Wednesday, September 21, 2016

Amitabh Bachchan

अमिताभ बच्चन

कौन हो आप।

अभी अभी पिंक फिल्म देख कर लौटी, हमेशा शांत रहने वाले भायंदर के मैक्सस मॉल में, आज पहली बार मैंने सीटियां बजते सुनी, तालियां गूंजते देखी, मैक्सस वो मॉल जिसमें मैंने कहानी भी देखी और बीएपास भी, रागिनी एमएमएस और क्वीन भी, भाग मिल्खा भी और हाउसफुल भी, रामलीला भी और रुस्तम भी। हमेशा शांत सा ऊंघता यह थियेटर आज नाच उठा,
और उसके साथ मेरा भी सर ऊंचा हो गया, औरतों के सम्मान की तरफ दिए गए इस उपहार के लिए।

शुक्रिया अमिताभ बच्चन, दीपक सहगल को जीने के लिए।

पर एक बात बताइये,

आप है कौन,
इंसान तो लगते नहीं, हमारी तरह रक्त मांस के बने, आज पच्चीस की उम्र के काम हमे थका ड़ालता है पर आप वक्त की आँखों में आँखे ड़ाल कर कैसे उसे पीछे छोड़े जा रहे है।
जब दीपक सहगल मॉर्निंग वॉक के दौरान hoddiee से मुंह ढंकती प्रोटोगोनिस्ट के चहरे से कपड़ा पीछे करके उसे मुंह दिखाने को कहते है तो अपने औरत होने पर गर्व होता है।

अमिताभ बच्चन
कौन हो आप।
वजीर वाले वो असहाय बुजुर्ग जो आखिरी में सबसे बड़ा सबल होकर निकला या तीन का वो बुजुर्ग जो कुछ न होकर भी सब कुछ कर गया, या कहानी की वो आवाज जो दिखी नहीं पर दिल में समा गई। या बुड्ढा होगा तेरा बाप का वो जवान जिस पर हर युवती दिल हार गई।

या फिर वो विजय और अमित जो अपने बाप को आँख मिला कर कहा सकता था "मैं नाजायज औलाद नहीं बल्कि आप नाजायज बाप हो"
वो निहायत ही दुबला पतला लड़का जिसे मैंने बचपन में दूरदर्शन की फिल्मों में देखा।
जो गुंडों के गोदाम में अकेला जा बैठा और उन्ही को पीट पाट के बाहर आ गया।
जो बंगला गाडी होने के बावजूद भी माँ के लिए तरस गया, माँ का न होना क्या है अपनी आँखों से जता गया।
जो अपने दोस्त वीरू का ऐसा रिश्ता ले कर गया कि आज भी हम पेट पकड़ कर हंस सके।
जो आजादी के बाद मुलभुत आवश्कयता से जूझता भारत का युवा था, जिसे सिस्टम के लिए गुस्सा था, जिसे बदलाव लाना था, जो बेहतर जिंदगी चाहता था, जो रोजमर्रा की तकलीफों से आजिज था।
जिसे माँ बहन और बीबी के काँधे पर सर रख जार जार रोना था, जो मजबूत भी था और मजबूर भी, जो दयनीय भी था और दयावान भी।
जो मोहब्बते का कड़क प्रफेसर था और बागबान का प्यारा सा बाप और बाबुल का ससुर।
कभी बेटे के लिए कभी बहु के लिए, जो बाबुल और विरुद्ध बन कर ड़ट गया,

तुम्हारे हथियार बदल गए
और आप मुख्यधारा में बने रहे
उसका केंद्र बिंदु बन कर

अब आप अपनी माँ का बदला लेने के लिए अग्निपथ पर चल कर पेट्रोल पंप नहीं जलाते, बल्कि बेटी की मौत का बदला लेने के लिए बादशाह बन कर एक पुलिस वाले को अपना वजीर बना कर दुश्मन को घर में घुस कर मारते है।

अब आप सुनसान राहो पर एक मसीहा बन कर नहीं निकलते बल्कि काला कोट पहनकर न सिर्फ पिंक लड़कियों बल्कि पूरी औरत जात के लिए लड़ जाते है।

गजब है आप
अद्भुत

वक्त के साथ चलकर कदम ताल मिला कर वक्त को पछाड़ते है आप।
कितना कुछ सिखाते है।

जो नव्या और आराध्या के बहाने खत लिख कर हमें जीना सिखाते है।
जो औरो बन कर सुपर हैंडसम से सुपर क्यूट हो जाते है।

