Monday, October 12, 2015

Woman Journalist

कितना आसान होता है आप लोगों के लिए यह कहना कि लड़की है इस पर तो स्टोरीयां बरसती होगी। ऑफिसर तो इससे मिलने के लिए मरते होंगे।
हो सकता है कोई हमें लड़की होने के चलते अच्छे से ट्रीट करता भी हो।
पर भूल जाते है आप कि फिल्ड पर आप ही लोगों की तरह धुप में तपते है हम। तन झुल्साते है अपना। महावारी के उस दर्द में कहाँ से कहाँ उछलते है कूदते है भागते है वह भी बिना किसी सहयोग और सम्वेदना की अपेक्षा किये। बिना अपनी सुरक्षा के लिए चिन्तित हुए देर रात गुमनाम गलियों में भटकते हम भी है। शहर के उन दादाओं के साथ चाय हम भी पीते हैं। अपने हर दर्द को छिपाये फोन से चिपके खबर कन्फर्म करते है। लेकिन आखिर में सुनते है क्या कि वो तो लड़की है उसे खबर मिलेगी ही। हम भी दो दिन से बिना लंच किये फिल्ड पे थे कमिश्नर आईजी और डीन की कैबिन में भटकते वह खबर पाई थी हमने अपने माद्दे से। क्योंकि जब हम कोई सहयोग मांगते है तब आप ही कहते है जर्नालिज्म में लड़का लड़की नहीं होते बस पत्रकार होते हैं। हाँ तो याद रखिये मैं बस पत्रकार ही हूँ।

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