“आत्मिक शांति के लिये हर व्यक्ति को अपने मन की सुनने और उस अनुसार आचरण करने
का अधिकार हैं.”
यह एक शास्वत सत्य हैं. लेकिन विडंबना यह हैं कि हर परिस्थिति में यह कथन
परिवर्तित हो जाता हैं.
आज आपकी उम्र चाहे कितनी भी हो लेकिन जिस दिन से आपने जीवन को समझना शुरू किया
होगा, जीवन ने आपको भावनाओं, एहसासों और संवेदनाओ से जरुर रूबरू करवाया होगा.
जहाँ जहाँ जब जब किसी से आशाएं जोड़ी जाती हैं, तब दिल कहीं ना कहीं हल्का सा
ही लेकिन टूट जाता हैं. ‘शायद इसी लिये कहते हैं कि ‘एक्पेकटेशंस सक्स’ प्रेम
कितना भी अटूट हो, लेकिन जब तक उसमे कोई अपेक्षा
नहीं रहती हैं, हर चीज सुख देती हैं, हफ्ते में एक बार भी बात हो जाए खुशी
की कली खिली रहती हैं, लेकिन जिस दिन आशाएं शुरू होती हैं, उसका किया हुआ हर प्रेम
पूर्ण कार्य भी छोटा लगता हैं.
और शायद तब दिल टूटने शुरू होते हैं. और जो अपने होते हैं उनके दिए हुए ये
जख्म आसानी से भर नहीं पाते हैं, कई बार तो जिंदगियां लग जाती हैं, इसलिए हि तो
कहते हैं ‘इश्क वो खेल नहीं जो छोटे दिल वाले खेले, रूह तक कांप जाती हैं, सदमे
सहते सहते.’
और कई बार जब हम उस सदमे से उबार जाते हैं तो इस लायक नहीं बचते कि फिर किसी
पर विश्वास कर सके, किसी के हाथो में उम्मीदों का दिया सौंप सके. तब जाकर शुरू
होती हैं भावनाओं की मौत का एक अनजाना सिलसिला.
प्रेम की वो कामना तो अमर हैं, लेकिन उसे हम भीतर ही भीतर रोज मार डालते हैं.
लेकिन क्यू, यही तो वह एहसास हैं जो हमें रोज जिन्दा रखता
हैं,
हमारा समाज, एक परिभाषा बना कर बैठा हैं कि आंसू गिरना कमजोरी की निशानी हैं,
और शायद इसलिए हमारा अहम यह स्वीकार नहीं करता कि हम कमजोर बने.
लेकिन मुझे एक बात बताइए -
क्या किसी की याद में आंसू गिरना गुनाह हैं ?
क्या किसी के सामने अपनी भावनाये रखना गुनाह हैं ?
क्या किसी से प्रेम का प्रतिदान मांगना गलत हैं ?
क्या किसी कि और निन्यानवे कदम चलके उससे एक कदम आगे आगे
चलने की आशा करना गलत हैं ??
क्या भावनाहीन बनकर जीना आसान हैं ?
हां, शायद यही ज्यादा आसान हैं, और बुद्धिमत्तापूर्ण भी.
लेकिन फिर क्यू हम शाहरुख खान टाईप, बर्फी सरीखि फिल्मे देख कर अपने आंसू नहीं
रोक पाते, क्युकी हजारों मौत मारने के बाद भी वे भावनाये वहाँ जिन्दा बच जाती हैं,
लेकिन फिर भी आप, बर्फ की उन बंद दीवारों में जीना चाहते हैं ?? जो सिर्फ और
सिर्फ आपका दम घोंट रही हैं, किस मजबूती का ढोंग कर रहे हैं आप ??
जब एक मुस्कराहट
सब कुछ ठीक कर सकती हैं. याद कीजिये वो दिन जब माँ कि गोद स्विजरलेंड की वादियों
से भी खूबसूरत लगता था, वो आज भी उतना ही खूबसूरत हैं, बस आपने वो रंग देखने बंद
कर दिए.
क्यू हर दुःख में हम
किसी सबसे प्रिय के सीने से लगना चाहते हैं ??
क्युकी हम इंसान हैं, भावनाए हम में आज भी जीती है.
लेकिन फिर भी ना जानने क्यू हम मशीन बन गए हैं, भावनाये जताने में डरने लगे
हैं?
प्रेम
की चाह सबको हैं लेकिन उसे मांगना कोई नहीं चाहता.
लेकिन आखिर क्यू उसे ना मांगा जाए जो आपको सबसे
ज्यादा खुशी देता हैं.
जो आपको मुस्कुराने के लाखो मौके दे उससे ये नाउम्मीदी क्यू
?
हां, प्रेम में थोड़ी सी मूर्खताए होती हैं, लेकिन बच्चे भी तो सभी को इसीलिये
अच्छे लगते हैं क्युकी वे थोड़ी सी मूर्खताए करते हैं, सभी एक बार फिर से बच्चा बन
जाना चाहते हैं, लेकिन फिर भी बच्चा बनने से कतराते हैं, जब पता हैं कि यह एहसास
खुशी देगा तो आखिर क्यू उस खुशी से डरना, क्यू किसी और की परवाह करना.
अपने भीतर से उस मजबूत इंसान को मत मारिये, आने दीजिए उसे बाहर,
लड़ने दीजिए उसे जिंदगी की जंग हो सकता हैं इस बार वही जित जाते, जिसे आप कमजोर
समझ कर लड़ने का मौका ही नहीं दे रहे थे,
भावनाये अमर हैं उन्हें मारा नहीं जा सकता, उन्हें मारने के नाम पर अपने जीवन
की शांति को मारना बंद करो.
भावनाएं तो आजाद परिंदे हैं, उन्हें जीभर के उड़ान भरने दो.
प्रेम करते रहो, सब से, हर एक से,
क्या पता किसी से तुम्हे भी बदले में वैसा प्रेम मिल जाए, जिसका स्वप्न तुमने
संजोया था.
हर पल जियो, प्रेम लूटाओं, खुश रहो,
मौके तलाशने की क्या जरुरत हैं ??