कितनी अकेली हो तुम मेट्रो, उकता नहीं जाती तुम, जलन नहीं होती तुम्हे मुंबई लोकल से।
उस कोनें में देखों वो मोबाइल पर ऊँगली दौड़ाती लड़की, और उस तरफ अपने वन पीस को खिंच खिंच कर घुटने ढ़कने की कोशिश करती लड़की। सर झुकाए औरतों से आई कॉन्टेक्ट अवॉयड करते मर्द, ऊँची मुंडी न करके औरतों को ताकने की कोई कोशिश न करते मर्द।
किसी दूसरे के मोबाईल में झाँकने की कोई कोशिश नहीं। कोई कोने में दुबक के ठूंस ठूंस के नहीं खा रहा, कोई जोर जोर से चुम्मा चुम्मा दे दे नहीं गा रहा।
बाजू में बैठ कर भी औरतें बात तक नहीं कर रही, किसी ने सीट पर पैर रख कर उकड़ू बैठने की कोशिश तक नहीं की। कोई एक दूसरे की तरह देख कर मुस्कुरा तक नहीं रहा, कुठे जायचा है तुम्हाला पूछना तो दूर की बात हैं।
न सास की बुराई न पति की तारीफ़, न शर्मा जी के बेटे के चर्चे न वर्मा जी की बेटी पर डिस्कशन।
कितनी भीड़ है पर कोई पुढे चला लवकर भी नहीं कह रहा। न नेलपेंट लग रहे है न सब्जी कट रही है।
बस मूर्तियां बैठी हैं। कोई मेरी छोटी सी स्कर्ट के लिए मुझे जज नहीं कर रहा।
कितनी तन्हा हो तुम मेट्रो, आओ किसी दिन मुम्बई लोकल की यात्रा कर लो, आखिर तुम्हे भी तो पता लगे जिंदादिली क्या चीज हैं।
©आशिता दाधीच
Tuesday, January 31, 2017
Mumbai Local train Vs Mumbai metro
Monday, January 30, 2017
Time pass friendship
टाइम पास दोस्त
अरे सोनालिका यह कैसे दोस्त है, तुम्हारी, इतना भी नहीं समझती कि तुम रोमिंग में हो।
कोई बात नहीं माँ , उसे नौकरी नहीं मिल रही वह तनाव में है, मुझसे बात करके हल्की हो जाती है।
(ऑफिस में)
सोनालिका तुम आधे घण्टे से डेस्क पर नहीं थी, बॉस खोज रहे थे तुम्हे, क्या हुआ।
अरे वो मेरी फ्रेंड है ना दीपाली परेशान है, उसे नौकरी नहीं मिल रही, उसका आज का इंटररव्यू भी फेल हुआ, डिप्रेस थी, उसी को ढांढस बंधा रही थी।।
दो महीने बाद
लो लो मिठाई खाओ।
मिठाई क्यों,
मेरी फ्रेंड दीपाली की जॉब लग गई,
वाह गुड़ गुड़।
(एक महीने बाद)
अरे सोनालिका आज कल तुम दीपाली के बारे में कुछ नहीं बता रही, क्या हुआ।।
कुछ नहीं, जॉब लग गई न बीजी हो गई है वो।
(दस दिन बाद)
सोनालिका दीपाली की जॉब कैसी जा रही है।
नही पता रे, बात नही हुई।
(दो महीने बाद)
अरे सोनालिका तो फाइनली तुम्हे अपनी ड्रीम कम्पनी में जॉब मिल ही गई, बधाई हो।।
थैंक्स या
तो इस बार तो दीपाली पार्टी देगी है ना।।
उम्मम उसे अब तक बता नहीं पाई फोन करके ,, जबसे उसकी जॉब लगी उसने फोन नहीं किया तो मुझे आक्वर्ड लग रहा है, उसे फोन करना।
कोई नहीं, तुम फेसबुक अपडेट कर दो, तब तो उसकी कॉल आएगी ही।
(सोनालिका अपडेट करती है, पर दीपाली का फिर भी कभी कोई कॉल नहीं आता)
सोनालिका का बर्थडे