थैंक यू अमिताभ बच्चन

हमे जीना सिखाने के लिए
हंसने की वजह देने के लिए
प्रेम सिखाने के लिए
दिल में ख्याल लाने के लिए
होली खेलने के लिए
दीवाली मनाने के लिए
बिल्ला नम्बर 786 बाँधने के लिए

अनगिनत बार जात पात धर्म से ऊपर उठा कर एक करने के लिए

शुक्रिया
अमिताभ बच्चन

आपके अरबो फैन में से एक
●आशिता

©आशिता दाधीच


Sunday, August 21, 2016

Olympics and Indian team

सिंधु, साक्षी तुम मत करना अपनी जीत हमारे नाम, अब्वल तो इसलिए क्योंकि हम उसके लायक ही नहीं है, दुसरा इसलिए क्योंकि तुम इनसे बहुत ऊपर हो। जब हमारी किसी एथलीट को मिट्टी खाकर पेट भरना पड़ा, तब हम कहा थे, शायद किसी आईपीएल को चीयर कर रहे थे। जब दीपा कर्माकर एक अदद कोच मांग रही थी, हम फिल्मों को सौ करोड़ी बना रहे थे। 
इससे भी पहले जब वो छोटे से कद का अभिनव कुछ साल पहले अकेला मैदान में डटा गोलियां चला रहा था, हम कही नहीं थे, ना इंडिया ना अभिनव चिल्लाने के लिए, तब तो ये देशभक्ति ठन्डे बस्ते में रखी थी। 
जब माथे पे वह मुकुट लगाये, अपनी मोहिनी सी मुस्कान से राज्यवर्धन चांदी के उस तमगे को चूम रहे थे, तब हम कहा थे। शायद टीवी के सामने राज्यवर्धन राज्यवर्धन चिल्लाते, पर उससे पहले जब वो पसीने बहा रहा था अकेला जूझ रहा था तब।
चलिये अभी की बात करते है एक मैच हार जाने पर सुपर साइना को बैग पैक करने की सलाह देने वाले, पिछले ओलम्पिक्स और कॉमनवेल्थ में कहा थे जब लड़की जुझ रही थी। अरे एक मैच तो फेडरर, जोको और राफा भी हार जाते है। 
सरदार सिंह, ध्यानचंद, धनराज को छोड़ कर हॉकी के किसी खिलाड़ी का नाम ही बता दीजिए, चलिये। फरहान अख्तर को मिल्खा सिंह मानने वालों जब हमारे हॉकी के लड़ाके चार बीन बैग और दो चेयर वाले कमरों में थे तब आप सब कहा थे।
साक्षी, सिंधु, मुझे शर्म आ रही है। 
आज हम सब तुम्हारे मैडल पर हक जमा रहे है पर उसके लिए बहते तुम्हारे खून, पसीने, दर्द और चीखों को न हमने कभी देखा ना सुना। 
मत दो हमे अपना मैडल, हम इस लायक नही है, ये तुम्हारा मैडल है लड़कियों।
जब हमें मैदान में तुम्हारे लिए हर बार वैसे ही जुटते देखो जैसा अपने फाइनल में देखा था, तब हमें मेडल दे देना, पर जब तक हम तुम्हारा हर पग पर साथ न दे, ये मेडल तुम्हारा है। 
क्योंकि ये जंग तुम्हारी थी, जिसे तुमने अपने दम पर जीत, हम तो महज स्वार्थियों की तरह आ गए आखिरी मौके पर तुम्हारी जीत का हिस्सा मांगने और उस पर अपना हक जताने। 
हमे माफ़ कर दो दुति चाँद, हम कुछ नहीं कर पाए, दीपा माफ़ कर दो हमे। अभिनव, गगन, सॉरी तुम्हे कुछ न देने के लिए, और फिर भी ठीकरा तुम पर फोड़ने के लिए। 
अभिनव, तुम सही हो उन विश्व स्तरीय सुविधाओं के बिना, उस महंगे खर्चे के बिना तुम सब जूझ रहे हो और यहां हम है तुम लोगो को वो प्यार तक नहीं दे पाते, न जाने कितनी डोमेस्टिक इंटरनैशनल लड़ाइयों में तुम्हारे साथ खड़े नहीं हो पाते। शायद, किसी और मुल्क में पैदा होते तुम सब तो अब तक बीस तमगे तुम्हारे सीनों पर होते।
माफ़ कर दो हमे, हमारे स्वार्थों के लिए। 
-आशिता दाधीच

