Wednesday, March 30, 2016

Being a Rajasthani

 अच्छा आप राजस्थान से है, मारवाड़ी होंगे आप? नाह मेवाड़ी हूँ। अच्छा अच्छा पर जैन होंगे। नहीं जनाब ब्राह्मण हूँ। अच्छा पर सरनेम बड़ा अजीब है आपका। वहां काफी कॉमन है। कहीं आप उनकी रिश्तेदार तो नहीं जिनकी हड्डियां देवता ले गये थे। वो दस हजार साल पहले की बात है जनाब मैं उनकी महज वंसज हूँ। तो क्या आशिताजी आप भी अपनी हड्डियां दे देंगी किसी को....
उफ़्फ़ न जाने कैसे कैसे सवाल पर बिना किसी से दुर्भावना रखे आज राजस्थान दिवस के मौके पर कागज पर उतार रही हूँ वह सब जो एक राजस्थानी ओढ़ता बिछाता है।

ओह्ह आशिताजी आप पानी पी रही है, आपकी स्टेट में तो पानी होता ही नहीं है। हमने सुना है ऊंट सात दिन में एक दिन पानी पीटा है।
क्योंकि वो ऊंट है मेरे भाई मैं इंसान हूँ।

रे आशिताजी आपकी माताजी तो 18 किलोमीटर दूर से पानी लाती होंगी ना। हमने टीवी में सुना है
कम ऑन रायसागर झील, एशिया की सबसे बड़ी झील मेरे जिले में है।

आपने मुम्बई आने से पहले कभी गेंहू खाये थे, राजस्थान में तो कुछ उगता नहीं है न।
हाँ जनाब बस मिट्टी खाई है इतने साल।

आपके यहां की वो एक औरत बड़ी बहादुर थी, क्या नाम है लक्ष्मी बाई।
माफ़ कीजिये वो यूपी की थी।

अच्छा हाँ वो पद्मिनी जो जल मरी, पर सूइसाइड से बेहतर होता वो लड़ाई करती।
मेरे काका, जब किले में ना अन्न था ना असलहा तो कब तक लड़ती वो,
और राजस्थान पद्मिनी से इतर शादी के अगले दिन गर्दन दान करने वाली हाड़ी, पन्ना, कर्मावती का भी है।

हाँ सारे राजस्थानी बस लड़ाकू ही है।
भगवान के लिए मीरा, रामदेव शाह पीर, गोगाजी, तेजाजी, मांगलिया जी को पढ़ने का कष्ट करे।

हम राजस्थान आएँगे घूमने अगली सर्दी में दो दिन में हो जाएगा ना।
हाँ मैप तो देख ही लेंगे आप दो दिन में वरना तो अकेले सोनी जी की नसिहा एक दिन और आमेर एक दिन ले लेंगे।

आपके गाँव में कोई बड़ा तीर्थ नहीं है, अशिताजी।
खाटू श्याम, जोगनिया, रामदेवरा, जीण, नाथद्वारा शाहपुरा, बताओ कौनसा तीर्थ चाहिए, भर भर के है हमारे पास।

अच्छा आपके उधर खाने पीने को कुछ अच्छा मिलता है क्या?
मेरे काकाजी पुरे देश में सिर्फ ढाई इंच के रसगुल्ले वहीँ बनते है हमारी मावा कचौरी, हमारी राब, दाल दोक्ला का कोई जोड़ नहीं।

आशिताजी आपको कितने बच्चे है?
मेरी शादी नहीं हुई अभी आई एम् टू यंग।
पर राजस्थान में तो बचपन में शादी हो जाती है हमने बालिका वधु में देखा ।
अच्छा, तो मेरी शादी भी वहीं देख लेना।

आपके वो प्रताप अच्छे फेमस हुए।
जनाब महाराणा प्रताप बोलिये, और दुर्गादास राठौड़, अमर सिंह, सांगा, उदय सिंह, बप्पा रावल भी बहुत फेमस है, जरा जीके दुरुस्त करके आइये।