क्यों री दीपाली का आज कॉल नहीं आया, तूने तो उसके बर्थडे पे 12 बजे विश किया था।।
आएगा ना माँ आ जाएगा बीजी होगी कहीं
पर फिर दीपाली का कभी कोई कॉल नहीं आया।।
Friday, January 27, 2017
Karani sena, Padmavati & Sanjay leela Bhansali
राजस्थान, वो प्रदेश जहां की किंवदंती बताती है कि ठण्ड से ठिठुरते एक राहगीर को बचाने के लिए एक बुजुर्ग ने अपनी बेटी को निर्वस्त्र होकर उस राहगीर को गोद में लेकर बैठने के लिए कहा था ताकि गर्मी से उस राहगीर की जान बचाई जा सके।
आतिथ्य सत्कार राजस्थानी रक्त में रहा है। ऐसे ही तो नहीं कहा जाता न, पधारो म्हारे देश।
फिर हे करणी सेना तुम्हे किसने हक़ दिया, किसी कलाकार को पीटने का, ?? हाँ?? अपने महाराणा ने तो सूरज डूबने पर मानसिंह को भी ना मारा था, रोते पछाड़ते शक्तिसिंह को वापिस गले लगा लिया था।
दान, क्षमा, त्याग ये तो राजस्थानी रक्त में सहज आता है। उस जमीन की टाबरी होने पर मुझे हमेशा गर्व रहा लेकिन करणी सेना बधाई हो तुमने मेरा सर शर्म से झुका दिया आज, महज तुम्हारी गन्दी राजनीति के लिए तुमने भामासा जैसों के स्नेह और आतिथ्य सत्कार की पारंपरिक परम्परा पर पानी उंडेल दिया, धिक्कार है।
अमरिया के हाथ से बिलावडा रोटी ले गया तो भी महाराणा ने बिलाव को कुछ नहीं कहा, मीरा विष पी गई पर कुछ न बोली, पन्ना का बेटा कट गया और हाड़ी ने शीश उपहार में दे दिया पर कुछ न बोले और तुम्हे एक फिल्म से आपत्ति हो गई।
करणी सेना
मैं जानती हूँ,
जौहर के साथ हर राजस्थानी की भावना जुडी है, उन 16 हजार वीर राजपूत ललनाओं का जौहर आज भी हर मेवाड़ी, माड़वाडी और शेखावटी की लड़की के लहू में उबाल लाता है।
खिलजी की बर्बरता, गोरा बादल का साहस और पद्मिनी का यौवन परिपूर्ण त्याग न सिर्फ कन्हैया लाल सेठिया बल्कि गढ़ चितौड़ के हर पत्थर ने हमारे खून में उतारा है।
पितामह सेठिया जी के शब्दों में चित्तोड़ खड्यो है मगरा में विकराल भूत सी लिया छिया.।
ट्रेन से गुजरने वाला हर बटाऊ भी गढ़ चितोड़ को देखकर चमकृत हो जाता है, उस गढ़ की शान है पद्मिनी महल, जौहर कुंड और हाँ हमने उस कथा की हमेशा एक ही रूप में सुना है।
अब अचानक कोई नए सिरे से सुनाए तो तकलीफ तो होगी ही, पर जरा रुको देख तो लो कि उसके पास क्या साक्ष्य है।
या कहीं ऐसा तो नहीं कि अगला उसे महज कपोल कल्पना युक्त कथा कह रहा हो, भाई कलाकार है वो उसे हक़ है कला प्रदर्शन करने का। कैसे भूल गए तुम अकबर को उसी के दरबार में पीथळ ने कहा था हिंदवाणों सूरज चमकेलो अकबर की दुनिया सूनी हुई,
तब तुम कैसे किसी की कला को रोक सकते हो, हमारे पृथ्वीराज ने तो 17 बार गौरी को भी माफ़ कर दिया था, तब बिना जाने समझे तुम्हे किसने हक़ दिया राजस्थान को अपनी बपौती समझ कर किसी को पीटने का???? कोई हक नहीं तुम्हे महान राजस्थान की पारलौकिक आतिथ्य संस्कार परम्परा पर विश्व पटल के समक्ष प्रश्न चिन्ह लगाने का।