Saturday, August 20, 2016

Sindhu, Girls and Olympics

वाह क्या खेली है सिंधु एक दम जबरजस्त मजा ही आ गया, क्यों क्या कहती हो जी? चाय की चुस्की लेते हुए शर्मा जी ने अखबार को फड़फड़ा कर बीवी से कहा।
हाँ जी बिलकुल, मिसेज शर्मा ने सर हिलाया।
मैं तो कहता हूँ देश में खेलों का इंफ्रास्ट्रक्चर बढाना चाहिए, हर बच्चे की प्रतिभा को पहचान कर उसे उसके लायक पी टी टीचर बचपन से मिलना चाहिए, तब देखना हर घर से एक सिंधु निकलेगी। शर्मा जी चहक रहे थे।
तभी, बगल के कमरे से लगभग दस बारह साल की सुपेक्षा दौड़ते हुए आई।
पापा पापा, मुझे भी रैकेट दिला दो ना, मैं भी सिंधु दीदी जैसी बनूँगी। शर्माजी का चेहरा यो हो गया जैसे आसमान से गिर पड़े, नहीं बेटा, ये सब अमीरों के चोचले है, अपन तो मध्यमवर्गीय है, तुम पढाई पे फोकस करो डॉक्टर बनना है ना तुम्हे। शर्माजी झेंप छुपाते हुए मुस्काए। 
और नन्हीं सी बेटी ये सोचते हुए उलटे पाँव लौट गई कि जब हर घर से सिंधु निकलनी चाहिए तो इस घर से क्यों नहीं?? 
मध्यमवर्ग बहाना था या एक लाचार बाप की कुछ न कर पाने की बेबसी थी या अखबार पर तालियां पीटना महज ढोंग था या सिस्टम से दबे कुचले हारे संसाधनों के अभाव के दर्द को जानते दिल का दर्द।
©आशिता दाधीच 




PV Sindhu's letter

जनाब मेरा नाम पुसरला वेंकट सिंधु है और मेरी जाती खोजने का कष्ट मत कीजिये। नीली वर्दी पहनती हूँ, सीने पर तिरंगा लगाती हूँ, घुटनों से ऊँची स्कर्ट पहनती हूँ और माथे पर बिंदी भी लगाती हूँ, भारतीय हूँ मैं और इंडियन होना ही मेरी जाती है. 
ना मैं दलितों का झंडा उठाती हूँ और न सवर्णो की झंडाबरदार हूँ, मुझे इन सब से दूर ही रखिये। 
कोर्ट में पसीना बहाते वक्त ना मैंने बाबा साहेब आंबेडकर का और ना ही महात्मा फुले का फोटो लगाया था, हर बार सर्विस के वक्त ना ही मेरे गोपी सर ने कहा था कि, सिंधु खेलों क्योंकि तुम्हे उस मनुवाद का बदला लेना है. कर्ण को सूत पुत्र कहकर अर्जुन की बराबरी न करने देने वाले समाज को ललकारना है. गोपी सर ने कहा था कि बस खेलो खुद के लिए खेलो और देश के लिए खेलो, जीने के लिए खेलो. 
मैं खेलती हूँ क्योंकि मुझे सिर्फ खेलना ही आता है, मैं सवर्ण भी नहीं हूँ, क्योंकि मैं इस लिये खुद को सर्वश्रेष्ठ नहीं मानती की मैं किसी वेदपाठी परिवार में पैदा हुई हूँ, बैडमिंटन को अपनी पूंजी इसलिए नहीं मानती क्योंकि मेरी जाती मुझे रैकेट उठाने की इजाजत देती है, मैं बैडमिंटन को अपनी पूंजी इसलिए मानती हूँ क्योंकि मैं इससे प्यार करती हूँ. अपने खेल से मैं किसी याज्ञवल्क्य, दधीचि या अगस्त और अत्रि की परम्परा को आगे नहीं बढा रही, मैं बस अपने उस सपने को आगे बढा रही हूँ, जिसे बचपन से मेरी कोरी मासूम आँखों ने देखा था... माफ़ कीजिये मुझे, आपकी इन छोटी जाती धर्मों की सोच से, मैं इन सबसे ऊपर हूँ क्योंकि मैं सिंधु हूँ, सिंधु मतलब सागर समुद्र। हाँ मैं अथाह हूँ, मेरे खेल में गोते लगाइये, मेरी जाती खोज कर मेरे देश को छोटा मत कीजिये। 
- आशिता दाधीच
While India was rooting for PV Sindhu, Andhra Pradesh and Telangana were googling her caste -


