Saturday, November 19, 2016

Jhansi ki Rani Lakshmi bai

सोशल मीडिया पर झाँसी की रानी ट्रेंड हो रही हैं, झांसी की रानी, घोड़े पर चढ़ी एके सिंघनी सी औरत, पीठ पर बंधा बच्चा भारतीय माँ का प्रतीक, हाथों में तलवार, "लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार," शायद पहली कक्षा में थी जब पहली बार उनका चित्र देखा था और जैसे उस तस्वीर से मोहब्बत से हो गई, माँ ने उनके बारे में काफी कुछ बताया भी. लेकिन मेरे लिए झांसी की रानी मणिकर्णिका, छबीली, मनु बाई, लक्ष्मी बाई ज़िंदा होकर सामने उतर आई जब पहली बार चौथी कक्षा में सुभद्रा कुमारी चौहान की लिखी झाँसी की रानी कविता पढ़ी, और इस कविता की हर लाइन ने चौहान को मेरी प्रिय कवियत्री बना दिया। छत्रपति शिवाजी महाराज से भी तो मेरा साबका चौहान ने ही करवाया जब उन्होंने कहा, "वीर शिवाजी की गाथायें उसकी याद ज़बानी थी,"
सुभद्रा मैं तुम्हारी कृतज्ञ हूँ क्योंकि अपनी उस कविता के बूते तुमने मुझे मेरी नायिका दी जिसे मैं प्यार करती हूँ, जिसे मैं खुद में खोजना चाहती हूँ, "तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार....घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी" क्या लिखा तुमने सुभद्रा, झांसी वाली वो रानी जैसे उतर आई मेरी आँखों के आगे.
फिर अचानक उसी सिंघनी में तुमने अभिज्ञान शाकुंतलम की शकुंतला उतार दी, "सुभट बुंदेलों की विरुदावलि सी वह आयी झांसी में, चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव से मिली भवानी थी." शुक्रिया चौहान मुझे वो लक्ष्मी देने के लिए जिससे मैं बेइंतेहा मोहब्बत करती हूँ.
तुम्हारी उन २१ अंतरों की वो कविता मेरे लिए जिंदगी कब बनी मुझे खुद नहीं पता चला. शायद तुम पैदा ही उस कविता को लिखने के लिए हुई थी. महादेवी ने भी तो निराला से तुम्हे कविता कहने वाली लड़की कह कर ही मिलाया था.
तुमने मेरे लिए झांसी की उस रानी को महानायिका बना दिया, आज भी कम से कम ४०० बार तुम्हारी वो कविता पढ़ने के बाद भी आज भी जब मैं गुनगुनाती हूँ, "रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वन्द्ध असमानों में, ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी," रौंगटे खड़े हो जाते है "काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी, युद्ध क्षेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी," खून गर्म हो जाता है. "मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी, अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी," आंसू लुढ़क पड़ते है.
मेरे लिए लक्ष्मी तुम्हारी कलम से जीवित हुई सुभद्रा। सुभद्रा वो नाम जो कृष्ण की बहन थी, अर्जुन की शक्ति और अभिमन्यु की माँ, जो अमर रख गई पांडव वंश का बीज, बिलकुल वैसे ही तुम हमारे दिलों में लक्ष्मी बाई नाम की वह चिंगारी जगा गई जो कभी नहीं बुझेगी सुभद्रा।
"बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान" तुम्हे झाँसी की उस रानी के मार्फ़त भारतीय नारी के सम्मान की अचूक पुनर्स्थापना की है, और उसके लिए तुम्हे शुक्रिया सुभद्रा। "बरछी ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी," तुम्हारी छबीली साक्षात माँ शारदा थी हर कला में निपुण, लक्ष्मी तो वो थी ही, " हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में," और उस सी काली, चंडी, जगदम्बा तो वैसे ही हमें मिली ही कितनी थी.
अपनी अद्वितीय कलम से तुमने लक्ष्मी को अमर कर दिया, "जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी, यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी, होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी, हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी। तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी."
कई वीरांगनाएं सिर्फ सुभद्रा न होने के चलते इतिहास की किताबों से बारहवें से पन्द्रहवें पन्ने और शिक्षा विभाग की पाठ्यक्रम तय करने के मुबाहिसों के दरमियान ही दम तोड़ गयी. शुक्रिया सुभद्रा, हमें हमारी प्रेरणा देने के लिए, हमें लक्ष्मी देने के लिए.
© आशिता दाधीच।

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