सवाल नहीं करते?
आज भी जब मेरे पैर पड़ते है मरीन ड्राइव की उस बाउंड्री पर
तो चीख कर वो मुझसे तेरा पता पूछती हैं।
हाजी अली की दरगाह का वो रास्ता
मेरा हाथ खाली देख कर समुद्र में छिप जाता हैं।
दादर स्टेशन का वो छोटू
दीदी, भैया कहां हैं पूछ जाता हैं।
सीएसटी का वो पान वाला आज भी
पैसे किसके खाते में लिखूं सवाल करता हैं।
बोरीवली का वो नैशनल पार्क अब मेरे हांफ जाने पर
सहारा देने के लिए तुझे पुकारा करता है।
हर बार कुछ खाने पर गालों पर फैला अन्न
मुंह पोंछ देने को तेरा रुमाल मांगता है।
फिल्म देखने से मुड चुकी मेरी गर्दन
सहारा देने के लिए तेरा ही कंधा मांगती है।
माउंट मेरी की वो सीढ़ियां पूछा करती है
कि मुझे गोद में उठा कर बिना हांफे दौड़ने वाला कहां है।
आसमां में उगा सूरज भी पूछा करता है
कि क्यों अब वह हमारी उंगलियों के बीच से नहीं निकल पाता है।
मेरे घर का वह बिस्तर पूछा करता है
कि क्यों अब उसमें लिपट कर सोने वाला नहीं आता है।
वर्सोवा का वो किनारा पूछा करता है
कि अब तू पैर भिगोने कहा जाता है।
सड़क पर भौंकने वाला कुत्ता भी पूछा करता है
कि डर से तू जिसे लिपटा करती थी वो कहा गया।
चेहरे पर आ लटकी जुल्फे भी पूछा करती है
उन्हें हटाने वाला अब कहा गया।
माथे पर आ जमी पसीने की बूंदे पूछा करती है
कि उसे पोंछने वाला कहा गया।
न जाने कितनी सखियां कितने परिचित और कितने रास्ते पूछा करते है
तू कहां गया
क्या कोई तूझसे नहीं पूछा करता
क्या कोई तूझे सवाल नहीं करता
करता है तो क्यों तू उन सवालों से हलकान नहीं होता।