Sunday, May 1, 2016

An Indian

महाराष्ट्र दिवस की शुभकामनाए? ये क्या आशिता जी आप तो राजस्थानी हो न? हाँ हूँ, लेकिन पिछले पांच सालों से इस शहर में हूँ, इसकी आबोहवा में सांस ली है, इसके बाजारों, सड़कों और मंदिरों को अपना माना है, लोगों को अपना माना है, आखिर इस शहर ने पांच साल पहले आई हुई एक अंजान लड़की को बड़े प्यार से गले लगाया था, इतनी कृतञता तो मेरी भी बनती है. मेरे लिए यह 'छोरी' से 'मुलगी' होने के यात्रा है, लेकिन इस यात्रा में मैं मुलगी जरूर हुई हूँ परन्तु छोरी भी जरूर रही हूँ. 
यह एक संवाद आज तब हुआ जब अपनी आदत के मुताबकि मैंने मोबाइल के सभी कॉन्टेक्ट्स को 'महाराष्ट्र दिवस' की शुभेच्छा भेजी थी. इस शहर से या यूं कहूं मराठी से मेरा पहला साबका तब पड़ा था जब कॉलेज के पहले दिन एक सहपाठी ने मुझ से पूछा था, "तुझा नाव काय रे" उस दिन कुछ समझ नहीं आया, लेकिन ये समझ आया था कि कोई तो है, जो मेरे बारें में जानना चाहता है.
नटरंग मेरी पहली मराठी फिल्म, जो कॉलेज के मूवी एप्रिसिएशन लेक्चर के दौरान देखि थी, उस दिन तो काला अक्षर भैंस बराबर ही रहा, पर, आप मराठी फिल्में हिंदी पर मेरी प्राथमिकता, नटरंग के चलते ही बनी.
कैरियर की शुरुआत मेट्रो सेवन डेज, और स्टोरी के दौरान एक मालन से पता पुछना, और उसका हिंदी से न समझा पाना लेकिन दूकान छोड़ के आगे तक आना और मुझे मेरी मंजिल दिखा देना, इस अंजानी भाषा के थोड़ा और करीब ले आया.
ट्रेन का पुढे चला, लवकर चला, हमेशा मेरे लिए एक पहेली था, आखिर इन्हे 'लव क्यों करना है ट्रेन में?' ये सवाल आज बस हंसा भर देता है.
गणपति के वो मोदक और गलियों में बप्प्पा मोरिया और गोविंदा कर के बरबस बैंड पर नाच देना, अर्थ न समझने के बावजूद, सुख कर्ता, दुःख हर्ता बाय हार्ट याद कर लेना, और फिर जय गणेश जय गणेश देवा की जगह सुख कर्ता दुःख हर्ता गुनगुना शुरू कर देना, याद भी नहीं कब अचानक बरबस इस अंजानी भाषा ने मेरे शब्दकोष के न जाने कितने शब्दों को स्थानांतरित कर दिया।
न जाने कब गधेरों, बांदरो की जगह, मेल्या, कुत्र्या ने ले ली. ना जाने कब नव समवतरसर की शुभकामना गुड़ी पाड़वा की शुभेच्छा बन गयी. जन्मदिन मुबारक, वाढदिवसाच्या हार्दिक शुभेच्छा हो गया. आओ सा, बिराजो, को न जाने कब बस ना हे घे, बना लिया खुद भी याद नहीं।
मालवणी में रिपोर्टिंग करते हुए, अदब से सर ढंक कर आदाब कहना, और टर्मिनल टू पर वन पीस में हाय कहना, यह दोनों देन मुंबई की ही तो है. वीक ऑफ़ को विरार कोलीवाड़ा घूमना और संडे नाइट को मरीन ड्राइव के चक्कर लगाना यह रंग मुंबई के ही तो है. 
अभी थोड़े दिन पहले मम्मी, मौसी के पास इंदौर गई थी, और उनका पहला ही सवाल था, टीवी में कुछ नेताओं के भाषण सुनते है, अपनी लड़की उस शहर में अकेले कैसे रहती होगी, और माँ ने मुस्कुरा कर कहा उसी तरह जैसे माँ की जगह बेटी मौसी के पास रह जाती है.
हाँ धरती धोरा री, आ तो सुरगा ने सरमावै आज भी रोंगटे खड़े कर देता है लेकिन, गरजा महाराष्ट्र माझा भी तो रोमांचित कर देती है.
बचपन में हमारे स्कूल में प्रार्थना के बाद एक नारा लगवाया जाता था, जय राणा प्रताप की, जय शिवा सरदार की. हाँ बिलकुल जितनी श्रद्धा से राणा के आगे सर झुकता आया है उसी स्नेह से शिवा को नतमस्तक होती हूँ, जो उबाल गढ़ चित्तौड़ को देख कर आता है वहीं जज्बा सिंधुदुर्ग भी तो दे जाता है.
तो फिर क्या अंतर है दोनों में, है तो दोनों मेरी मां और मौसी ही न!!
जय राणा प्रताप की, जय शिवा सरदार की
- आशिता दाधीच





