तुझे मैंने चाहा है तब से जब पता भी नहीं थे मायने प्यार के।
तुझे मैंने पूजा है तब से जब मायने भी पता न थे आराधना के।
बस चाहा है तुझे
बिना कुछ चाहे।
बिन मिले भी मेरे दिल में बसना तुझे कैसे आया।
चश्मे से झांकती उन आँखों से दिल कैसे चुराया।
कभी तुझमे पापा का मार्गदर्शन पाया।
तो कभी तू माँ सा स्नेही नजर आया।
भाई सा अहम तूने मुझमें जगाया।
पति होने का धर्म दिखलाया।
कभी न हारना
लड़ जाना
जूझ लेना।
साबित करना।
अपनी राह बनाना।
न जाने कितना कुछ सिखलाया।
अनेकों बार हंसाया
और
फिर खूब रुलाया।
आंसू पोंछ कर उठना सिखाया।
विरोधों में जग जितना सिखाया।
मप्यार ही नहीं प्रेरणा हो तुम मेरे।
जीवन दर्शन और सिद्धांत हो तुम मेरे।
क्युकी जीवन का सौरव हो तुम मेरे।
दादा को 43रे जन्मदिन से ठीक आधे घंटे पहले पहला तोहफा
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© आशिता_दाधीच
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