- आशिता दाधीच, राजस्थानी छोरी
Thursday, January 26, 2017
Labour
ये बॉस भी न मुझे मेंटली हरैस करने का कोई मौका नहीं छोड़ता। टीम में क्या मैं अकेली हूँ, नौ और लोग है पर नहीं मंडे की क्लाइंट मीटिंग और बुधवार को हैडक्वार्टर से आने वालों के लिए पूरी प्रेजेंटेशन मैं अकेली तैयार करूँ? हद है यार। सन्डे को तो मजदूर भी छुट्टी मनाते है और मैं शिवानी अवस्थी, सीनियर मैनेजर सड़ रही हूँ अकेले ऑफिस में।
हुह आई हेट बॉस।
और यार क्या मस्त गया था मेरा लास्ट सन्डे, घर पर फ्रेंड्स के साथ हाउस पार्टी, डांस, फ़ूड, म्यूजिक वाओ दैट वाज अमेजिंग। लेकिन उस बेवकूफ सपना ने सब खराब कर दिया था। मेरी पूरी रेप्यूटेशन बिगाड़ दी थी, मैंगो शेक कितना मीठा था और पनीर बुर्जी सो ऑयली छी।
काम में ध्यान ही नहीं है उसका, तीन तीन घरों का काम ले रखा है हाथ में करेगी भी कैसे। और...कुछ 16-17 की उमर होगी लड़के ताड़ने से फुर्सत मिले उसे तब तो काम करेगी।
पर मैंने भी अच्छा सबक सिखाया इसे, पिछले सन्डे की पूरी रात उसे जमकर पीटा, अब मिर्च, मसाले और तेल में कोई गलती नहीं होती उससे। (और अवस्थी मैडम मुस्कुराने लगी, साथ ही सन्डे को दफ्तर बुलाने पर बॉस को कोसना भी जारी रहा)
- आशिता दाधीच
Saturday, November 19, 2016
Jhansi ki Rani Lakshmi bai
सोशल मीडिया पर झाँसी की रानी ट्रेंड हो रही हैं, झांसी की रानी, घोड़े पर चढ़ी एके सिंघनी सी औरत, पीठ पर बंधा बच्चा भारतीय माँ का प्रतीक, हाथों में तलवार, "लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार," शायद पहली कक्षा में थी जब पहली बार उनका चित्र देखा था और जैसे उस तस्वीर से मोहब्बत से हो गई, माँ ने उनके बारे में काफी कुछ बताया भी. लेकिन मेरे लिए झांसी की रानी मणिकर्णिका, छबीली, मनु बाई, लक्ष्मी बाई ज़िंदा होकर सामने उतर आई जब पहली बार चौथी कक्षा में सुभद्रा कुमारी चौहान की लिखी झाँसी की रानी कविता पढ़ी, और इस कविता की हर लाइन ने चौहान को मेरी प्रिय कवियत्री बना दिया। छत्रपति शिवाजी महाराज से भी तो मेरा साबका चौहान ने ही करवाया जब उन्होंने कहा, "वीर शिवाजी की गाथायें उसकी याद ज़बानी थी,"
सुभद्रा मैं तुम्हारी कृतज्ञ हूँ क्योंकि अपनी उस कविता के बूते तुमने मुझे मेरी नायिका दी जिसे मैं प्यार करती हूँ, जिसे मैं खुद में खोजना चाहती हूँ, "तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार....घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी" क्या लिखा तुमने सुभद्रा, झांसी वाली वो रानी जैसे उतर आई मेरी आँखों के आगे.
