आखिरकार महिला दिवस की कविता लिखी
पेश हैं चुनिन्दा पंक्तियाँ
सबल अबला हूँ मैं।
पिता की लाडली धनुर्धारी जनक नंदिनी हूँ मैं तो पति की अनुगामिनी राम दुलारी भी हूँ मैं।
पथ प्रदर्शिका गार्गी मैत्रेयि हूँ मैं तो कुटिलता की शिरोमणि मंथरा भी हूँ मैं।
सम्मान की खातिर यज्ञ में जल जाने वाली सती हूँ मैं तो मोहित करने वाली रम्भा मेनका भी हूँ मैं।
विष पी जाने वाली मीरा हूँ मैं तो अमृत बांटने वाली मोहिनी भी हूँ मैं।
कर्तव्य मार्ग पर भेजने वाली राधा, उर्मिला यशोधरा हूँ मैं तो निस्वार्थ प्रेम करने वाली शबरी भी हूँ मैं
रण में जूझ कर पति को बचाने वाली पद्मिनी हूँ
मैं तो सर काट कर प्रेरणा देने वाली हाड़ी भी हूँ मैं।
पत्थर बनी अहिल्या हूँ मैं तो सतीत्व निभाती अनुसूया भी हूँ मैं।
बाँध के बच्चा लड़ती लक्ष्मी हूँ मैं तो पैर दबाती लक्ष्मी भी हूँ मैं।
शिव के वामंग में रहकर मंगल करती पार्वती हूँ मैं तो सम्मान की खातिर तांडव करती चंडी हूँ मैं।
हाथ पकड़ कर साथ चलती साथी भी हूँ मैं
आगे बढ़कर राह दिखाती गुरु भी हूँ मैं।
आशिता दाधीच
पेश हैं चुनिन्दा पंक्तियाँ
सबल अबला हूँ मैं।
पिता की लाडली धनुर्धारी जनक नंदिनी हूँ मैं तो पति की अनुगामिनी राम दुलारी भी हूँ मैं।
पथ प्रदर्शिका गार्गी मैत्रेयि हूँ मैं तो कुटिलता की शिरोमणि मंथरा भी हूँ मैं।
सम्मान की खातिर यज्ञ में जल जाने वाली सती हूँ मैं तो मोहित करने वाली रम्भा मेनका भी हूँ मैं।
विष पी जाने वाली मीरा हूँ मैं तो अमृत बांटने वाली मोहिनी भी हूँ मैं।
कर्तव्य मार्ग पर भेजने वाली राधा, उर्मिला यशोधरा हूँ मैं तो निस्वार्थ प्रेम करने वाली शबरी भी हूँ मैं
रण में जूझ कर पति को बचाने वाली पद्मिनी हूँ
मैं तो सर काट कर प्रेरणा देने वाली हाड़ी भी हूँ मैं।
पत्थर बनी अहिल्या हूँ मैं तो सतीत्व निभाती अनुसूया भी हूँ मैं।
बाँध के बच्चा लड़ती लक्ष्मी हूँ मैं तो पैर दबाती लक्ष्मी भी हूँ मैं।
शिव के वामंग में रहकर मंगल करती पार्वती हूँ मैं तो सम्मान की खातिर तांडव करती चंडी हूँ मैं।
हाथ पकड़ कर साथ चलती साथी भी हूँ मैं
आगे बढ़कर राह दिखाती गुरु भी हूँ मैं।
आशिता दाधीच
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