Tuesday, May 5, 2015

पत्रकार की प्रेम कहानी Love story of A journalist

हाँ ये कुछ अलग कहानी है
 क्युकी ये इक पत्रकार की प्रेम कहानी हैं।
 यहाँ ब्रेक फास्ट से शुरू होकर डिनर तक चलने वाली डेट नहीं होती।
 लुभाने के लिए मेक अप से पुती कोई लडकी नहीं होती।
 घंटो लम्बी शोना बाबू वाली बाते नहीं होती।
ये वो कहानियाँ होती है जो पुलिस थानों में शुरू होती हैं।
 जिनमें यश चोपड़ा की चिता के सामने प्रेम की कसमें खाई जाती हैं।
 जहां दंगे भडकने पर मुलाक़ात का एक मौक़ा मिल जाता हैं।
 तलाक के केस में कोर्ट रूम में प्यार पनप जाता हैं।
जहां अपने पहले फ्रेंच किस की डेट याद नहीं रहती पर हर रेल हादसा तारीख समेत याद होता हैं।
 जहां प्यार के कसमों वादों के साथ कन्फर्म का टैग दिया जाता हैं।
 जहां डेट के दरमिया मारिया के ट्रांसफर कन्फर्म होते है।
 घंटो की बकबक भी कभी कभी सुनी नहीं जाती है।
न जाने कितने सप्ताहों तक फोन कॉल 32 सैकंड से आगे ही नहीं बढ़ पाती है।
 मिलने पर बस फोन छिपा कर मुसीबत से निजात पाई जाती हैं।
 नजरे देख कर भी अनजान बनने की अभ्यस्त हो ही जाती हैं।
 पा कर भी कुछ कम होने का अहसास रहकर भी खुशियाँ दे जाता है।
फिर भी इस दरमिया पलता है
 इक विश्वास
 अपने और उसके होने का
 क्युकी ये कहानी है पत्रकार की
 जिसे दौड़ना है घडी से आगे
 जहां भावनाओं के लिए वक्त नहीं
 वहां बिन कहे सुने सब समझने की कहानी है ये।
- आशिता दाधीच #AVD #Ashita
 
 
 

सचिन तेंदुलकर Sachin Tendulkar

 
दिल चाहता है
 इक बार फिर से वो समा हो
 बस वही तू हो वही में हूँ
 एक अपर कट सिक्स हो
 कुछ पुल शॉट हो
 गली में तेरी बाल सुलभ मुस्कान हो
 गोल टोपी में छिपा तेरा मुखड़ा हो
 और तुझे देख कर मुस्कुराती करोड़ों नजरे हो।
सचिन सचिन की आवाजे हो
 चेहरे के वो उतरते चढ़ते भाव हो
 नफरत भुला कर गले लगते लोग हो
 मिठाई खा दिवाली मनाता मुसलमान हो
 गले मिल ईद मनाता हिन्दू हो।
विराट और रैना में तुझे खोजने की
 कोई कोशिश न हो
 फिर कोई सौवा शतक हो
 छोटे कद का बड़ा सा कैच हो
 न बॉल टेम्परिंग हो न स्लेजिंग हो
बस आँखों में कुछ अंगार हो
 आसमान में उठी कृतग्य नजरे हो
 एम आर एफ का बल्ला हो
 तिरंगे वाला हेलमेट हो
न गुस्सा हो न गालियाँ हो
 किताब से निकला शॉट साकार हो
 फिर तुझ सा बनने का अरमा हो
 फिर एक शतक की और तमन्ना हो
बस तू हो
 फिर से हो
 और हो
 सच्चिन सच्चिन सच्चिन
©आशिता दाधीच
#Instant #AshitaD #AVD #Sachin #Love #Dream
 
 










 

Thursday, April 23, 2015

सवाल The Question

 
 
सवाल नहीं करते?
आज भी जब मेरे पैर पड़ते है मरीन ड्राइव की उस बाउंड्री पर
तो चीख कर वो मुझसे तेरा पता पूछती हैं।
 
हाजी अली की दरगाह का वो रास्ता
मेरा हाथ खाली देख कर समुद्र में छिप जाता हैं।
 
दादर स्टेशन का वो छोटू
दीदी, भैया कहां हैं पूछ जाता हैं।
 
सीएसटी का वो पान वाला आज भी
पैसे किसके खाते में लिखूं सवाल करता हैं।
 
बोरीवली का वो नैशनल पार्क अब मेरे हांफ जाने पर
सहारा देने के लिए तुझे पुकारा करता है।
 
