यों तो नाथद्वारा पहुंचे अभी एक दिन भी नहीं हुआ पर कई भाव उमड़ आए और लिख डाली ये कविता
ये मेरे श्याम की नगरी हैं
यहाँ सवेरा मंगला के दर्शन की ध्वनी से होता हैं।
यहाँ गुरुद्वारे की अरदास और मस्जिद की नमाज में भी कृष्ण कन्हैया लाल की जय हैं।
भूखे प्यासे बस दर्शनों की धुन है
न बारिश का डर न धुप का ताव
बस गोविन्द नाम का बुखार हैं।
ये मेरे श्याम की नगरी हैं।
यहाँ बस राधा नाम ही सत्य हैं।
चालीस दिनों की होली है और
सबसे लम्बी दीपावली
यहाँ अन्न लूट कर खाना भी शुभ हैं।
ये मेरे श्याम की नगरी हैं।
यहाँ भिखारी भी खीर पूरी से उकताया है।
लोगो को बस पुदीने की चाय ढोकला भाया हैं।
खाने को छप्पन व्यंजन का थाल भी सजा हैं।
ये मेरे श्याम की नगरी हैं।
यहाँ हर लडका कृष्ण का सखा और हर लडकी गोपी हैं।
कान्हा ही बेटा है भाई पिता और पति भी हैं।
घंटो दर्शनों की कतारे है रबड़ी बासुंदी के प्रसाद हैं।
ये मेरे श्याम की नगरी है।
यहाँ न कोई हिन्दू न मुस्लिम न ब्राह्मण न क्षुद्र यहा तो बस सब वैष्णव है।
न दुःख है न परेशानी न अपना न कोई पराया हैं।
इस गाँव में हर बेगाना भी अपना हैं
ये मेरे श्याम की नगरी हैं।
यहाँ न कलह है न वैमनस्य
ये मेरे श्याम की नगरी हैं।
यहाँ बस प्रेम है उत्सव हैं।
ये मेरे श्याम की नगरी हैं।
यहाँ बस राग है भोग हैं।
ये मेरे श्याम की नगरी हैं।
ये मेरे श्याम की नगरी हैं।
©Ashita_Dadheech
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