तुम और मैं कभी एक न हुए
फिर भी मोर्निंग वाक पर अलसाए से भागते जोड़े में हम जी लेते हैं।
बस का वेट करते एक दुसरे से बतियाते जोड़े में हम हंस लेते हैं।
हाथ में हाथ डाले दरिया किनारे चलते जोड़े में हम पैर भिगो लेते हैं।
लोकल के उस प्लेट फॉर्म पर बस झलक से देते जोड़े में खुद को पाते हैं।
ऑफिस की झिडकी से तंग दुःख बांटते जोड़े में हम खुशियाँ पा जाते हैं।
हाँ हम एक नहीं पर हम हर एक में जीते हैं।
एक होकर भी मिल नहीं पाते हैं।
खुद को दूसरे में तलाशते नजर आते हैं।
खुशियों की खतिर निर्भर हो जाते हैं।
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