अच्छा आपने मुम्बई आने से पहले पेड़ देखे थे, हरयाली देखी थी।
भाई रुला मत, अरावली की बेटी हूँ, हमारे माउंट आबू में बर्फ पड़ती है, घने जंगल है।


अच्छा आपके वहां कोई क्लासिकल डांस होता है, कत्थक कुचिपुड़ी टाइप।
योट्यूब एक चीज होती है उस पर गुलाबो को देखिये, फिर भी प्रश्न पिपासा शांत न हो तो गैर घूमर पनिहारी देखे।

तो क्या क्लासिकल सांग भी होते है।
क्लासिकल फ्लासिकल तो पता नहीं पर हिचकी, चिरमी और कौवे पर भी होते है, इंसानो की बात तो लीजिये ही मत।
आप बिजनेस नही करती आप तो राजस्थानी हो।
करती तो हूँ, खबरे बेचने का काम, और क्या करूं।

आपके पैरेंट्स ने आपको मुम्बई कैसे आने दिया, आप तो राजस्थानी हो।
राजस्थानी हूं भाई बांग्लादेशी नहीं हूँ, वो आ जाते है तो मैं क्या चीज हूँ।

(एक भी प्रश्न कपोल कल्पित नहीं है, पिछले पांच साल में इन सब सवालों के जवाब दिए है।)

Friday, March 4, 2016

Mirza Galib

व्यंग पर आजमाया पहला हाथ

ग़ालिब की मौत

अरे ग़ालिब मियाँ क्या बात है, कुछ हैरान परेशान से नजर आ रहे हो, अपने दिल की कहों।

क्या कहूँ मेरे मौला, बस सोच रहा हूँ, मेरे शेर कैसे होंगे, इतनी मेहनत से लिखा था उन्हें अब जमीं पर कोई नामलेवा भी होगा या नहीँ उनका, कोई दोहराता भी होगा उन्हें क्या?

हाहाहा दुःख ना करों ग़ालिब मियाँ तुम्हारे ढ़ेरों आशिक़ ज़िंदा है अभी और कायनात के आखिर तक रहेंगे, पर...

पर क्या मेरे मालिक, हुकुम कीजिए...

तुम्हारे सच्चे आशिक तो एक से एक है, पर ये मुआं इंटरनेट, न जाने क्या क्या होता है, क्या और एक वो मरजाना व्हाट्सएप पता ही नहीं चलता कौन तुम्हारा मेहबूब है और कौन नहीं। छोडो इन बातों को ग़ालिब जाओ सोजाओ,

पर मौला

ग़ालिब, मेरे हुकुम की तामील हो।

(अगले दिन सुबह) ग़ालिब तुम तो कहते थे, मौत का एक दिन मुअययन है नींद क्यों रात भर नहीं आती, तो इस रात क्यों नींद नहीं आई तुम्हे मेरे नेक बन्दे।

मालिक मैं आपका बन्दा हूँ न तो अपनी खुदाई को दीदार करा दो, जर्रे को इसके मेहबूब से मिला दो, मुझे जमीन पर जाना है या मेरे मालिक,

ए मेरे बन्दे ऐसी जिद न कर इसमें तेरा ही नुक्सान है,

न मालिक,

ठीक है, ये ले मोबाईल नामका भयानक यन्त्र इसमें है मुआं फेसबुक और व्हाट्सएप, इससे अपने आशिकों को खोज और जिससे मिलना चाहे मिल ले। जा....

और ग़ालिब की जैसे आँख बन्द हो गयी, आँखे खुली तो मरीन ड्राइव पे खड़े थे, या मेरे मौला क्या जन्नती नजारा है, पहले मिला होता तो ये गुलाम बीसियों और शेर लिख लेता।

अचानक ग़ालिब का मोबाइल भनभनाया किसी दीपा दीक्षित ने ग़ालिब का फोटो और चार शेर फेसबुक पे ड़ाले थे, बस ग़ालिब ने दिल ने चाहा और प्रकट हो गए दीपा के सामने,

हू आर यू ओल्ड मैन,

मोहतरमा हम कलमकार है, ग़ालिब के बारे में बात करने आए है,

ओह ग़ालिब ही इज ए वैरी कूल गाई, आई तोह जस्ट लव हिम्, मुव्वह्ह् ग़ालिब मुवाह...