Wednesday, March 30, 2016

Being a Rajasthani

 अच्छा आप राजस्थान से है, मारवाड़ी होंगे आप? नाह मेवाड़ी हूँ। अच्छा अच्छा पर जैन होंगे। नहीं जनाब ब्राह्मण हूँ। अच्छा पर सरनेम बड़ा अजीब है आपका। वहां काफी कॉमन है। कहीं आप उनकी रिश्तेदार तो नहीं जिनकी हड्डियां देवता ले गये थे। वो दस हजार साल पहले की बात है जनाब मैं उनकी महज वंसज हूँ। तो क्या आशिताजी आप भी अपनी हड्डियां दे देंगी किसी को....
उफ़्फ़ न जाने कैसे कैसे सवाल पर बिना किसी से दुर्भावना रखे आज राजस्थान दिवस के मौके पर कागज पर उतार रही हूँ वह सब जो एक राजस्थानी ओढ़ता बिछाता है।

ओह्ह आशिताजी आप पानी पी रही है, आपकी स्टेट में तो पानी होता ही नहीं है। हमने सुना है ऊंट सात दिन में एक दिन पानी पीटा है।
क्योंकि वो ऊंट है मेरे भाई मैं इंसान हूँ।

रे आशिताजी आपकी माताजी तो 18 किलोमीटर दूर से पानी लाती होंगी ना। हमने टीवी में सुना है
कम ऑन रायसागर झील, एशिया की सबसे बड़ी झील मेरे जिले में है।

आपने मुम्बई आने से पहले कभी गेंहू खाये थे, राजस्थान में तो कुछ उगता नहीं है न।
हाँ जनाब बस मिट्टी खाई है इतने साल।

आपके यहां की वो एक औरत बड़ी बहादुर थी, क्या नाम है लक्ष्मी बाई।
माफ़ कीजिये वो यूपी की थी।

अच्छा हाँ वो पद्मिनी जो जल मरी, पर सूइसाइड से बेहतर होता वो लड़ाई करती।
मेरे काका, जब किले में ना अन्न था ना असलहा तो कब तक लड़ती वो,
और राजस्थान पद्मिनी से इतर शादी के अगले दिन गर्दन दान करने वाली हाड़ी, पन्ना, कर्मावती का भी है।

हाँ सारे राजस्थानी बस लड़ाकू ही है।
भगवान के लिए मीरा, रामदेव शाह पीर, गोगाजी, तेजाजी, मांगलिया जी को पढ़ने का कष्ट करे।

हम राजस्थान आएँगे घूमने अगली सर्दी में दो दिन में हो जाएगा ना।
हाँ मैप तो देख ही लेंगे आप दो दिन में वरना तो अकेले सोनी जी की नसिहा एक दिन और आमेर एक दिन ले लेंगे।

आपके गाँव में कोई बड़ा तीर्थ नहीं है, अशिताजी।
खाटू श्याम, जोगनिया, रामदेवरा, जीण, नाथद्वारा शाहपुरा, बताओ कौनसा तीर्थ चाहिए, भर भर के है हमारे पास।