हर बार कुछ खाने पर गालों पर फैला अन्न
मुंह पोंछ देने को तेरा रुमाल मांगता है।
 
फिल्म देखने से मुड चुकी मेरी गर्दन
सहारा देने के लिए तेरा ही कंधा मांगती है।
 
माउंट मेरी की वो सीढ़ियां पूछा करती है
कि मुझे गोद में उठा कर बिना हांफे दौड़ने वाला कहां है।
 
आसमां में उगा सूरज भी पूछा करता है
कि क्यों अब वह हमारी उंगलियों के बीच से नहीं निकल पाता है।
 
मेरे घर का वह बिस्तर पूछा करता है
कि क्यों अब उसमें लिपट कर सोने वाला नहीं आता है।
 
वर्सोवा का वो किनारा पूछा करता है
कि अब तू पैर भिगोने कहा जाता है।
 
सड़क पर भौंकने वाला कुत्ता भी पूछा करता है
कि डर से तू जिसे लिपटा करती थी वो कहा गया।
 
चेहरे पर आ लटकी जुल्फे भी पूछा करती है
उन्हें हटाने वाला अब कहा गया।
 
माथे पर आ जमी पसीने की बूंदे पूछा करती है
कि उसे पोंछने वाला कहा गया।
 
न जाने कितनी सखियां कितने परिचित और कितने रास्ते पूछा करते है
तू कहां गया
क्या कोई तूझसे नहीं पूछा करता
क्या कोई तूझे सवाल नहीं करता
करता है तो क्यों तू उन सवालों से हलकान नहीं होता।
 
 
 
 

नहीं चाहिए । don't want

मां
तूने तो कहा था,
वो मालिक हम सब का हैं।
वो सबके साथ न्याय करता हैं।
बुरे का बुरा भले का भला करता है।
फिर क्या गलती थी मां अपनी
क्यों झुलस गई मां फसल अपनी।
क्यूँ बर्बाद हो गयी मां गृहस्थी अपनी।

मां तूने तो कहा था।
वो नेता हैं।
उन्हें हम चुनते हैं।
वो हमारे सेवक हैं।
फिर क्यों हर्जाने के बस अठरा रूपये देते है।
बर्बादी पर इन्हें आंसू तक ना आते है।
हमें छू कर ये डेटाल से नहाते हैं।

मां तूने तो कहा था।
वो मीडिया है।
सच का साथ देती है।
सब के लिए लड़ जाती है।
फिर क्यों वो सिफर दोषारोपण करती है।
हमारे आंसू नहीं पोछती पर दिखाने को रोती है।
कहती सब है पर छिछला लगता हैं।

मां तूने तो कहा था।
वो हमारा हमदर्द हैं।
दुःख सुख समझता है।
हमारे संग खड़ा होता है।
फिर क्यों दो दिन से पूरा परिवार भूखा है।
तेरे गहने लेकर भी पटवारी तुझे छूता है।
बापू फांसी पर झूल गए है।
दिदिया का बियाह टूट गया है।
कहा है मां वो साथी अपना।
जो कहता था लड़ जाने की
मर मिटके हक लाने की।

हक नही चहिये अब मां मुझको।
बस दो जून की रोटी दे दो
तन पे कुछ कपड़े दे दो।
बापू की लाश भी हमे दे दो।
नहीं बनना हमे कोई नेता
बस हमे पैर पे खड़े रहने की हिम्मत दे दो।
भीख मत दो
बस इस आत्म सम्मान का मखौल उड़ाना छोड़ दो।
छोड़ दो।


© आशिता दाधीच
#Instant #poem #AshitaD #AVD

दौसा के किसान गजेन्द्र सिंह के आम आदमी पार्टी आप की रैली में फांसी लगा लेने पर

Farmer from dausa rajasthan committed sucide in aap s delhi rally 



Saturday, April 18, 2015

दर्द The Pain

हाँ दर्द होता हैं।

दर्द होता हैं जब महीनों की मेहनत से संवारा हुआ एक नाख़ून टूट जाता हैं।
 दर्द तब भी होता है जब बरसों से संवारे रिश्ते झट से जात धर्म के नाम पे टूट जाते हैं।

दर्द होता हैं उन पांच दिनों तक जब माहावारी होती हैं।
दर्द तब भी होता है जब इसी खून से जना बेटा घर से निकाल देता हैं।

दर्द तब भी होता है जब आएब्रो बनवाने की असीम पीड़ा से दो चार होते हैं।
 दर्द तब भी होता है जब अखबार में पेट में पलती किसी बेटी की मौत की खबर होती हैं।

दर्द तब भी होता है जब चमड़ी पर मोम से जलता वैक्स डाला जाता है।
दर्द तब भी होता है जब बहु बनने पर हमें जला दिया जाता हैं।