(लाहौल विला कुव्वत ये मोहतरमा तो हमारी इज्जत लूट लेंगे) ग़ालिब फुसफुसाए, मोहतरमा आपने ग़ालिब का इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश ग़ालिब, जो लगाए न लगे, जो बुझाए न बुझे शेर सुना है...

होहोहो यू आर वैरी फनी अंकल, ये तो एसआरके ने कहा था दिल से में मनीषा कोइराला को..

हाय अल्लाह ये मुवां एसआरके कौन है, दोजख में जाएगा ये, हमारे शेर चुराके अपने नाम पे चलाता है, अब तो हम यही रहेंगे जमीं पर, अपने शेरों को चोरो से बचाएंगे।

अचानक किसी व्हाट्सएप ग्रुप से घनघोर ग़ालिब ग़ालिब सुनाई दिया और मोबाइल की स्क्रीन जगमगाई,

वाह मेरे आशिक आ गए, देखू तो क्या कह रहे है,

और ग़ालिब ने चैट पढ़ना शुरू किया,

जब से देखा है तुझको नींद नहीँ आती, ग़ालिब तू औरत है या नींद भगाने की गोली।

लिल्लाह ये शेर हमने नहीं लिखा, ग़ालिब की आत्मा रो पड़ी।

बीबी मेरी रेशन की डोरी, मैं उसका जुगनू, पर डर जाऊ जब जब उसको देखूं - चचा ग़ालिब ने कहा है

हाय अल्लाह, हमारी बेगम ऐसा शेर देख लेंगी तो हमारे भूत को भी मार देंगी। चलो तीसरा मैसेज देखूँ, क्या कहता है...

ग़ालिब ने कहाँ है - चला तो था मैं अकेला ही घर से मोहब्बत की तलाश में भूखा प्यासा, रास्ते में गन्ने के जूस की दूकान मिली और रस पीके ही लौट आया।।

या मेरे खुदा, कैसे कमजर्फ लोग है ये, क्या क्या भेज रहे है, मेरे नाम पे, दोजख में जाएंगे सारे।

अचानक मोबाइल फिर झंझनाया, फेसबुक पर ग़ालिब फैन ग्रुप नजर आया, एडमिन ने शेर ड़ाला था, कौन जीता है तेरी जुल्फ के सर होने तक, ग़ालिब का आत्मा नाच उठी, झट से जा कर एडमिन को धर लिया और कहा

तू खुदा का सच्चा बन्दा है, ग़ालिब के और शेर सुना,

खुदा कर बन्दा बोला रुक, ग़ालिब की शायरी का सॉफ्टवेयर खोलने दे।

गोया ये क्या बला है?

देख पंटर किसी को बोल मत बट अपन इधर से शेर कॉपी करके पेस्ट करता है, सबको, ग़ालिब कूल है यार, उसका फैशन कभी नहीं जाता और इम्प्रेशन भी मस्त पड़ता है।

लाहौलविलाकुव्वत, ये सब देखने सुनने से पहले मैं मर क्यों नहीं गया, अरे हाँ, मैं तो मरा हुआ ही हूँ, अच्छा हुआ मैं मर ही गया, या मेरे मौला ये इन रोज रोज एक नई मौत मारने वाले आशिकों से मुझे बचा, मुझे वापिस बुला के मालिक, रहम कर।
©आशिता दाधीच
#AVD

