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Sunday, December 27, 2015

Today is Sunday

इतवार है आज 
पर ये काम भी न कितना ज्यादा है 
खत्म ही नहीं होता।
ये लो फाइलों पे फाइलें।
न जाने क्यों 
सारा काम आ गिरता है 
मेरे ही सर हर बार। 
न खत्म होता है 
न खत्म होने का नाम लेता है। 
कितना है यह काम। 
पर क्यों न इस बीच हो जाए थोड़ा आराम।
पी लूँ चाय उसी टपरी पे 
जहां जाते है बाकी के सारे। 

आओ आओ मैडम जी 
बोलो कैसे चाय बनाऊ
ब्लैक ग्रीन या डार्क 
कम शक्कर या ज्यादा चीनी। 
पर पहले आप बैठ तो जाओ।

देखो कितनी गन्दी कुर्सी है। 

रुकिए न मैडम जी 
कुर्सी की सफाई के लिए मेरी ये कुर्ती है। 

वो बमुश्किल बारह साल का चिंटू 
उस कुर्सी को पोंछ रहा था।
और मैं देख रही थी 
अपनी कुर्ती 
उजली सी वो कुर्ती
जिसको साफ़ न धोने पे मारा था 
मैंने सपना को 
वो भी पिछले रविवार को

पूछा नहीं कभी उससे 
पर नहीं होगी वो 
पुरे सोलाह की।
न जाने क्यों
सात घरो में कपड़े बर्तन करती है।

जिस हरैसमेंट एट वर्क प्लेस की 
हम शिकायत करते है
वो भी उससे गुजरती है। 

मैडम जी सुनिए ना 
चिंटू बोला
बहन मेरी मुनिया आई है 
तीन रोटी और मिर्ची लाइ है। 
क्या मैं खा लू पहले उनको। 

टपरी के उस ओर पीले पोछे सी फ्रॉक में थी मुनिया
क्या करती हो बेटा 
क्या पूछा मैंने 
डर गई वो ऐसे जैसे मैंने उसे सजा सुनाई हो।

दीदीजी हम पेन बेचते है इस्कूल के बाहर 
और रविवार को सिग्नल पे भी 

कभी गई हो क्या तुम भी इस्कूल 

क्या पूछा मैंने दर्द उभर आया उन आँखों में।

एक बार इक लड़की के पैसे गुम गए थे 
और सबने सोचा चोर लिए है हमने वो
तब गई थी मैं इस्कूल 
मारे थे सबने मुझको दो तीन थप्पड़। 

चिंटू को देकर पांच रूपये आना था 
अब मुझको भी दफ्तर 
बड़ा काम है 
कई फाइले है मेज पर 
जबकि आज इतवार है। 

फिर देखा चिंटू मुनिया और सपना को 
और 
याद आया
आज इतवार है। 
©आशिता दाधीच 
Ashita Dadheech
#AVD