अच्छा आपके उधर खाने पीने को कुछ अच्छा मिलता है क्या?
मेरे काकाजी पुरे देश में सिर्फ ढाई इंच के रसगुल्ले वहीँ बनते है हमारी मावा कचौरी, हमारी राब, दाल दोक्ला का कोई जोड़ नहीं।

आशिताजी आपको कितने बच्चे है?
मेरी शादी नहीं हुई अभी आई एम् टू यंग।
पर राजस्थान में तो बचपन में शादी हो जाती है हमने बालिका वधु में देखा ।
अच्छा, तो मेरी शादी भी वहीं देख लेना।

आपके वो प्रताप अच्छे फेमस हुए।
जनाब महाराणा प्रताप बोलिये, और दुर्गादास राठौड़, अमर सिंह, सांगा, उदय सिंह, बप्पा रावल भी बहुत फेमस है, जरा जीके दुरुस्त करके आइये।

अच्छा आपने मुम्बई आने से पहले पेड़ देखे थे, हरयाली देखी थी।
भाई रुला मत, अरावली की बेटी हूँ, हमारे माउंट आबू में बर्फ पड़ती है, घने जंगल है।


अच्छा आपके वहां कोई क्लासिकल डांस होता है, कत्थक कुचिपुड़ी टाइप।
योट्यूब एक चीज होती है उस पर गुलाबो को देखिये, फिर भी प्रश्न पिपासा शांत न हो तो गैर घूमर पनिहारी देखे।

तो क्या क्लासिकल सांग भी होते है।
क्लासिकल फ्लासिकल तो पता नहीं पर हिचकी, चिरमी और कौवे पर भी होते है, इंसानो की बात तो लीजिये ही मत।
आप बिजनेस नही करती आप तो राजस्थानी हो।
करती तो हूँ, खबरे बेचने का काम, और क्या करूं।

आपके पैरेंट्स ने आपको मुम्बई कैसे आने दिया, आप तो राजस्थानी हो।
राजस्थानी हूं भाई बांग्लादेशी नहीं हूँ, वो आ जाते है तो मैं क्या चीज हूँ।

(एक भी प्रश्न कपोल कल्पित नहीं है, पिछले पांच साल में इन सब सवालों के जवाब दिए है।)

Friday, March 4, 2016

Mirza Galib

व्यंग पर आजमाया पहला हाथ

ग़ालिब की मौत

अरे ग़ालिब मियाँ क्या बात है, कुछ हैरान परेशान से नजर आ रहे हो, अपने दिल की कहों।

क्या कहूँ मेरे मौला, बस सोच रहा हूँ, मेरे शेर कैसे होंगे, इतनी मेहनत से लिखा था उन्हें अब जमीं पर कोई नामलेवा भी होगा या नहीँ उनका, कोई दोहराता भी होगा उन्हें क्या?

हाहाहा दुःख ना करों ग़ालिब मियाँ तुम्हारे ढ़ेरों आशिक़ ज़िंदा है अभी और कायनात के आखिर तक रहेंगे, पर...

पर क्या मेरे मालिक, हुकुम कीजिए...

तुम्हारे सच्चे आशिक तो एक से एक है, पर ये मुआं इंटरनेट, न जाने क्या क्या होता है, क्या और एक वो मरजाना व्हाट्सएप पता ही नहीं चलता कौन तुम्हारा मेहबूब है और कौन नहीं। छोडो इन बातों को ग़ालिब जाओ सोजाओ,

पर मौला

ग़ालिब, मेरे हुकुम की तामील हो।

(अगले दिन सुबह) ग़ालिब तुम तो कहते थे, मौत का एक दिन मुअययन है नींद क्यों रात भर नहीं आती, तो इस रात क्यों नींद नहीं आई तुम्हे मेरे नेक बन्दे।

मालिक मैं आपका बन्दा हूँ न तो अपनी खुदाई को दीदार करा दो, जर्रे को इसके मेहबूब से मिला दो, मुझे जमीन पर जाना है या मेरे मालिक,

ए मेरे बन्दे ऐसी जिद न कर इसमें तेरा ही नुक्सान है,

न मालिक,

ठीक है, ये ले मोबाईल नामका भयानक यन्त्र इसमें है मुआं फेसबुक और व्हाट्सएप, इससे अपने आशिकों को खोज और जिससे मिलना चाहे मिल ले। जा....