Sunday, February 21, 2016

Valentains day

मेरा आज का ताजा अनुभव संस्मरण रूप में आप सब के लिए


वैलेंटाइन डे
प्यार का त्यौहार, हेहेहे, पहले ही गिरगांव आग के चलते ऑफिस से निकलने में घंटे भर की देर हो गई थी, और फिर दादर आकर तीन ट्रेन छोड़नी पड़ी, वैलेंटाइन डे का क्राउड जो था, चौथी ट्रेन पकड़ ही ली, वह ट्रेने जो कल तक भयानक बदबू मारा करती थी, आज भयानक तरह के चित्र विचित्र परफ्यूमों की खुशबू से महक रही थी, उसके अलावा हर तरह के फूल का बूके, अजीब सी दिखने वाली पेंसिल जिनमे बड़े बड़े दिल बने थे, फुटबॉल के आकर के गुब्बारे दिल के आकार में, मैं तो दिन भर मेक इन इंडिया से थक गई थी, कोने में दुबक कर खड़ी हो गई, पास ही एक महिला थी, जामुनी रंग के अजीब से वन पीस में, देख कर ही पता चल रहा था किसी से उधार लिया है, और मैडम उसे सम्भाल भी नहीं पा रही है, दूसरी तरह एक मैडम दादर, बांद्रा अँधेरी हर जगह ट्रेन रुकने पर बैग से निकाल कर डियो लगा रही थी, तीसरी को शायद दो बॉय फ्रेंड थे क्योंकि पहले फोन पर मिलने को धन्यवाद दे रही थी और दुसरे फोन पर टाइम से मलाड में पिक करने को कह रही थी, हर पांचवी महिला ने अपने मोवाइल का स्पीकर खोल कर तेज आवाज में कमली कमली और जादू है नशा है के गाने चला रखे थे, ये बताने को शायद कि वे बड़े रोमांटिक मूड में है कुछ इतने नशे में थी कि खड़े भी नहीं हुए जा रहा था और इस बीच में कल की स्टोरीज, मेक इन इंडिया और हेमा की चिंता में घुली घुली बार बार मैसेज चेक करके गिरगांव अग्नि काण्ड की अपडेट ऑफिस को दे रही थी, अचानक एक भयंकर रूप से खुशबू मारती हुई लड़की मेरे पास आकर खड़ी हुई, उसे शायद मुझे देख कर आश्चर्य हो रहा था कि मैं इतने साधारण कपड़ों उलझे बालों और बिना मेक अप में क्यों हूँ, बोरीवली आते आते वो पूछ बैठी, आप भी मरीन ड्राइव गए थे, मैंने कहा नहीं, ऑफिस, पर आज तो सन्डे है वो अचकचाइ। मेरा प्रोफेशन ही ऐसा है आई वर्क ऑन सन्डे, मैंने कहा। तो आपने वैलेंटाइन डे कैसे मनाया उसने कहा आपको बॉय फ्रेंड नहीं है क्या, उसकी आवाज में मेरे लिए बेहद दुःख टपक रहा है। उसे शांत करने के लिए मैंने कहा हम तो दिवाली भी नहीं माना पाते है, हमारे प्रोफेशन में चलता है। पर दीदी दिवाली तो बुड्ढे लोगो के लिए है, वी डे की डेट तो होनी ही चहिये नहीं तो कितना अक्वार्ड लगता है, आज का ही तो एक दिन गई जब हमे लव्ड फील होता है... भायंदर आने वाला था, मैं आगे बढ़ गई, पर क्या सचमें लव्ड फील करके के लिए दिन होते है, जब माँ बिस्तर में लाकर दूध देती है, बहस करने के बाद भाई सॉरी कहता है, गहरी नींद में सोता देकर पा के कहकर कि मेरी बेटी थक गई होगी, पैर दबाते है, तब लव्ड फील नही होता?