फिर अचानक उसी सिंघनी में तुमने अभिज्ञान शाकुंतलम की शकुंतला उतार दी, "सुभट बुंदेलों की विरुदावलि सी वह आयी झांसी में, चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव से मिली भवानी थी." शुक्रिया चौहान मुझे वो लक्ष्मी देने के लिए जिससे मैं बेइंतेहा मोहब्बत करती हूँ.
तुम्हारी उन २१ अंतरों की वो कविता मेरे लिए जिंदगी कब बनी मुझे खुद नहीं पता चला. शायद तुम पैदा ही उस कविता को लिखने के लिए हुई थी. महादेवी ने भी तो निराला से तुम्हे कविता कहने वाली लड़की कह कर ही मिलाया था.
तुमने मेरे लिए झांसी की उस रानी को महानायिका बना दिया, आज भी कम से कम ४०० बार तुम्हारी वो कविता पढ़ने के बाद भी आज भी जब मैं गुनगुनाती हूँ, "रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वन्द्ध असमानों में, ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी," रौंगटे खड़े हो जाते है "काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी, युद्ध क्षेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी," खून गर्म हो जाता है. "मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी, अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी," आंसू लुढ़क पड़ते है.
मेरे लिए लक्ष्मी तुम्हारी कलम से जीवित हुई सुभद्रा। सुभद्रा वो नाम जो कृष्ण की बहन थी, अर्जुन की शक्ति और अभिमन्यु की माँ, जो अमर रख गई पांडव वंश का बीज, बिलकुल वैसे ही तुम हमारे दिलों में लक्ष्मी बाई नाम की वह चिंगारी जगा गई जो कभी नहीं बुझेगी सुभद्रा।
"बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान" तुम्हे झाँसी की उस रानी के मार्फ़त भारतीय नारी के सम्मान की अचूक पुनर्स्थापना की है, और उसके लिए तुम्हे शुक्रिया सुभद्रा। "बरछी ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी," तुम्हारी छबीली साक्षात माँ शारदा थी हर कला में निपुण, लक्ष्मी तो वो थी ही, " हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में," और उस सी काली, चंडी, जगदम्बा तो वैसे ही हमें मिली ही कितनी थी.
अपनी अद्वितीय कलम से तुमने लक्ष्मी को अमर कर दिया, "जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी, यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी, होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी, हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी। तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी."
कई वीरांगनाएं सिर्फ सुभद्रा न होने के चलते इतिहास की किताबों से बारहवें से पन्द्रहवें पन्ने और शिक्षा विभाग की पाठ्यक्रम तय करने के मुबाहिसों के दरमियान ही दम तोड़ गयी. शुक्रिया सुभद्रा, हमें हमारी प्रेरणा देने के लिए, हमें लक्ष्मी देने के लिए.
