Showing posts with label shattered. Show all posts
Showing posts with label shattered. Show all posts

Thursday, November 6, 2014

नाम The Name



वो रिश्ता.....
तेरा मेरा वो रिश्ता
क्या था वो,
क्या नाम था उसका,
क्या पहचान थी उसकी.
न कभी दुनिया समझी
न ही कभी तू ही समझा....
बस एक मैं थी,
जो खोजा करती इस सवाल का जवाब,
कोई एक नाम, कोई तो पहचान,
पर शायद, दुनिया की बंदिशों से परे था,
तेरा और मेरा वो प्यार बेहद खास.....
मेरे लिए तू ऊँगली पकड़ कर चलने वाला पिता था,
तू ही हर अला बला से बचाने वाला भाई था,
तेरे ही संग माँ की गोद का अहसास होता था,
तुझे हर बात बहन की तरह कहने का क्रम था...
मेरे लिए तू स्वाति की एक बूंद था,
मेरे लिए तेरा होना रेगिस्तान की छांव था,
मेरे लिए तेरा साथ तूफान की मंझधार था,
मेरे लिए तेरा वजूद जीने की वजह था,
पर दुनिया चाहती थी एक नाम,
तेरी मेरी आत्मा नहीं देखी एक जान,
तू मर्द था मैं औरत,
नाम बिन न होता है रिश्ता खास
ये दुनिया का दस्तूर था,
उनके रवायते भी और परंपरा भी..
न दुनिया से तू दूर था ना रिवाजों से,
जिद मेरी भी थी इस रिश्ते तो नाम देने की,
पर नाम क्या दू?
मेरा तो सब कुछ तू था,
तुझसे शुरू तुझ से ख़तम
इस कहानी में तू ही तो नायक था .....
जो मैं तेरे इर्द गिर्द थी
तो तू भी तो कुछ करीब था...
कितने खुश थे हम एक साथ,
पर, एक दूजे के खातिर नहीं बने थे,
ये भी तो थी एक बात....
हम दो अलग थे ही नहीं
गहरे तक हम दोनों एक थे...
आत्मा था तू तो मैं जिस्म
शरीर था तू तो मैं रूह
पर संग रह कर भी हम संग रहने के लिए न थे.....
तू मेरे जैसा था पर मैं नहीं,
मैं तेरे जैसी थी पर तू नहीं.....
नाम देने की ये कोशिश ले डूबी
हमें एक साथ....
तू वीरान हुआ तो मैं तनहा,
फिर क्यों देना था एक नाम..
क्या हम दोस्त थे ये काफी नहीं था,
क्या हम दोनों एक दूजे की आत्मा के थे
ये कुछ कमतर था...
क्यों नाम न होने से नाजायज था
हमारे रिश्ते का नाम...
हम संग थे इससे किसी को था क्या एतराज,
हम पाक थे इसपे किसे को क्यों न था एतबार....
क्यों नाम देने के जिद में,
मिटा दिया गया,
इस दुनिया से हमारे रिश्ते का,
हर नामो – निशान