी की वो बेल।

रोक लुंगी तुम्हे।
रख लुंगी अपने पास।
क्योंकि जाना तो तुम्हे है ही,
पर
साथ भी तो चलना है तुम्हे।
साथ रहना है
मुझमें
मेरे होकर।
©आशिता दाधीच

Thursday, April 23, 2015

सवाल The Question

 
 
सवाल नहीं करते?
आज भी जब मेरे पैर पड़ते है मरीन ड्राइव की उस बाउंड्री पर
तो चीख कर वो मुझसे तेरा पता पूछती हैं।
 
हाजी अली की दरगाह का वो रास्ता
मेरा हाथ खाली देख कर समुद्र में छिप जाता हैं।
 
दादर स्टेशन का वो छोटू
दीदी, भैया कहां हैं पूछ जाता हैं।
 
सीएसटी का वो पान वाला आज भी
पैसे किसके खाते में लिखूं सवाल करता हैं।
 
बोरीवली का वो नैशनल पार्क अब मेरे हांफ जाने पर
सहारा देने के लिए तुझे पुकारा करता है।
 
हर बार कुछ खाने पर गालों पर फैला अन्न
मुंह पोंछ देने को तेरा रुमाल मांगता है।
 
फिल्म देखने से मुड चुकी मेरी गर्दन
सहारा देने के लिए तेरा ही कंधा मांगती है।
 
माउंट मेरी की वो सीढ़ियां पूछा करती है
कि मुझे गोद में उठा कर बिना हांफे दौड़ने वाला कहां है।
 
आसमां में उगा सूरज भी पूछा करता है
कि क्यों अब वह हमारी उंगलियों के बीच से नहीं निकल पाता है।
 
मेरे घर का वह बिस्तर पूछा करता है
कि क्यों अब उसमें लिपट कर सोने वाला नहीं आता है।
 
वर्सोवा का वो किनारा पूछा करता है
कि अब तू पैर भिगोने कहा जाता है।
 
सड़क पर भौंकने वाला कुत्ता भी पूछा करता है
कि डर से तू जिसे लिपटा करती थी वो कहा गया।
 
चेहरे पर आ लटकी जुल्फे भी पूछा करती है
उन्हें हटाने वाला अब कहा गया।
 
माथे पर आ जमी पसीने की बूंदे पूछा करती है
कि उसे पोंछने वाला कहा गया।
 
न जाने कितनी सखियां कितने परिचित और कितने रास्ते पूछा करते है
तू कहां गया
क्या कोई तूझसे नहीं पूछा करता
क्या कोई तूझे सवाल नहीं करता
करता है तो क्यों तू उन सवालों से हलकान नहीं होता।
 
 
 
 

Tuesday, April 7, 2015

LOVE

बहुत मुहब्बत है तुमसे
कल भी थी आज भी है
और सांसों के वजूद तक रहेगी
फिर भी दिवार है एक
हम दोनों के बीच
तेरी और मेरी ऊँचाइयों से ऊँची
तेरी उस चौड़ी छाती से भी चौड़ी।
दिवार मेरे आत्म सम्मान की।
दिवार मेरे समर्पण की।
तुझे तुझ से बेहतर बनाने की
चाहत की।
नहीं बर्दाश्त हैं मुझे।
मेरी सिवा किसी और का तेरे लबों पे सजना।
नहीं देख सकती मैं।
अपने सिवा किसी और के नशे में खोते तुझे।
अपनी हर शाम तेरे साथ बिताई है
क्या बदले में तेरी शामों पर हक नहीं मेरा।
हर बार सोलह आने मुहब्बत लुटाई हैं।
पाने के लिए बस चार आने पाए हैं।
अपना कल आज और कल भुलाकर तेरी बांहों में सजी हूँ ।
और तुझे हर रात तेरी पहली बर्बाद मुहब्बत के नाम सिसकते देख के मरी हूँ।
दुनिया के प्रपंच भुला के जब तेरे करीब आई हूँ।
तुझे बस मय खाने की मदहोशी में पाती आई हूँ।
क्या मेरी आँखों का नशा कम था।
जो तुझे जाम उठाने पड़ते थे।
क्या मेरा समर्पण कम था।
जो तुझे गैरों की याद दिलाते थे।
क्या कम था।
प्यार
या
शायद नशा ही तेरा प्यार था।
मैं तो सिफर एक खाना पूर्ति की।
शराब के अलावा तेरा मन बहलाने की खातिर।
- Ashita VD

AIDS

लगभग एक साल से नीरज के साथ लिव इन रिलेशन में थी सिया। एक दिन अचानक उसने सुनीता का हाथ थाम लिया और सिया को दिल से निकाल कर उस के घर से निकल गया। गम में आकंठ डूबी सिया को भी बस हाथों की नस काट कर मौत को गले लगाना ही नजर आया।