दर्द तब भी होता हैं जब अपनी फेवरिट ड्रेस फट जाती हैं।
दर्द तब भी होता है जब किसी का दुप्पटा फाड़ने की कोशिश की जाती हैं।

दर्द तब भी होता है जब हम अपनी ही ड्रेस में नहीं समा पाते हैं।
दर्द तब भी होता है जब किसी के कपड़े तार तार फाड़े  जाते हैं।

दर्द तब भी होता है जब हमारी गुड़िया टूट जाती हैं।
दर्द तब भी होता हैं जब हमारी भावनाएं मरोड़ दी जाती हैं।

दर्द तब भी होता है जब वो प्यार से बांह उमेठ देता हैं।
दर्द तब भी होता है जब अपने हाथ थकने तक वो बेल्ट से मारता हैं।

दर्द तब भी होता है जब व्हिस्पर खरिदने पर हमारा मजाक बनता हैं।
दर्द तब भी होता है जब कपड़ो के बूते वो हमे कुलटा कहते हैं।

हाँ तब भी दर्द होता हैं
बहुत दर्द होता हैं।
क्यों हमे ही यह दर्द होता हैं?
और क्यों हमें ही ये दर्द दिया जाता हैं।

©आशिता दाधीच

#Instant #Blog #Poem #AshitaD #AVD

Tuesday, April 7, 2015

LOVE

बहुत मुहब्बत है तुमसे
कल भी थी आज भी है
और सांसों के वजूद तक रहेगी
फिर भी दिवार है एक
हम दोनों के बीच
तेरी और मेरी ऊँचाइयों से ऊँची
तेरी उस चौड़ी छाती से भी चौड़ी।
दिवार मेरे आत्म सम्मान की।
दिवार मेरे समर्पण की।
तुझे तुझ से बेहतर बनाने की
चाहत की।
नहीं बर्दाश्त हैं मुझे।
मेरी सिवा किसी और का तेरे लबों पे सजना।
नहीं देख सकती मैं।
अपने सिवा किसी और के नशे में खोते तुझे।
अपनी हर शाम तेरे साथ बिताई है
क्या बदले में तेरी शामों पर हक नहीं मेरा।
हर बार सोलह आने मुहब्बत लुटाई हैं।
पाने के लिए बस चार आने पाए हैं।
अपना कल आज और कल भुलाकर तेरी बांहों में सजी हूँ ।
और तुझे हर रात तेरी पहली बर्बाद मुहब्बत के नाम सिसकते देख के मरी हूँ।
दुनिया के प्रपंच भुला के जब तेरे करीब आई हूँ।
तुझे बस मय खाने की मदहोशी में पाती आई हूँ।
क्या मेरी आँखों का नशा कम था।
जो तुझे जाम उठाने पड़ते थे।
क्या मेरा समर्पण कम था।
जो तुझे गैरों की याद दिलाते थे।
क्या कम था।
प्यार
या
शायद नशा ही तेरा प्यार था।
मैं तो सिफर एक खाना पूर्ति की।
शराब के अलावा तेरा मन बहलाने की खातिर।
- Ashita VD

It's Broken

 
 
 
हाँ नहीं आया मुझे।
तुम्हारी तरह
दुनिया को इस टूटे दिल का दर्द दिखाना।
हाँ नहीं आया मुझे
हर रात नशे में गाफिल होकर घर लौट आना।
किसी के कुछ पूछ लेंने भर से आपे से बाहर आ जाना।
नहीं आया मुझे
जुदाई के दर्द को कश ब कश सिगरेट के छल्ले बना कर हवा मैं उड़ाना।
मुझे आया तो बस चाय ठंडी हो जाने तक रुक कर तुम्हारा इन्तजार करना।
नहीं आया मुझे जाम पर जाम उठा कर गम को काफूर करना।
मैं तो बस अपने काम में आकंठ डूब कर भुलाती रही गम करना।
नहीं आया मुझे किसी कोकीन के इंजेक्शन से तुम्हे भूलना।
मुझे तो बस आया तुम्हारी यादों की अलमारी पर ताला लगाना।
नहीं आया मुझे हर रात सडकों में तमाशे करना।
नहीं आया मुझे किसी और से जुड़ कर भूलाना।
नहीं आया मुझे बस बिना मुड़े चले जाना।
नहीं आया मुझे अंधेरों में खोना।
मुझे आया तो बस रात के अंधेरों में हमारी उस सुहाग रात वाली पलंग पर तकिए से चिपक कर चुप चाप सो जाना।
और अपनी आती जाती सांसों में तुम्हे महसूस कर लेना।
- Ashita VD