Friday, February 5, 2016

The girl

उलझी सी वो पगली सी लड़की,
कौन है अपना 
कौन पराया नहीं जानती।
अपनों को खोती, 
गैरों से मिलती, 
चोट खाती
बार बार गिर जाती 
उलझी सी वो पगली सी लड़की। 
कितनों के आंसू पोंछा करती
हर रात खुद से तन्हा रोया करती
कुछ पाने को 
फिर ख्वाब संजोती
उलझी सी वो पगली सी लड़की। 
खुद ही खुद पे इठलाती, 
बाल बनाती 
काजल लगाती
फिर खुद के पोंछ के सिंगार जोगन सी हो जाती।
उलझी सी वो पगली सी लड़की। 
किसी की एक झलक की खातिर 
मीलों तक चल के जाती, 
थोड़ी सी अवहेलना पर मुंह फुला के बैठ जाती,
गमों की गंगा पल में पी जाती।
उलझी सी वो पगली सी लड़की। 
महलों से भी खुश न होती
सूखी रोटी पर रीझ जाती
दुनिया की हर रीत निभाती
उलझी सी वो पगली सी लड़की। 
चिड़िया सी गुन गुन गाया करती
दुनिया की रस्मों से टकराती, 
कुछ बदलने की कसम उठाती
उलझी सी वो पगली सी लड़की। 
एक पल सब कुछ पाने को लड़ जाती
दूजे सब सब लुटा देने को जुट जाती, 
पहाड़ों को सह जाती पर कंकड़ से डर जाती 
उलझी सी वो पगली सी लड़की। 
सारी दुनिया को दोस्त बना कर 
फिर भी तन्हा रह जाती, 
उलझी सी वो पगली सी लड़की,
उलझी सी वो पगली सी लड़की.... 
©आशिता दाधीच 
#AVD

Thursday, February 4, 2016

The Time.

क्या दौर था वो जब हुआ करते थे हम करीब
फिर आया वो दौर जब से न मिले है हम
ना बोलते है हम
क्या गलत था
मैं
तुम या
हमारे अहम
कई बार चाहा कि गिर जाएँ ये दीवारें
तोड़ दी जाए बर्फ की वह दिवार
पर हिम्मत ही ना हो पाई कभी
और यह भी लगा कि शायद
तुम्हे ही नहीं पसंद मेरा साथ
नहीं तो करते तुम भी कोई पहल
तुम्हारा साथ
जो था मेरे जीवन की सबसे अमूल्य थाती
तुममे मेरा बेस्ट फ्रेंड भी था, पिता भी भाई भी,
और तुम जैसा ही चाहती थी मैं अपने जीवन का साथी,
कैसे समझाऊ तुम्हे कितने ख़ास हो तुम,
दिल के कितने पास हो तुम,
मत पूछो मुझसे कैसी हूँ मैं,
पर हर दस पंद्रह दिन में जता दिया करों
कैसे हो तुम,
यह जानना तो हक़ है ना मेरा
क्युकिँ एक दौर में कहते थे तुम
मैं सबसे करीब हूँ तुम्हारे,
मुझे खुश देखना चाहते हो तुम.
तो बस मुस्कुरा दिया क्रौन एक बार मेरी ओर
हो जाएगा करूंगी मैं ठीक,
जिंदगी की भाग दौड़ के बीच
उतार चढाव और थकान के बीच.
शायद हमारी किस्मतों में नहीं है कोई अंजाम
पर छोड़ा गया जिस मोड़ पर सबकुछ वह भी तो नहीं था उतना ख़ास.
एक याद एक कसक तुम्हारे वजूद की आज भी है मेरी साँसों के दरमियान
हर ख़ुशी में हर गम में तेरी रिक्क्ता का वह एहसास।