© आशिता दाधीच।
Wednesday, October 26, 2016
Mahendra Singh Dhoni
My review on movie Mahendra Singh Dhoni untold story
माही दोस्त मजा नहीं आया। सॉरी यारा।
तुम अज़हर नहीं हो ना कि तुम्हे इस महिमामंडन की जरूरत थी।
तुम हो और हम तुम्हे जानते है, यह सब दिखाने की क्या जरूरत थी। प्रियंका झा, साक्षी, सब पता है धोनी हमे।
तुमने कौनसा शतक कब लगाया, जयपुर पारी में कितने छक्के लगाये तुम भूल गए होंगे हम नहीं भूले।
पान सिंह का बेटा, टिकट कलेक्टर धोनी, माता का भक्त धोनी, हैलीकॉप्टर वाला धोनी सब याद हैं हमे।
हाँ, हम विराट को चाहने लगे है पर तुम्हे भूले नहीं है, बिलकुल वैसे ही जैसे हमे आज भी श्रीनाथ, सचिन, राहुल सारे के सारे याद है और अपने पोते पोतियों के होने तक याद रहेंगे। जब हम अपने घर का पता भूल जाएंगे तब भी सौरव का ऑफ़ कट, सचिन का अपर कट और तुम्हारा हैलीकॉप्टर याद रहेगा।
और तुम तो अभी खेलते हो, फिर 22 गज की पट्टी से 72 एमएम तक जाने की जरूरत क्या थी दोस्त।
दोस्त किस संघर्ष की बात कर रहे हो तुम।
तुम दुति चाँद नहीं हो जिसे औरत होने के बावजूद मर्द कहा गया।
तुम मिल्खा नहीं हो जिसने विभाजन की दुखान्तिका देखी हो।
तुम मैरी कॉम नहीं जो आईसीयू में बच्चा होने पर भी पंच मार रही थी।
तुम वो एथलीट नही हो जिसे ज़िंदा रहने के लिए मिट्टी खानी पड़ी हो।
सॉरी दोस्त।
पर तुम एक मिडल क्लास परिवार के बेटे हो, और उस तबके से हो जहां से तीन चौथाई भारतीय आते है, यूपीएससी टॉप करते है, टूटे स्कूटर पर जिम्नास्ट प्रैक्टिस करते है, स्ट्रीट लाइट में पढ़ते है।
लगभग 80 प्रतिशत भारतीय परिवारों में बच्चे के सरकारी नौकरी में रहने का प्रेशर होता है।
याद है ना आर माधवन का थ्री इडियट्स वाला किरदार, जिसे फोटो ग्राफर बनना था पर उसके पिता उसे, इंजीनियर बनते देखना चाहते है। अधिकांश भारतीय परिवारों में बच्चे वही बनते है जो माँ बाप चाहते है, तो क्या अनोखा संघर्ष दिखा रहे हो तुम, दोस्त। तुमने विद्रोह किया, कई करते है, अपने सपनों का पीछा किया कई करते है।
फिल्म खुबसूरत है बेशक खूबसूरत है,सुशांत गजब है, नो डाउट, पर लाखों सवाल है मेरे दिल में।
इस महिमांडन की क्या जरूरत थी दोस्त?
©आशिता दाधीच
'Adios Amigo' Bye my friend
जा दोस्त जा
जाना ही है तुझे
पर फिर भी मैं रख लुंगी अपने साथ।
बिलकुल चुपचाप
बिना किसी को बताए
जैसे माँ रख देती थी
बैग के कोने में
रोटी और आचार।
जैसे खत्म होने से पहले भर देते थे
पापा मेरा गुल्लक हर बार।
सबको लगेगा तुम नही हो मेरे साथ।
पर तुम रहोगे वैसे ही
जैसे खीर में रहती है शक्कर।
और
सोने में रहती है रत्ती भर की खोट।
तुम्हे भी बिना पता चले
रख लुंगी अपने पास,
उतना ही छुपा कर
जितना मेरी पीठ पर
बना हुआ टैटू छुपा है।
और
तुम चलते रहोगे मेरे साथ
वैसे ही जैसे
चलती है मेरी
परछाई।
कोई तकलीफ नही होगी
तुम्हे इस दरमियाँ
क्योंकि
मैं रखूंगी तुम्हे वैसे ही
जैसे हथिनी रखती है
अपने बच्चे को
बारिश में
बिलकुल अपने पेट के नीचे।
साथ रख लुंगी तुम्हे वैसे ही
जैसे
रख लेती है अँधेरे को
दीपक की छाया।
नहीं जाने दूंगी तुम्हे
वैसे ही जैसे
आम के पेड़ को रोक लेती है
गिलखी की वो बेल।
रोक लुंगी तुम्हे।
रख लुंगी अपने पास।
क्योंकि जाना तो तुम्हे है ही,
पर
साथ भी तो चलना है तुम्हे।
साथ रहना है
मुझमें
मेरे होकर।
©आशिता दाधीच