My review on movie Mahendra Singh Dhoni untold story
माही दोस्त मजा नहीं आया। सॉरी यारा।
तुम अज़हर नहीं हो ना कि तुम्हे इस महिमामंडन की जरूरत थी।
तुम हो और हम तुम्हे जानते है, यह सब दिखाने की क्या जरूरत थी। प्रियंका झा, साक्षी, सब पता है धोनी हमे।
तुमने कौनसा शतक कब लगाया, जयपुर पारी में कितने छक्के लगाये तुम भूल गए होंगे हम नहीं भूले।
पान सिंह का बेटा, टिकट कलेक्टर धोनी, माता का भक्त धोनी, हैलीकॉप्टर वाला धोनी सब याद हैं हमे।
हाँ, हम विराट को चाहने लगे है पर तुम्हे भूले नहीं है, बिलकुल वैसे ही जैसे हमे आज भी श्रीनाथ, सचिन, राहुल सारे के सारे याद है और अपने पोते पोतियों के होने तक याद रहेंगे। जब हम अपने घर का पता भूल जाएंगे तब भी सौरव का ऑफ़ कट, सचिन का अपर कट और तुम्हारा हैलीकॉप्टर याद रहेगा।
और तुम तो अभी खेलते हो, फिर 22 गज की पट्टी से 72 एमएम तक जाने की जरूरत क्या थी दोस्त।
दोस्त किस संघर्ष की बात कर रहे हो तुम।
तुम दुति चाँद नहीं हो जिसे औरत होने के बावजूद मर्द कहा गया।
तुम मिल्खा नहीं हो जिसने विभाजन की दुखान्तिका देखी हो।
तुम मैरी कॉम नहीं जो आईसीयू में बच्चा होने पर भी पंच मार रही थी।
तुम वो एथलीट नही हो जिसे ज़िंदा रहने के लिए मिट्टी खानी पड़ी हो।
सॉरी दोस्त।
पर तुम एक मिडल क्लास परिवार के बेटे हो, और उस तबके से हो जहां से तीन चौथाई भारतीय आते है, यूपीएससी टॉप करते है, टूटे स्कूटर पर जिम्नास्ट प्रैक्टिस करते है, स्ट्रीट लाइट में पढ़ते है।
लगभग 80 प्रतिशत भारतीय परिवारों में बच्चे के सरकारी नौकरी में रहने का प्रेशर होता है।
याद है ना आर माधवन का थ्री इडियट्स वाला किरदार, जिसे फोटो ग्राफर बनना था पर उसके पिता उसे, इंजीनियर बनते देखना चाहते है। अधिकांश भारतीय परिवारों में बच्चे वही बनते है जो माँ बाप चाहते है, तो क्या अनोखा संघर्ष दिखा रहे हो तुम, दोस्त। तुमने विद्रोह किया, कई करते है, अपने सपनों का पीछा किया कई करते है।
फिल्म खुबसूरत है बेशक खूबसूरत है,सुशांत गजब है, नो डाउट, पर लाखों सवाल है मेरे दिल में।
इस महिमांडन की क्या जरूरत थी दोस्त?
©आशिता दाधीच