और ग़ालिब की जैसे आँख बन्द हो गयी, आँखे खुली तो मरीन ड्राइव पे खड़े थे, या मेरे मौला क्या जन्नती नजारा है, पहले मिला होता तो ये गुलाम बीसियों और शेर लिख लेता।

अचानक ग़ालिब का मोबाइल भनभनाया किसी दीपा दीक्षित ने ग़ालिब का फोटो और चार शेर फेसबुक पे ड़ाले थे, बस ग़ालिब ने दिल ने चाहा और प्रकट हो गए दीपा के सामने,

हू आर यू ओल्ड मैन,

मोहतरमा हम कलमकार है, ग़ालिब के बारे में बात करने आए है,

ओह ग़ालिब ही इज ए वैरी कूल गाई, आई तोह जस्ट लव हिम्, मुव्वह्ह् ग़ालिब मुवाह...

(लाहौल विला कुव्वत ये मोहतरमा तो हमारी इज्जत लूट लेंगे) ग़ालिब फुसफुसाए, मोहतरमा आपने ग़ालिब का इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश ग़ालिब, जो लगाए न लगे, जो बुझाए न बुझे शेर सुना है...

होहोहो यू आर वैरी फनी अंकल, ये तो एसआरके ने कहा था दिल से में मनीषा कोइराला को..

हाय अल्लाह ये मुवां एसआरके कौन है, दोजख में जाएगा ये, हमारे शेर चुराके अपने नाम पे चलाता है, अब तो हम यही रहेंगे जमीं पर, अपने शेरों को चोरो से बचाएंगे।

अचानक किसी व्हाट्सएप ग्रुप से घनघोर ग़ालिब ग़ालिब सुनाई दिया और मोबाइल की स्क्रीन जगमगाई,

वाह मेरे आशिक आ गए, देखू तो क्या कह रहे है,

और ग़ालिब ने चैट पढ़ना शुरू किया,

जब से देखा है तुझको नींद नहीँ आती, ग़ालिब तू औरत है या नींद भगाने की गोली।

लिल्लाह ये शेर हमने नहीं लिखा, ग़ालिब की आत्मा रो पड़ी।

बीबी मेरी रेशन की डोरी, मैं उसका जुगनू, पर डर जाऊ जब जब उसको देखूं - चचा ग़ालिब ने कहा है

हाय अल्लाह, हमारी बेगम ऐसा शेर देख लेंगी तो हमारे भूत को भी मार देंगी। चलो तीसरा मैसेज देखूँ, क्या कहता है...

ग़ालिब ने कहाँ है - चला तो था मैं अकेला ही घर से मोहब्बत की तलाश में भूखा प्यासा, रास्ते में गन्ने के जूस की दूकान मिली और रस पीके ही लौट आया।।

या मेरे खुदा, कैसे कमजर्फ लोग है ये, क्या क्या भेज रहे है, मेरे नाम पे, दोजख में जाएंगे सारे।

अचानक मोबाइल फिर झंझनाया, फेसबुक पर ग़ालिब फैन ग्रुप नजर आया, एडमिन ने शेर ड़ाला था, कौन जीता है तेरी जुल्फ के सर होने तक, ग़ालिब का आत्मा नाच उठी, झट से जा कर एडमिन को धर लिया और कहा

तू खुदा का सच्चा बन्दा है, ग़ालिब के और शेर सुना,

खुदा कर बन्दा बोला रुक, ग़ालिब की शायरी का सॉफ्टवेयर खोलने दे।

गोया ये क्या बला है?

देख पंटर किसी को बोल मत बट अपन इधर से शेर कॉपी करके पेस्ट करता है, सबको, ग़ालिब कूल है यार, उसका फैशन कभी नहीं जाता और इम्प्रेशन भी मस्त पड़ता है।

लाहौलविलाकुव्वत, ये सब देखने सुनने से पहले मैं मर क्यों नहीं गया, अरे हाँ, मैं तो मरा हुआ ही हूँ, अच्छा हुआ मैं मर ही गया, या मेरे मौला ये इन रोज रोज एक नई मौत मारने वाले आशिकों से मुझे बचा, मुझे वापिस बुला के मालिक, रहम कर।
©आशिता दाधीच
#AVD