खून रिसता रहा और सिया बेहोशी में डूबती गई। आँख खुली तो खुद को अस्पताल में पाया।

क्या कभी ब्लड डोनेट किया हैं या इजेक्शन लिया हैं कोई। नर्स ने गोली की तरह सवाल दागा।

नहीं तो कभी नहीं सिया बोली।

ओके पर तुम एचआईवी पोजीटिव हो।

सिया की आँखों के आगे अन्धेरा छा गया। कुछ समझ नहीं आया। कहि नीरज गलत तो नहीं था दिल से आवाज आई। छि छि वो ऐसा नहीं हो सकता। शायद मेरी ही कहि कोई चुक हैं सिया बस खुद को धिक्कारती रही।
 

THAT Shirt

वो पहली शर्ट.
तेरे जन्मदिन की खतिर तेरे लिए वो शर्ट लेना।
आज भी याद हैं मुझको
उस दुकानदार के आगे थोड़ा सा लजाना
और ढेर सा शर्माना।
पूछने पर तेरी साइज न बता पाना।
और अपनी बांहे फैला कर याद करने की कोशिश करना
कि कितना समाता था इस दरमियान तू।
काउंटर पर खड़े उस लड़के से ये पूछना कि
ये शर्ट तुझे सूट करेगी या नहीं।
और उसका तेरी कद काठी के बारे में पूछना।
मेरा शरमाना और तुझे मोस्ट हैंडसम मैन ऑफ़ द वर्ल्ड कहना।
चेंजिंग रूम में जाकर वो शर्ट खुद पहनना और
अपने अपने अंदर तेरी छवि को इठलाता पाकर वो
शर्ट खरीद लेना।
पाई थी मैंने कायनात जब उस शर्ट को देख कर
तेरी आँखों में चमकते देखे थे हजारों सूरज एकसाथ।
आशिता दाधीच
 
 
 
 
 

Thursday, November 6, 2014

नाम The Name



वो रिश्ता.....
तेरा मेरा वो रिश्ता
क्या था वो,
क्या नाम था उसका,
क्या पहचान थी उसकी.
न कभी दुनिया समझी
न ही कभी तू ही समझा....
बस एक मैं थी,
जो खोजा करती इस सवाल का जवाब,
कोई एक नाम, कोई तो पहचान,
पर शायद, दुनिया की बंदिशों से परे था,
तेरा और मेरा वो प्यार बेहद खास.....
मेरे लिए तू ऊँगली पकड़ कर चलने वाला पिता था,
तू ही हर अला बला से बचाने वाला भाई था,
तेरे ही संग माँ की गोद का अहसास होता था,
तुझे हर बात बहन की तरह कहने का क्रम था...
मेरे लिए तू स्वाति की एक बूंद था,
मेरे लिए तेरा होना रेगिस्तान की छांव था,
मेरे लिए तेरा साथ तूफान की मंझधार था,
मेरे लिए तेरा वजूद जीने की वजह था,
पर दुनिया चाहती थी एक नाम,
तेरी मेरी आत्मा नहीं देखी एक जान,
तू मर्द था मैं औरत,
नाम बिन न होता है रिश्ता खास
ये दुनिया का दस्तूर था,
उनके रवायते भी और परंपरा भी..
न दुनिया से तू दूर था ना रिवाजों से,
जिद मेरी भी थी इस रिश्ते तो नाम देने की,
पर नाम क्या दू?
मेरा तो सब कुछ तू था,
तुझसे शुरू तुझ से ख़तम
इस कहानी में तू ही तो नायक था .....
जो मैं तेरे इर्द गिर्द थी
तो तू भी तो कुछ करीब था...
कितने खुश थे हम एक साथ,
पर, एक दूजे के खातिर नहीं बने थे,
ये भी तो थी एक बात....
हम दो अलग थे ही नहीं
गहरे तक हम दोनों एक थे...
आत्मा था तू तो मैं जिस्म
शरीर था तू तो मैं रूह
पर संग रह कर भी हम संग रहने के लिए न थे.....
तू मेरे जैसा था पर मैं नहीं,
मैं तेरे जैसी थी पर तू नहीं.....
नाम देने की ये कोशिश ले डूबी
हमें एक साथ....
तू वीरान हुआ तो मैं तनहा,
फिर क्यों देना था एक नाम..
क्या हम दोस्त थे ये काफी नहीं था,
क्या हम दोनों एक दूजे की आत्मा के थे
ये कुछ कमतर था...
क्यों नाम न होने से नाजायज था
हमारे रिश्ते का नाम...
हम संग थे इससे किसी को था क्या एतराज,
हम पाक थे इसपे किसे को क्यों न था एतबार....
क्यों नाम देने के जिद में,
मिटा दिया गया,
इस दुनिया से हमारे रिश्ते का,
हर नामो – निशान