Monday, January 25, 2016

The Journey

और आखिरकार 2016 की 16  जनवरी को मेरे बचपन का दूसरा सपना पूरा हुआ, मेरे बच्चे पहली बार विदेश जा रहे थे, बच्चे हाँ मैं उन्हें अपना बच्चा ही मानती हूँ, मासूम भोले और हमेशा मुझे ख़ुशी देने वाले मेरे माँ और पा।
चार महीने से तैयारियां चालू थी, पासपोर्ट बनाना फिर टिकट लेना, इस बीच यात्रा के लिए कोई एजेंट खोजना, होटल बुकिंग, कपड़े जूते खरीदना।
जैसे जैसे यात्रा की तारीख पास आ रही थी, दिल धड़क रहा था, जोरों से, क्या होगा, कैसे होगा। एक गर्व भी था कि जो अब तक मेरे बारें में चिंता करते थे, मैं किसी बुरे इंसान से ना बोलूँ, किसी मुसीबत में न फंस जाउ, अब उनके बारें में यह सब मैं सोच रही थी, शायद वह मुझे अपने बड़े होने का पहला एहसास था।
खैर अपने एविएशन रिपोर्टर होने से एक शान्ति थी कि कुछ हुआ तो मैं सम्भाल लुंगी, दूसरी हिम्मत थी उस दुबई के एजेंट की। वो एजेंट जो गुजराती है, और गुजराती लोगो से मेरी पटरी भी अच्छी खासी जमती है, बची कूची हिम्मत एयरपोर्ट के कुछ सोर्सेज ने दे दी।
इस बीच एक और चीज जो मुझे अजीब लगी वह थी पापा की बिना एविएशन के बारें में जाने एयर इंडिया पर विश्वास वह भी महज इस लिए क्योंकि वह राष्ट्रीय एयरलाइन है, बरहाल मैंने उनका टिकट एयर इंडिया का ही लिया।
उस दिन जब टर्मिनल पर उन्हें छोड़ा तो साँसे जैसे रूक सी गई, एक सोर्स को इशारा किया कि कोई दिक्कत हो तो इन्हें अटेंड करना, एयर इंडिया पीआर टीम के अर्पित भी दो बार फोन कर चुके थे उनकी कुशलता जानने के लिए, बरहाल पा ने अंदर जाके हाथ हिलाया और मुझे जाने को कहा, वैसा ही लगा मुझे जैसे माँ अपने बच्चे को पहली बार स्कूल भेजते हुए सोचती है जबकि ये दोनों देश के 17 राज्य घूम चुके थे, मैं डर रही थी, शायद इसलिए क्योकि मुझे खुद के बड़े होने का घमण्ड हो गया था। यह भी पता था कि ये खुद्दार लोग किसी की मदद नहीं लेंगे हर बात से निबट लेंगे।
बरहाल 25 की सुबह आठ बजे ये लोग लौटे, घर आए, संयोग से मुझे जल्दी निकलना था तो ज्यादा बात कर नहीं पाई, कुर्ला आना था, बडोदरा में डिटेन हुए लड़कों की फैमिली का इंटरव्यू करने के लिए और चिंतन की भी तो पेशी थी।
बस इतना ही पूछा यात्रा कैसी रही।
तो फिर पा बस शुरू हो गए,
एयरपोर्ट बहुत सुंदर है, दुबई के से भी सुंदर, सब अजन्ता एल्लोरा जैसे बने है, कोई इंडिया के बारे में ना जानता हो तो भी जान जाएगा। काउंटर पे भी ज्यादा वक़्त नहीं लगा, झट पर सील ठप्पे हो गए, सुरक्षा जांच के नाम पे भी हमें परेशानी नहीं हुई। एयर इंडिया काउंटर पर तो जाते ही बोर्डिंग पास मिल गया। वीजा पे थोड़ी लाइन थी और एक घंटे वेटिंग रूम में बैठे पर घोषणा होने से आसानी रही। बाद में बस से हम फ्लाइट तक गए,
फ्लाइट बहुत सुंदर थी, सीट पर टीवी सेट थे, अटेंडेंट बहुत व्यवहारीक थी, अच्छा समझा रही थी, बार बार खाने पीने का भी पूछ रही थी, खाना बड़ा स्वाद था, एक दम घर जैसा, दाल चावल, सब्जी रोटी।
वहां भी लोग अच्छे थे, कितनी शांति थी, कोई ठग नहीं, और खूब स्वच्छता, बड़े रोड, सुंदर इमारते और कोई गुंडागर्दी नहीं, ऐसा लगा जैसे ये कोई दुनिया ही दूसरी है।
वापस आते हुए फ्लाइट उतनी सुंदर नहीं थी, बैक सीट पे टीवी काम नहिं कर रहे थे पर था भी तो रात का वक्त, जाते ही खाना दिया होस्टस मैडम ने, जो अच्छा था, और फ्लायट हमें बीस मिनट पहले मुम्बई ले आई, बस और क्या चाहिए।
हाँ आते वक्त ऑटो वाले ने मीटर से आने को मना किया और डेढ़ सौ रूपये मांगे यह कहकर की वो दो घंटे से लाइन में लगा है उनकी मेहनत है, पर हमने नहीं दिए हम मीटर से ही आए।

