A Letter to Sachin Tendulkar
एक पत्र सचिन के नाम -
पता है, उस दिन के बाद मैंने कभी तुम्हारा नाम तक नहीं लिया, कभी नहीं
कहा कि तुम मेरे लिए क्या हो। तुम्हे कितना पुजती हूँ, कितना चाहती हूँ,
सब अपने दिल में दबा लिया। तुम्हारे चौकों - छक्कों पर नाचने और झूमने का
हर बार दिल हुआ पर मैं अपनी भावनाएं दिल में ही दबाती रही। यह सोच कर कि
कहीं तुम आउट ना हो जाओ। खुद पर बहुत गुस्सा आया, चिढ हुई कि मैं तुम्हारा
जश्न नहीं मना सकती, कई बार तो यु ही अपने इसी अन्धविश्वास की खातिर झूठ
मुठ ही सही पर तुम्हारी बहुत बुराइयां भी कि, मुझे इन सबके के लिए माफ़ कर
दो सचिन। कर दोगे ना?
तुम्हारा दिल भी तो बहुत बड़ा है ना।
आज भी बहुत कुछ कहना है मुझे तुमसे, लेकिन मुझसे शब्द नहीं निकल रहे।
समझ सकते हो ना मेरी स्थिति। तुम भी तो इससे गुजरे हो अपने आज के रियरमेंट
भाषण के दौरान।
मुझे एक बात बताओं सचिन, तुम इतना मीठा, इतना
प्यारा और इतना अद्भुत कैसे बोल लेते हो। चाहे तुम्हारे पापा की कवितायें
हो या मैच के बाद की स्पीच। दिल जीतने का यह हुनर कहाँ से सिखा तुमने? सिखा
तो अच्छा किया लेकिन आज संन्यास लेकर दिल दुखाना रुलाना कहाँ से आ गया तुम्हे? तुम तो
अब तक हमें ख़ुशी के आंसूं देते आये थे। आज क्या हो गया अचानक?