Sunday, January 17, 2016

Marathon

After covering today's Marathon wrote this poem

जिंदगी की मैराथन दौड़ रही हूँ मैं।
कुछ पा जाने को
काफी कुछ पीछे छोड़ देने को
दौड़ रही हूँ मैं।

किसा का दोस्त बन जाने को
किसी की दुश्मन हो जाने को
अपना बनाने और बिछड़ जाने को
दौड़ रही हूँ मैं।

वो मेरा सबसे प्यारा साथी था
उसी के साथ शुरू की थी दौड़ मैंने
पर ये क्या वो आगे निकल गया
हाथ हिलाकर टाटा करके
बिना एक बार मुड़ के देखे निकल गया वो।

और मैं रह गई अकेली पीछे
किसी नए को अपनाने की कोशिश में।
कुछ आंसू पी जाने
और मुस्कान बंटोरने की कोशिश में।

क्योंकि अब दौड़ रही हूँ मैं।

पर यह क्या
मेरा वो साथी जमीन पर पड़ा है।
खून बह रहा है उसकी नाक से
हांफ रहा है वो
पर मैं रुक नहीं सकती।

क्योंकि दौड़ रही हूँ
मैं
अपनी मैराथन और यहां
नहीं कर सकते नियमों का
उल्लंघन।

मेरा वो साथी पीछे छूट गया
पता नहीं ज़िंदा भी बचा
या मर गया
पर रो नहीं सकती मैं।

क्योंकि मैं दौड़ रही हूँ अपनी मैराथन।


धुप आँखों में घुस कर आंसू निकाल रही है।
सामने धुंधला है सब कुछ।
कुछ नहीं दिखता अब आगे।
मेरे हमराही मेरे पैर भी तुले है
अब साथ छोड़ने को।
सांस भी जैसे निकल जाना चाहती है शरीर का पिंजरा तोड़ कर।

पर
दौड़ रही हूँ मैं।

क्योंकि यह मैराथन है
और यहां रुकने के नियम नहीं है।

पर अब गिर गई हूँ मैं।
पगतलियों से खून की गंगा निकली है
क्या अब कभी चल भी पाउंगी मैं?

पर कैसे रुक सकती हूँ मैं
यह मेरे जीवन की मैराथन है
और जीतना है मुझे इसे।

न जाने वो यकायक कौन आया।
लडखडाती मुझको सम्भाला
थोड़ा सा पानी पिलाया।

कही ये वो तो नहीं
जिसके हाल पूछे थे मैंने पिछली बार

खैर रुक नहीं सकती मैं
कहने को
अब
धन्यवाद।

दौड़ रही हूँ मैं


लगता है खत्म हो गई है धरती
बस मैं ही हूँ अम्बर में व्यापी।
न पास के किसी की खबर
न दूर के अपनों का गम
अब बस कुछ याद नहीं

बस दौड़ रही हूँ मैं

न आगे कुछ दिखता है
न पीछे मुड़ते बनता है

अब
बस दौड़ रही हूँ मैं।
- आशिता दाधीच
©Ashita V. Dadheech